सैनी, माली, शाक्य, मौर्य, कुशवाहा आदि नामों से पुकारे जाने वाले देश-विदेश में रह रहे सम्पूर्ण समाज की आवाज के रूप में सैनी घोष प्रस्तुत है। इस साईट पर आपका तहेदिल से स्वागत है। सैनी घोष सामाजिक जागृति का अग्रणी ब्लॉग-वेबसाईट है। यह संगठन, शक्ति, प्रतिभा-सम्मान, काव्य, सामाजिक गतिविधियां, सामाजिक विकास , कार्यक्रमों, आन्दोलनों, अभियानों आदि विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित विवरण, समाचार, आलेख, वैवाहिक विवरण आदि प्रकाशित करता है।
बुधवार, 13 अप्रैल 2011
सैनी रोते हैं तो कांग्रेसी क्यों खुश होते हैं शायद सैनी के दमखम की सराहना करते हैं, जो उनमें नहीं है… HARI NARYAN SAINI
हिमाचल के बजट सत्र के दौरान नालागढ़ के विधायक हरिनारायण सैनी ने मुखयमंत्री के समक्ष अपना दुखड़ा क्या रोया पूरी कांग्रेस में खुशी की लहर दौड़ गई। जब श्री सैनी विधानसभा में मुखयमंत्री से अपने क्षेत्र की दुर्दशा के बायां कह रहे थे तो कांग्रेस के दिग्गज अपनी खुशी का इजहार करते हुए मेजें थपथपा रहे थे।
राजनैतिक गलियारों में इस प्रकार की चरचा भी सुनी गई है कि जब कांग्रेस के विधायक चोरीछुपे मुखयमंत्री से अपने क्षेत्र के काम निकलवा लेते हैं तो श्री सैनी का अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ व्याखयान देने से कांग्रेसियों को लगता है कि प्रदेश विधानसभा में कोई तो बचा है जो विपक्ष की भूमिका अदा कर रहा है। इसलिए कांग्रेस को लगता है कि उनके सामने आए बगैर किसी ने मुखयमंत्री की आलोचना तो की है।
इस बार का बजट सत्र विधानसभा में चलता रहा लेकिन विपक्ष में सबसे अच्छी भूमिका नालागढ के बाशिंदों के लिए सैनी ने उठाई। उन्होंने कम से कम मुखयमंत्री से यह पूछने का साहस तो किया कि वह क्या मुहं लेकर विधानसभा चुनावों में जनता के बीच जाएंगे। जबकि यह प्रश्न प्रदेश के हर विधायक के साथ है कि वह जनता में क्या मुंह लेकर विधानसभा चुनावों में जाएंगे। वह कैसे बताएंगे कि उन्होंने विधायक रहते हुए सरकार से कितने काम आम लोगों के करवाए हैं और कितने निजी काम अपने और अपने चेहतों के करवाए हैं। यह शिकायत तो मुखयमंत्री से हर विधायक को होनी चाहिए, खास तौर से कांग्रेस के विधायकों को तो सैनी से भी कड़े तेवर में अपने लोगों का पक्ष रखना चाहिए था। सभी ने सैनी की प्रशंसा इसलिए की क्योंकि वह ऐसी हिम्मत नहीं जुटा सके जैसी सैनी ने जुटा ली।
कहते हैं कि कुछ कांग्रेस के विधायक तो सैनी जैसा कारनामा इसलिए नहीं कर पाए कि उन्हें डर था कि कहीं मुख्यमंत्री विधानसभा में ही उनके किए गए निजी कामों की पोल ही न खोल दें। सैनी के छोटे से इतराज को कांग्रेस ने इसलिए बड़ा बताने का प्रयास किया कि वह विधानसभा में न तो कांग्रेसी होने का धर्म निभा रहे हैं और न ही अपने लोगों के लिए वह विपक्ष की भूमिका अदा कर पा रहे हैं। वरना सैनी ने विधानसभा में ऐसा कुछ नहीं कहा जिस पर कांग्रेस के लोग सदन के भीतर और बाहर तालियां पीटते।
यदि कांग्रेस के लोग सैनी से इतना ही प्रभावित हैं तो क्या वह अगले विधानसभा चुनावों में सैनी के खिलाफ प्रत्याशी न खड़ा करने का मन तो नहीं बना रहे हैं? यह बात तो तय है कि सैनी भाजपा के टिकट पर ही विधानसभा चुनाव लड़ेगे और उनका टिकट काटना मुख्यमंत्री के बस की बात भी नहीं है, जो उन्हें कांग्रेस की ओर से चुनाव मैदान में कूदना पड़े। सैनी ने विधानसभा में जो डायलॉक मुखयमंत्री से अपने लोगों के लिए किया उससे उन्होंने अपनी जीत नालागढ़ से अगली बार के लिए भी सुनिश्चित कर ली है लेकिन मेजें थपथपाने वालों के बारे में अभी से नहीं कहा जा सकता है कि अगली विधानसभा में कौन विधानसभा में पहुंच पाएगा और कौन चुनावों में मात खा जाएगा, अपने लोगों का प्रतिनिधित्व छोड़ कर विरोधी पार्टी के मुख्यमंत्री से निजी लाभ प्राप्त करने के इलजाम में।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें