गहलोत/गुहलोत
-ये श्रीरामचंद्रजी के बेटे लव की औलाद में है । पहिले लाहोर में रहते थे वहां से बल्लभीपुर इलाके गुजरात में गये और बहुत बरसों तक राज करते रहे आखीरी राजा सिलादित्य था । वहां एक दुश्मन के मुकबिले में मारा गया । उसकी रानी भाग कर आबू के पहाड़ में आ छुपी । वहां उसके गोहा नाम एक लड़का पैदा हुआ उसने ईडर में राज किया । उसकी औलाद गहलोत कहलाई । 6/6.
-कुछ पुरानी खांपे गहलोतों की जो हुल, आसायच, मांगलिया, गोहिल, पीपाड और गहलोत कहलाती है । राणावतों के पहिले से मारवाड़ में बस्ती हैं और हल खड़ती है । 6/6.
-पहले इनकी ठकुराई दक्षिण में नासिक त्रंबक थी । पूर्वज सूर्य उपासक पूर्वज राजा के कोई संतान नहीं थी तब उसने सूर्य से पुत्र का वरदान मांगा । सूर्य ने उसे ‘आंबाइ देवी’ की जात के लिये कहा, जो मेवाड़-ईडर की संधि सीमा पर है । राजा और रानी ‘आंबाइ देवी’ की जात देने के लिये रवाना हुए । जात से उनकी कामना पूरी हुई और रानी के गर्भ ठहरा । वापसी में रास्ते में शत्रुओं का दाव लगा और उन्होंने राजा को मार दिया । इसकी सूचना रानी को नागदहे ब्राह्मण के यहां, जहां वह ठहरी हुई थी मिली । रानी राजा के साथ सती होने के लिये तैयार हुई परन्तु गर्भवती होने के कारण लोगों ने उसे
रोक लिया । 15-20 दिन बाद उसके पुत्र पैदा हुआ । उसने सती होने के लिये जाने के पूर्व उस बालक को वहां कोअेश्वर महादेव के पुजारी विजयदत्त को दान करना चाहा । विजयदत्त ने यह दान लेने से मना किया तब रानी ने विजयदत्त ब्राह्मण को कहा -‘थे वात कही सु सही, पिण जो हूं सतसूं बळूं छूं तो इण डावड़ारी ओलादरा राजा हुसी तिके दस पीढी थाहरै कुळरै आचार हालसी । थांनूं घणो सुख देसी ।’ तरै बांभणनूं डावड़ो दियो । सु बांभण विजैदत्त लियो । कितरोइक ऊपर गहणो, क्यूंइक रोकड़ दियो । तद बांभण डावड़ानूं ले घर गयो । राणी बळी । तठा पछै विजैदत्तरै उण डावड़ारी ओलाद हुई
सु पीढ़ी 10 वांभणारी क्रिया चालीया । नागदहा बांभण कहांणां - पीढि़यांरी विगत:
1. विजैदत्त, 2. सोमदत, सूर्यवंसी गहलोत, 3. सिलादत, 4. ग्रहादित, 5. केसवादित, 6. नागादित, 7. भोगादित, 8. देवादित, 9. आसादित, 10. भोजादित, 11. गुहादि विजैदत्तत, 12. रावळ बापो । ...रावळ बापो गुहादितरो । तिण हारीत रिखरी सेवा करी । पछै हारीत रिखीष्वर प्रसन्न हुय, बापानूं मेवाड़रो राज दियो । 10/1-2.
-सीसोदो गांव उदैपुरसूं तठै घणा दिन रह्या तिण वास्तै ‘सीसोदिया’ गाव लारै कहावै छै । नागदहा कहावै छै सु घणा दिन नागदहे गांव वसीया तिण कारण ।......सीसोदियांरा विरद ‘आहूठमा नरेस’ कहावै । 10/8.
-1. गुहादित्य, 2. विजयादित्य, 3. केशवादित्य, 4. भोगादित्य, 5. आसाधरादित्य, 6. श्रीदेवादित्य, 7. महादेवादित्य, 8. गुरुदेवादित्य, 9. रावळ बापो, 10. रावळ काळभोज, 11. रावळ खुमाण, 12. रावळ श्रीगोविंद, 13. रावळ आळू, 14. रावळ सिंघ,15. रावळ सगतकुमार, 16. रावळ शळिवाहण, 17. रावळ नरवाहण, 18. रावळ अंबप्रसाद, 19. रावळ श्रीकीरत, 20. रावळ करणादित्य, 21. रावळ भादो, 22. रावळ गोतम, 23. रावळ प्रियहंस, 24. रावळ जोगराज, 25. रावळ भेरडू, 26. रावळ वरसिंघ, 27.रावळ तेजसी, 28. रावळ समरसी, 29. रावळ रतनसी ....पछैै राणो हुवो थो । ...चांपो चाहड़देरो करण रावळरो 1. देव राणो, 2. नरू राणो, 3. राहप राणो, 4. हरसूर राणो, 5. जसकरण राणो, 6. नागपाळ राणो, 7. पुण्यपाळ राणो, 8. पीथड़ राणो, 9. भुवणसी राणो, 10. भीमसी राणो, 11. अजैसी राणो, 12. लखमसी राणो । 15/87-8.
-चैईस साख गहलोतां री: गहलोत, मांगळिया, डाहलिया, टीबाणा, चंद्रावत, सीसोदिया, आसावत, मोटसीरा, मोहल, वला, आहड़ा, केलवा, गोदारा, तिवड़किया, बुटिया, पीपाड़ा, मगरोपा, भाशला, धीरणिया, गोतम, हुल, मेर, बूटा, ग्ुहिल आदि 15/87 -मोरी वंस गहलोत इंद्र सूं प्रगट हुओ । चित्रांग मोरी चितोड़ किलो करायौ । चितोड़ भुवणसी रांणौ कहाणौ । पैला चितोड़ रावळ कहिजता । 15/87.
खंापे:-अढूओत: राणै अढूरा वंस रा । 10/15.
-ऊदावत: ऊदा रे वंसरा । 10/15.
-किसनावत: किसना रे वंस रा । 10/18.
-कीतावत: राणे सता रा । 10/15.
-गजसिंघोत: गजसिंघरे वंसरा । 10/15.
-गढुओत: राणै गढ़ू रे वंसरा । 10/15.
-चंडावत: राणै चंडावत रे वंसरा । 10/15.
-दूलावत: दूलह रे वंसरा । 10/15.
-नगावत: नगा रे वंस रा । 10/16.
-भाखरोत: राणे भाखररे बवंस रा । 10/15.
-भांडावत: डूंगररे वंसरा । 10/15.
-भूवरोत: राणै भूवर रा वंसरा । 10/15.
-रूदावत: रूदारा वंस रा । 10/15.
-सकतावत: सकतो रांणो उदैसिंघरे वंस रा । 10/23.
-सलखणोत: राणे सलखारा । 10/15.
-सिखरावत: राणै सिखर रा । 10/15.
-सुआवत: राणै सुआ रा । 10/15.
-गांव दोय सौ गहलोतांरा दिली-मंडळ में है । राणो नपरतसिंघ उठै हुवो । हमें अेक राणो वाजै दूजा गहलोत चैधरी वाजै । 15/108.
-कुछ पुरानी खांपे गहलोतों की जो हुल, आसायच, मांगलिया, गोहिल, पीपाड और गहलोत कहलाती है । राणावतों के पहिले से मारवाड़ में बस्ती हैं और हल खड़ती है । 6/6.
-पहले इनकी ठकुराई दक्षिण में नासिक त्रंबक थी । पूर्वज सूर्य उपासक पूर्वज राजा के कोई संतान नहीं थी तब उसने सूर्य से पुत्र का वरदान मांगा । सूर्य ने उसे ‘आंबाइ देवी’ की जात के लिये कहा, जो मेवाड़-ईडर की संधि सीमा पर है । राजा और रानी ‘आंबाइ देवी’ की जात देने के लिये रवाना हुए । जात से उनकी कामना पूरी हुई और रानी के गर्भ ठहरा । वापसी में रास्ते में शत्रुओं का दाव लगा और उन्होंने राजा को मार दिया । इसकी सूचना रानी को नागदहे ब्राह्मण के यहां, जहां वह ठहरी हुई थी मिली । रानी राजा के साथ सती होने के लिये तैयार हुई परन्तु गर्भवती होने के कारण लोगों ने उसे
रोक लिया । 15-20 दिन बाद उसके पुत्र पैदा हुआ । उसने सती होने के लिये जाने के पूर्व उस बालक को वहां कोअेश्वर महादेव के पुजारी विजयदत्त को दान करना चाहा । विजयदत्त ने यह दान लेने से मना किया तब रानी ने विजयदत्त ब्राह्मण को कहा -‘थे वात कही सु सही, पिण जो हूं सतसूं बळूं छूं तो इण डावड़ारी ओलादरा राजा हुसी तिके दस पीढी थाहरै कुळरै आचार हालसी । थांनूं घणो सुख देसी ।’ तरै बांभणनूं डावड़ो दियो । सु बांभण विजैदत्त लियो । कितरोइक ऊपर गहणो, क्यूंइक रोकड़ दियो । तद बांभण डावड़ानूं ले घर गयो । राणी बळी । तठा पछै विजैदत्तरै उण डावड़ारी ओलाद हुई
सु पीढ़ी 10 वांभणारी क्रिया चालीया । नागदहा बांभण कहांणां - पीढि़यांरी विगत:
1. विजैदत्त, 2. सोमदत, सूर्यवंसी गहलोत, 3. सिलादत, 4. ग्रहादित, 5. केसवादित, 6. नागादित, 7. भोगादित, 8. देवादित, 9. आसादित, 10. भोजादित, 11. गुहादि विजैदत्तत, 12. रावळ बापो । ...रावळ बापो गुहादितरो । तिण हारीत रिखरी सेवा करी । पछै हारीत रिखीष्वर प्रसन्न हुय, बापानूं मेवाड़रो राज दियो । 10/1-2.
-सीसोदो गांव उदैपुरसूं तठै घणा दिन रह्या तिण वास्तै ‘सीसोदिया’ गाव लारै कहावै छै । नागदहा कहावै छै सु घणा दिन नागदहे गांव वसीया तिण कारण ।......सीसोदियांरा विरद ‘आहूठमा नरेस’ कहावै । 10/8.
-1. गुहादित्य, 2. विजयादित्य, 3. केशवादित्य, 4. भोगादित्य, 5. आसाधरादित्य, 6. श्रीदेवादित्य, 7. महादेवादित्य, 8. गुरुदेवादित्य, 9. रावळ बापो, 10. रावळ काळभोज, 11. रावळ खुमाण, 12. रावळ श्रीगोविंद, 13. रावळ आळू, 14. रावळ सिंघ,15. रावळ सगतकुमार, 16. रावळ शळिवाहण, 17. रावळ नरवाहण, 18. रावळ अंबप्रसाद, 19. रावळ श्रीकीरत, 20. रावळ करणादित्य, 21. रावळ भादो, 22. रावळ गोतम, 23. रावळ प्रियहंस, 24. रावळ जोगराज, 25. रावळ भेरडू, 26. रावळ वरसिंघ, 27.रावळ तेजसी, 28. रावळ समरसी, 29. रावळ रतनसी ....पछैै राणो हुवो थो । ...चांपो चाहड़देरो करण रावळरो 1. देव राणो, 2. नरू राणो, 3. राहप राणो, 4. हरसूर राणो, 5. जसकरण राणो, 6. नागपाळ राणो, 7. पुण्यपाळ राणो, 8. पीथड़ राणो, 9. भुवणसी राणो, 10. भीमसी राणो, 11. अजैसी राणो, 12. लखमसी राणो । 15/87-8.
-चैईस साख गहलोतां री: गहलोत, मांगळिया, डाहलिया, टीबाणा, चंद्रावत, सीसोदिया, आसावत, मोटसीरा, मोहल, वला, आहड़ा, केलवा, गोदारा, तिवड़किया, बुटिया, पीपाड़ा, मगरोपा, भाशला, धीरणिया, गोतम, हुल, मेर, बूटा, ग्ुहिल आदि 15/87 -मोरी वंस गहलोत इंद्र सूं प्रगट हुओ । चित्रांग मोरी चितोड़ किलो करायौ । चितोड़ भुवणसी रांणौ कहाणौ । पैला चितोड़ रावळ कहिजता । 15/87.
खंापे:-अढूओत: राणै अढूरा वंस रा । 10/15.
-ऊदावत: ऊदा रे वंसरा । 10/15.
-किसनावत: किसना रे वंस रा । 10/18.
-कीतावत: राणे सता रा । 10/15.
-गजसिंघोत: गजसिंघरे वंसरा । 10/15.
-गढुओत: राणै गढ़ू रे वंसरा । 10/15.
-चंडावत: राणै चंडावत रे वंसरा । 10/15.
-दूलावत: दूलह रे वंसरा । 10/15.
-नगावत: नगा रे वंस रा । 10/16.
-भाखरोत: राणे भाखररे बवंस रा । 10/15.
-भांडावत: डूंगररे वंसरा । 10/15.
-भूवरोत: राणै भूवर रा वंसरा । 10/15.
-रूदावत: रूदारा वंस रा । 10/15.
-सकतावत: सकतो रांणो उदैसिंघरे वंस रा । 10/23.
-सलखणोत: राणे सलखारा । 10/15.
-सिखरावत: राणै सिखर रा । 10/15.
-सुआवत: राणै सुआ रा । 10/15.
-गांव दोय सौ गहलोतांरा दिली-मंडळ में है । राणो नपरतसिंघ उठै हुवो । हमें अेक राणो वाजै दूजा गहलोत चैधरी वाजै । 15/108.
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