मंगलवार, 7 जून 2016


saini mali samaj

किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये| कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया| इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार 'परजिटर' ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.'ए.डी.पुत्स्लकर ' एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा " Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called " Saiyas "(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)" महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द 'सैनी' हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )| इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ 'सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण' तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया| यूनान के सिकंदर के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार 'मैग्स्थ्निज' ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार 'मैग्स्थ्निज' ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे| क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

Maharaja Shoor Saini Mali

 
Achievements:- Kansa was the first major king of Northern India, Kansa. By virtue of his might, he declared himself as the first king of Mathura. King Jarasandha of Magadha, offered his two daughters in marriage to Kansa. Thus, the first empire of pre-historic or Proto-history India was established by Kansa, the scion of Shoor saini dynasty. Kansa performed the famous Ashwamedha Yagna and set his horse moving and his armies followed the horse under his personal command. They were away for twelve years from the capital “Shoorpur” in the city of Mathura.
After Mahabharata, Parikshat was made king of Hastinapur. Vajra, the grandson of Krishna at Indraprastha. A grandson of Satyaki named Bhuti was made king of Saraswati. Andhaka s son was made king at Marttikavata near Mount Abu. Thus the princes of the Pandava-Krishna lines ruled North India, Sindh, Gujarat and the area North and West of the Yamuna. They founded many republics like Pargiter, Bhargava and Jayaswal.
The famous Yaudhey a republic had 5000 war elephants and 5000 aristocratic families, who were good agriculturists and good soldiers. Their fame and power caused the retreat of Alexander from the Beas in 326 BC. Future wars led to the Sainis retreating into infertile foothills from central regions of Punjab under pressure from the Scythians. They spread along the rivers.
As the time passed, Sainis and Ahirs along with other Branches of Yadus and some other Aryans aligned themselves under the banner of Krisna-Pandava and fought against the Aryans. These Aryans had accepted the hegemony of orthodox Brahmins to rule the kingdoms. Sainis defeated them. During this time intermarriages between different Yadu branches were possible. Satyaki the grandson of Shoor Saini was a cousin of Krisna. Kunti, the mother of Pandavas was daughter of Sura Sena King. Between 500-300 BC, these Aryan tribes kept fighting each other and this was the period of chaos.
During this time Magadha emerged supreme and their kings were highly influenced by Brahamans. Brahamans divided the Aryan kshatriyas into Surya and Chander Vanshis. Sainis were placed under Chander Vanshis. Since Sainis and Ahirs refused to accept Brahmanism, they were diplomatically given the second place among Kshatriyas. Brahmans favoured those Aryan kshatriyas who accepted their hegemony and allowed them to play a role in the politics to rule the kingdoms i.e. brahmanical system in Society.
Porus Porus or Puru, the son of king Chandra Sen, was the last Shoor saini king. He ruled the fertile area of the Punjab between the rivers Jhelum and Beas. The Saini s have been classified as Chandravanshi Kshatriya s. The Chandravanshi lineage is one of the three lineages into which the Kshatriya caste of Hindus is divided. According to legend, the Chandravanshis are descended from Chandra,in the Lunar Dynasty or the Hindu Moon God. Maharaja Sur Saini was born in the post-mahabharat period. He was a very good administrator which made him popular among his people. Maharaja Udak, a very famous king was his ancestor. Maharaja Udak had 2 sons named Bhajman and Durota. Durota further had a son, Maharaja Sur and Maharaja Sur Saini was the son of Maharaja Sur.
Maharaja Sur Saini ruled over Sur Sen , a kingdom in northwest India. According to ancient historical records, Mathura was the capital. His kingdom extended from Afghanistan to Uttarkashi and from Rajasthan to Southern India. He was an excellent warrior but kindness was his greatest virtue. His subjects were happy under his reign and lived peacefully.
Maharaja Sur Saini came from a clan that was deeply religious, impressed by his thoughts his people and future generations embraced the Saini religious way of life.
Origin & History Of Saini caste Jyotirao Govindrao Phule, who was a prominent activist, thinker and social reformer from the Indian state of Maharashtra during the 19th century, was also famous by the name of Mahatma Jyotiba Phule. During his time, he tried bringing in positive renovations in the spheres of education, agriculture, caste system, social position of women et al. Out of everything that Phule ever did, he s most remembered for his selfless service to educate women and lower caste people.
SAINI S are a kshatriya clan belonging to the CHANDRAVANSHI KSHATRIYA s, a branch of the warrior class. In a high court judgement in punjab the court ruled that this is a KSHATRIYA community and should be known as saini kshatriya s. Sainis claim descent from Sura & his grand father Rajan Saini. Sura was the grand father of Lord Krishna. Saini (Rajan Saini) was the grand father of Satyaki of Mahabharat. Sura & Saini were cousins (as recorded in the Mahabharat). Together they ruled the republic: Andhaka-Vrishni. This was the first known democracy in India. These Kings later adopted the title of Raja Sursen or Sura-Sena, a name adopted from the country they ruled.
Satyaki, the grand son of Rajan Saini, ruled the Sura-Sen kingdom in the north-west of India. Rajan Saini founded Saini vansh, which is one of the eleven vanshas of Yadus and one of the tribes of the Yadavas.
Rajan Saini Rajan Saini (Sini), a character in the great Indian epic, the Mahabharata. Sini was the uncle of Vasudeva, the father of Sri Krishna. When Devaki, the mother of Krishna, was a maiden, many princes competed for her hand in marriage. This led to a dispute. In the end, a great battle ensued between two princes of different families over it: Somadatta and Rajan Sini. In this fierce battle Rajan Sini won, and on behalf of Vasudeva he carried Devaki in his chariot and drove her away.
This incident led to a feud between the two clans, the Sini family and that of Somadatta The rivalry came to the fore-front last time on the battlefield of Kurukshetra, where Sini s grandson, Satyaki, who was a peer and friend of Arjuna and a famed archer, clashed with Bhurisravas, Somadatta s son, who was on the Kaurava side, resulting in the slaying of Bhurisravas by Satyaki.
Terminology The term Shoor saini is as old as the history of India. Etymologically, the Hindi word “Shoor” means displayer of gallantry and "Saini" is a generic name for the ruling dynasty that ruled Northern India from Mathura to Patiala. Their rule and governance were so benevolent that the area they ruled came to be known as “Shoor saini Pradesh” and the language they spoke was known as “Shoor saini”.
Draupadi being a daughter of the Shoor saini dynasty, and that even Krishna belonged to these people. In the Mahabharata, Satyaki is the leader of the Shoor sainis and is famous for his braveryMaharaja Shoor Saini Maharaja Udak was a very famous king. Maharaja Udak had two sons named Bhajman and Durota. Durota further had a son, Maharaja Sur and Maharaja Sur had a son who was named Maharaja Sur Saini (sometimes called Shoor Saini).
Maharaja Shoor Saini was born in the Mahabharat period. He ruled over Sur Sen , a kingdom in northwest India. According to ancient historical records, Mathura was the capital of this kingdom. His kingdom extended from Afghanistan to Uttarkashi and from Rajasthan to Southern India.
He strongly believed in righteousness and kindness and karma sidhant of vedic scriptures. He possessed a sound knowledge of law and ruled the kingdom under codified laws written into a book. He gave a new way of life to his kingdom known as the Saini religious way of life. He gave the vision to these people to work hard irrespective of their occupation. This is the reason sainis profess different occupations like floriculture, agriculture, baghbani and vegetable production in different regions of India. A picture of him is presently displayed at Lahore (Pakistan) museum.

Saini Samaj Dharmshala

 
Saini Samaj Dharmshala

IAS & IPS etc. Officer Person saini samaj

IAS & IPS Officer etc. Person
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             
S.No Name Job Status Working Place
1Shree Sharad Kumar R.A.S
2Shree Kshtriye Mahto R.A.S Bihar
3Shree Sudarshan Kushawaha I.F.S
4Shree W.G. Gorde I.A.S Maharastra
5Shree Hemraj Gehlot Director General Bikaner
6Shree Kamal Saini A.S.P. Kashmir
7Shree Joharsing Shakey I.A.S
8Shere Vijay Kumar Morye I.P.S Uttarpardesh
9Shree V.K. Singh Aabkari Ayukt
10Shree D.S. Jegadi I.A.S Maharastra
11Shree Narendra Kumar Saini Member of Aplent Tribunal Panjab
12Shree Rajiv Ranjan I.P.S Hariyana
13Shree Rajesh Kumar Singh(Alayed) Lotwali Jagdishpur Bhagalpur
14Shree Gurusahay Parshad I.A.S Bihar
15Shree Gyansingh Saini Kushwaha I.V.S & S.P. Uttarpardesh
16Shree Ramadhar
Uttarpardesh
17Shree Ashok Saini H.P.S. Hariyana
18Shree Chandrakant Dalavi A.D.M. Maharastra
19Shree Vinit Choudhary I.A.S
20Shree Abhimannu Raghaw I.A.S Rohtash
21Shree Vinod Kumar I.P.S Patna
22Shree Abhitosh(Alayad) Dipti Kamisaner Custom Delhi
23Shree Sabhapati Prasad Kushwaha I.A.F Jarkhand
24Ashok Saini I.P.S.,S.P.Railway Hasangabad
25Shree Baldave Saini I.P.S.,S.P.Intalegance Chandigarh
26 Shree Abhijeetsing I.A.S Laxmanpura
27Shree Surender Kumar Sing I.P.S Asam
28Shree Manojkrishan(Alayad) Dipti Kamisaner Custom Mumbai
29Shree Indersing Saini H.P.S. Hariyana
30Shree Gaikward Aditional Collector
31Shree Ram Laxman Sing I.P.S Jarkhand
32Shree Sumadh Saini I.P.S Chandigarh
33Shree Prathiv Sing Saini I.P.S Hariyana
34Shree Sinday Aditional Collector Maharastra
35Shree Hari Kisore Kusomar I.A.S Patna
36Shree Ajay Kumar Ansuman` I.A.S Nagaland
37Shree Vipul Kumar I.P.S Jhanabad
38Shree Arun Kumar Alayad Mumbai
39Shree R.C.Murab I.A.S Bhopal
40Shree Gurvachan Sing Saini I.A.S Hariyana
41Shree Ashok Parihar Judge Rajsthan High Court
42Shree O.P.Saini Metropolitan Majistrate Delhi
43Shree Gurdeep Sing Saini Metropolitan Majistrate Tishajari,Delhi
44Shree Devender Sing Kachhawa Additional Section Judge
45Shree Rajendra Parshad Kushwaha Cabinate Secretary Indian Goverment
46Shree D.R.Mali Joint Secretary
47Ratan Sing Saini Parleyament Secretary Maharastra
48Shree L.N. Bagole Dipti Secretary Mumbai
49Shree Aanandi Lal Gehlot Member of Apilent Tribunal
50Shree Ratan Sing Saini Secretary (Vidhansabha) Himachale Pardesh
51Shree Lal Sing Saini S.D.M
52Shree D.K.Saini Section Judge Delhi
53Dr.Shree Mehar Singh Saini Member of Public Service Commission Hariyana
54Shree R.K.Saini Additional Distic and Session Judge
55Shree Seeta Ram Mahto Chief Secretary Nepal Government
56Shree Visambhar Parsad Kachhawa Uper Civil Judge Maharanpur ,U.P.
57Shree Sataydev Tak Ragistar Rajsthan High Court Jodhpur
58Shree Bhalla Ram Parmar A.C.J
59Shree Shyam Singh Tak Ex.Member Public Service Commission Rajsthan
60Dr.Prathviraj Shankhla I.A.S Rajsthan
61Shree S.P. Khandgavat S.P. Rajsthan
62Shree Devendar Kumar Singh(Kuswaha) Homeministery New Delhi
63Shree Shrveshkumar Saini I.A.S New Delhi
64Shree Arvind Kushwaha Durdarshan New Delhi
65Shree Roshan Lal Saini I.A.S Hariyana
66Shree O. P. Saini I.A.S Rajsthan
67Shree Ramakant Singh Kushwaha I.A.S Ilahabad
68Shree U.P. Singh Kushwaha I.A.S New Delhi
69Shree Surender Singh Kushawaha I.F.S
70Shree K.R. Bhati Additional Seceratory New Delhi
Bagri,Songra, Chouhan, Bhati, Singodiya, Hankhla, Solanki, Tundwal, Parihar, Dagdi, Tanwar,Satrawala, Songra, Chouhan, Bhati, Singodiya, Hankhla, Solanki, Tundwal, Parihar, Dagdi, Tanwar,Satrawala, Songra, Chouhan, Bhati, Singodiya, Hankhla, Solanki, Tundwal, Parihar, Dagdi,

Adhopia, Agarwal, Annhe, Attar, Badwal, Banait, Banga, Banga, Banwait, Baria, Basuta/Basoota, Bawal, Bharal, Bhati, Bhela, Bhele, Bhogal, Bhowra, Bimbh, Bola, Bondi, Budwal/Bodwal, Caberwal, Chandan, Chandel, Chande, Chandolia, Chaudhry, Chayor, Chelley, Chepru, Chera, Chere, Chibb, Chilne, Dadwal, Dakolia, Darar, Daurka/Dhorke, Dhamrait, Dhand,

Dhanota, Dhek, Dheri, Dhaul, Dhole, Dhoore, Dhorka, Dola, Dolka, Dolle, Dulku, Fharar, Gaare, Gahir, Gahunia, Galeria, Galhe, Garhamiye, Garhania, Garore, Gehlan, Gidda, Giddar, Gidde, Gillon, Girn, Gogan, Gogia, Gogiaan/Gogian, Golia, Haad, Hadwa, Hansi, Hans, Hoon, Jagait, Jaget, Jagit, Jandauria, Jandeer, Jandor, Jandoria, Janglia,

Japra/Japre, Joshi, Kaan, Kabad, Kabarwal, Kabli, Kadauni, Kainthlia, Kalia, Kaloti, Kamboe, Kamokhar-Khatri, Kapooria-Kapoor, Kapoor-Khatri, Kariya, Kataria, Keer, Khabra, Khad-Khatri, Kharga, Khargal, Khatri-Andhaia, Khelbare, Khobe, Khube, Khute, Kuchrat, Kuhar, Kuhare, Lata Longia, Lularia/Loyla, Manger, Maheru/Meharu, Masute, Matoya, Mundh,

Mundra, Nagoria, Nanua, Nawen, Neemkaroria, Pabe, Pabla, Pabme, Pama, Panesar, Pangeli/Panghliya, Panthalia, Papose, Partole, Patrote, Pawar, Pharar, Pingalia, Pundrak, Puria, Saggi, Sahnam, Sair, Sajjan, Sakhla, Salaria/Salariya, Sandoonia, Sangar, Sangowalia, Saroha, Satmukhiye, Satrawla, Satrawli, Satrole, Savadia, Sehgal, Shahi, Sinh, Sona, Sooji, Sukhayee, Tabachare, Tak, Tamber, Tandoowal, Taraal, Tarotia, Tatla, Tatra, Tatri, Thind, Tikoria, Togar, Tondwall, Tonk/Tank, Toor, Tuseed, Ughra, Vaid, Vim, Virdee,bagri.

Sainis Are Known By These Names In Various Regions Of India.
Maharastra :- Mali, Saini, Gola, Patil, Phule, Kshatriya, Mali, Vanmali.
Bihar :- Mali, Kshatriya Mali, Saini, Kushwala, Mehta, Shak.
M.P. :- Mali, Kshatriya Mali, Saini, Sainik Kshatriya.
Madras :- Reddy, Mali Saini, Saini Kshatriya.
Orissa :- Mali, Kshatriya Mali, Saini Kshatriya, Umrav, Haldawa.
U.P. :- Mali, Gole, Pushpadh, Brahmin, Kamboj, Baroliya Bhagat, Bhandari, Saini.
Hyderabad :- Mali, Reddy, Kshatriya Mali, Sainik Kshatriya, Saini. Mysore Mali, Reddy, Kshatriya Mali, Sainik Kshatriya, Saini.
Rajasthan :- Mali, Baghwan, Kshatriya Mali, Dhimer, Bhoi, Gehlot, Solanki. Punjab :- Saini, Mali, Sainik, Kshatriya. Haryana :- Saini, Mali, Sainik, Kshatriya. Saurashtra Saini, Mali, Rami, Shankarvanshi, Kaachi.