बुधवार, 13 अप्रैल 2011

समाज की प्रगति हो हमारा ध्येय

सैनी-माली समाज ही नहीं सम्पूर्ण देश के लिए सामाजिक सुधार क्रांति के जनक थे महात्मा ज्योतिराव फुले। महात्मा ज्योतिबा फुले ने सामाजिक समानता की अलख जगाई तथा धार्मिक अन्धविश्वासों और कुप्रथाओं की जड़ों पर तीखा प्रहार किया था। महात्मा गांधी हो या डा. भीमराव अम्बेडकर लगभग सभी समाज सुधारकों ने उनसे प्रेरणा प्राप्त की थी। उन्होंने स्त्री जाति को पढने-पढाने, पुनर्विवाह और अन्य विसंगतियों से मुक्त करवाया। अपनी अनपढ पत्नी सावित्री बाई फुले को खुद पढाकर देश की प्रथम शिक्षिका के रूप में प्रतिस्थापित करके तत्कालीन सामाजिक व्यवस्थाओं को उन्होंने खुली चुनौती दी थी। ब्राह्मणवाद पर करारा प्रहार करते हुए उन्होंने गुलामगिरी जैसी पुस्तकों की रचना की। छुआछूत को उन्होंने तगड़ी चुनौती दी, समाज से बहिष्कृत किए जाने के बावजूद उनका मनोबल नहीं टूटा और वे आज जग-विख्यात बन गए। ऐसे राष्ट्र-पितामह की पदवी से अलंकृत और महात्मा से उच्च पद से विभूषित ज्योतिबा सारे विश्व में केवल जातीय ही नहीं, लैंगिक, क्षेत्रीय, वर्गभेद, धार्मिक आदि सभी विषमताओं के प्रखर विरोधी और मानवीय समानता के प्रतीक बनकर उभरे हैं। ऐसे महापुरूष के पाथेय से हमारे सारे समाज को आगे बढना चाहिए।
हमें उनसे प्रेरणा लेकर देश भर में अब भी मौजूद विसंगतियों के उन्मूलन के लिए आगे आना चाहिए, धार्मिक और सामाजिक स्तर पर आज भी बहुत सारी कुप्रथाएं और अन्धविश्वास बने हुए हैं जिनको ध्वस्त करने और स्वस्थ समाज की रचना के लिए हमें फिर से अलख जगानी चाहिए। अगर हम अपने-आपको महात्मा ज्योतिबा फुले के अनुयायी बताते हैं तो हमें न केवल मृत्योपरान्त किए जाने वाले ब्राह्मणों के दस्तूरों का खुद विरोध करना चाहिए, बल्कि पुराणों के नाम पर धर्मान्धता का सहारा लेकर नरक के खौफ से डराने वालों का भी प्रखर विरोध करना चाहिए। ऐसे लोग जो लोगों को फर्जी बातों और गलत पौराणिक आधारों पर समाज को अन्धविश्वास की ओर धकेलते हैं, वे खुद ही जब नरक के निश्चित रूप से भागी बनेंगे, तो वे किसी अन्य को स्वर्ग पहुंचाने और भवसागर पार करवाने की गारण्टी और ठेका कैसे ले सकते हैं। हमें इनके विरोध में मुखर होना ही होगा। हमें प्रण लेना चाहिए कि हम अपने परिवार में न तो खुद मृत्युभोज करेंगे और किसी के बुलावे के बावजूद नजदीक से नजदीक व्यक्ति के यहां भी होने वाले मृत्युभोज में किसी भी हाल शामिल नहीं होंगे।
महात्मा फुले के अनुयायी कहे जाने के कारण हमारा यह भी फर्ज बनता है कि हम अपने समाज में एक भी बच्चे को अनपढ नहीं रहने देंगे। और न केवल अनपढ बल्कि उच्च शिक्षा दिलवाने का बीड़ा भी उठाएंगे, शिक्षा के मामले में अपने समाज को किसी भी अन्य समाज की तुलना और आज की कड़ी प्रतिस्पर्धा में पीछे नहीं रहने देंगे, इसका दायित्व भी हम सबका बनता है। हमारा फर्ज है कि समाज के युवक पढ-लिखकर बड़े ओहदों पर पहुंचे। जिस प्रकार खुद महात्मा फुले नगर सेवक चुने गए थे, उसी प्रकार सभी स्थानीय निकायों, पंचायतराज संस्थाओं, सहकारी संस्थाओं, विधान-सभाओं, लोकसभा और राज्यसभा आदि में हमारे समाज को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सके, इसके लिए हमें व्यापक तैयारी करनी चाहिए। ये सभी जिम्मदारियां केवल एक जगह के लिए नहीं, बल्कि समूचे देश के हर हिस्से में मौजूद हमारे समाज-बंधुओं की होनी चाहिए। हमें इस ओर आगे आकर कार्य-योजना बनाकर बड़े पैमाने पर काम करना होगा, तभी अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें