बुधवार, 13 अप्रैल 2011

आत्म-चिन्तन करना चाहिए, धर्म को सम्मुख रख करें सामाजिक एकता की बात

महाराजा सैनी के जन्मोत्सव पर हमें

20 दिसम्बर का दिन यानी सैनी समाज के प्रवर्तक महाराजा शूर सैनी के जन्मोत्सव का अवसर। हर साल की भांति इस साल भी यह अवसर आने पर सम्पूर्ण सैनी समाज के विभिन्न संगठनों द्वारा महाराजा शूर सैनी की जयंति हर्षोंल्लास से मनाने के लिए कार्यक्रम व गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। हर कार्यक्रम में महाराजा शूर सैनी के आदर्शों पर चलने की शपथ ली जाएगी और जैसे ही कार्यक्रम खत्म होगा वैसे ही शपथ से जुड़ी भावनाएं भी अपने आप खत्म हो जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि हम बात तो हमेशा महाराजा शूर सैनी के उच्च आदर्शों की करते हैं मगर आज तक उन्हें अपने जीवन में आत्मसात नहीं कर पाए हैं। यही वजह है कि वर्तमान समय में अपनी राजनैतिक पहचान बनाने के लिए जूझ रहे सैनी समाज की इस हालिया दुर्दशा के लिए कोई और नहीं, बल्कि हम स्वयं जिम्मेवार है। क्योंकि शताब्दियां बीत जाने के बावजूद आज तक हम सामूहिक रूप से उस विचार को आत्मसात नहीं कर पाए, जो पहले महाराजा शूर सैनी और बाद में दलितों व पिछड़ों के उत्थान एवं कल्याण में अपना जीवन अर्पित करने वाले महात्मा ज्योति बा फूले ने हमें दिया था।
दोनों की विचारधाराओं को यदि गहराई से अध्ययन किया जाए तो उनमें जो एक महत्वपूर्ण समानता दिखाई देती है, वह है वैमनस्य की भावना के त्याग के साथ निजी स्वार्थों से ऊपर उठ सम्पूर्ण एकजुटता के साथ समूचे समाज को जागृत एवं उनके उत्थान के लिए कार्य करना। दोनों ही महापुरुषों ने समाज सुधार एवं विकास के इस मंत्र को अपने जीवन में उतार कर न केवल ऐसे दबे.कुचले लोगों के उत्थान के लिए कार्य कियाए जो अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, बल्कि बिना किसी लाग.लपेट के उनकी वांछित मदद कर उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने में भी अहम भूमिका निभाई।
जहां तक बात महाराजा शूर सैनी की है तो उनका तो एक सीधा सा मूल मंत्र था कि किसी भी समाज को बुलंदी पर लाने में कामयाबी उसी सूरत में संभव है जब आदमी अध्यात्म, धर्म और प्रकृति में विश्वास कायम रखते हुए सामाजिक समरसता एवं एकजुटता के साथ निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बिना किसी निजी स्वार्थ के पुरुषार्थ व लगन से कार्य करें। यही वजह थी कि अपने शासन काल के दौरान उन्होंने अपनी प्रजा को साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना का विकास करते हुए उन्हें एकजुटता के लिए मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी मूलमंत्र ने ही जहां उन्हें एक अच्छे प्रशासक के तौर पर ख्याति दिलाई, वहीं वे जनहित को तवज्जो देने वाली राजा भी साबित हुए। लिहाजा अब वक्त आ गया है कि हम अपनी खोखली मानसिकता को त्यागकर महाराजा शूर सैनी के दिखाए गए मार्ग पर चले और सैनी समाज के विकास एवं कल्याण के लिए एकजुटता के साथ सकारात्मक कार्य करें।

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