रविवार, 22 नवंबर 2015

Bagri,Songra, Chouhan, Bhati, Singodiya, Hankhla, Solanki, Tundwal, Parihar, Dagdi, Tanwar,Satrawala, Songra, Chouhan, Bhati, Singodiya, Hankhla, Solanki, Tundwal, Parihar, Dagdi, Tanwar,Satrawala, Songra, Chouhan, Bhati, Singodiya, Hankhla, Solanki, Tundwal, Parihar, Dagdi, 

Adhopia, Agarwal, Annhe, Attar, Badwal, Banait, Banga, Banga, Banwait, Baria, Basuta/Basoota, Bawal, Bharal, Bhati, Bhela, Bhele, Bhogal, Bhowra, Bimbh, Bola, Bondi, Budwal/Bodwal, Caberwal, Chandan, Chandel, Chande, Chandolia, Chaudhry, Chayor, Chelley, Chepru, Chera, Chere, Chibb, Chilne, Dadwal, Dakolia, Darar, Daurka/Dhorke, Dhamrait, Dhand, 

Dhanota, Dhek, Dheri, Dhaul, Dhole, Dhoore, Dhorka, Dola, Dolka, Dolle, Dulku, Fharar, Gaare, Gahir, Gahunia, Galeria, Galhe, Garhamiye, Garhania, Garore, Gehlan, Gidda, Giddar, Gidde, Gillon, Girn, Gogan, Gogia, Gogiaan/Gogian, Golia, Haad, Hadwa, Hansi, Hans, Hoon, Jagait, Jaget, Jagit, Jandauria, Jandeer, Jandor, Jandoria, Janglia, 

Japra/Japre, Joshi, Kaan, Kabad, Kabarwal, Kabli, Kadauni, Kainthlia, Kalia, Kaloti, Kamboe, Kamokhar-Khatri, Kapooria-Kapoor, Kapoor-Khatri, Kariya, Kataria, Keer, Khabra, Khad-Khatri, Kharga, Khargal, Khatri-Andhaia, Khelbare, Khobe, Khube, Khute, Kuchrat, Kuhar, Kuhare, Lata Longia, Lularia/Loyla, Manger, Maheru/Meharu, Masute, Matoya, Mundh, 

Mundra, Nagoria, Nanua, Nawen, Neemkaroria, Pabe, Pabla, Pabme, Pama, Panesar, Pangeli/Panghliya, Panthalia, Papose, Partole, Patrote, Pawar, Pharar, Pingalia, Pundrak, Puria, Saggi, Sahnam, Sair, Sajjan, Sakhla, Salaria/Salariya, Sandoonia, Sangar, Sangowalia, Saroha, Satmukhiye, Satrawla, Satrawli, Satrole, Savadia, Sehgal, Shahi, Sinh, Sona, Sooji, Sukhayee, Tabachare, Tak, Tamber, Tandoowal, Taraal, Tarotia, Tatla, Tatra, Tatri, Thind, Tikoria, Togar, Tondwall, Tonk/Tank, Toor, Tuseed, Ughra, Vaid, Vim, Virdee,bagri. 

Sainis Are Known By These Names In Various Regions Of India. 
Maharastra :- Mali, Saini, Gola, Patil, Phule, Kshatriya, Mali, Vanmali. 
Bihar :- Mali, Kshatriya Mali, Saini, Kushwala, Mehta, Shak. 
M.P. :- Mali, Kshatriya Mali, Saini, Sainik Kshatriya. 
Madras :- Reddy, Mali Saini, Saini Kshatriya. 
Orissa :- Mali, Kshatriya Mali, Saini Kshatriya, Umrav, Haldawa. 
U.P. :- Mali, Gole, Pushpadh, Brahmin, Kamboj, Baroliya Bhagat, Bhandari, Saini. 
Hyderabad :- Mali, Reddy, Kshatriya Mali, Sainik Kshatriya, Saini. Mysore Mali, Reddy, Kshatriya Mali, Sainik Kshatriya, Saini. 
Rajasthan :- Mali, Baghwan, Kshatriya Mali, Dhimer, Bhoi, Gehlot, Solanki. Punjab :- Saini, Mali, Sainik, Kshatriya. Haryana :- Saini, Mali, Sainik, Kshatriya. Saurashtra Saini, Mali, Rami, Shankarvanshi, Kaachi.
माली समाज को मिले अनु0 जाति का दर्जा

जौनपुर। अखिल भारतीय माली महासभा के जिलाध्यक्ष पप्पू माली ने अपनी पांच सूत्रीय मांगों को लेकर जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया और मुख्य मंत्री को सम्बोधित ज्ञापन जिला प्रशाशन को सौपा। इस मौके पर जिलाध्यक्ष ने बताया कि विश्व पुष्प दिवस पखवारा मनाया जा रहा है लेकिन फूलों की पुश्तैनी खेती करने वाले माली समाज की हालत बदतर है। अपने पसीने से पुष्पों में सुगन्ध भरने वाले माली समाज की राजनीति एवं सरकारी नौकरियों में भागीदारी शून्य है। उन्होने मांग किया कि सभी सरकारी विभागों में माली के पदों पर केवल माली समाज के लोगों को नियुक्त किया जाय। माली समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाय तथा उन्हे फूलों की खेती के लिए विशेष पैकेज दिया जाय। कहा कि प्रत्येक तहसीलों में फूलों के रख रखाव हेतु शीतगृह की स्थापना की जाय व प्रत्यके जिले में फूलमण्डी के लिए जगह की व्यवस्था की जाय जिसके देखभाल की जिम्मेदारी माली सैनी समाज को दी जाय। इस मौके पर जितेन्द्र कुमार, डा0 लौटन, अजय कुमार, बृज लाल, छोटेलाल, रामकुमार, संजय, अनिल, सन्तोष, राजकुमार, प्रमोद कुमार, शीतला प्रसाद माली आदि मौजूद रहे।
माली समाज को 10 प्रतिशत आरक्षण की जरूरत-सैनी
झुंझुनं। जिला मुख्यालय स्थित सैनी मंदिर में महात्मा ज्योतिबा फुले विचार मंच की रामनिवास सैनी की अध्यक्षता में बैठक हुई। सैनी ने अपने सम्बोधन में कहा कि राजस्थान के माली समाज को गुर्जरों की तरहा आगे बढऩे के लिए 10 प्रतिशत अति-विशिष्ट आरणक्ष की जरूरत है। इसके बिना राजस्थान में माली जाति को आगे बढऩे का चांस नहीं मिल सकता। ओबीसी वर्ग में शामिल सभी जातियों का हक एक शिक्षित जाति ही अपने पक्ष में कर ले जाती है। जिससे यह साबित होता है कि अन्य जातियों का ओबीसी आरक्षण से कोई लेना देना नहीं। सैनी जाति भी इस व्यवस्था से काफी पीडि़त है। सैनी ने कहा कि गुर्जरों को जो हक मिला हैं, उससे हम असंतुष्ठ नहीं है। लेकिन सैनी जाति को भी उनकी संख्या के अनुपात में 10 प्रतिशत आरक्षण सरकार को देना चाहिए। मंच अध्यक्ष डॉ. महेश सैनी ने कहा कि इस मांग के लिए मुख्यमंत्री को ज्ञापन तो दिया जा चुका है। अब सैनी समाज को अति-विशिष्ठ आरक्षण की मांग पर जिलेभर से पोस्टकार्ड अभियान चलाया जाएगा। जिसके लिए जिले के सभी ब्लोगों की कार्यकारिणी का जल्द ही गठन किया जाएगा। समाज मै फैली कुरूतीयों व दहेज आदि प्रथाओं को दुर करने के लिए बोद्धिक प्रकोष्ठ, वैवाहिक प्रकोष्ठ, महिला प्रकोष्ठ व युवा प्रकोष्ठ का गठन किया जाएगा। कार्यक्रम में बुधराम सैनी, पार्षद प्रदीप सैनी, दोलतराम सैनी उदयपुरवाटी, शेरसिंह सैनी सूरजगढ़, जेपी सैनी, लुणाराम, लक्ष्मणसिंह, ताराचंद राजोरिया, रामलाल, रतनलाल हलवाई, सुखराम सैनी नांगल, फुलचंद सैनी, विनोद, राकेश, संजय, राजकुमार, गजांनद, महेंद्र, मुकेश आदि दर्जनों समाज-बंधु उपस्थित थे।
माली समाज को मिले एससी का दर्जा
जौनपुर.
�मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन जिला प्रशासन को सौपा। पप्पू माली ने कहा कि विश्व पुष्प दिवस पखवारा मनाया जा रहा है। लेकिन फूलों की पुश्तैनी खेती करने वाले माली समाज की हालत बदतर है। अपने पसीने से पुष्पों में सुगन्ध भरने वाले माली समाज की राजनीति क्षेत्र में आज भी कोई भागीदारी नहीं हुई। सरकारी नौकरियों में उनकी संख्या न के बरारब है। सभी सरकारी विभागों में� माली के पदों पर केवल माली समाज के लोगों को नियुक्त किया जाए। माली समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए। फूलों की खेती के लिए विशेष पैकेज की व्यवस्था की जाए। कहा कि प्रत्येक तहसीलों में फूलों के रख रखाव के लिए शीतगृह की स्थापना की जाए। प्रत्यके जिले में फूूलमण्डी के लिए जगह की व्यवस्था की जाए।
�इस मौके पर जितेन्द्र कुमार, डा. लौटन, अजय कुमार, बृजलाल, छोटेलाल, रामकुमार, संजय, अनिल, सन्तोष, राजकुमार, प्रमोद कुमार, शीतला प्रसाद माली आदि मौजूद रहे।

सैनी समुदाय History

सैनी भारत की एक योद्धा जाति है. जिन्हें पौराणिक साहित्य में शूरसैनी के रूप में भी जाना जाता है, उन्हें अपने मूल नाम के साथ केवल पंजाब और पड़ोसी राज्य हरियाणा, जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पाया जाता है. वे अपना उद्भव यदुवंशी सूरसेन वंश के राजपूतों से देखते हैं, जिसकी उत्पत्ति यादव राजा शूरसेन से हुई थी जो कृष्ण और पौराणिक पाण्डव योद्धाओं, दोनों के दादा थे. सैनी, समय के साथ मथुरा से पंजाब और आस-पास की अन्य जगहों पर स्थानांतरित हो गए.
प्राचीन ग्रीक यात्री और भारत में राजदूत, मेगास्थनीज़ का परिचय भी सत्तारूढ़ जाती के रूप में जाती से इसके वैभव दिनों में हुआ था जब इनकी राजधानी मथुरा हुआ करती थी. एक अकादमिक राय यह भी है कि सिकंदर महान के शानदार प्रतिद्वंद्वी प्राचीन राजा पोरस, कभी सबसे प्रभावी रहे इसी यादव कुल के थे. मेगास्थनीज़ ने इस जाती को सौरसेनोई के रूप में वर्णित किया है.
राजपूत से उत्पन्न होने वाली पंजाब की अधिकांश जाती की तरह सैनी ने भी तुर्क-इस्लाम के राजनीतिक वर्चस्व के कारण मध्ययुगीन काल के दौरान खेती को अपना व्यवसाय बनाया, और तब से लेकर आज तक वे मुख्यतः कृषि और सैन्य सेवा, दोनों में लगे हुए हैं. ब्रिटिश काल के दौरान सैनी को एक सांविधिक कृषि जनजाति के रूप में और साथ ही साथ एक सैन्य वर्ग के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. सैनियों का पूर्व ब्रिटिश रियासतों, ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र भारत की सेनाओं में सैनिकों के रूप में एक प्रतिष्ठित रिकॉर्ड है. सैनियों ने दोनों विश्व युद्धों में लड़ाइयां लड़ी और 'विशिष्ट बहादुरी' के लिए कई सर्वोच्च वीरता पुरस्कार जीते. सूबेदार जोगिंदर सिंह, जिन्हें 1962 भारत-चीन युद्ध में भारतीय-सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र प्राप्त हुआ था, वे भी सहनान उप जाती के एक सैनी थे.
ब्रिटिश युग के दौरान, कई प्रभावशाली सैनी जमींदारों को पंजाब और आधुनिक हरियाणा के कई जिलों में जेलदार, या राजस्व संग्राहक नियुक्त किया गया था. सैनियों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिस्सा लिया और सैनी समुदाय के कई विद्रोहियों को ब्रिटिश राज के दौरान कारवास में डाल दिया गया, या फांसी चढ़ा दिया गया या औपनिवेशिक पुलिस के साथ मुठभेड़ में मार दिया गया. हालांकि, भारत की आजादी के बाद से, सैनियों ने सैन्य और कृषि के अलावा अन्य विविध व्यवसायों में अपनी दखल बनाई. सैनियों को आज व्यवसायी, वकील, प्रोफेसर, सिविल सेवक, इंजीनियर, डॉक्टर और अनुसंधान वैज्ञानिक आदि के रूप में देखा जा सकता है. प्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक, अवतार सैनी जिन्होंने इंटेल के सर्वोत्कृष्ट उत्पाद पेंटिअम माइक्रोप्रोसेसर के डिजाइन और विकास का सह-नेतृत्व किया वे इसी समुदाय के हैं.
अजय बंगा, भी जो वैश्विक बैंकिंग दिग्गज मास्टर कार्ड के वर्तमान सीईओ हैं एक सैनी हैं. लोकप्रिय समाचार पत्र डेली अजीत, जो दुनिया का सबसे बड़ा पंजाबी भाषा का दैनिक अखबार है उसका स्वामित्व भी सैनी का है. पंजाबी सैनियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अब अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन आदि जैसे पश्चिमी देशों में रहता है और वैश्विक पंजाबी प्रवासियों का एक महत्वपूर्ण घटक है. सैनी, हिंदू और सिख, दोनों धर्मों को मानते हैं. कई सैनी परिवार दोनों ही धर्मों में एक साथ आस्था रखते हैं और पंजाब की सदियों पुरानी भक्ति और सिख आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप स्वतन्त्र रूप से शादी करते हैं. अभी हाल ही तक सैनी कट्टर अंतर्विवाही क्षत्रिय थे और केवल चुनिन्दा जाती में ही शादी करते थे. दिल्ली स्थित उनका एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन भी है जिसे सैनी राजपूत महासभा कहा जाता है जिसकी स्थापना 1920 में हुई थी
सैनी उप कुल-
पंजाबी सैनी समुदाय में कई उप कुल हैं.
आम तौर पर सबसे आम हैं: अन्हे, बिम्ब (बिम्भ), बदवाल, बलोरिया, बंवैत (बनैत), बंगा, बसुता (बसोत्रा), बाउंसर, भेला, बोला, भोंडी (बोंडी), मुंध.चेर, चंदेल, चिलना, दौले (दोल्ल), दौरका, धक, धम्रैत, धनोटा (धनोत्रा), धौल, धेरी, धूरे, दुल्कू, दोकल, फराड, महेरू, मुंढ (मूंदड़ा) मंगर, मसुटा (मसोत्रा), मेहिंद्वान, गेहलेन (गहलोन/गिल), गहिर (गिहिर), गहुनिया (गहून/गहन), गिर्ण, गिद्दा, जदोरे, जप्रा, जगैत (जग्गी), जंगलिया, कल्याणी, कलोती (कलोतिया), कबेरवल (कबाड़वाल), खर्गल, खेरू, खुठे, कुहडा(कुहर), लोंगिया (लोंगिये),सागर, सहनान (शनन), सलारिया (सलेहरी), सूजी, ननुआ (ननुअन), नरु, पाबला, पवन, पम्मा (पम्मा/पामा), पंग्लिया, पंतालिया, पर्तोला, तम्बर (तुम्बर/तंवर/तोमर), थिंड, टौंक (टोंक/टांक/टौंक/टक), तोगर (तोगड़/टग्गर), उग्रे, वैद आदि.
हरियाणा में आम तौर पर सबसे आम हैं: बावल, बनैत, भरल, भुटरल, कच्छल, संदल (सन्डल), तोन्दवाल/तदवाल (टंडूवाल) आदि.
**कुछ सैनी उप कुल डोगरा और बागरी राजपूतों के साथ अतिछादन करता है. कुछ सैनी गुटों के नाम जो डोगरा के साथ अतिछादन करते हैं वे हैं: बडवाल, बलोरिया, बसुता, मसुता, धानोता, सलारिया, चंदेल, जगैत, वैद आदि. ऐतिहासिक रूप से क्षेत्रीय सगोत्र विवाह और सामाजिक भेद भी समुदाय के भीतर था. उदाहरण के लिए, होशियारपुर और जालंधर के सैनी इन जिलों से बाहर विवाह के लिए नहीं जाते थे और खुद को उच्च स्तरीय का मानते थे. लेकिन इस तरह के प्रतिबंध हाल के समय में अब ढीले पड़ चुके हैं और अंतर-जातीय विवाह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है विशेष रूप से एनआरआई सैनी परिवारों के बीच.
माली समाज को अनुसूचित जन जाति में शामिल करने की उठी मांग
पटना: 
महात्मा ज्योति राव फूले की 188वीं जयंती पर माली (मालाकार) कल्याण समिति ने राज्य सरकार से माली समाज को अनुसूचित जाति से अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग की है. रवींद्र भवन में आयोजित जयंती सह सम्मान समारोह में समिति ने जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार व खाद्य  व उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्याम रजक से मांग की कि 2002 में माली समाज को अतिपिछड़ा में शामिल किया गया था. इस समाज की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. इस समाज की आबादी करीब 35-40 लाख  है, लेकिन एक भी सांसद-विधायक इस समाज के नहीं है. माली समाज से कम आबादी वाले दूसरे समाज को राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. इसलिए राज्य सरकार केंद्र सरकार को अनुशंसा करे कि माली समाज को अतिपिछड़ा से अनुसूचित जन जाति का दर्जा दिया जाये. इस पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष समेत दोनों मंत्रियों ने समिति को आश्वासन दिया है कि वे इस मामले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात करेंगे. इस मौके पर जदयू नेताओं ने माली समाज के लोगों को आह्वान किया कि वे बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के साथ रहें और विकास के नाम पर वोट दें. जयंती समारोह में माली समाज के 51 लोगों को भी सम्मानित किया गया.

माली समाज का इतिहास

 माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज Mali Samaj अपने पेशे बागवानी Bagwani से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !


माली समाज का इतिहास Mali Samaj History  किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती Saini Samaj History के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|


कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|

महाभारत काल के बाद सैनी कुल Saini Community के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|

इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|

इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|


यूनान के सिकंदर Sikandar Great के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|


संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|


महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|


क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

माली समाज का इतिहास

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Mali Samaj History is very ancient which can be seen in Mythological books. Jyotiba Phule was important part of Mali samaj History / Saini Samaj History. माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज Mali Samaj अपने पेशे बागवानी Bagwani से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !


माली समाज का इतिहास Mali Samaj History  किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती Saini Samaj History के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|


कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|


महाभारत काल के बाद सैनी कुल Saini Community के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|


इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|


इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|


यूनान के सिकंदर Sikandar Great के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|


संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|


महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|


क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

माली समाज का इतिहास

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Mali Samaj History is very ancient which can be seen in Mythological books. Jyotiba Phule was important part of Mali samaj History / Saini Samaj History. माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज Mali Samaj अपने पेशे बागवानी Bagwani से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास Mali Samaj History  किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती Saini Samaj History के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|
कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|
महाभारत काल के बाद सैनी कुल Saini Community के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|
इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|
इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|
यूनान के सिकंदर Sikandar Great के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|
संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|
महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|
क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

चौहान राजवंश की कुलदेवी

जय माँ शाकम्भरी

सांभर की अधिष्ठात्री और चौहान राजवंश की कुलदेवी शाकम्भरी माता का प्रसिद्ध मंदिर सांभर से लगभग १५ कि.मी. दूर अवस्थित है।

शाकम्भरी देवी का स्थान एक सिद्धपीठ स्थल है

जहां जनमानस विभिन्न वर्गो और धर्मो के लोग

आकर अपनी श्रद्धा भक्ति निवेदित करते हैं।

शाकम्भरी दुर्गा का एक नाम है , जिसका शाब्दिक

अर्थ है शाक से जनता का भरण पोषण करने वाली। 

मार्कण्डेय पुराण के चण्डीस्तोत्र तथा वामन पुराण (अध्याय ५३) में देवी के

शाकम्भरी नामकरण का यही कारण बताया गया है।

इस प्राचीन देवी तीर्थ का संबंध शक्ति के उस रूप से है जिससे शाक या वनस्पति की वृद्धि होती है।

सांभर के पास जिस पर्वतीय स्थान में शाकम्भरी देवी का मंदिर है वह स्थान कुछ

वर्षों पहले तक जंगल की तरह था और घाटी देवी की बनी कहलाती थी। समस्त भारत में शाकम्भरी देवी का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर यही है,

 जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि देवी की प्रतिमा भूमि से स्वतः प्रकट हुई थी।

शाकम्भरी देवी की पीठ के रूप में सांभर की प्राचीनता महाभारत काल तक चली जाती है।

महाभारत (वन पर्व), शिव पुराण (उमा संहिता) मार्कण्डेय पुराण आदि पौराणिक ग्रन्थों में शाकम्भरी की अवतार कथाओं में शत वार्षिकी अनावृष्टि चिन्तातुर ऋषियोंपर देवी का अनुग्रह शकादि प्रसाद दान द्वारा 

धरती के भरण पोषण की कथायें उल्लेखनीय है। 

वैष्णव पुराण में शाकम्भरी देवी के तीनों रूपों में शताक्षी, शाकम्भरी देवी का शताब्दियों से लोक में बहुत माहात्म्य है।

 सांभर और उसके निकटवर्ती अंचल में तो उनकी मान्यता है ही साथ ही दूरस्थ

प्रदेशों से भी लोग देवी से इच्छित मनोकमना पूरी होने का आशीर्वाद लेने तथा सुख-

समृद्धि की कामना लिए देवी के दर्शन हेतु वहां आते हैं। 

प्रतिवर्ष भादवा सुदी अष्टमी को शाकम्भरी माता का मेला भरता है।

इस अवसर पर सैंकड़ों कह संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शनार्थ वहां आते हैं। 

चैत्र तथा आसोज के नवरात्रों में यहां विशेष चहल पहल रहती है।

शाकम्भरी देवी के मंदिर के समीप उसी पहाड़ी पर मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा सन् १६२७ में एक गुम्बज (छतरी) व पानी के टांके या कुण्ड का निर्माण कराया था, जो अद्यावधि वहां विद्यमान है।

शाकम्भरी देवी के चमत्कार से संबंधित एक जनश्रुति है कि मुगल बादशाह औरंगजेब जब स्वयं शाकम्भरी देवी की मूर्ति तोड़ने के इरादे से वहां आया और प्रतिमा नष्ट करने का आदेश दिया 

तो असंख्य जहरीली मधुमक्खियों का झुण्ड उसकी सेना पर टूट पड़ा तथा सैनिकों को घायल कर दिया 

तब विवश हो औरंगजेब ने अपनी आज्ञा वापिस ली तथा देवी से क्षमा याचना की।

सारतः शाकम्भरी देवी अपने आलौकिक शक्ति और माहात्म्य के कारण सैंकड़ों वर्षो से लोक आस्था का केन्द्र है।


क्षत्रिय जातियो की सूची

क्रमांकनामगोत्रवंशस्थान और जिला
१.सूर्यवंशीभारद्वाजसूर्यबुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
२.गहलोतबैजवापेणसूर्यमथुरा कानपुर और पूर्वी जिले
३.सिसोदियाबैजवापेडसूर्यमहाराणा उदयपुर स्टेट
४.कछवाहामानवसूर्यमहाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
५.राठोडकश्यपसूर्यजोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
६.सोमवंशीअत्रयचन्दप्रतापगढ और जिला हरदोई
७.यदुवंशीअत्रयचन्दराजकरौली राजपूताने में
८.भाटीअत्रयजादौनमहारजा जैसलमेर राजपूताना
९.जाडेचाअत्रययदुवंशीमहाराजा कच्छ भुज
१०.जादवाअत्रयजादौनशाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११.तोमरव्याघ्रचन्दपाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२.कटियारव्याघ्रतोंवरधरमपुर का राज और हरदोई
१३.पालीवारव्याघ्रतोंवरगोरखपुर
१४.परिहारकौशल्यअग्निइतिहास में जानना चाहिये
१५.तखीकौशल्यपरिहारपंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१६.पंवारवशिष्ठअग्निमालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१७.सोलंकीभारद्वाजअग्निराजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१८.चौहानवत्सअग्निराजपूताना पूर्व और सर्वत्र
१९.हाडावत्सचौहानकोटा बूंदी और हाडौती देश
२०.खींचीवत्सचौहानखींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२१.भदौरियावत्सचौहाननौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२२.देवडावत्सचौहानराजपूताना सिरोही राज
२३.शम्भरीवत्सचौहाननीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२४.बच्छगोत्रीवत्सचौहानप्रतापगढ सुल्तानपुर
२५.राजकुमारवत्सचौहानदियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२६.पवैयावत्सचौहानग्वालियर
२७.गौर,गौडभारद्वाजसूर्यशिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२८.वैसभारद्वाजचन्द्रउन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
२९.गेहरवारकश्यपसूर्यमाडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
३०.सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियजगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३१.कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियपूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३२.बिसैनवत्सब्रह्मक्षत्रियगोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं
३३.निकुम्भवशिष्ठसूर्यगोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३४.सिरसेतभारद्वाजसूर्यगाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३५.कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाज,सूर्यबरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३६.वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रमथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३७.बढगूजरवशिष्ठसूर्यअनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३८.झालामरीच कश्यपचन्द्रधागधरा मेवाड झालावाड कोटा
३९.गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियराजा अर्गल फ़तेहपुर
४०.रैकवारभारद्वाजसूर्यबहरायच सीतापुर बाराबंकी
४१.करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्रबलिया फ़ैजाबाद अवध
४२.चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीगिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
४३.जनवारकौशल्यसोलंकी शाखाबलरामपुर अवध के जिलों में
४४.बहरेलियाभारद्वाजवैस की गोद सिसोदियारायबरेली बाराबंकी
४५.दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाउन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
४६.सिलारशौनिकचन्द्रसूरत राजपूतानी
४७.सिकरवारभारद्वाजबढगूजरग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
४८.सुरवारगर्गसूर्यकठियावाड में
४९.सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशकाठियावाड
५०.मोरीब्रह्मगौतमसूर्यमथुरा आगरा धौलपुर
५१.टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमैनपुरी और पंजाब
५२.गुप्तगार्ग्यचन्द्रअब इस वंश का पता नही है
५३.कौशिककौशिकचन्द्रबलिया आजमगढ गोरखपुर
५४.भृगुवंशीभार्गवचन्द्रवनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
५५.गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियनृसिंहपुर सुल्तानपुर
५६.पडियारिया,देवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियराजपूताना
५७.ननवगकौशल्यचन्द्रजौनपुर जिला
५८.वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रबुन्देलखन्ड बांदा वनारस
५९.जैसवारकश्यपयदुवंशीमिर्जापुर एटा मैनपुरी
६०.चौलवंशभारद्वाजसूर्यदक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६१.निमवंशीकश्यपसूर्यसंयुक्त प्रांत
६२.वैनवंशीवैन्यसोमवंशीमिर्जापुर
६३.दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियकाठियावाड राजपूताना
६४.पुण्डीरकपिलब्रह्मक्षत्रियपंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
६५.तुलवाआत्रेयचन्द्रराजाविजयनगर
६६.कटोचकश्यपभूमिवंशराजानादौन कोटकांगडा
६७.चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखामलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६८.अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतखेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
६९.डौडियावशिष्ठपंवार शाखाबुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७०.गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाकाठियावाड
७१.बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखाबुन्देलखंड के रजवाडे
७२.काठीकश्यपगहरवारशाखाकाठियावाड झांसी बांदा
७३.जोहियापाराशरचन्द्रपंजाब देश मे
७४.गढावंशीकांवायनचन्द्रगढावाडी के लिंगपट्टम में
७५.मौखरीअत्रयचन्द्रप्राचीन राजवंश था
७६.लिच्छिवीकश्यपसूर्यप्राचीन राजवंश था
७७.बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यअब पता नहीं चलता है
७८.पालकश्यपसूर्ययह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
७९.सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रिययह वंश भी भारत में बिखर गया है
८०.कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियदक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८१.पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियदक्षिण में मराठा के पास में है
८२.बाणवंशकश्यपअसुरवंशश्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८३.काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थाअब पता नही मिलता है
८४.सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य था,अब पता नही मिलता है
८५.दहियाकश्यपराठौड शाखामारवाड में जोधपुर
८६.जेठवाकश्यपहनुमानवंशीराजधूमली काठियावाड
८७.मोहिलवत्सचौहान शाखामहाराष्ट्र मे है
८८.बल्लाभारद्वाजसूर्यकाठियावाड मे मिलते हैं
८९.डाबीवशिष्ठयदुवंशराजस्थान
९०.खरवडवशिष्ठयदुवंशमेवाड उदयपुर
९१.सुकेतभारद्वाजगौड की शाखापंजाब में पहाडी राजा
९२.पांड्यअत्रयचन्दअब इस वंश का पता नहीं
९३.पठानियापाराशरवनाफ़रशाखापठानकोट राजा पंजाब
९४.बमटेलाशांडल्यविसेन शाखाहरदोई फ़र्रुखाबाद
९५.बारहगैयावत्सचौहानगाजीपुर
९६.भैंसोलियावत्सचौहानभैंसोल गाग सुल्तानपुर
९७.चन्दोसियाभारद्वाजवैससुल्तानपुर
९८.चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियजौनपुर
९९.धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियआगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१००.धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियजौनपुर आजमगढ वनारस
१०१.धेकाहाकश्यपपंवार की शाखाभोजपुर शाहाबाद
१०२.दोबर(दोनवर)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०३.हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखाआजमगढ
१०४.जायसकश्यपराठौड की शाखारायबरेली मथुरा
१०५.जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रबुलन्दशहर
१०६.जसावतमानव्यकछवाह शाखामथुरा आगरा
१०७.जोतियाना(भुटियाना)मानव्यकश्यप,कछवाह शाखामुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०८.घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखालुधियाना होशियारपुर जालन्धर
१०९.कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियअवध के जिलों में
११०.काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर आजमगढ
१११.कासिबकश्यपकछवाह शाखाशाहजहांपुर
११२.किनवारकश्यपसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार में
११३.बरहियागौतमसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार
११४.लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखाबलिया गाजी पुर शाहाबाद
११५.मौनसमानव्यकछवाह शाखामिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११६.नगबकमानव्यकछवाह शाखाजौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११७.पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाआजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११८.रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखापूर्व अवध में
११९.सिंहेलकश्यपसूर्यआजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२०.तरकडकश्यपदीक्षित शाखाआगरा मथुरा
१२१.तिसहियाकौशल्यपरिहारइलाहाबाद परगना हंडिया
१२२.तिरोताकश्यपतंवर की शाखाआरा शाहाबाद भोजपुर
१२३.उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियआजमगढ गोरखपुर
१२४.भालेवशिष्ठपंवारअलीगढ
१२५.भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखारायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२६.जैवारव्याघ्रतंवर की शाखादतिया झांसी बुन्देलखंड
१२७.सरगैयांव्याघ्रसोमवंशहमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२८.किसनातिलअत्रयतोमरशाखादतिया बुन्देलखंड
१२९.टडैयाभारद्वाजसोलंकीशाखाझांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३०.खागरअत्रययदुवंश शाखाजालौन हमीरपुर झांसी
१३१.पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखाबुन्देलखंड
१३२.सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखाबुन्देलखंड
१३३.खींचरवत्सचौहान शाखाफ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३४.खातीकश्यपदीक्षित शाखाबुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३५.आहडियाबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३६.उदावतबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३७.उजैनेवशिष्ठपंवारआरा डुमरिया
१३८.अमेठियाभारद्वाजगौडअमेठी लखनऊ सीतापुर
१३९.दुर्गवंशीकश्यपदीक्षितराजा जौनपुर राजाबाजार
१४०.बिलखरियाकश्यपदीक्षितप्रतापगढ उमरी राजा
१४१.डोमराकश्यपसूर्यकश्मीर राज्य और बलिया
१४२.निर्वाणवत्सचौहानराजपूताना (राजस्थान)
१४३.जाटूव्याघ्रतोमरराजस्थान,हिसार पंजाब
१४४.नरौनीमानव्यकछवाहाबलिया आरा
१४५.भनवगभारद्वाजकनपुरियाजौनपुर
१४६.गिदवरियावशिष्ठपंवारबिहार मुंगेर भागलपुर
१४७.रक्षेलकश्यपसूर्यरीवा राज्य में बघेलखंड
१४८.कटारियाभारद्वाजसोलंकीझांसी मालवा बुन्देलखंड
१४९.रजवारवत्सचौहानपूर्व मे बुन्देलखंड
१५०.द्वारव्याघ्रतोमरजालौन झांसी हमीरपुर
१५१.इन्दौरियाव्याघ्रतोमरआगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५२.छोकरअत्रययदुवंशअलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५३.जांगडावत्सचौहानबुलन्दशहर पूर्व में झांसी