गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

पुलिस हिरासत में सुभाष सैनी की मौत आत्महत्या या हत्यI

पहले झूठे केस में फंसाये गये और फिर पुलिस हिरासत में मौत का शिकार हुए हांसी के सैनीपुरा में रहने वाले सुभाष सैनी ने वाकई में आत्महत्या की थी या फिर उसकी हत्या कर दी गई, फिलहाल यक्ष प्रश्र बने इस सवाल का जवाब या तो हांसी के सिटी थाने में 13 फरवरी की रात तैनात वे पुलिसकर्मी दे सकते हैं, जिनकी जिम्मेवारी हवालातियों पर नजर रखने की थी और या फिर वो तीन शख्स, जो उस रात सुभाष सैनी के साथ हवालात में बंद थे। अगर पुलिस की बात पर विश्वास किया जाये तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि घटना वाली रात को आराम से खाना खाकर सोये सुभाष सैनी को किस चीज ने इतना मजबूर कर दिया कि सुबह होने का इंतजार किये बगैर ही उसने अपनी जिंदगी को खत्म करने का फैसला कर लिया और वह भी महज साढ़े चार फुट ऊंचाई पर लगी एक ग्रिल पर अपना अंगोछा बांधकर शायद जिस पर यदि इतनी ही लम्बाई वाला कोई भी अन्य शख्स भी आत्महत्या का प्रयास करें तो वह ऐसा न कर पाये जबकि सुभाष की लम्बाई तो इसे करीब एक फुट ज्यादा थी। तभी तो जब सुभाष के शव को देखा गया तो उसके घुटने जमीन पर टिके हुए थे। जिसे देखकर एक्सपर्ट तो क्या आम आदमी तक यह बता सकता है कि इस स्थिति में मौत संभव है या नहीं। इतना ही नहीं, पोस्टमार्टम के दौरान मृतक की बाई आंख के ऊपर और अंगुलियों पर भी चोट के निशान पाये गये, जो यह सवाल उठाते हैं कि यदि सुभाष की मौत गला घुटने से हुई है तो उसकी आंखों व अंगुलियों पर चोट कैसे लगी। हैरानी तो तीन अन्य हवालातियों व वहां तैनात खाकी वर्दीधारियों के उस ब्यान पर भी है, जिसमें उनका कहना है कि सुभाष की मौत का पता अगले दिन सुबह उस वक्त लगा जब चाय के लिए उन्हें जगाया गया। सवाल यह भी है कि पहरेधारी के लिए तैनात किये गये पुलिसकर्मी रात भर कहां थे और क्या रहे थे। क्या ऐसा भी हो सकता है कि सुभाष खुदकुशी के लिए बंदोबस्त कर रहा हो और हवालात में बंद तीन अन्य लोगों को चूं तक की आवाज तक न आये। अगर मामला महज आत्महत्या का होता तो शायद न तो हांसी के मैजिस्ट्रेट इस घटना को संदेहास्पद मानते और न ही हाईकोर्ट स्वयं एक्शन लेकर पुलिस प्रशासन से इस संबंध में जवाब तलबी करता। इतनी बड़ी अनहोनी होने के बाद सुभाष के जानकारों के साथ-साथ उसके समाज का गुस्सा फूटना काफी हद तक जायज था मगर लानत तो अपने आपको सैनी समाज का खेवनहार कहने वाले उन राजनीतिक नेताओं पर है जो सुभाष के परिजनों को इंसाफ दिलवाने व उनकी आवाज बुलंद करने की बजाय पहले दो लाख और फिर पांच लाख रुपये की सरकारी सहायता लेकर उनके घर पहुंच गये ताकि मामला शांत होने की सूरत में वे सरकार से अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दबाव बना सकें मगर उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि पुलिस हिरासत में महज एक आदमी की ही मौत नहीं हुई है, बल्कि सम्पूर्ण सैनी समाज इस घटना से बुरी तरह आहत है और वह इसे अपनी प्रतिष्ठा की मौत मान रहा है तभी तो दोनों ही नेताओं को अपनी इस करनी पर न केवल सुभाष के परिजनों, बल्कि सैनी समाज का भी कोपभाजन बनना पड़ा। करीब एक महीना बीत जाने के बावजूद भी सुभाष सैनी की मौत पर पड़ा रहस्य का पर्दा नहीं उठ पाया और सैनी समाज के शुभचिंतक अभी भी मामले की निष्पक्ष जांच के लिए आंदोलनरत है। एक थोड़ी सुखद बात यह है कि पुलिस प्रशासन ने सैनी समाज के उन सैकड़ों लोगों के खिलाफ दर्ज किये गये केस को खारिज करने का भरोसा दिलाया है, जिन्होंने आवेश में आकर पुलिस चौकी को नुकसान पहुंचाया था। प्रिय पाठकों, सुभाष सैनी के परिजनों को अब तभी इंसाफ मिल पायेगा जब सम्पूर्ण बिरादरी एकजुट होकर दबाव बनायेगी।

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