रविवार, 22 सितंबर 2019

माली जाति की उत्पत्ति एवं विकास
 मेवाड़ माली समाज के राव श्री प्रभुलाल ( मोबाईल- +91 97 83 618 184, मु.पो.- बामनिमा कला, तहसील -रेलमगरा, जिला -राजसमन्द, राज्य - राजस्थान, पिन कोड़- 313329 )के अनुसार-
             मेवाड़ माली समाज के आदि पुरुष को "आद माली" के नाम से कहा गया है। जैसा की पूर्व में उल्लेख किया गया है कि "आद" अथवा "अनाद" शब्द के पर्याय रूप में "मुहार" अथवा "कदम"' शब्द मिलते है जिनका शाब्दिक अर्थ होता है 'पुराना अर्थात प्राचीनतम'।
          "माली सैनी दर्पण" के विद्वान लेखक ने पृ. पर लिखा है कि मुहुर अथवा 'माहुर मालियों की सबसे प्राचीनजाति है। इसका सम्बन्ध मेवाड़ के माली समाज से किस प्रकार है। इस पर अध्ययन अपेक्षित है।
        ब्रह्मभट्ट राव के कथानुसार आद माली के 25 पुत्र हुए (किन्तु उनका नामोल्लेख नहीं मिलता है) जिन्होंने कश्मीर में बाग लगाये और लगभग 13वीं शताब्दी में मामा-भाणेज ने सम्भवत: पुष्कर मे अपनी बिरादरी के सदस्यों को चारों दिशाओं से आमंत्रित कर सम्मेलन किया। इस आयोजन में-द्रावट, सौराष्ट्र, पंजाब, मुल्तान, उमर-कश्मीर, मरुधर, थलवट, काठियावाड़, गोडारी, मालवा, गुजरात, हाडोती शेखावाटी, बंगाल, आंतरी, सिन्ध, लोडी, बुन्देलखण्ड, हरियाणा, मदारिया, खेराड़, गौडवाड़, बैराठ, ढूठांड़, अजमेर इकट्टा हुए। इस समारोह के मुख्य अतिथि महाराणा श्री समरसिंह रावल वि.स. थे जिन्हें समाज के मुखिया की ओर से पगड़ी धारण करवायी गयी और श्री महाराणा ने मुखिया को अपनी पगड़ी पहनाई तब से यह समाज "राज. भाई माली" नाम से पहचाना जाने लगा।
       समय के साथ-साथ राज्य व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव आता रहा परिणाम स्वरूप हम अज्ञानतावश अपने असतित्व को भूल गये।
      श्री हीरालाल खर्टिया द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार महाराणाओं की डोली उठाने के लिये 'कहार भोई' समाज के सदस्यों के साथ माली समाज के युवाओं को भी रात में घेरा डालकर दरबार में ले जाया जाता था और उनसे 'डोली उठाने का कार्य करवाया जाता था। शिक्षा और आर्थिक दृषिट से पिछड़े हुए इस समाज ने समय के साथ समझौता कर सब कुछ स्वीकार किया।
     यह समाज 'राज-भाई माली' के बजाय 'राज-भोई- माली' के नाम से पुकारा जाने लगा। मेरे अनुभव व जानकारी के अनुसार 1975 के दशक तक इस समाज के सदस्यों को 'राज भोई माली' नाम से पुकारा जाता था। धीरे-धीरे भोई-माली और दक्षिण राजस्थान के डूंगरपुर-बाँसवाडा जिले में यह जाति 'भोई' शब्द से जानी जाती है। माली समाज प्रगति संघ ने अपनी पहचान को कायम रखने के लिये 1994 में आयोजित प्रदेश स्तरीय सम्मेलन में अपनी पहचान के रूप में 'माली'शब्द का उपयोग करने का निर्णय लिया। 
         संवत् 1257 में पुष्करजी में हुए सम्मेलन में जाति की पहचान के लिये-कुछ मर्यादा(नियम) तय की गयी ये जिनमें नियम नं. 16 में तय किया गया की समाज के सदस्य 'भोई' का कार्य नहीं करेगें। डोली न उठावें व मछली न पकड़े। 28जनवरी1959 में माली समाज, उदयपुर के सम्मेलन में नाम के साथ 'भोई' शब्द न लगाने का निर्णय लिया गया। संघ द्वारा दिनांक 5 मई 2009 में 'बेणेश्वरधाम' में आयोजित वागड़ सम्मेलन में सचिव डा. विष्णु तलाच ने समाज का पूर्व उल्लेख करते हुए वागड़ के सभी भाई- बहनों को मुख्यधारा से जुड़ने का आग्रह किया।
  राव की पोथी के विवरणानुसार 'राजमाली' समाज की 7 खांप 84 गौत्र का विवरण निम्नानुसार है- 
खांप गौत्र
1. चौहान~ अजमेरा, खर्टिया, दुगारिया, बडोदिया, माणगाया, डामरिया, मौरी, भेली, टांक, धोलासिया, धनोपिया, कराडिया
2. राठोड़~ सरोल्या, दूणिया, असावरा, तलाच, हिण्डोलिया, अण्डेरिया, जाजपुरिया, मगाणिया, मंगरोला (मंगरूपा), खूर्रिया, खमनोरा, रातलिया
3. पंवार~ पाडोलिया, पवेडा, परवाल, पाहया, पानडिया, परखण, लोलगपुरा, सजेत्या, धरावणिया, चुसरा, महनाला (मेहन्दाला), ठलका
4. गहलोत~ मण्डावरा, वडेरा, बडाण्या, बरस, वगेरवाल वगोरिया, बलेणिडया, डागर, सोहित्या, बडगुजर, भदेसरया, कनोजा
5. सौलंकी~ रिछा, जेतल्या, कालडाखा, काकसणिया, ठाकरिया, सरोल्या, चन्दवाडया, रणथम्बा, मुवाला, पालका, मोरी
6. तंवर~ गौड़ा, गांछा, आकड़, उसकल्या, कुकडया, भमिया, मेकालिया, दालोटा, कनस्या, कांकरूणा, धाखा, सोपरिया।
7. परिहार जातरा, गुणिया, डुगलिया, गुणन्दा, सुखला, हेड़ा, बनारिक्या, भीमलपुरिया, पानडिया, भातरा, कच्छावा। सन 2009 में संघ द्वारा माली समाज का सामाजिक सर्वेक्षण करवाया गया प्राप्त जानकारी के अनुसार उदयपुर शहर में 42 गौत्र के परिवार पंजिकृत है जिनका विवरण निम्नानुसार है -
1. असावरा
2. जाजपुरिया
3. सुंगलिया
4. धरावणिया
5. तलाच
6. खमनोरा
7. खर्टिया
8. टांक
9. घासी
10. ड़ामटिया
11. धोलासिया
12. धोरिया
13. पथेरा
14. मेकालिया
15. परखण
16. परमार
17. कराडिया
18. पाडोलिया
19. पानडिया
20. बडोदिया
21. बुगलिया
22. मण्डावरा
23. भमिया
24. मुवाला
25. रातलिया
26. रेमतिया
27. रिछिया
28. वडेरा
29. वगेरवाल
30. वलेणिडया
31. सोइतिया
32. हिण्डोलिया
33. पारोलिया
34. घनोपिया
35. बूटिया
36. लोडियाणा
37. मालविया राठौड़
38. मुवाला
39. मतारिया चौहान
40. दूणिया
41. डगारिया
42. खुरया
माली लोग काश्तकारी यानी खेती करने में ज्यादा होशियार है क्योकिं वे हर तरह का अनाज, साग- पात, फलफूल और पेड़ जो मारवाड़ में होते है, उनको लगाना और तैयार करना जानते है। इसी सबब से इनका दूसरा नाम बागवान है। बागवानी का काम मालियों या मुसलमान बागवानों के सिवाय और कोई नहीं जानता। माली बरखलाफ दूसरे करसों अर्थात् किसानों के अपनी जमीनें हर मौसम में हरीभरी रखते है। उनके खेतों में हमेशा पानी की नहरें बहा करती है और इस लिये ये लोग सजल गॉवों में ज्यादा रहते है। माली लोग अपनी पैदाइश महादेवजी के मैल से बताते है। इनकी मान्यता है कि जब महादेवजी ने अपने रहने के लिये कैलाशवन बनाया तो उसकी हिफाजत के लिये अपने मैल से पुतला बनाकर उस में जान डाल दी और उसका नाम ‘वनमाली’ रखा। फिर उसके दो थोक अर्थात् वनमाली और फूलमाली हो गए। जिन्होनें वन अर्थात् कुदरती जंगलों की हिफाजत की और उनको तरक्की दी, वे वनमाली कहलाये और जिन्होनें अपनी अक्ल और कारीगरी से पड़ी हुई जमीनों में बाग और बगिचे लगाये और उमदा-उमदा फूलफल पैदा किये, उनकी संज्ञा फूलमाली हुई। पीछे से उनमें कुछ छत्री(क्षत्रिय) भी परशुराम के वक्त में मिल गये क्योंकि वे अपने पिता के वध का बैर लेने के लिये पृथ्वी को निछत्री(क्षत्रियविहीन) कर रहे थे। मुसलमानों के वक्त में इस कौम की और अधिक तरक्की हुई जबकि उनके डर से बहुत से राजपूत माली बनकर छुटे थे। उस वक्त कदीमी मालियों के लिये ‘मुहुर माली’ का नाम प्रचलित हुआ अर्थात् पहले के जो माली थे, वे महुर माली कहलाने लगे। महुर के मायने पहले के है। महुर माली जोधपुर में बहुत ही कम गिनती के है। वे कभी किसी समय में पूर्व की तरफ से आये थे। बाकी सब उन लोगों की औलाद है जो राजपूतों से माली बने थे इनकी 12 जातियॉ है जिनके नाम कच्छवाहा, पड़ियार, सोलंकी, पंवार, गहलोत, सांखला, तंवर, चौहान, भाटी, राठौड़, देवड़ा और दहिया है। माली समाज अपने विषय में इससे ज्यादा हाल नहीं जानते। ज्यादा जानने के लिये वे अपने भाटों का सहारा लेते है। जोधपुर में ब्रह्मभट्ट नानूराम इस कौम का होशियार भाट है। उसके पास मालियों का बहुत सा पुराना हाल लिखा हुआ है मगर माली लोग अपनी बेइल्मी के कारण अपने सही और गलत भाटों की सहीं परख नहीं कर पातें। मालियों के भाट उनका सम्बंध देवताओं से जोड़ते है और कहते है कि जब देवताओं और दैत्यों द्वारा समुन्द्र मथने से जहर पैदा हुआ था तो उसकी ज्वाला से लोगों का दम घुटने लगा। महादेव जी उसको पी गये, लेकिन उसे गले से नीचे नहीं उतारा। इस सबब से उनका गला बहुत जलने लगा था जिसकी ठंडक के लिये उन्होने दूब भी बांधी और सांप को भी गले से लपेटा। लेकिन किसी से कुछ आराम न हुआ तब कुबेरजी के बेटे स्वर्ण ने अपने पिता के कहने से कमल के फूलों की माला बनाकर महादेवजी को पहनाई। उससे वह जलन जाती रही। महादेव जी ने खुश होकर स्वर्ण से कहा - हे वीर! तूने मेरे कण्ठ में वनमाला पहलाई है। इस से लोक अब तुझकों वनमाली कहेगे। महादेव जी से स्वर्ण को जब वरदान मिला तो सब देवता और दैत्य बहुत प्रसन्न हुए। उसे वे महावर पुकारने लगे। उन्होने भी उसकी प्रशंसा करके उसे अच्छे-अच्छे वरदान दिये.
माली जाति की उत्पत्ति एवं विकास  

          माली समाज की उत्पत्ति के बारे में यूं तो कभी एक राय नहीं निकली फिर भी विभिन्न ग्रंथो अथवा लेखा-जोखा रखने वाले राव, भाट, जग्गा, बडवा, कवी भट्ट, ब्रम्ह भट्ट व कंजर आदि से प्राप्त जानकारी के अनुसार तमाम माली बन्धु भगवान् शंकर माँ पार्वती के मानस पुत्र है !             
       एक कथा के अनुसार दुनिया की उत्पत्ति के समय ही एक बार माँ पार्वती ने भगवान् शंकर से एक सुन्दर बाग़ बनाने की हट कर ली तब अनंत चौदस के दिन भगवान् शंकर ने अपने शरीर के मेल से पुतला बनाकर उसमे प्राण फूंके! यही माली समाज का आदि पुरुष मनन्दा कहलाया! इसी तरह माँ पार्वती ने एक सुन्दर कन्या को रूप प्रदान किया जो आदि कन्या सेजा कहलायी ! तत्पश्चात इन्हें स्वर्ण और रजत से निर्मित औजार कस्सी, कुदाली आदि देकर एक सुन्दर बाग़ के निर्माण का कार्य सोंपा! मनन्दा और सेजा ने दिन रात मेहनत कर निश्चित समय में एक खुबसूरत बाग़ बना दिया जो भगवान् शंकर और पार्वती की कल्पना से भी बेहतर बना था! भगवान् शंकर और पार्वती इस खुबसूरत बाग़ को देख कर बहुत प्रसन्न हुये ! तब भगवान् शंकर ने कहा आज से तुम्हे माली के रूप में पहचाना जायेगा ! इस तरह दोनों का आपस में विवाह कराकर इस पृथ्वी लोक में अपना काम संभालने को कहा !
    आगे चलकर उनके एक पुत्री और ग्यारह पुत्र हुये ! जो कुल बारह तरह के माली जाति में विभक्त हो गए! अत: माली समाज को इस उपलक्ष पर अनंत चौदस के दिन माली जयंती अर्थात मानन्दा जयंती मनानी है!
प्रसाद- फल, खीर, सामूहिक भोज(बजट के अनुसार ) !
स्थान- समाज का मंदिर, धर्मशाला, नोहरा, समाज की स्कूल !
[नोट : मनन्दा जयंती पर्तिवर्ष अनंत चौदस( रक्षाबंधन के एक महीने बाद ) मनाई जाएगी !]

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

साेजत में जयकाराें के बीच विराजीं जैकल माता

साेजत| शहर के 132 केवी जीएसएस के पीछे स्थित जैकल माताजी मंदिर में मां की प्रतिमा शुभ मुहूर्त में विराजित की गई। इस दाैरान पंडितों के सानिध्य में विभिन्न प्रकार के वैदिक संस्कार सम्पन्न हुए। तत्पश्चात अारती का अायाेजन किया गया। इसके बाद में बडी संख्या में श्रद्धालुअाें ने महाप्रसादी का लाभ उठाया। कार्यक्रम की पूर्व संध्या पर भजनाें की प्रस्तुति दुर्गेश मारवाड़ी ने दी। 

मुख्य समाराेह के दिन पंडित सागर भाई व्यास की अगुवाई में संताें की उपस्थिति में शुभवेला में मां जैकल की नई प्रतिमा काे स्थापित किया गया। 

इस माैके मगाराम भाटी, चम्पालाल टांक, रमेश सांखला, नेमाराम हलवाई, श्याम माहेश्वरी, सुरेश पलाेड, भंवरलाल तंवर, विकास टांक, प्रकाश भाटी, जवरीलाल अग्रवाल, रामअवतार भाटी, लक्ष्मण सांखला, मंदिर पुजारी नरसिंगदास वैष्णव, गणपतसिंह कच्छवाह, अर्जुन सांखला, गणपतलाल पालरिया, पन्नाराम चाैहान, रामलाल सांखला अादि माैजूद थे।