शनिवार, 30 अप्रैल 2011

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मूल ओबीसी विकास मंच का गठन

फतेहपुर शेखावाटी। सुप्रसिद्ध समाज सेवक आचार्य रामगोपाल सैनी के प्रयास से मूल ओबीसी विकास मंच का गठन किया गया है। मंच का संयोजक आचार्य रामगोपाल सैनी को बनाया गया है। डा. बनवारी लाल सोनी, ओमप्रकाश सोनी पत्रकार तथा हनुमानाराम सैन को संरक्षक बनाया गया है। मंच के सदस्यों में घनश्याम गुर्जर, सुरेश सोनी एडवोकेट, सीतारात प्रजापत, गुलाब अलबेला, दिनेश कुमार जांगिड़, लखपत भार्गव अध्यापक, मेवाराम प्रजापत, सागरमल जांगिड़, छोटेलाल गुर्जर, लक्ष्मीनारायण सैन, नन्दलाल स्वामी व मोहनलाल टेलर को शामिल किया गया है।

जयपुर के गजेन्द्र सैनी को रजत पदक

उदयपुर। यहां सम्पन्न स्ट्रेन्थ लिफ्टिंग प्रतियोगिता में जयपुर के गजेन्द्र सैनी को 582 किलाग्राम वजन उठाने पर रजत पदक मिला है। स्वर्ण पदक 80किग्रा वर्ग में जयपुर के ही पवनकुमार कुमावत को 690 किलाग्राम वजन उठाने पर मिला।

आचार्य सैनी का होगा नागरिक अभिनन्दन

फतेहपुर शेखावाटी। राजस्थान के सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वान, समाज सेवक, प्रखर वक्ता-लेखक व पत्रकार आचार्य रामगोपाल सैनी का विशाल स्तर पर एक कार्यक्रम आयोजित करके नागरिक अभिनन्दन किया जाएगा। आचार्य रामगोपाल सैनी भव्य सार्वजनिक अभिनन्दन समारोह के लिए एक समिति का गठन किया जाकर इस सम्बंध में निर्णय लिया गया। उनके अभिनन्दन समारोह के लिए उनके शिष्य रह चुके सभी जाति-वर्गों के लोग, उनके मित्र एवं उनके सह-आचार्य आदि जुटे हुए हैं। आयोजन की तिथि 15 मई के बाद रखी जाएगी। ज्ञातव्य है कि आचार्य सैनी फतेहपुर के 68 साल पुराने शिक्षण संस्थान जांगिड़ वैदिक वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय में 39 वर्षों तक अपनी सेवाएं देने के बाद 60 साल की अवस्था प्राप्त कर लेने के बाद 30 अप्रेल को सेवानिवृत हुए हैं, इस विद्यालय को राज्य सरकार की ओर से 90 प्रतिशत अनुदान देय है।

अलवर के सैनी युवक की सनसनीखेज हत्या

सीकर। अलवर से गाड़ी किराए पर लेकर जीण माता के दर्शनों के लिए सीकर आए कुछ लोगों ने अलवर जिले के बानसूर के रहने वाले गाड़ी मालिक घनश्याम सैनी की गला रेतकर हत्या कर दी तथा शव को पलसाना-खण्डेला मार्ग पर गढवालों की ढाणी के पास डाल दिया। पुलिस को शव उमिलने पर पाया कि उसकी दाहिनी भुजा पर घनश्याम सैनी गुदा हुआ था, परन्तु उस क्षेत्र में किसी ने भी उसे नहीं पहचाना। घटनास्थल पर बीयर की बोतल, डिस्पोजेबल गिलास, सिगरेट के पैकेट, शराब की बोतल आदि मिले व एक गाड़ी के टायरों के निशान थे। पुलिस ने कुछ दिन शव को मोर्चरी में रखवाया और उसके फोटोग्राफ सीकर, चूरू, झुंझुनूं जिलों के पुलिस थानों को भिजवाए, फिर भी शव की शिनाख्त संभव नहीं हो पाई। बाद में उसका अंतिम संस्कार सीकर नगर परिषद के कम्रचारियों द्वारा किया गया। कई दिनों तक घर नहीं लौटने पर जब घनश्याम के परिजनों ने पुलिस को रिपोर्ट दी, तो उस सूचना के आधार पर परिजन सीकर आए व मृतक के कपड़ों आदि को पहचाना। अभी तक पुलिस हत्या करके गाड़ी लूट ले जाने वालों का कोई पता नहीं लगा पाई है।

फतेहपुर में महात्मा फुले की जयन्ती मनाई

फतेहपुर। मूल ओबीसी विकास मंच एवं सेनी समाज की विभिन्न संस्थाओं के तत्वावधान में श्री आशाराम भाटी सैनी छात्रावास भवन में संचालित ए.आर.बी. पब्लिक स्कूल के प्रांगण में क्रांतिकारी समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की 185 वीं जयन्ती धूमधाम से मनाईगई।
विकास मंच के संयोजक आचार्य रामगोपाल सैनी ने बताया कि मुम्बई प्रवासी व्यवसायी वेणीप्रसाद भाटी की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में घनश्याम गुर्जर, भंवरलाल मेघवाल, सुरेश खडोलिया, कमल सैनी, हनुमान प्रसाद सैन, रवीन्द्र भोजक, दयाराम सैनी लोक कलाकार आदि प्रमुख वक्ताओं ने सम्बोधित करते हुए ज्योतिबा के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं विचारों पर प्रकाश डाला। आचार्य रामगोपाल सैनी की कविता -ज्योतिबा की ज्योति लेकर आए हैं इस बस्ती में- बहुत प्रभावकारी रही।समारोह में सैनी समाज के अतिरिक्त मूल ओबीसी की सभी जातियों के लोग उपसिाित थे। समारोह के अध्यक्ष वेणीप्रसाद भाटी ने स्व. रामगोपाल वर्मा द्वारा लिखित व स्वयं की प्रकाशित पुस्तक ज्योतिबा फुले सबको वितरित की तथा अपने सम्बोधन में कहा कि हमें महात्मा फुले के संदेश को घर-घर तक पहुंचाकर उनके कार्य को आगे बढाना चाहिए। अध्यापक चन्द्रपकाश सैनी ने सभी का आभार ज्ञापित किया।

रतनगढ में फुले जयन्ती की धूम

रतनगढ। यहां सैनी समाज अतिथि भवन में कुरड़ाराम तंवर की अध्यक्षता में महात्मा फुले जयन्ती समारोहपूर्वक मनाई गई। कार्यक्रम में मंगतूराम खडोलिया व ओमप्रकाश टाक विशिष्ट अतिथि थे। सैनी समाज अधिकारी-कर्मचारी संघ के तहसील अध्यक्ष मदन लाल कम्मा ने इस अवसर पर बोलते हुए महात्मा फुले को पिछड़ी जातियों के उत्थान में अपना जीवन होमने वाला महापुरूष बताया। महिलाओं के लिए उनके योगदान को याद किया गया। कार्यक्रम में ओमप्रकाश टाक, शिवशंकर कम्मा, मनोज टाक, गौरीशंकर खडोलिया ने भी फुले के जीवन पर प्रकाश डाला। बाबूलाल चौहान, बुधाराम गौड़, चन्द्रप्रकाश सूईवाल, नन्दलाल गढवाल, अशोक वर्मा व नागपाल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति समारोह में शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन परमेश्वरलाल गौड़ ने किया।

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

जगदीश यायावर व सुमित्रा आर्य ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन से जुड&़े क्षेत्र के प्रथम व श्रेष्ठ ब्लॉगर बने

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। नागौर जिले के प्रमुख इंटरनेट-ब्लॉग निर्माता व प्रसिद्ध पत्रकार दम्पत्ती श्रीमती सुमित्रा आर्य व जगदीश यायावर अब ब्लॉग-मेकर्स के नवगठित अखिल भारतीय संगठन ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन से जुड़ गए हैं। हाल ही में गठित हुई इस एसोसिएशन में इन्हें शीघ्र ही बनने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महत्त्वपूर्ण पद सम्भलाए जाने की भी पूर्ण संभावनाएं हैं। पत्रकारिता की उभरती हुई इस नई विधा में उनके विशेष योगदान को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। उनकी सिद्धहस्तता के कारण उनकी इंटरनेट पर हिन्दी भाषा में प्रस्तुति कलम कला न्यूज, लाडनूं-न्यूज, सैनी घोष, करण्ट-यायावर, तहकीकात आदि ब्लॉग-साईटों की लोकप्रियता के कारण देश भर के इस संगठन ने इन्हें महत्व दिया है। नियमित रूप से अपडेट होने के कारण इस दम्पत्ती की इन साईटों का महत्व विशेष रूप से बढ गया है। गूगल सर्च इंजिन पर सर्च करने पर ये साईटें सबसे ऊपर मिलेंगी, जो इनकी लोकप्रियता का द्योतक है। अगर आप केवल कलम कला लिखकर सर्च करेंगे तो अपनी सारी नई पोस्टों सहित कलम कला के ब्लॉग की ढेरों जानकारियां हासिल कर सकेंगे।
इन साईटों में प्रमुख सैनी घोष ब्लॉग को विशेषकर सैनी समाज के लिए बनाया गया है, जिसमें केवल क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि देश भर के सैनी समाज की खबरों, ऐतिहासिक विवरण, सामाजिक जागृति, आन्दोलन, प्रमुख व्यक्तियों का जीवन परिचय, व्यक्तित्व व कर्तृत्व, संगठन समाचार, वैवाहिक विवरण आदि विषयों को संजोया गया है। सैनी घोष अल्प समय में ही देश की सबसे प्रमुख साईट बनकर उभरी है। इसमें हिन्दी के साथ कुछ अंग्रेजी के आलेख भी शामिल किए गए हैं।
तहकीकात इनका एक नया ब्लॉग है, जिसमें विश्वप्रसिद्ध वेबसाईट विकीलिक्स ने दुनिया के सत्ताधीशों को हिला दिया और भारत में प्रमुख साईट तहलका डॉट कॉम ने भंडाफोड़ करके अनेक राजनेताओं की नींद हराम कर दी, ठीक उसी तरह राजस्थान प्रदेश ही नहीं देश भर में भ्रष्टाचारियों और अन्य प्रमुख भंडाफोड़ निरन्तर इस साईट तहकीकात द्वारा किए जाते रहेंगे।
कलम कला न्यूज इस दम्पत्ती की सबसे पुरानी साईट है, जिसमें लाडनूं, नागौर व चूरू जिले, राजस्थान प्रांत और देश भर को प्राथमिकता क्रम से महत्व देते हुए शामिल किया गया है। इसी तरह की इनकी अन्य इंटरनेट साईटें कलम कला समाचार पत्र के समाचारों के अलावा अन्य प्रमुख समाचारों को प्रकाशित कर रहे हैं। ये अपने सभी ब्लॉग में नवीनतम तकनीक के नए-नए प्रयोग करें उन्हें अधिक आकर्षक और पाठकों के लिए रूचिकर बना रहे हैं।

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

BENIFIT OF FRUITS AND VEGETABLES

Written by sriniwas prasad


Apples
Protects your heart
prevents constipation
Blocks diarrhea
Improves lung capacity
Cushions joints
Apricots
Combats cancer
Controls blood pressure
Saves your eyesight
Shields against Alzheimer's
Slows aging process
Artichokes
Aids digestion
Lowers cholesterol
Protects your heart
Stabilizes blood sugar
Guards against liver disease
Avocados
Battles diabetes
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
Controls blood pressure
Smoothes skin
Bananas
Protects your heart
Quiets a cough
Strengthens bones
Controls blood pressure
Blocks diarrhea
Beans
Prevents constipation
Helps hemorrhoids
Lowers cholesterol
Combats cancer
Stabilizes blood sugar
Beets
Controls blood pressure
Combats cancer
Strengthens bones
Protects your heart
Aids weight loss
Blueberries
Combats cancer
Protects your heart
Stabilizes blood sugar
Boosts memory
Prevents constipation
Broccoli
Strengthens bones
Saves eyesight
Combats cancer
Protects your heart
Controls blood pressure
Cabbage
Combats cancer
Prevents constipation
Promotes weight loss
Protects your heart
Helps hemorrhoids
Cantaloupe
Saves eyesight
Controls blood pressure
Lowers cholesterol
Combats cancer
Supports immune system
Carrots
Saves eyesight
Protects your heart
Prevents constipation
Combats cancer
Promotes weight loss
Cauliflower
Protects against Prostate Cancer
Combats Breast Cancer
Strengthens bones
Banishes bruises
Guards against heart disease
Cherries
Protects your heart
Combats Cancer
Ends insomnia
Slows aging process
Shields against Alzheimer's
Chestnuts
Promotes weight loss
Protects your heart
Lowers cholesterol
Combats Cancer
Controls blood pressure
Chili peppers
Aids digestion
Soothes sore throat
Clears sinuses
Combats Cancer
Boosts immune system
Figs
Promotes weight loss
Helps stops strokes
Lowers cholesterol
Combats Cancer
Controls blood pressure
Fish
Protects your heart
Boosts memory
Protects your heart
Combats Cancer
Supports immune system
Flax
Aids digestion
Battles diabetes
Protects your heart
Improves mental health
Boosts immune system
Garlic
Lowers cholesterol
Controls blood pressure
Combats cancer
kills bacteria
Fights fungus
Grapefruit
Protects against heart attacks
Promotes Weight loss
Helps stops strokes
Combats Prostate Cancer
Lowers cholesterol
Grapes
saves eyesight
Conquers kidney stones
Combats cancer
Enhances blood flow
Protects your heart
Green tea
Combats cancer
Protects your heart
Helps stops strokes
Promotes Weight loss
Kills bacteria
Honey
Heals wounds
Aids digestion
Guards against ulcers
Increases energy
Fights allergies
Lemons
Combats cancer
Protects your heart
Controls blood pressure
Smoothes skin
Stops scurvy
Limes
Combats cancer
Protects your heart
Controls blood pressure
Smoothes skin
Stops scurvy
Mangoes
Combats cancer
Boosts memory
Regulates thyroid
aids digestion
Shields against Alzheimer's
Mushrooms
Controls blood pressure
Lowers cholesterol
Kills bacteria
Combats cancer
Strengthens bones
Oats
Lowers cholesterol
Combats cancer
Battles diabetes
prevents constipation
Smoothes skin
Olive oil
Protects your heart
Promotes Weight loss
Combats cancer
Battles diabetes
Smoothes skin
Onions
Reduce risk of heart attack
Combats cancer
Kills bacteria
Lowers cholesterol
Fights fungus
Oranges
Supports immune systems
Combats cancer
Protects your heart
Straightens respiration

Peaches
prevents constipation
Combats cancer
Helps stops strokes
aids digestion
Helps hemorrhoids
Peanuts
Protects against heart disease
Promotes Weight loss
Combats Prostate Cancer
Lowers cholesterol
Aggravates
Diverticulitis
Pineapple
Strengthens bones
Relieves colds
Aids digestion
Dissolves warts
Blocks diarrhea
Prunes
Slows aging process
prevents constipation
boosts memory
Lowers cholesterol
Protects against heart disease
Rice
Protects your heart
Battles diabetes
Conquers kidney stones
Combats cancer
Helps stops strokes
Strawberries
Combats cancer
Protects your heart
boosts memory
Calms stress
Sweet potatoes
Saves your eyesight
Lifts mood
Combats cancer
Strengthens bones
Aggravates
Diverticulitis
Tomatoes
Protects prostate
Combats cancer
Lowers cholesterol
Protects your heart
Walnuts
Lowers cholesterol
Combats cancer
boosts memory
Lifts mood
Protects against heart disease
Water
Promotes Weight loss
Combats cancer
Conquers kidney stones
Smoothes skin
Watermelon
Protects prostate
Promotes Weight loss
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
Controls blood pressure
Wheat germ
Combats Colon Cancer
prevents constipation
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
improves digestion
Wheat bran
Combats Colon Cancer
prevents constipation
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
improves digestion
Yogurt
Guards against ulcers
Strengthens bones
Lowers cholesterol
Supports immune systems
Aids digestion

Inspirational Story " Gautum Buddha and The Brahmin"..

Written by sriniwas prasad



Inspirational Story " Gautum Buddha and The Brahmin"..



Gautum Buddha was sitting under a banyan tree. One day, a furious Brahmin came to him and started abusing him.
The Brahmin thought that Gautum Buddha would reciprocate in the same manner, but to his utter surprise, there was not the slightest change in the expression on his face.
Now, the Brahmin became more furious. He hurled more and more abuses at Buddha. However, Gautum Buddha was completely unmoved. Actually there was a look of compassion on his
face. Ultimately the Brahmin was tired of abusing him. He asked, "I have been abusing you like anything, but why are you not angry at all ?"
Gautum Buddha calmly replied, "My dear brother, I have not accepted a single abuse from you."
"But you heard all of them, didn't you?" The Brahmin argued half-heartedly.
Buddha said, "I do not need the abuses, so why should I even hear them?"
Now the Brahmin was even more puzzled. He could not understand the calm reply from Gautum Buddha.
Looking at his disturbed face, Buddha further explained, "All those abuses remain with you."
"It cannot be possible. I have hurled all of them at you," the Brahmin persisted.
Buddha calmly repeated his reply, "But I have not accepted even a single abuse from you ! Dear brother, suppose you give some coins to somebody, and if he does not accept them, with whom will those coins remain?"
The Brahmin replied, "If I have given the coins and not needed by someone, then naturally they would remain with me."
With a meaningful smile on his face, Buddha said, "Now you are right. The same has happened with your abuses. You came here and hurled abuses at me, but I have not accepted a single abuse from you. Hence, all those abuses remain with you only. So there is no reason to be angry with you."
The Brahmin remained speechless. He was ashamed of his behavior and begged for Buddha's forgiveness.

Lessong to Learn from This Story:

Inner calmness and peace are keys to contented life. My Advice is Live life as per your goals and ambition in life. You know who you are and what you want in life, So dont respond to what person said about you in anger. Control your anger with patience and calmness. That is biggest Strength of Wise men-Hassan Ali.
Never take some one for granted,Hold every person Close to your Heart because you might wake up one day and realize that you have lost a diamond while you were too busy collecting stones.." Remember this always in life.

Inspirational Story " Gautum Buddha and The Brahmin"..

Written by sriniwas prasad



Inspirational Story " Gautum Buddha and The Brahmin"..



Gautum Buddha was sitting under a banyan tree. One day, a furious Brahmin came to him and started abusing him.
The Brahmin thought that Gautum Buddha would reciprocate in the same manner, but to his utter surprise, there was not the slightest change in the expression on his face.
Now, the Brahmin became more furious. He hurled more and more abuses at Buddha. However, Gautum Buddha was completely unmoved. Actually there was a look of compassion on his
face. Ultimately the Brahmin was tired of abusing him. He asked, "I have been abusing you like anything, but why are you not angry at all ?"
Gautum Buddha calmly replied, "My dear brother, I have not accepted a single abuse from you."
"But you heard all of them, didn't you?" The Brahmin argued half-heartedly.
Buddha said, "I do not need the abuses, so why should I even hear them?"
Now the Brahmin was even more puzzled. He could not understand the calm reply from Gautum Buddha.
Looking at his disturbed face, Buddha further explained, "All those abuses remain with you."
"It cannot be possible. I have hurled all of them at you," the Brahmin persisted.
Buddha calmly repeated his reply, "But I have not accepted even a single abuse from you ! Dear brother, suppose you give some coins to somebody, and if he does not accept them, with whom will those coins remain?"
The Brahmin replied, "If I have given the coins and not needed by someone, then naturally they would remain with me."
With a meaningful smile on his face, Buddha said, "Now you are right. The same has happened with your abuses. You came here and hurled abuses at me, but I have not accepted a single abuse from you. Hence, all those abuses remain with you only. So there is no reason to be angry with you."
The Brahmin remained speechless. He was ashamed of his behavior and begged for Buddha's forgiveness.

Lessong to Learn from This Story:

Inner calmness and peace are keys to contented life. My Advice is Live life as per your goals and ambition in life. You know who you are and what you want in life, So dont respond to what person said about you in anger. Control your anger with patience and calmness. That is biggest Strength of Wise men-Hassan Ali.
Never take some one for granted,Hold every person Close to your Heart because you might wake up one day and realize that you have lost a diamond while you were too busy collecting stones.." Remember this always in life.

THE TITLE OF SAINI SAMAJ

MAURYA SAINI SURNAME
Maurya Community Titles
J&K
Saini, Bhaji

Himancal Pradesh
Kushwaha, Saini Punjab Saini, Maurya, Kushwaha

Haryana
Saini, Mali, Shakya, Gehlot

Delhi
Saini, Mali, Shakya, Maurya, Kushwaha

Rajasthan
Saini, Mali, Shakya, Maurya, Kushwaha, Kuchhawaha

Gujarat
Saini, Mali, Maurya, Kushwaha, Kacchi

Madhya Pradesh
Kushwaha, Kachhi, Kuchhawaha, Mali, Murar, hardiya, dangi, kavare,
Maurya, Mourya

Uttar Pradesh
Koiri, Koiry, Murav, Verma, Bhagat, Kacchi, Maurya, Kushwaha,
Mourya, Shakya

Bihar/Jharkhand
Mahto, Bhagat, Maurya, Kushwaha, Singh, Mandal, Dangee, Kapadi,
Mehta, Prasad, Shakya

West Bengal
Koiri, Koiry, Kushwaha, Maurya, Mahto

Orissa
Muri, Mali, Phulmali, Bhajmali, Sagberiya

Maharashtra
Kachhiya, Reddy, Phule, Saini, Maurya, Bhujbal, Vankhede, Kushwaha,
Mourya

Andhra Pradesh
Phule, Kachhi, Reddy, Nayar

Karnataka
Jeeremali, Phulmali, Nayar, Reddy

Assam
Koiri, Moriya, Mahto, Maurya, Kushwaha

THE TITLE OF SAINI SAMAJ

MAURYA SAINI SURNAME
Maurya Community Titles
J&K
Saini, Bhaji

Himancal Pradesh
Kushwaha, Saini Punjab Saini, Maurya, Kushwaha

Haryana
Saini, Mali, Shakya, Gehlot

Delhi
Saini, Mali, Shakya, Maurya, Kushwaha

Rajasthan
Saini, Mali, Shakya, Maurya, Kushwaha, Kuchhawaha

Gujarat
Saini, Mali, Maurya, Kushwaha, Kacchi

Madhya Pradesh
Kushwaha, Kachhi, Kuchhawaha, Mali, Murar, hardiya, dangi, kavare,
Maurya, Mourya

Uttar Pradesh
Koiri, Koiry, Murav, Verma, Bhagat, Kacchi, Maurya, Kushwaha,
Mourya, Shakya

Bihar/Jharkhand
Mahto, Bhagat, Maurya, Kushwaha, Singh, Mandal, Dangee, Kapadi,
Mehta, Prasad, Shakya

West Bengal
Koiri, Koiry, Kushwaha, Maurya, Mahto

Orissa
Muri, Mali, Phulmali, Bhajmali, Sagberiya

Maharashtra
Kachhiya, Reddy, Phule, Saini, Maurya, Bhujbal, Vankhede, Kushwaha,
Mourya

Andhra Pradesh
Phule, Kachhi, Reddy, Nayar

Karnataka
Jeeremali, Phulmali, Nayar, Reddy

Assam
Koiri, Moriya, Mahto, Maurya, Kushwaha

Shakya

Shakya



Shakyamuni Buddha, the most famous of the Shakyas. Seated stucco from the Chinese Tang Dynasty, Hebei province.
Shakya (Sanskrit:Śākya, Devanagari: शाक्य and Pāli:Sākya) was an ancient janapada of South Asia in the 1st millennium BCE.[1] In Buddhist texts the Shakyas, the inhabitants of Shakya janapada, are mentioned as a Kshatriya clan of Gotama gotra.[2][3] The Shakyas formed an independent kingdom at the foothills of the Himalayas. The capital of this new kingdom of Shakya was Kapilavastu, currently situated in Nepal.
The most famous Shakya was Gautama Buddha, a member of the ruling Gautama clan of Lumbini, who is also known as Shakyamuni Buddha, "sage of the Shakyas", due to his association with this ancient kingdom.
The Hindu Puranas mention Shakya as a king of Ikshvaku dynasty, son of Sanjaya and father of Shuddhodana.[4]
History
The Shakyas were settled in the territory bounded by the Himalayas in the north, The Rohini (the present-day Kobana, a tributory of the Rapti) in the east and the Rapti in the south.[1] The Buddhist texts, Mahāvastu, Mahavamsa and Sumangalavilasini give detailed accounts of the Śākyas.[2]
The accounts of Buddhist texts

The Shakyas are mentioned in the Buddhist texts, which include the Mahāvastu (ca. late 2nd century BCE), Mahāvaṃsa and Sumaṅgalavilāsinī, mostly in the accounts of the birth of the Buddha, as a part of the Adichchabandhus (kinsmen of the sun)[2] or the Ādichchas (solar race) and as descendants of the legendary king Ikṣvāku (Pāli: Okkāka):
There lived once upon a time a king of the Śākya, a scion of the solar race, whose name was Śuddhodana. He was pure in conduct, and beloved of the Śākya like the autumn moon. He had a wife, splendid, beautiful, and steadfast, who was called the Great Māyā, from her resemblance to Māyā the Goddess.
—Buddhacarita of Aśvaghoṣa, I.1-2
The Buddhist text Mahavamsa (II, 1-24), traces the origin of the Sakyas (Śākyas) to king Okkaka (Ikshvaku) and gives their genealogy from Mahasammata, an ancestor of Okkaka. This list comprises the names of a number of prominent kings of the Ikshvaku dynasty, which include Mandhata and Sagara.[2] According to this text, Okkamukha was the eldest son of Okkaka. Sivisamjaya and Sihassara were the son and grandson of Okkamukha. King Sihassara had eighty-two thousand sons and grandsons, who were together known as the Sakyas. The youngest son of Sihassara was Jayasena. Jayasena had a son, Sihahanu, and a daughter, Yashodhara, who was married to Devadahasakka. Devadahasakka had two daughters, Anjana and Kaccana. Sihahanu married Kaccana, and they had five sons and two daughters, Suddhodana was one of them. Suddhodana had two queens, Maya and Prajapati, both daughters of Anjana. Siddhattha (Gautama Buddha) was the son of Suddhodana and Maya. Rahula was the son of Siddhatta and Bhaddakaccana, daughter of Suppabuddha and granddaughter of Anjana.[4][5]
Shakya administration

According to the Mahavastu and the Lalitavistara, the seat of the Shakya administration was the saṃsthāgāra (Pali:santhāgāra) (assembly hall) at Kapilavastu. A new building for the Shakya samsthagara was constructed at the time of Gautama Buddha, which was inaugurated by him. The highest administrative authority was the Shakya Parishad, comprising 500 members, which met in the samsthagara to transact any important business. The Shakya Parishad was headed by an elected raja, who presided over the meetings.[2]
Annexation by Kosala

Viḍūḍabha, the son of Pasenadi and Vāsavakhattiyā, the daughter of a Śākya named Mahānāma by a slave girl ascended the throne of Kosala after overthrowing his father. As an act of vengeance for cheating Kosala by sending his mother, the daughter of a slave woman for marriage to his father, he invaded the Śākya territory, massacred them and annexed it.[6][7]
See also
Janapadas
References
^ a b Raychaudhuri H. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, pp.169-70
^ a b c d e Law, B.C. (1973). Tribes in Ancient India, Bhandarkar Oriental Series No.4, Poona: Bhandarkar Oriental Research Institute, pp.245-56
^ Thapar, R.(1978). Ancient Indian Social History, New Delhi: Orient Longman, ISBN 81 250 0808 X, p.117
^ a b Misra, V.S. (2007). Ancient Indian Dynasties, Mumbai: Bharatiya Vidya Bhavan, ISBN 81-7276-413-8, pp.285-6
^ Geiger, Wilhelm (tr.) (1912). "Mahavamsa, Chapter II". Ceylon Government Information Dept.,Colombo (in lakdvia.org website). Retrieved 2009-10-26.
^ Raychaudhuri H. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, pp.177-8
^ Kosambi D.D. (1988). The Culture and Civilsation of Ancient India in Historical Outline, New Delhi: Vikas Publishing House, ISBN 0 7069 4200 0, pp.128-9
External links
Shakya janapada coins

MAURYAN EMPIRE

MAURYAN EMPIRE
In the last weeks of 327 BCE, the Macedonian king Alexander the Great invaded the valley of the river Kabul, and in the next months, he conquered Taxila, defeated the Indian king Porus at the river Hydaspes, and reached the eastern border of the Punjab. He wanted to continue to the kingdom of Magadha in the Lower Ganges valley, but his soldiers refused to go any further, and Alexander was forced to go south. Many Indians now resisted the invaders. By the end of 325, the Macedonian king had left the area of what is now Karachi, and his admiral Nearchus was forced out of Patala.

Alexander's conquests had been spectacular, but he had not conquered India. On the contrary. Not even the Punjab and the Indus valley were safe possessions of his kingdom. Before Alexander had died in 323, he had redeployed nearly all his troops west of the Indus. For the first time, he had lost part of his empire. On the other hand, his invasion changed the course of Indian history. In Taxila, a young man named Chandragupta Maurya had seen the Macedonian army, and -believing that anything a European could do an Indian could do better- decided to train an army on a similar footing. In 321, he seized the throne of Magadha. The Mauryan empire was born.

Chandragupta Maurya (c.321-c.297)
Chandragupta, who belonged to the caste of warriors (kshatriya), was a pupil of a famous Brahman teacher, Kautilya. His coup was more than just the take-over of a kingdom, it was a religious counterrevolution, because the lawful kings of Magadha, the Nanda dynasty, had not belonged to the warrior caste. They had been mere commoners, said to be descendants of a barber. When Chandragupta claimed the throne, their heresy came to an end and orthodox Brahmanism was vindicated. Or so it seemed.

Once Chandragupta had conquered the Nanda throne, he invaded the Punjab. He was lucky. In 317, one of Alexander's successors, Peithon, the satrap of Media, tried to subdue the leaders of the eastern provinces, who united against him. This civil war offered Chandragupta the opportunity he needed and he was able to capture Taxila, the capital of the Punjab.

When the situation in Alexander's former kingdom had stabilized, one of his successors, Seleucus, tried to reconquer the eastern territories, but the war was inconclusive, and the Macedonian and Chandragupta signed a peace treaty. The latter recognized the Seleucid Empire and gave his new friend 500 elephants; Seleucus recognized the Mauryan empire and gave up the eastern territories, including Gandara and Arachosia (i.e., the country northeast of modern Qandahar). Finally, there was epigamia, which can mean that either the two dynasties intermarried, or the unions of Macedonians/Greeks with Indians were recognized.

Chandragupta had now united the Indus and Ganges valley - a formidable empire. There was a secret service, there were inspectors, there was a large army, and the capital at Patna became a beautiful city. His adviser Kautilya wrote a guide to statecraft which is known as Arthasastra. A Greek visitor, Megasthenes, gives a very strange description of the caste system (accepting seven instead of the usual four classes of people), and it is likely that he describes an attempted reform. This is certainly not impossible, because Chandragupta turned out to be not deeply attached to orthodox Brahmanism. According to the ancient scriptures of the Jainists, the king abdicated at the end of his life (in 297?) in favor of Bindusara, and converted to the Jaina faith; he died as an ascetic, having fasted to death.

Bindusara Maurya (c.297-c.272)
Bindusara was the son of Chandragupta. His reign lasted a quarter of a century, until 272, but of the three great Mauryan emperors, he is the least known. For example, he is mentioned as the man who conquered "the country between the two seas" (i.e., the Bay of Bengal and the Arabian Sea), which suggests that he conquered central India, but the same deeds are ascribed to his son Ashoka. We can not choose between these two.

Bindusara had some contacts with the far west, where Antiochus I Soter had succeeded his father Seleucus as king of the Seleucid empire. Bindusara approached him, asking for wine, figs, and a philosopher - the king sending him only the two first products, saying that philosophers were not fit for export. Whatever one thinks about this anecdote, it proves that there were diplomatic contacts. It comes as a surprise, therefore, that Bindusara is called Amitrochates in Greek sources, which simply can not be a rendering of Bindusara's name. A possible explanation is that Bindusara had accepted a throne name Amitragatha, 'destroyer of enemies'. Possible. But why isn't this mentioned in Indian sources? This king remains a mystery.


Ancient-Warfare.com, the online home of Ancient Warfare magazine
The Mauryan empire, c. 250 BCE. Design Jona Lendering.
Ashoka Maurya (c.272-c.232)
Texts from southern India mention the Mauryan chariots invading the country "thundering across the land, with white pennants brilliant like sunshine". Indeed, Ashoka, who succeeded his father Bindusara in 272, was a great conqueror, and the first to unite the Indian subcontinent, except for the extreme south. However, the emperor came to hate war after he had seen the bloodshed of the conquest of Kalinga in eastern India, and he converted to Buddhism. He wanted to establish dhamma, 'the law of justice', everywhere in India and Arachosia. In the rock edicts he left behind on several places in his realm, the emperor says:
The two rocks at Shahbazgarhi. Photo Marco Prins.
Two boulders with rock edicts near Shahbazgarhi (Pakistan)



The beloved of the gods [...] conquered Kalinga eight years after his coronation. One hundred and fifty thousand people were deported, one hundred thousand were killed and many more died from other causes. After the Kalingas had been conquered, the beloved of the gods came to feel a strong inclination towards the dhamma, a love for the dhamma and for instruction in dhamma. Now the beloved of the gods feels deep remorse for having conquered the Kalingas.
Indeed, the beloved of the gods is deeply pained by the killing, dying and deportation that take place when an unconquered country is conquered. But the beloved of the gods is pained even more by this -that Brahmans, ascetics, and householders of different religions who live in those countries, and who are respectful to superiors, to mother and father, to elders, and who behave properly and have strong loyalty towards friends, acquaintances, companions, relatives, servants and employees- that they are injured, killed or separated from their loved ones. Even those who are not affected by all this suffer when they see friends, acquaintances, companions and relatives affected. These misfortunes befall all as a result of war, and this pains the beloved of the gods.


Coin of king Chandragupta of Patna.
'Coin' of Chandragupta (©!!)

It seems that Ashoka was sincere when he proclaimed his belief in ahimsa (non-violence) and cooperation between religions ("contact between religions is good"). He never conquered the south of India or Sri Lanka, which would have been logical, and instead sent out missionaries -as far away as Cyrenaica- to convert others to the same beliefs, and sent his brother to Sri Lanka. He erected several stupas, founded Buddhist monasteries, softened the harsh laws of Bindusara and Chandragupta, forbade the brutal slaughter of animals, and organized a large Buddhist council at Patna, which had to establish a new canon of sacred texts and repress heresies.

Decline
After the death of Ashoka, the Mauryan empire declined. In c.240, the Bactrian leaders -who were of Greek descent- revolted from their Seleucid overlords, and although king Antiochus III the Great restored order in 206, the Bactrian leader Euthydemus declared himself independent within a decade. Not much later, the Graeco-Bactrian kingdom expanded into Drangiana and Gandara.

The invasion of the Punjab, which took place in 184, revitalized the Greek culture in the region south of the Hindu Kush mountain range, where Euthydemus' son Demetrius created a new kingdom, consisting of Gandara, Arachosia, the Punjab and even a part of the Ganges valley. Demetrius died in c.170 and left his kingdom to his sons, who continued to fight against the Mauryan empire. However, they were divided. But when king Menander reunited the Indo-Greek kingdom in c.125, the westerners were able to invade the heartland of the already contracted Mauryan empire, and even captured Patna. Never has a Greek army reached a more eastern point.

Yet, the Indo-Greek kings had to accept the realities created by the Mauryan empire. Buddhism was to be the religion of the future. King Menander converted and became something of a Buddhist saint. One of the holy texts of Buddhism is called Milindapañha, 'Questions of Menander'.


Maurya caste (Maury, Moury, मौर्य) is an agricultural Hindu caste name and a Kshatriya sub-varna. Koiry, Kushwaha, Shakya and Kashshi belong to Maurya caste. "Maurya" are traditionally involved in agricultural activities. They reside mostly in UP, MP, Bihar and North India.

They use titles like Kushwaha, Maurya, Mourya, Moria, Singh, Mahto, Mehta, Bhagirathi, Prasad, Rana, Hardia, Verma, Vaidya, Panjiyara, Chaudhary, Mandal etc.. Maurya caste is allied with other Kshatriya castes like Kashi (ancient republic of Kashi), Shakya (India and Nepal) as well as Bhagirathi and Sagar-vanshi agricultural castes. Kushwaha/Maurya/Shakya are an important farming caste many of these were landlords in UP/Bihar/MP etc.

Origins: Maury or Maurya originated from the ruling clan of Shakya. As per historical narrative, the split occurred when upon the desire of King of Kashi (prasenjit) Shakyas married a Shakyan damsel to them. However, when the son born of this marriage, Vidudhuba, went to his maternal people, he was ridiculed by being called dasi-putra. It transpired that a Shakya by the name Mahan, a cousin of Gautam Buddha had married his daughter through a dasi to King Prasenjit.

Vidudhuba organised a huge army and attacked the Shakyas. This particularly group of Shakyas fled and started calling themselves Maurya. Mauryas of Pippalivahana were one of the groups to possess the remains of Gautama Buddha.

Maurya, Shakya and Kashi claimed decent from Shri Kush, eldest son of Shri Rama. Shakya, the grandfather of Gautam Buddha and Mahan was 20th in Ikshvaku line from King of Kashi, Brihad-Bala at the time of Mahabharata.

MAURYAN EMPIRE

MAURYAN EMPIRE
In the last weeks of 327 BCE, the Macedonian king Alexander the Great invaded the valley of the river Kabul, and in the next months, he conquered Taxila, defeated the Indian king Porus at the river Hydaspes, and reached the eastern border of the Punjab. He wanted to continue to the kingdom of Magadha in the Lower Ganges valley, but his soldiers refused to go any further, and Alexander was forced to go south. Many Indians now resisted the invaders. By the end of 325, the Macedonian king had left the area of what is now Karachi, and his admiral Nearchus was forced out of Patala.

Alexander's conquests had been spectacular, but he had not conquered India. On the contrary. Not even the Punjab and the Indus valley were safe possessions of his kingdom. Before Alexander had died in 323, he had redeployed nearly all his troops west of the Indus. For the first time, he had lost part of his empire. On the other hand, his invasion changed the course of Indian history. In Taxila, a young man named Chandragupta Maurya had seen the Macedonian army, and -believing that anything a European could do an Indian could do better- decided to train an army on a similar footing. In 321, he seized the throne of Magadha. The Mauryan empire was born.

Chandragupta Maurya (c.321-c.297)
Chandragupta, who belonged to the caste of warriors (kshatriya), was a pupil of a famous Brahman teacher, Kautilya. His coup was more than just the take-over of a kingdom, it was a religious counterrevolution, because the lawful kings of Magadha, the Nanda dynasty, had not belonged to the warrior caste. They had been mere commoners, said to be descendants of a barber. When Chandragupta claimed the throne, their heresy came to an end and orthodox Brahmanism was vindicated. Or so it seemed.

Once Chandragupta had conquered the Nanda throne, he invaded the Punjab. He was lucky. In 317, one of Alexander's successors, Peithon, the satrap of Media, tried to subdue the leaders of the eastern provinces, who united against him. This civil war offered Chandragupta the opportunity he needed and he was able to capture Taxila, the capital of the Punjab.

When the situation in Alexander's former kingdom had stabilized, one of his successors, Seleucus, tried to reconquer the eastern territories, but the war was inconclusive, and the Macedonian and Chandragupta signed a peace treaty. The latter recognized the Seleucid Empire and gave his new friend 500 elephants; Seleucus recognized the Mauryan empire and gave up the eastern territories, including Gandara and Arachosia (i.e., the country northeast of modern Qandahar). Finally, there was epigamia, which can mean that either the two dynasties intermarried, or the unions of Macedonians/Greeks with Indians were recognized.

Chandragupta had now united the Indus and Ganges valley - a formidable empire. There was a secret service, there were inspectors, there was a large army, and the capital at Patna became a beautiful city. His adviser Kautilya wrote a guide to statecraft which is known as Arthasastra. A Greek visitor, Megasthenes, gives a very strange description of the caste system (accepting seven instead of the usual four classes of people), and it is likely that he describes an attempted reform. This is certainly not impossible, because Chandragupta turned out to be not deeply attached to orthodox Brahmanism. According to the ancient scriptures of the Jainists, the king abdicated at the end of his life (in 297?) in favor of Bindusara, and converted to the Jaina faith; he died as an ascetic, having fasted to death.

Bindusara Maurya (c.297-c.272)
Bindusara was the son of Chandragupta. His reign lasted a quarter of a century, until 272, but of the three great Mauryan emperors, he is the least known. For example, he is mentioned as the man who conquered "the country between the two seas" (i.e., the Bay of Bengal and the Arabian Sea), which suggests that he conquered central India, but the same deeds are ascribed to his son Ashoka. We can not choose between these two.

Bindusara had some contacts with the far west, where Antiochus I Soter had succeeded his father Seleucus as king of the Seleucid empire. Bindusara approached him, asking for wine, figs, and a philosopher - the king sending him only the two first products, saying that philosophers were not fit for export. Whatever one thinks about this anecdote, it proves that there were diplomatic contacts. It comes as a surprise, therefore, that Bindusara is called Amitrochates in Greek sources, which simply can not be a rendering of Bindusara's name. A possible explanation is that Bindusara had accepted a throne name Amitragatha, 'destroyer of enemies'. Possible. But why isn't this mentioned in Indian sources? This king remains a mystery.


Ancient-Warfare.com, the online home of Ancient Warfare magazine
The Mauryan empire, c. 250 BCE. Design Jona Lendering.
Ashoka Maurya (c.272-c.232)
Texts from southern India mention the Mauryan chariots invading the country "thundering across the land, with white pennants brilliant like sunshine". Indeed, Ashoka, who succeeded his father Bindusara in 272, was a great conqueror, and the first to unite the Indian subcontinent, except for the extreme south. However, the emperor came to hate war after he had seen the bloodshed of the conquest of Kalinga in eastern India, and he converted to Buddhism. He wanted to establish dhamma, 'the law of justice', everywhere in India and Arachosia. In the rock edicts he left behind on several places in his realm, the emperor says:
The two rocks at Shahbazgarhi. Photo Marco Prins.
Two boulders with rock edicts near Shahbazgarhi (Pakistan)



The beloved of the gods [...] conquered Kalinga eight years after his coronation. One hundred and fifty thousand people were deported, one hundred thousand were killed and many more died from other causes. After the Kalingas had been conquered, the beloved of the gods came to feel a strong inclination towards the dhamma, a love for the dhamma and for instruction in dhamma. Now the beloved of the gods feels deep remorse for having conquered the Kalingas.
Indeed, the beloved of the gods is deeply pained by the killing, dying and deportation that take place when an unconquered country is conquered. But the beloved of the gods is pained even more by this -that Brahmans, ascetics, and householders of different religions who live in those countries, and who are respectful to superiors, to mother and father, to elders, and who behave properly and have strong loyalty towards friends, acquaintances, companions, relatives, servants and employees- that they are injured, killed or separated from their loved ones. Even those who are not affected by all this suffer when they see friends, acquaintances, companions and relatives affected. These misfortunes befall all as a result of war, and this pains the beloved of the gods.


Coin of king Chandragupta of Patna.
'Coin' of Chandragupta (©!!)

It seems that Ashoka was sincere when he proclaimed his belief in ahimsa (non-violence) and cooperation between religions ("contact between religions is good"). He never conquered the south of India or Sri Lanka, which would have been logical, and instead sent out missionaries -as far away as Cyrenaica- to convert others to the same beliefs, and sent his brother to Sri Lanka. He erected several stupas, founded Buddhist monasteries, softened the harsh laws of Bindusara and Chandragupta, forbade the brutal slaughter of animals, and organized a large Buddhist council at Patna, which had to establish a new canon of sacred texts and repress heresies.

Decline
After the death of Ashoka, the Mauryan empire declined. In c.240, the Bactrian leaders -who were of Greek descent- revolted from their Seleucid overlords, and although king Antiochus III the Great restored order in 206, the Bactrian leader Euthydemus declared himself independent within a decade. Not much later, the Graeco-Bactrian kingdom expanded into Drangiana and Gandara.

The invasion of the Punjab, which took place in 184, revitalized the Greek culture in the region south of the Hindu Kush mountain range, where Euthydemus' son Demetrius created a new kingdom, consisting of Gandara, Arachosia, the Punjab and even a part of the Ganges valley. Demetrius died in c.170 and left his kingdom to his sons, who continued to fight against the Mauryan empire. However, they were divided. But when king Menander reunited the Indo-Greek kingdom in c.125, the westerners were able to invade the heartland of the already contracted Mauryan empire, and even captured Patna. Never has a Greek army reached a more eastern point.

Yet, the Indo-Greek kings had to accept the realities created by the Mauryan empire. Buddhism was to be the religion of the future. King Menander converted and became something of a Buddhist saint. One of the holy texts of Buddhism is called Milindapañha, 'Questions of Menander'.


Maurya caste (Maury, Moury, मौर्य) is an agricultural Hindu caste name and a Kshatriya sub-varna. Koiry, Kushwaha, Shakya and Kashshi belong to Maurya caste. "Maurya" are traditionally involved in agricultural activities. They reside mostly in UP, MP, Bihar and North India.

They use titles like Kushwaha, Maurya, Mourya, Moria, Singh, Mahto, Mehta, Bhagirathi, Prasad, Rana, Hardia, Verma, Vaidya, Panjiyara, Chaudhary, Mandal etc.. Maurya caste is allied with other Kshatriya castes like Kashi (ancient republic of Kashi), Shakya (India and Nepal) as well as Bhagirathi and Sagar-vanshi agricultural castes. Kushwaha/Maurya/Shakya are an important farming caste many of these were landlords in UP/Bihar/MP etc.

Origins: Maury or Maurya originated from the ruling clan of Shakya. As per historical narrative, the split occurred when upon the desire of King of Kashi (prasenjit) Shakyas married a Shakyan damsel to them. However, when the son born of this marriage, Vidudhuba, went to his maternal people, he was ridiculed by being called dasi-putra. It transpired that a Shakya by the name Mahan, a cousin of Gautam Buddha had married his daughter through a dasi to King Prasenjit.

Vidudhuba organised a huge army and attacked the Shakyas. This particularly group of Shakyas fled and started calling themselves Maurya. Mauryas of Pippalivahana were one of the groups to possess the remains of Gautama Buddha.

Maurya, Shakya and Kashi claimed decent from Shri Kush, eldest son of Shri Rama. Shakya, the grandfather of Gautam Buddha and Mahan was 20th in Ikshvaku line from King of Kashi, Brihad-Bala at the time of Mahabharata.

प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग विकास बोर्ड का गठन होगा

जयपुर । मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश में प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग विकास बोर्ड का गठन करने और इसके लिए एक करोड रुपये देने की घोषणा की है।
मुख्यमंत्री यहां हरिश्चन्द्र तोतुका सभागार में द्वितीय प्रान्तीय प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि पद से बोल रहे थे। इसका आयोजन गांधी स्मारक प्राकृतिक चिकित्सा समिति राजघाट नई दिल्ली और महात्मा गांधी प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग महाविद्यालय जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस सम्मेलन में देश एवं प्रदेश के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रस्तावित बोर्ड में प्राकृतिक चिकित्सा से जुडे प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का प्रचलन प्राचीन काल से रहा है। सभी को स्वास्थ्य के उद्देश्य से आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथिक, योग, प्राकृतिक चिकित्सा पद्घतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज नई तकनीकी क्रांति का जमाना है। देश दुनिया में एलोपैथी का वर्चस्व कायम हो चुका है। ऐसे में इस बात की जरूरत है कि हम भी अपनी प्राचीन पद्घतियों पर नये नये शोध की सूचनाएं इंटरनेट से प्राप्त कर और प्रोत्साहन दें। राज्य सरकार इसमें सहयोग करने में कभी पीछे नहीं रहेगी।
उन्होंने कहा कि हम नेचुरोपैथी के साथ अपनी अन्य प्राचीन पद्घतियों का प्रचार गांव गांव, ढाणी ढाणी में करें और इसके प्रति समाज में चेतना लाई जाये। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। उन्होंने विशेष तौर पर महिलाओं का आह्वान किया कि वे इसके प्रति समाज में जागरूकता लाने में अपनी अहम भूमिका निभायें।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाया करते थे। उनका ध्येय था कि कोई भी काम करें तो उसका अपने जीवन में प्रयोग भी करें। उनका मानना था कि उपदेश की बजाय स्वयं इसे जीवन में अपनाते हैं तो उसका ज्यादा असर पडता है। उन्होंने कहा कि गांधीजी के जीवन दर्शन से पूरी दुनिया प्रभावित है और उनके जन्मदिवस को आज पूरे विश्व में अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि जब गांधीजी के जीवन दर्शन को लोग पढते हैं तो उनके जीवन में अपनाई गई प्राकृतिक चिकित्सा का भी जिक्र आता है।
श्री गहलोत ने कहा कि वह स्वयं भी प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग बचपन से करते आये हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरा समाज स्वस्थ रहे। इसके लिए आवश्यक है कि वातावरण पर्यावरण की दृष्टि से शुद्घ रहे। उन्होंने कहा कि पर्याप्त सफाई नहीं होने से प्रदूषण फैलता है जो हमारे स्वास्थ को प्रभावित करता है। इसलिए आवश्यक है कि स्थानीय निकाय सफाई व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान दें।
राज्य सभा के सांसद अश्क अली टाक ने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा गांधीवादी विचारधारा का एक हिस्सा है। उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग के लिए बोर्ड के गठन का अनुरोध करते हुए कहा कि इससे इन पद्घतियों के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
गांधी स्मारक निधि, राजघाट नई दिल्ली के अध्यक्ष लक्ष्मीदास ने अपने उद्बोधन में प्राकृतिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने की मांग करने के साथ इसके स्वतंत्र बोर्ड के गठन का आग्रह किया और कहा कि यह बोर्ड प्राकृतिक चिकित्सा के विकास का रोड मैप बनाये।
सम्मेलन के संयोजक अरुण कुमावत ने सभी का स्वागत करते हुए सम्मेलन के कार्यक्रमों की जानकारी दी। महात्मा गांधी प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग महाविद्यालय के संरक्षक पी.सी. कुमावत ने अतिथियों का धन्यवाद दिया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने स्वतंत्र क्रांति स्मारिका का भी विमोचन किया।
प्रदर्शनी का अवलोकन
मुख्यमंत्री ने उद्घाटन सत्र से पहले प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग से होने वाले उपचार तथा विभिन्न प्रकार की प्रयोग की जाने वाली विधियों के संबंध म आयोजित प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया।

सैनी ने नागरिक अधिकार पत्र का विमोचन किया

जयपुर । सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री श्री रामकिशोर सैनी ने मंगलवार को खासा कोठी कान्फ्रेंस हॉल में विभाग के नागरिक अधिकार पत्र का विमोचन किया।
इस अवसर पर प्रमुख शासन सचिव सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता श्रीमती अदिति मेहता एवं आयुक्त श्री कुंजी लाल मीणा समेत विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
इस अवसर पर श्री सैनी ने कहा कि यह वह पत्र है जिसमें विभाग द्वारा दुर्बल वर्गों, पिछडे एवं निशक्तजन आदि के कल्याण के लिए बनाई गई योजनाओं की जानकारी संकलित हैं। इससे आमजन को समय पर एवं समुचित सहायता मिलने की गति बढाने में मदद मिलेगी।
राज्य मंत्री ने इसे प्रगतिशील दस्तावेज बताते हुए कहा कि इससे विभाग के अधिकारियों को भी कार्य करने में मार्गदर्शन मिलेगा। इसके साथ ही यह पत्र स्वच्छ, संवेदनशील एवं पारदर्शी सरकार का लक्ष्य पूरा करने में पथ प्रदर्शक होगा।

सैनी,शाक्य,मौर्य एवं कुशवाहा समाज की बैठक सम्पन्न

लखनऊ - सैनी, शाक्य, मौर्य एवं कुशवाहा समाज की बैठक में, जो यहां समाजवादी पार्टी मुख्यालय 19, विक्रमादित्य मार्ग, लखनऊ में पूर्व सॉसद श्री हरिकेवल प्रसाद कुशवाहा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई, बसपा राज में इस समाज की उपेक्षा और शोषण के विरूद्ध आर पार की लड़ाई लड़ने तथा श्री मुलायम सिंह यादव को राजनीति में शक्ति और सत्ता दिलाने का संकल्प लिया गया।
बैठक में समाज के प्रतिनिधियों ने कहा कि बसपा राज में उनका जानबूझकर उत्पीड़न हो रहा है। समाजवादी पार्टी की सामाजिक नीति और समाज की स्थिति में साम्य है। बात जाति की नहीं जमात के हितों की है। श्री मुलायम सिंह यादव ही पिछड़ों की पहचान है। इसलिए इस समाज के अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आने वाले विधान सभा और स्थानीय निकाय चुनावों में समाजवादी प्रत्याशियों को ही जिताना है।
नेता विरोधी दल श्री शिवपाल सिंह यादव एवं समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने अपने संबोधन में कहा कि समाजवादी पार्टी इस समाज के लोगों के सहयोग का मूल्य समझती है। चुनाव में और संगठन में उनको समानुपतिक प्रतिनिधित्व मिलेगा। सैनी, शाक्य, मौर्य एवं कुशवाहा समाज को समाजवादी पार्टी में राजनीतिक सम्मान मिलेगा।
उन्होने कहा कि बसपा की सरकार से ज्यादा कोई भ्रश्ट सरकार नहीं रही है। यह राजनीति का चेहरा बिगाड़ रही है। प्रदेश में लोकतन्त्र तथा राजनीति की मर्यादा बचाने के लिए इस सरकार को हटाने में समाज के सभी वर्गो को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। बैठक में प्रदेश महासचिव श्री ओमप्रकाश सिंह तथा प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेन्द्र चौधरी भी उपस्थित रहे।
इसके अतिरिक्त आज की बैठक में सर्वश्री राम आसरे कुशवाहा, राश्ट्रीय महासचिव श्रीमती लीलावती कुशवाहा, समाजवादी महिला सभा प्रदेश अध्यक्ष, विक्रमाजीत मौर्य, पूर्व मन्त्री, सूरज सिंह ‘ााक्य, विधायक, रघुराज सिंह शाक्य, पूर्व सॉसद हरगोविन्द सैनी, सुश्री दीपमाला, दीनानाथ कुशवाहा, जगदीश कुशवाहा,पूर्व सॉसद, सत्येन्द्र सैनी, गीता शाक्य, मंजूरानी मौर्य, डा0एम0एस0 कुशवाहा तथा छक्कन मौर्य ने अपने विचार रखे। इसमें सौ से ज्यादा उक्त समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

सैनी,शाक्य,मौर्य एवं कुशवाहा समाज की बैठक सम्पन्न

लखनऊ - सैनी, शाक्य, मौर्य एवं कुशवाहा समाज की बैठक में, जो यहां समाजवादी पार्टी मुख्यालय 19, विक्रमादित्य मार्ग, लखनऊ में पूर्व सॉसद श्री हरिकेवल प्रसाद कुशवाहा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई, बसपा राज में इस समाज की उपेक्षा और शोषण के विरूद्ध आर पार की लड़ाई लड़ने तथा श्री मुलायम सिंह यादव को राजनीति में शक्ति और सत्ता दिलाने का संकल्प लिया गया।
बैठक में समाज के प्रतिनिधियों ने कहा कि बसपा राज में उनका जानबूझकर उत्पीड़न हो रहा है। समाजवादी पार्टी की सामाजिक नीति और समाज की स्थिति में साम्य है। बात जाति की नहीं जमात के हितों की है। श्री मुलायम सिंह यादव ही पिछड़ों की पहचान है। इसलिए इस समाज के अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आने वाले विधान सभा और स्थानीय निकाय चुनावों में समाजवादी प्रत्याशियों को ही जिताना है।
नेता विरोधी दल श्री शिवपाल सिंह यादव एवं समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने अपने संबोधन में कहा कि समाजवादी पार्टी इस समाज के लोगों के सहयोग का मूल्य समझती है। चुनाव में और संगठन में उनको समानुपतिक प्रतिनिधित्व मिलेगा। सैनी, शाक्य, मौर्य एवं कुशवाहा समाज को समाजवादी पार्टी में राजनीतिक सम्मान मिलेगा।
उन्होने कहा कि बसपा की सरकार से ज्यादा कोई भ्रश्ट सरकार नहीं रही है। यह राजनीति का चेहरा बिगाड़ रही है। प्रदेश में लोकतन्त्र तथा राजनीति की मर्यादा बचाने के लिए इस सरकार को हटाने में समाज के सभी वर्गो को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। बैठक में प्रदेश महासचिव श्री ओमप्रकाश सिंह तथा प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेन्द्र चौधरी भी उपस्थित रहे।
इसके अतिरिक्त आज की बैठक में सर्वश्री राम आसरे कुशवाहा, राश्ट्रीय महासचिव श्रीमती लीलावती कुशवाहा, समाजवादी महिला सभा प्रदेश अध्यक्ष, विक्रमाजीत मौर्य, पूर्व मन्त्री, सूरज सिंह ‘ााक्य, विधायक, रघुराज सिंह शाक्य, पूर्व सॉसद हरगोविन्द सैनी, सुश्री दीपमाला, दीनानाथ कुशवाहा, जगदीश कुशवाहा,पूर्व सॉसद, सत्येन्द्र सैनी, गीता शाक्य, मंजूरानी मौर्य, डा0एम0एस0 कुशवाहा तथा छक्कन मौर्य ने अपने विचार रखे। इसमें सौ से ज्यादा उक्त समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

मूल चाणक्य नीति

मूल चाणक्य नीति
Written by अनुवाद : विज्ञान भूषण




आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए। इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया।

वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई गई ‍नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं। चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय से यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ अंश -

1. जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।

2. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता - ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य उपर्युक्त दोषों को स्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं। हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।

3. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।

4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।

5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।

6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।

7. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।

8. चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।

9. चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।

10. चाणक्य कहते हैं कि बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।

11. वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, जिन्होंने बच्चों को ‍अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।

12. चाणक्य कहते हैं कि अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।

13. शिक्षा और अध्ययन की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत सौभाग्य से मिलता है, इसलिए हमें अपने अधिकाधिक समय का वे‍दादि शास्त्रों के अध्ययन में तथा दान जैसे अच्छे कार्यों में ही सदुपयोग करना चाहिए।

14. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।

15. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।

16. ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।

17. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।

18. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।

19. चाणक्य कहते हैं कि मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।

सैनी समाज का नेतृत्व विहीन - अनिल सैनी

सैनी समाज एकता मंच के प्रदेश अध्यक्ष अनिल सैनी ने कहा कि सैनी समाज हरियाणा की राजनीति में हाशिए पर पहुंच गया है। इसकी वजह सैनी समाज का नेतृत्व विहीन होना। यह बात प्रदेश अध्यक्ष ने सैनी धर्मशाला में आयोजित सैनी समाज एकता मंच की जिलास्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन में कही।
कार्यकर्ता सम्मेलन में अनिल सैनी ने बताया कि प्रदेश में सैनी समाज की लगभग 15 लाख आबादी है। फिर भी कोई भी राजनैतिक पार्टी सैनी समाज को टिकट वितरण के समय प्रतिनिधित्व नहीं देती। इसका सिर्फ एक ही कारण है सैनी समाज का संगठन न होना। इन्हीं सब बातों के ध्यान में रखते हुए सैनी समाज एकता मंच ने हरियाणा के तमाम विधानसभा क्षेत्रों में सफल जनसभाओं का आयोजन किया। आगे की रणनीतियों का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि सात अक्टूबर को रोहतक में प्रदेश स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। सम्मेलन में हरियाणा कांग्रेस कमेटी के महासचिव रमेश सैनी का जोरदार स्वागत किया गया। इस दौरान उन्होंने कहा कि संगठन को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। इस अवसर पर एकता मंच की महिला विंग की प्रदेश किरण सैनी, युवा विंग के प्रदेश अध्यक्ष हरिराम सैनी, प्रीतम सैनी, रघबीर सैनी, रत्तन सैनी, बलवंत सैनी सहित कई लोग उपस्थित रहे।
MUKESH KUMAR SAINI - COMMENTS
we should also celebrate MAURYA JAYANTI like Gandhi Jayanti.WE should request to Indian Govt. to declare holiday on that Day.When we do our community meeting
,we should call to REDDY leaders from south India.It will be helpful to lift-up for our community.Our poulation in India is around 12carore.Saini's from Punjab & Reddy from South are very forwarded in our
community.Whenever some body ask me about my community
then i tell them i belong to saini community,Then they did not reconise this community.But ,when i tell them
i belong to MAURYA'S then they never ask further question.Because,MAURYAS belong to history.Any body can reconise this community easily.
MUKESH KUMAR SAINI - COMMENTS
Now a lot of changes happened in our community.Now we have improved a lot.we can strenth our community if we use same sirnames like MAURYA.

चरित्र भ्रष्ट का मुख्य कारण बनी आधुनिक शादियां





महाश्य दया किशन सैनी

रोहतक। बदलते वक्त में शादी-ब्याह भी चरित्र भ्रष्ट का एक मुख्य कारण साबित होने लगे हैं। अब पहले की भांति शर्मोहया का ख्याल किसी को नहीं रहा बल्कि युवक-युवतियां हाथ में हाथ डालकर डीजे की धुनों पर थिरकते हैं। उन्हें यह तक ख्याल नहीं रहता कि उनके बड़े-बुजुर्ग भी उनको देख रहे हैं। हालत यह है कि अभिभावक भी यह सब होता देखकर चुप हैं। इस भोंडेपन का सीधा सा असर भावी पीढ़ी पर भी पड़ रहा है। बेशक बच्चे कुछ नहीं बोलें मगर वे यह सब देखते व समझते हैं और बुरे संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इतना ही नहीं विवाह-शादियों में पटाखे छुड़ाए जाते हैं और बंदूक व पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाकर भी प्रदुषण फैलाया जा रहा है। आधुनिकता के नाम पर अब तो बड़े-बड़े लोग शादियों में खाने-पीने के नाम पर शराब एवं मांस भी परोसने लगे हैं। हिंदुस्तानी संस्कृति का यह हाल होना बेहद चिंता का विषय है। क्यों शर्मोहया खत्म होती जा रही है और बच्चे एवं युवा गलत रास्ते पर चल पड़े हैं। हमें ठोस कदम उठाने होंगे ताकि भावी पीढ़ी का चरित्र निर्माण सही ढंग से हो सके।

चरित्र भ्रष्ट का मुख्य कारण बनी आधुनिक शादियां




महाश्य दया किशन सैनी

रोहतक। बदलते वक्त में शादी-ब्याह भी चरित्र भ्रष्ट का एक मुख्य कारण साबित होने लगे हैं। अब पहले की भांति शर्मोहया का ख्याल किसी को नहीं रहा बल्कि युवक-युवतियां हाथ में हाथ डालकर डीजे की धुनों पर थिरकते हैं। उन्हें यह तक ख्याल नहीं रहता कि उनके बड़े-बुजुर्ग भी उनको देख रहे हैं। हालत यह है कि अभिभावक भी यह सब होता देखकर चुप हैं। इस भोंडेपन का सीधा सा असर भावी पीढ़ी पर भी पड़ रहा है। बेशक बच्चे कुछ नहीं बोलें मगर वे यह सब देखते व समझते हैं और बुरे संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इतना ही नहीं विवाह-शादियों में पटाखे छुड़ाए जाते हैं और बंदूक व पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाकर भी प्रदुषण फैलाया जा रहा है। आधुनिकता के नाम पर अब तो बड़े-बड़े लोग शादियों में खाने-पीने के नाम पर शराब एवं मांस भी परोसने लगे हैं। हिंदुस्तानी संस्कृति का यह हाल होना बेहद चिंता का विषय है। क्यों शर्मोहया खत्म होती जा रही है और बच्चे एवं युवा गलत रास्ते पर चल पड़े हैं। हमें ठोस कदम उठाने होंगे ताकि भावी पीढ़ी का चरित्र निर्माण सही ढंग से हो सके।

Asha Saini changes her name to 'Mayuri'


Asha Saini changes her name to 'Mayuri'

Asha Saini, who hogged the limelight with her role 'Lux Papa' in 'Narasimha Naidu', had now changed her name to Mayuri.


The film industry is known for sentiments and at the same time many give preference to numerology to change their names for luck.Following suggestions from her well-wishers and friends, Asha Saini turned 'Mayuri' for more luck.


It may be mentioned here that Siva Shankara Vara Prasad had changed his name to Chiranjeevi and Bhaktavatsalam Naidu turned Mohanbabu and rose to the level of stars and reached higher positions in the film industry.


Asha Saini had also changed her name to become a big star on those lines.She says, 'Though I played several roles in various language films including Telugu, Tamil, Kannada and Hindi films, I like the Telugu film industry the most.'

http://sainisamajektamanch.com/

"Saini Samaj Ekta Manch is a social organisation of all men, women,youngesters. It has a deep faith in the constitution of the country. We are the belongings of Samrat Ashok, Chandregupta Maurya, Maharaja Shoor Saini, Gautam Buddha, Education Revolutionary like Mahatma Jyothi Ba Phullae. They all are regarded by Saini Samaj Ekta Manch. The aim of this manch is to unite the backward clases of society and lead them to the path of progress so that even the down trodden people of the society may take part in the progress of the nation."



...... Sh. Anil Saini

www.sainisamaz.org

Saini Samaj Community

SainiSamaz.com is a community website where saini people can make their profile and participiate activities of saini community.We are providing a communication medium to each others. We have high profiled saini people as a member of saini samaz community. You can become a good friend of High Profiled saini people who added theier profile here. Saini people can discuss here his/her problems and get a suitable solutions by experienced Person.
Saini Samaj Matrimonial

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Lanuch of www.sainisamaz.org webportal
April, 08 2007


About Mahatma Phule | Life sketch of Mahatma Phule | Literature by Mahatma Phule | Selected Works of Mahatma Phule |

sainiparivar.com

This website is dedicated for the people of Saini Samaj, residing worldwide to keep the new generation ahead. Matrimonial section >>> A unique online matrimonial service which is based on our ancestor’s principles (To check GOTRA before marriage). The purpose of this is to bring together potential matrimonial partners on the net. This Website also having: • Information about Saini Community, History, Saini Culture & Traditions. • Information of Saini peoples from Service Class, Business Class and Social Class. • Information about All Saini Shabah. • Information about All Saini Institutes. • Education and career guidelines. • Great Personality of Saini Samaj. • Photo Gallery of all special events and programs.

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Introduction

Throughout India our Saini Samaj is better known for their hard work and dedication. We are the belongings of Samrat Ashok, Chandregupta Maurya, Maharaja Shoor Saini, Gautam Buddha, Education Revolutionary like Mahatma Jyothi Ba Phullae. But today, we know our actual position in the society. On the virtual map of India we are inching towards zero. We are lacking in education, politics and even in core activities of our daily life.Our samaj is divided into various small small groups. Some selfish people are playing a divide and rule policy for their own benefit ,success and upliftment. If we see our total population our samaj should have been on the political heights but its not like that. We don’t have a single leader to lead us, to represent us, who can help us in building our future, help us in having richt justice, proper education etc. For this we have always looked for the people of other community. They have done a lot of progress inspite of having less in nos. To reunite the people for the upliftment, Saini Samaj Ekta Manch was formed in the year 2002.Since 2002 this manch contacted people directly to produce them under one banner. By seeing the great effort , dedication and hard work, lacs and lacs. Of saini people are joining hands with this manch.If our community again unites themselves then we may do wonders in no time. To prove this the Ekta Manch has been formed. Even after doing huge rallies, functions none of the political party recognized us.

Appeal

This is the moral duty of all the people of Saini Samaj to join hands with Saini Samaj Ekta Manch, become its member for a better future of society. Please pay your time in this mission.

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

लाडनूं में समारोहपूर्वक मनाई गई महात्मा फु ले जयंती



लाडनूं। सामाजिक क्रांति के जनक महात्मा ज्योतिबा फु ले की जयंती पर यहां सैनी अतिथि भवन में आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए सैनी समाज के पूर्व मंत्री जगदीश यायावर ने समाज से कुरूतियों और अंधविश्वासों को मिटाने का आह्वान करते हुए कहा कि जब तक समाज का बच्चा-बच्चा उच्च शिक्षा हासिल नहीं करेगा तब तक प्रगति की बात बेमानी होगी। उन्होंने कहा कि महात्मा फु ले ने विपरीत परिस्थितियों में भी सतत कार्य करके दलित और पिछड़े लोगों को जो सम्बल प्रदान किया वह विश्वभर में अद्वितीय है। नेमाराम मारोठिया डाबड़ी की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में वीरेन्द्र भाटी ने महात्मा फुले के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्हें प्रेरणाप्रद बताया। नेमीचंद टाक, महेशप्रकाश सांखला व प्रेमप्रकाश आर्य ने भी महात्मा फ ुले के जीवन और आदर्शों के बारे में बोलते हुए उनसे प्रेरणा लेकर सामाजिक क्रांति के उनके कार्य को आगे बढ़ाने की जरूरत बताई। इस अवसर पर सैनिक क्षत्रिय सभा के मंत्री राधाकिशन चौहान, पूर्व अध्यक्ष मघाराम सांखला, व्यवस्थापक राजेन्द्र कुमार टाक, युवा कार्यकर्ता राजेश सांखला, हिम्मताराम टाक, दीनदयाल गौड़, दीनदयाल सांखला, बजरंगलाल यादव, मांगीलाल महावर, कानाराम सांखला, चांदमल सांखला, प्रेमसुख तंवर, सागरमल भाटी, तोलाराम मारोठिया, चम्पालाल भाटी, नरपतसिंह तूनवाल, नोरतन टाक आदि उपस्थित थे। सैनिक क्षत्रिय सभा के अध्यक्ष भंवरलाल महावर ने आभार ज्ञापित किया।
विशाल शोभायात्रा का आयोजन
महात्मा फुले जयंती के अवसर पर इससे पूर्व सैनिक क्षत्रिय सभा एवं तहसील क्षेत्रीय सैनी समाज के संयुक्त तत्वावधान में विशाल शोभायात्रा का आयोजन किया गया। शोभायात्रा में बड़ी संख्या में ओम ध्वज लगी मोटर साईकिलें सबसे आगे चल रही थी, उसके पीछे महात्मा ज्योतिबा फुले का विशाल चित्र लिए वाहन और बड़ी संख्या में अन्य लोग नारेबाजी करते हुए शामिल थे। मंगलपुरा ग्राम से प्रात: 8 बजे शोभायात्रा रवाना हुई जो लाडनूं शहर के विभिन्न प्रमुख मार्गों से होते हुए सैनी अतिथि भवन पहुंची। सम्पूर्ण मार्ग में जगह-जगह पुष्प वर्षा करके लोगों ने शोभायात्रा का स्वागत किया वहीं अनेक जगह शर्बत आदि की व्यवस्था भी नागरिकों की ओर से की गई।

जरूरत है कि महात्मा फुले को जिया जावे... फुले जयन्ती पर शोभा-यात्रा, सभा व सम्मान


सुजानगढ (कलम कला न्यूज)। प्रख्यात साहित्यकार बैजनाथ पंवार ने महात्मा ज्योतिबा फुले को महान समाज-सुधारक बताते हुए कहा कि आज उनके आदर्शों को अपनाने और उनकी तरह कुरीतियों को मिटाने का बीड़ा उठाने की जरूरत है। उन्होंने यहां सुजानगढ में महात्मा ज्योतिबा फुले राष्ट्रीय संस्थान के तत्वावधान में आयोजित फुले जयंती व प्रतिभा सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि की हैसियत से बोलते हुए आगे कहा कि शिक्षा समाज विकास की धुरी होती है, बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाना और उन्हें प्रोत्साहन प्रदान करना भी बहुत जरूरी है। उन्होंने सुजानगढ में बहुआयामी गतिविधियां व रोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों के संचालन पर खुशी जताई।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सैनी घोष ब्लॉग साईट के सम्पादक जगदीश यायावर ने महात्मा फुले के जीवन की विशिष्टियों के बारे में बताते हुए उनके सिद्धांतों को अंगीकार करने पर बल दिया तथा कहा कि देश के समस्त माली समाज को एक सूत्र में बांध कर उसे कुप्रथा-मुक्त, सत्यशोधक और विकसित समाज के रूप में आगेे लाए जाने की तैयारी करनी होगी। इसके लिए हमें अपनी प्रतिभाओं को और निखारने की जरूरत है। सैनी सेतु टाईम्स के सम्पादक वीरेन्द्र भाटी मंगल ने फुले के जीवन पर प्रकाश डाला तथा उससे प्रेरणा लेने पर बल दिया। उन्होंने सुजानगढ के सैनी समाज की प्रशंसा करते हुए प्रतिभा सम्मान और अन्य गतिविधियों की सराहना की। संस्था के संरक्षक रामपाल यादव ने संस्था के प्रारम्भ व विकास के बारे में जानकारी दी। कन्हैयालाल देवड़ा, सूरजमल यादव एडवोकेट व तनसुख सैनी ने संस्था के बारे में बताते हुए महात्मा फुले को आदर्श बताया। डा. कन्हैयालाल मारोठिया ने प्रारम्भ में संस्था के बारे में विस्तार से अधिकृत जानकारी प्रस्तुत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता सोहनलाल यादव ने की। युवा अध्यक्ष हरिकिशन कटारिया थे तथा विशिष्ट अतिथि रामगोपाल ठेकेदार, जगदीश यायावर, वीरेन्द्र भाटी व नथमल टाक थे। समारोह से पूर्व एक शानदार शोभायात्रा का आयोजन किया गया। संयोजन जितेन्द्र तंवर ने किया।

सैनी समाज का युवक-युवती परिचय सम्मेलन शीघ्र किशनलाल बागड़ी बने सैनी समाज के महामंत्री

सरदार शहर (कलम कला न्यूज)। शेखावाटी सैनी समाज सेवा संस्थान, आखा सरदार शहर की कार्यकारिणी का गठन किया जाकर सैनी समाज की ज्वलंत समस्याओं के समाधान की दिशा में चिन्तन किया गया। कार्यकारिणी में सैनी समाज की वर्षों से निस्वार्थ भाव से सेवारत जाने-माने समाजसेवी श्री किशन लाल बागड़ी को महामंत्री के रूप में निर्वाचित किया गया।
केन्द्रीय सैनी समाज संस्थान चूरू के अध्यक्ष सरदारमल तंवर, जिलाध्यक्ष डी.के. सैनी, सत्यनारायण भाटी, शंकरलाल बालान व सेवानिवृत अध्यापक जीवणमल के निर्देशन में सरदार शहर में संरक्षक समाजसेवी रावतमल कम्मा की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में सम्पन्न निर्वाचन में अध्यक्ष- सांवरमल कम्मा, उपाध्यक्ष- नरसीराम राकसिया, गणेश पंवार व मोनिका सैनी, महामंत्री- किशनलाल बागड़ी, मंत्री- नागरमल राकसिया, कोषाध्यक्ष- गिरधारीलाल कम्म तथा संगठन एवं प्रचार मंत्री- रामनिवास टाक को निर्वाचित किया गया। अंतरंग सदस्यों के रूप में मोहनलाल तंवर, श्यामलाल सांखला, नन्दकिशोर राकसिया, माणकचंद बालान, बाबूलाल बागड़ी, श्रीमती सुजाता सैनी, सरला सैनी, अशोक सैनी, राजेन्द्र सैनी आदि को कार्यकारिणी में शामिल किया गया।
संरक्षक मंडल
संस्थान के संरक्षक मंडल में माणकचंद चौहान, मुरलीधर सैनी एडवोकेट, मोहनलाल तंवर रेलवे स्टेशन मास्टर, डा. पी.आर. सैनी व रामचंद्र मारोठिया को शामिल किया गया। बैठक में अनुपस्थित रहे अन्य सक्रिय सदस्यों एवं ग्रामीण क्षेत्रों के सदस्यों को बाद में कार्यकारिणी में शामिल किया जाना तय किया गया।
होगा वैवाहिक समस्याओं का निराकरण- तंवर
केन्द्रीय शेखावाटी सैनी समाज संस्थान के अध्यक्ष सरदार मल तंवर ने बादमें अपने सम्बोधन में कहा कि सैनी समाज में विवह योग्य युवक-युवतियों की समस्या एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आई हैं। 25-30 साल की आयु होने तक लड़के-लड़कियों का कुंआरे रहना आम हो गया है। विवाह के लिए योग्य वर या वधु ढूंढ पाना आज माता-पिता के लिए एक मुश्किल काम बन चुका है। वर्तमान की भागछौड़ भरी जिन्दगी में इसके लिए समय निकाल पाना तक दूभर होता जा रहा है, ऐसे में सैनी समाज सेवा संस्थान ने चूरू, सीकर, झुंझुनूं इन तीनों जिलों के युवक-युवतियों के लिए परिचय सम्मेलन का आयोजन अतिशीघ्र किया जाकर इस समस्या का समाधान किया जाएगा। अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार इस सम्बंध में व्यक्त करते हुए परिचय सम्मेलन की सफलता के लिए जुट जाने की जरूरत बताई। अंत में अध्यक्ष सांवरमल कम्मा ने आभार ज्ञाकित किया। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती राजू चौहान ने किया।

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

आत्म-चिन्तन करना चाहिए, धर्म को सम्मुख रख करें सामाजिक एकता की बात

महाराजा सैनी के जन्मोत्सव पर हमें

20 दिसम्बर का दिन यानी सैनी समाज के प्रवर्तक महाराजा शूर सैनी के जन्मोत्सव का अवसर। हर साल की भांति इस साल भी यह अवसर आने पर सम्पूर्ण सैनी समाज के विभिन्न संगठनों द्वारा महाराजा शूर सैनी की जयंति हर्षोंल्लास से मनाने के लिए कार्यक्रम व गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। हर कार्यक्रम में महाराजा शूर सैनी के आदर्शों पर चलने की शपथ ली जाएगी और जैसे ही कार्यक्रम खत्म होगा वैसे ही शपथ से जुड़ी भावनाएं भी अपने आप खत्म हो जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि हम बात तो हमेशा महाराजा शूर सैनी के उच्च आदर्शों की करते हैं मगर आज तक उन्हें अपने जीवन में आत्मसात नहीं कर पाए हैं। यही वजह है कि वर्तमान समय में अपनी राजनैतिक पहचान बनाने के लिए जूझ रहे सैनी समाज की इस हालिया दुर्दशा के लिए कोई और नहीं, बल्कि हम स्वयं जिम्मेवार है। क्योंकि शताब्दियां बीत जाने के बावजूद आज तक हम सामूहिक रूप से उस विचार को आत्मसात नहीं कर पाए, जो पहले महाराजा शूर सैनी और बाद में दलितों व पिछड़ों के उत्थान एवं कल्याण में अपना जीवन अर्पित करने वाले महात्मा ज्योति बा फूले ने हमें दिया था।
दोनों की विचारधाराओं को यदि गहराई से अध्ययन किया जाए तो उनमें जो एक महत्वपूर्ण समानता दिखाई देती है, वह है वैमनस्य की भावना के त्याग के साथ निजी स्वार्थों से ऊपर उठ सम्पूर्ण एकजुटता के साथ समूचे समाज को जागृत एवं उनके उत्थान के लिए कार्य करना। दोनों ही महापुरुषों ने समाज सुधार एवं विकास के इस मंत्र को अपने जीवन में उतार कर न केवल ऐसे दबे.कुचले लोगों के उत्थान के लिए कार्य कियाए जो अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, बल्कि बिना किसी लाग.लपेट के उनकी वांछित मदद कर उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने में भी अहम भूमिका निभाई।
जहां तक बात महाराजा शूर सैनी की है तो उनका तो एक सीधा सा मूल मंत्र था कि किसी भी समाज को बुलंदी पर लाने में कामयाबी उसी सूरत में संभव है जब आदमी अध्यात्म, धर्म और प्रकृति में विश्वास कायम रखते हुए सामाजिक समरसता एवं एकजुटता के साथ निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बिना किसी निजी स्वार्थ के पुरुषार्थ व लगन से कार्य करें। यही वजह थी कि अपने शासन काल के दौरान उन्होंने अपनी प्रजा को साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना का विकास करते हुए उन्हें एकजुटता के लिए मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी मूलमंत्र ने ही जहां उन्हें एक अच्छे प्रशासक के तौर पर ख्याति दिलाई, वहीं वे जनहित को तवज्जो देने वाली राजा भी साबित हुए। लिहाजा अब वक्त आ गया है कि हम अपनी खोखली मानसिकता को त्यागकर महाराजा शूर सैनी के दिखाए गए मार्ग पर चले और सैनी समाज के विकास एवं कल्याण के लिए एकजुटता के साथ सकारात्मक कार्य करें।

हरियाणा से पहली महिला पायलट बनने का गौरव पाया साकार हुआ सपना सैनी का सपना

कैथल में अपनी मां के साथ सपना सैनी।
राजौंद (कैथल)। कैथल के गांव सजूमा के मास्टर प्रताप सिंह के घर 4 अगस्त 1986 को जन्मी सपना ने एयरफोर्स में पायलट के पद पर पहुंचकर हरियाणा प्रदेश को गौरवान्वित किया है। सपना हरियाणा की एकमात्र युवती है जिसने पूरे देश में पीएबीटी परीक्षा के बाद एसएसबी की परीक्षा को पास कर अपने लक्ष्य को पाया है।
एक विशेष भेंट में पायलट सपना सैनी ने बताया कि उनके पिता रणधीर सिंह सैनी एयरफोर्स में एमडब्लूओ के पद पर तैनात हैं। इसलिए उसे बचपन से ही विमानों के प्रति काफी दिलचस्पी थी। सपना ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही ली। इसके पश्चात उसने प्राइमरी की शिक्षा लुधियाना में व दसवीं तक की शिक्षा बड़ौदरा गुजरात से प्राप्त की। इसके पश्चात जमा दो परीक्षा अंबाला छावनी के केवी- दो से की। इसके बीएससी तक की शिक्षा एसडी कॉलेज अंबाला छावनी से पाने के पश्चात अपने निर्धारित लक्ष्य पायलट की प्रथम परीक्षा पीएबीटी की परीक्षा दी जिसमें वह हरियाणा पहली लड़की थी, जिसने इसे पास किया। इसके पश्चात पांच दिन की कड़ी मेहनत के बाद उसने एसएसबी की परीक्षा भी पास की। इस परीक्षा के पश्चात उसे पायलेट की ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया। आज सपना सैनी एक सफल पायलट के रूप में एयफोर्स में अपना चौथा विमान उड़ाने की तैयारी में है।
सपना ने बताया कि उसका यह सपना साकार करने में उसे पिता रणधीर सिंह का मुख्य योगदान है जिन्होंने उनके अंतर आत्म विश्वास पैदा करके उड़ान भरने की प्रेरणा दी। उनके परिवार में दो बहने व एक भाई है कल्पना, अर्चना व अरूण सैनी शामिल हैं। उनकी माता उर्मिला सैनी अपनी बेटी की इस उपलब्धि को देख फूली नहीं समा रही है। उनके मामा विक्रम सैनी का कहना है कि सपना सैनी होनहार बालिका के साथ-साथ भावी युवतियों के लिए प्रेरणा की मिसाल है।

हरियाणा से पहली महिला पायलट बनने का गौरव पाया साकार हुआ सपना सैनी का सपना

कैथल में अपनी मां के साथ सपना सैनी।
राजौंद (कैथल)। कैथल के गांव सजूमा के मास्टर प्रताप सिंह के घर 4 अगस्त 1986 को जन्मी सपना ने एयरफोर्स में पायलट के पद पर पहुंचकर हरियाणा प्रदेश को गौरवान्वित किया है। सपना हरियाणा की एकमात्र युवती है जिसने पूरे देश में पीएबीटी परीक्षा के बाद एसएसबी की परीक्षा को पास कर अपने लक्ष्य को पाया है।
एक विशेष भेंट में पायलट सपना सैनी ने बताया कि उनके पिता रणधीर सिंह सैनी एयरफोर्स में एमडब्लूओ के पद पर तैनात हैं। इसलिए उसे बचपन से ही विमानों के प्रति काफी दिलचस्पी थी। सपना ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही ली। इसके पश्चात उसने प्राइमरी की शिक्षा लुधियाना में व दसवीं तक की शिक्षा बड़ौदरा गुजरात से प्राप्त की। इसके पश्चात जमा दो परीक्षा अंबाला छावनी के केवी- दो से की। इसके बीएससी तक की शिक्षा एसडी कॉलेज अंबाला छावनी से पाने के पश्चात अपने निर्धारित लक्ष्य पायलट की प्रथम परीक्षा पीएबीटी की परीक्षा दी जिसमें वह हरियाणा पहली लड़की थी, जिसने इसे पास किया। इसके पश्चात पांच दिन की कड़ी मेहनत के बाद उसने एसएसबी की परीक्षा भी पास की। इस परीक्षा के पश्चात उसे पायलेट की ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया। आज सपना सैनी एक सफल पायलट के रूप में एयफोर्स में अपना चौथा विमान उड़ाने की तैयारी में है।
सपना ने बताया कि उसका यह सपना साकार करने में उसे पिता रणधीर सिंह का मुख्य योगदान है जिन्होंने उनके अंतर आत्म विश्वास पैदा करके उड़ान भरने की प्रेरणा दी। उनके परिवार में दो बहने व एक भाई है कल्पना, अर्चना व अरूण सैनी शामिल हैं। उनकी माता उर्मिला सैनी अपनी बेटी की इस उपलब्धि को देख फूली नहीं समा रही है। उनके मामा विक्रम सैनी का कहना है कि सपना सैनी होनहार बालिका के साथ-साथ भावी युवतियों के लिए प्रेरणा की मिसाल है।

गोबर सने हाथ कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर-मीरा सैनी, बंदिशों को त्याग अपनाई नई राह, बगड़ की बदली तकदीर




बात 2007 की है, आम भारतीय ग्रामीण महिलाओं की तरह 24 वर्षीय मीरा सैनी को भी नहीं मालूम था कि उनका कैरियर किस तरफ जा रहा है। राजस्थान के एक दूरदराज के गाँव बगड़ की मीरा सैनी वैसे तो एक स्कूल टीचर थी, लेकिन उन्हें हमेशा जि़न्दगी उत्साहविहीन सी लगती थी। वे हर पल कुछ नया और अलग करने की सोच में रहती थीं। लेकिन ग्रामीण परिवेश के सीमित संसाधन और परम्परागत सामाजिक बंदिशें उनकी सोच के आड़े आ रही थी। घर की दहलीज को पार करना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन आज मीरा सैनी के अलावा बगड़ गांव की महिलाएं कम्पयूटर की.बोर्ड पर महारथ हासिल कर देश और दुनिया के ग्राहको को बीपीओ सेवाएं दे रही हैं और अब वे अपने समुदाय की रोल मॉडल बन चुकी हैं।

मीरा सैनी ने जब अपने गाँव बगड़ में खुले महिला बीपीओ के बारे में सुना तो उन्होंने टीचर कि नौकरी को टाटा कह दिया और सोर्स फॉर चेंज (एसएफसी) नामक बीपीओ से जुड़ गयीं। मीरा कहती हैं कि.-यहाँ पर आमदनी पहले से कुछ कम भले ही हो, लेकिन कम्पुटर ट्रेनिंग के माध्यम से महिलाओं को आत्मिनिर्भर बानाने का आइडिया मुझे पसंद आया और मैं एसएफसी से जुड़ गयी।

राजस्थान के झुंझनु जिले के दूरदराज के गांव बगड़ की महिलाओं के पास पढ़ी.लिखी होने के बावजूद स्कूल में पढ़ाने के अलावा काम करने के अन्य अवसर नहीं थें। कुछ नया न करने की छटपटाहट से इन महिलाओं के जीवन में कोई उत्साह नहीं हुआ करता थाए लेकिन गांव में खुले महिला बीपीओ सोर्स फॉर चेंज(एसएफसी) में काम करने के अवसर से बगड़ की महिलाओं को उम्मीद की एक नई किरण नजऱ आने लगी है। दसवीं पास शोभा एकल विद्यालय में बच्चों को पढ़ाती थी, लेकिन अब वे इस बीपीओ से जुड़ चुकी हैं। शोभा कहती हैं, यहां हमें न केवल कम्पयूटर ट्रेनिंग मिलती है, बल्कि अंगेजी भी सिखाई जाती है, पहले मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पढ़ाई के बाद मैं क्या करुं, लेकिन अब कम्पयूटर सीखकर मैं इसी क्षेत्र में काम करुंगी।ं रजनी के दो बच्चे हैं और पति खेती का काम करते हैं। घर के काम से समय निकाल कर वे गांव के बीपीओ में काम करती हैं और जो कुछ वे यहां सीखती हैं, अपने बच्चों को भी उसके बारे में घर जाकर बताती है।ं एसएफसी बगड़ में चलने वाला देश का पहला महिला बीपीओ है, जो देश विदेश के ग्राहकों को डाटा एंट्रीए डाटा मेन्टेनेंसए कॉन्टेक्ट वेरीफीकेशन जैसी सेवाएं प्रदान कर रहा है।

अक्टूबर 2007 में10 महिलाओं से शुरु हुए एसएफसी का दूसरा बैच शुरु चल रहा है और 40 महिलायें फिलहाल यहां काम कर रही हैं। महिलाओं को घर का काम भी करना पड़ता है, इस बात को ध्यान में रखते हुए 4 और 8 घंटे की दो शिट में कार्य करने की सहूलियत दी जाती है। ग्रामीण इलाकों में किसी नये प्रयोग को लेकर स्थानीय लोगों के मन में तरह.तरह के सवाल उठना स्वाभाविक है। बगड़ में रूरल बीपीओ संचालित करने वाली संस्था ृसोर्स फॉर चेंजं के संस्थापकों को कुछ इसी तरह के सवालों का सामना करना पड़ा। आप यहां क्यों आये हैं, आपको क्या मिलता है, क्या आपको सर्टीफिकेट मिलता हैघ्ं बगड़ में देश के पहले महिला बीपीओ की स्थापना करने जा रहे नौजवानों से स्थानीय लोग अक्सर इस तरह के सवाल पूछते थे। ृसोर्स फॉर चेंजं राजस्थान के झुंझनु जिले के पीरामल फांउडेशन द्वारा संचालित ृग्रासरूट डेव्लपमेंट लेबोरेट्रीं (जीडीएल) का हिस्सा है। जीडीएल ग्रामीण जीवन में सकारात्मक बदलावों पर आधारित आइडिया को सहयोग एवं प्रोत्साहन प्रदान करती है।

अमेरिका में जन्मे और वहीं से ऑप्टीकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद आलिम हाजी चाहते तो किसी कार्पोरेट कंपनी में नौकरी करते हुए आराम की जिंदगी बसर कर सकते थे। लेकिन ग्रामीण भारत में एक सकारात्मक बदलाव की चाह उन्हें राजस्थान के दूरदराज के गांव बगड़ तक खींच लाई। बगड़ में आलिम सोलर एनर्जी का प्रोजेक्ट लगाना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि यहां बिजली पहले से मौजूद है और सस्ती भी है, तो सोलर एनर्जी का विचार छोड़कर उन्होंने अन्य विकल्पों के बारे में सोचना शुरु कर दिया। यहीं पर आलिम की मुलाकात कैलीफोर्निया युनीवर्सिटी से अर्थशास्त्र की डिग्री प्राप्त गगन राणा से हुई और दोनों ने मिलकर ृसोर्स फॉर चेंजं की शुरुआत कर दी। उत्साही युवाओं की इस टीम में गगन और आलिम के अतिरिक्त अमेरिका की केस वेस्टर्न रिजर्व युनीवर्सिटी से अर्थशात्र में स्नातक कार्तिक रमनए बेल्जियम में पली.बढ़ी और शिक्षित आशिनी कोठारी एवं बायोटेक्नॉलजी में स्नातक मुंबई के बीपीओ प्रोफेशनल श्रोत कटेवा शामिल हैं। इन युवाओं ने परदेस की गलियां छोड़कर ग्रामीण भारत की पगडंडियों पर चलने का निर्णय किया और अब वे महिलाओं को तकनीक का पाठ पढ़ाकर न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं, बल्कि बगड़ जैसे गांव को एक नई पहचान दी है।

एसएफसी के प्रमुख ग्राहकों में दवा निर्माता कंपनी पीरामलग्रुप , प्रथम एनजीओ, सीआईआई, राजस्थान सरकार और अमेरिका की मेरीलैंड यूनीवर्सिटी शामिल हैं। जबकि आईसीआईए बंगलौर स्थित ड्रीम.ए.ड्रीम और जयपुर की अरावली नामक एनजीओ के साथ बातचीत जारी है। हाल ही में प्रथम के लिए एसएफसी में कार्यरत महिलाओं ने 19 हजार से अधिक फार्म की डाटा एंट्री 21 दिनों में कुशलतापूर्वक संपन्न की है। प्रथम के लिए डाटा एंट्री करने वाली 20 संस्थाओं में सबसे गुणवत्तापूर्ण कार्य के लिए एसएफसी को सराहा भी गया है।
हालांकि ग्रामीण भारत की अन्य महिलाओं की तरह शोभा और रजनी को भी घर की दहलीज से बाहर कदम रखने में अनेक सामाजिक बंदिशों का सामना करना पड़ा। बीपीओ की शुरुआत से पहले स्थानीय माहौल और लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए बगड़ का सर्वे किया गया। सर्वे से पता चला कि ग्रामीण परिवेश में प्रचलित सामाजिक प्रतिबंधों के चलते महिलाओं एवं पुरुषों से एक साथ काम नहीं कराया जा सकता। इसके अलावा यह बात भी आई कि यदि पुरुषों को ट्रेनिंग दी गई तो वे अच्छी नौकरी के फेर में गांव छोड़कर बड़े शहरों की ओर पलायन कर जाएंगे। इसी बात को ध्यान में रखकर महिलाओं को प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया गया, ताकि वे अपने घर परिवार में रहकर स्वयं आत्मनिर्भर बनने के साथ साथ बच्चों को भी बेहतर सीख दे सकें। आशिनी कोठारी इस आइडिया को बिजनेस मॉडल के लिए भी अच्छा मानती हैं। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। टीम के अन्य सदस्यों की अपेक्षा गांव की महिलाओं और उनके परिवार वालों को सहमत करने की जिम्मेदारी आशिनी पर सबसे अधिक थी। टूटी.फूटी हिन्दी में आशिनी कहती हैं कि.हमने बहुत मेहनत किया, सुबह से शाम मेहनत किया।ं

एसएफसी के सीईओ कार्तिक रमन रूरल बीपीओ स्थापित करने की कड़ी में ग्रामीण महिलाओं की ट्रेनिंग को सबसे मुश्किल एवं चुनौतीपूर्ण कार्य मानते हैं। रमन की योजना साल के अंत तक चिड़ावा एवं झुंझनु जैसे आसपास के कस्बों में भी एसएफसी के सेन्टर खोलने की है और आगामी तीन सालों में एसएफसी में 1000 महिलाएं शामिल करने का वे इरादा रखते हैं। वे कहते है कि.ृसोर्स फॉर चेन्ज का केन्द्र ग्रामीण इलाके में होने से ग्राहकों को जल्दी विश्वास नहीं होताए जिसके लिए ट्रायल देकर उन्हें संतुष्ट करना पड़ता है। मीडिया में एसएफसी को एनजीओ बताये जाने से कई बार ग्राहकों का विश्वास जीतने में दिक्कत आती है।ं इसलिए रमन स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि.ृहम कोई एनजीओ नहीं बल्कि एक बिजनेस आर्गेनाइजेशन हैंए जिसका मकसद ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ.साथ दुनिया भर में अपने ग्राहकों को सर्वोत्तम सेवाएं देना है। हमारा दृष्टिकोण तकनीक पर आधारित विभिन्न उद्यमों द्वारा ग्रामीण भारत की 100,000 महिलाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का है।ं

आलिम बताते हैं कि चार घंटे काम करने वाली महिलाओं को दो हजार रुपये और आठ घंटे काम करने वाली महिलाओं को चार हजार रुपये प्रतिमाह दिये जाते हैं। आगे वे कहते हैं कि.ृशुरु में हमें परिवार वालों को महिलाओं को घर से बाहर भेजने के लिए विश्वास में लेने में काफी मेहनत करनी पड़ी, लेकिन जब दूसरे बैच के लिए गांव में प्रचार किया गया तो करीब 70 महिलाएं एडमिशन के लिए पहुंच गई, जिसमें से इंटरव्यू और अभिरुचि टेस्ट के आधार पर 30 महिलाओं का चयन किया गया। एसएफसी में काम करने की इच्छुक महिलाओं को कम कम से कम 10वीं पास होना अनिवार्य है। आशिनी कहती हैं कि.ृयहां की महिलाएं पढ़ी लिखी तो हैं, लेकिन टीचर बनने के अलावा उनके पास अन्य अवसर नहीं थे, लेकिन आज वे रोल मॉडल बन चुकी हैं।ं आशिनी बताती हैं कि समुदाय के जो लोग पहले हम पर विश्वास नहीं करते थेए आज वही हमारी टीम को घर पर खाने के लिए और पारीवारिक उत्सव में बुलाते हैं तो अच्छा लगता है। फिलहाल हिन्दी एवं राजस्थानी में कॉल सेंटर शुरु करने के लिए कुछेक टेलीकॉम ऑपरेटर्स से भी बात चल रही है। आगे एसएफसी की योजना फोटो एडीटिंग एवं ले.आऊट डिजाईन जैसे कामों के लिए जमीन तैयार करना है। बकौल रमन.ृलैंग्वेज स्किल्स की अपेक्षा टैक्नीकल स्किल्स सिखाना ज्यादा आसान होता है।ं भारत के 14.8 बिलीयन की बीपीओ इंडस्ट्री में एसएफसी भले ही एक छोटा प्रयास जान पड़ता हो, लेकिन ग्रामीण भारत के सशक्तिकरण की संभावनाएं इसमें साफ दिखाई पड़ती हैं।

गोबर सने हाथ कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर-मीरा सैनी, बंदिशों को त्याग अपनाई नई राह, बगड़ की बदली तकदीर




बात 2007 की है, आम भारतीय ग्रामीण महिलाओं की तरह 24 वर्षीय मीरा सैनी को भी नहीं मालूम था कि उनका कैरियर किस तरफ जा रहा है। राजस्थान के एक दूरदराज के गाँव बगड़ की मीरा सैनी वैसे तो एक स्कूल टीचर थी, लेकिन उन्हें हमेशा जि़न्दगी उत्साहविहीन सी लगती थी। वे हर पल कुछ नया और अलग करने की सोच में रहती थीं। लेकिन ग्रामीण परिवेश के सीमित संसाधन और परम्परागत सामाजिक बंदिशें उनकी सोच के आड़े आ रही थी। घर की दहलीज को पार करना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन आज मीरा सैनी के अलावा बगड़ गांव की महिलाएं कम्पयूटर की.बोर्ड पर महारथ हासिल कर देश और दुनिया के ग्राहको को बीपीओ सेवाएं दे रही हैं और अब वे अपने समुदाय की रोल मॉडल बन चुकी हैं।

मीरा सैनी ने जब अपने गाँव बगड़ में खुले महिला बीपीओ के बारे में सुना तो उन्होंने टीचर कि नौकरी को टाटा कह दिया और सोर्स फॉर चेंज (एसएफसी) नामक बीपीओ से जुड़ गयीं। मीरा कहती हैं कि.-यहाँ पर आमदनी पहले से कुछ कम भले ही हो, लेकिन कम्पुटर ट्रेनिंग के माध्यम से महिलाओं को आत्मिनिर्भर बानाने का आइडिया मुझे पसंद आया और मैं एसएफसी से जुड़ गयी।

राजस्थान के झुंझनु जिले के दूरदराज के गांव बगड़ की महिलाओं के पास पढ़ी.लिखी होने के बावजूद स्कूल में पढ़ाने के अलावा काम करने के अन्य अवसर नहीं थें। कुछ नया न करने की छटपटाहट से इन महिलाओं के जीवन में कोई उत्साह नहीं हुआ करता थाए लेकिन गांव में खुले महिला बीपीओ सोर्स फॉर चेंज(एसएफसी) में काम करने के अवसर से बगड़ की महिलाओं को उम्मीद की एक नई किरण नजऱ आने लगी है। दसवीं पास शोभा एकल विद्यालय में बच्चों को पढ़ाती थी, लेकिन अब वे इस बीपीओ से जुड़ चुकी हैं। शोभा कहती हैं, यहां हमें न केवल कम्पयूटर ट्रेनिंग मिलती है, बल्कि अंगेजी भी सिखाई जाती है, पहले मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पढ़ाई के बाद मैं क्या करुं, लेकिन अब कम्पयूटर सीखकर मैं इसी क्षेत्र में काम करुंगी।ं रजनी के दो बच्चे हैं और पति खेती का काम करते हैं। घर के काम से समय निकाल कर वे गांव के बीपीओ में काम करती हैं और जो कुछ वे यहां सीखती हैं, अपने बच्चों को भी उसके बारे में घर जाकर बताती है।ं एसएफसी बगड़ में चलने वाला देश का पहला महिला बीपीओ है, जो देश विदेश के ग्राहकों को डाटा एंट्रीए डाटा मेन्टेनेंसए कॉन्टेक्ट वेरीफीकेशन जैसी सेवाएं प्रदान कर रहा है।

अक्टूबर 2007 में10 महिलाओं से शुरु हुए एसएफसी का दूसरा बैच शुरु चल रहा है और 40 महिलायें फिलहाल यहां काम कर रही हैं। महिलाओं को घर का काम भी करना पड़ता है, इस बात को ध्यान में रखते हुए 4 और 8 घंटे की दो शिट में कार्य करने की सहूलियत दी जाती है। ग्रामीण इलाकों में किसी नये प्रयोग को लेकर स्थानीय लोगों के मन में तरह.तरह के सवाल उठना स्वाभाविक है। बगड़ में रूरल बीपीओ संचालित करने वाली संस्था ृसोर्स फॉर चेंजं के संस्थापकों को कुछ इसी तरह के सवालों का सामना करना पड़ा। आप यहां क्यों आये हैं, आपको क्या मिलता है, क्या आपको सर्टीफिकेट मिलता हैघ्ं बगड़ में देश के पहले महिला बीपीओ की स्थापना करने जा रहे नौजवानों से स्थानीय लोग अक्सर इस तरह के सवाल पूछते थे। ृसोर्स फॉर चेंजं राजस्थान के झुंझनु जिले के पीरामल फांउडेशन द्वारा संचालित ृग्रासरूट डेव्लपमेंट लेबोरेट्रीं (जीडीएल) का हिस्सा है। जीडीएल ग्रामीण जीवन में सकारात्मक बदलावों पर आधारित आइडिया को सहयोग एवं प्रोत्साहन प्रदान करती है।

अमेरिका में जन्मे और वहीं से ऑप्टीकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद आलिम हाजी चाहते तो किसी कार्पोरेट कंपनी में नौकरी करते हुए आराम की जिंदगी बसर कर सकते थे। लेकिन ग्रामीण भारत में एक सकारात्मक बदलाव की चाह उन्हें राजस्थान के दूरदराज के गांव बगड़ तक खींच लाई। बगड़ में आलिम सोलर एनर्जी का प्रोजेक्ट लगाना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि यहां बिजली पहले से मौजूद है और सस्ती भी है, तो सोलर एनर्जी का विचार छोड़कर उन्होंने अन्य विकल्पों के बारे में सोचना शुरु कर दिया। यहीं पर आलिम की मुलाकात कैलीफोर्निया युनीवर्सिटी से अर्थशास्त्र की डिग्री प्राप्त गगन राणा से हुई और दोनों ने मिलकर ृसोर्स फॉर चेंजं की शुरुआत कर दी। उत्साही युवाओं की इस टीम में गगन और आलिम के अतिरिक्त अमेरिका की केस वेस्टर्न रिजर्व युनीवर्सिटी से अर्थशात्र में स्नातक कार्तिक रमनए बेल्जियम में पली.बढ़ी और शिक्षित आशिनी कोठारी एवं बायोटेक्नॉलजी में स्नातक मुंबई के बीपीओ प्रोफेशनल श्रोत कटेवा शामिल हैं। इन युवाओं ने परदेस की गलियां छोड़कर ग्रामीण भारत की पगडंडियों पर चलने का निर्णय किया और अब वे महिलाओं को तकनीक का पाठ पढ़ाकर न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं, बल्कि बगड़ जैसे गांव को एक नई पहचान दी है।

एसएफसी के प्रमुख ग्राहकों में दवा निर्माता कंपनी पीरामलग्रुप , प्रथम एनजीओ, सीआईआई, राजस्थान सरकार और अमेरिका की मेरीलैंड यूनीवर्सिटी शामिल हैं। जबकि आईसीआईए बंगलौर स्थित ड्रीम.ए.ड्रीम और जयपुर की अरावली नामक एनजीओ के साथ बातचीत जारी है। हाल ही में प्रथम के लिए एसएफसी में कार्यरत महिलाओं ने 19 हजार से अधिक फार्म की डाटा एंट्री 21 दिनों में कुशलतापूर्वक संपन्न की है। प्रथम के लिए डाटा एंट्री करने वाली 20 संस्थाओं में सबसे गुणवत्तापूर्ण कार्य के लिए एसएफसी को सराहा भी गया है।