रविवार, 22 नवंबर 2015

 माली समाज की उत्पति की धारणायें

अलग-अलग प्रांतों में माली समाज की उत्पति के बारे में अलग-अलग मान्यतायें हैं। राजस्थान में मुस्लिमों के साथ हुए युद्ध के दौरान पकड़े गये राजपूत समाज के सैनिकों ने एक माहुर कहे जाने वाले माली के  साथ मिल कर अपने आप को मुक्त करवाया था तथा बाद में पुष्कर में हुए एक सम्मेलन में सबने माली समाज में रहना स्वीकार किया, जिसकी लिखा-पढी आज भी मौजूद है। यह विक्रमी सम्वत 1287 की बात है। उसके बाद इस समाज के लोगों ने धीरे-धीरे हथियार छोड़ कर खेती व बागवानी का धंधा अपना लिया। ये माहुर माली मथुरा के थे। मथुरा के आस-पास के समस्त माली महाराजा शूर सैनी के वंशज हैं। महाराजा सैनी का साम्राज्य बहुत विशाल था तथा वे वेदों को मानने वाले, धर्मशासन चलाने वाले, न्यायप्रिय ओर लोकतांत्रिक पद्धति में विश्वास करने वाले थे।
सैनी या माली समाज में अलग-अलग प्रदेशों व क्षेत्रों में अलग-अलग गौत्र विद्यमान हैं। वे सब माली ही हैं। माली समाज के भी वैसे अनेक भेद किये गये हैं, लेकिन सारे देश के माली समाज को एक होना होगा। किसी भी गौत्र को नया सुनने पर हमें अचम्भा होना स्वाभाविक है, लेकिन अनेक गौत्रों में भी स्थान भेद या अन्य कारणों से उप गौत्र भी निकले हैं। जैसे अकेले चौहान गौत्र में 40 के करीब उपगौत्र मौजूद हैं। इसलिये जल्दी से यह पता नहीं लगता कि कोई गौत्र माली या सैनी जाति की है या नहीं। आप जो कह रहे हो, वह ककड़वाल या केकरावल गौत्र किस प्रांत की है उसके बारे मे ंपूरी जानकारी देंगे तो उसकी खोजबीन की जा सकेगी।

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