रविवार, 22 नवंबर 2015

फूलमाली (फुलेरिया माली) का संक्षिप्त इतिहास व उत्पत्ति
मानव जाति सदा ही अपने इतिहास को जानने की उत्सुक रही है। जिन जातियों में शिक्षा की प्रचुरता रही उनके ऐतिहासिक दस्तावेज तो आज भी सुरक्षित है, लेकिन जिन जातियों में शिक्षा की कमी रहीं उनमें मुंह-जबानी एवं भाट की पोथी ही दस्तावेज माने जाते है।
फूलमाली (फूलेरिया) समाज की उत्पत्ति .
भाट की पोथी के वृतान्त अनुसार- सतयुग के समय की बात है, कैलाश पर्वत पर शिव-पार्वती जी बिराजमान थे एवं मछिन्दर जी उनकी सेवा में थे। उस समय शिवजी ने अपने शरीर का मैल (भभूति) उतार कर एक लडका (पुतला) बनाया एवं पार्वती जी ने फूल को चीर फाड़ कर एक लडकी बनाई। भगवान शिवजी ने दोनों में प्राणों का संचार किया व लडके का नाम मनन्दीया और लडकी का नाम सेजा (फुला) रखा, जब ये नौ-दस वर्ष के हुए तब भगवान शिव ने सब देवताओं को कैलाश पर्वत पर आमन्त्रित किया और उनकी मौजूदगी में दोनों का विवाह कर दिया। विवाह पश्चात् इनके पच्चीस पुत्र हुए, जिनका गौत्र मावर रखा। बडे पुत्र को भाट बनाया एवं अन्य सभी पुत्र कैलाश पर्वत पर बगीचे में कार्य करते थे, बगीचे में कार्य करने से बागवान कहलाये व फुल माली (बागवान) के वंशज हुए।
कैलाश पर्वत पर क्षत्रियो की लडकियां पुष्प (फूल) लेने को आया करती थी। एक दिन बागवानों ने इन लडकियों को पुष्प लेने से मना किया और कहा कि पुष्प तो हम जब लेने देंगे, जब आप में से हरेक हम एक-एक भाई के साथ सात फेरे (चक्कर) लगाओ तब उन लडकियों ने एक-एक भाई के साथ सात-सात फेरे ले लिये और फूल लेकर घर पहुंची। घर जाकर अपने माता-पिता को सारा वृतान्त सुनाया। माता-पिता ने वृतान्त सुना और कहा इन लडकियों का तो विवाह हो चुका है। सतयुग का समय था माता-पिता ने उन लडकियों को उनके स्वामियों (पतियों) को सौंप दी।
उस समय पार्वती जी ने चौबीस रूप धारण करके, चौबीस भाईयों की डियाडिया (कुलदेवी के नाम से) अलग-अलग रूप में बनी। अलग-अलग डियाडिया की अलग-अलग पूजा-अर्चना होने से आपस में शादी ब्याह करने लगे।
कालान्तर में ऋषि परशुराम जी और क्षत्रियों में वेर-विरोध होने से क्षत्रियों का संहार कर रहे थे। तब क्षत्रियों ने अलग-अलग जातियों में अपनी जाति बताकर अपना बचाव किया। उस समय कुछ क्षत्रिय मालियों में भी आये और कुछ क्षत्रिय अन्य जातियों में भी गये। इसलिये बहुत सी जातियों में आज भी क्षत्रिय के गौत्र चल रहे है।
मालियों में आये क्षत्रिय गौत्र व मालियों के गौत्र, कुल सैंतिस गौत्र उदयपुर में चल रहे है जो इस प्रकार है- 
अलोदिया, अजमेरा, बनेटिया, बडीवाल, बामणोसिया, भभीवाल, भाटी, चाँंगवाल, चौहान, चावडा, दगदी, देवडा, ढेबरिया, गोयल, गहलोत, गांगीया, गढवाल, जामुनिया, कच्छावा, खरनीवाल, खोपरा, मोरी, मोर्य, मावर, परमार, पंवार, सिदडा, सुहालका,सतरावल, सांखला, सोनगरा, सिसोदिया, सामरवाल, थुलीवाल, तंवर, वातरिया, वागडी।
उपरोक्त सभी गौत्र अलग-अलग समय अलग-अलग स्थानों से, सतयुग से अब तक उदयपुर में आकर बसे हैं, जिनका वृतान्त भाट की पुस्तक में अलग-अलग स्थानों पर लिखा है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बड़े भाई सैनिक क्षत्रिय माली समाज का ईतिहास अलग है । कृपा करके सौनिक क्षत्रिय समाज को मावर माली व अन्य मालियो के साथ न जोड़े । ठिक उसी तरह सैनी भी अलग जाति हैं, मालियो से ईनका कोई ताल्लुकात नही है ।

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