संत श्री लक्ष्मिदासजी महाराज
संत शिरोमणि श्री लिखमीदासजी महाराज
भारत एक आध्यात्मिक प्रधान देश रहा है। भारत विभिन्न धर्मों को मानने वाला देश है इसलिये इसे विभिन्नता में एकता की मिसाल कहा जाता है। यहां की सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, साहित्य विशाल एवं व्यापक है। यहां की संस्कृति को दुनिया ने माना व समझा है। यहां की सभ्यता व संस्कृति को दुनिया के कई देशों ने अपनाया है। भारत के राज्य राजस्थान की बात करें तो यहां की माटी में कई संत व वीर पैदा हुये है। यहां की गाथाएं दुनिया जानती है। राजस्थान शौर्य की भूमि रहा है। यहां के कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना गया है। यहां हर गांव में देवी-देवताओं के छोटे-मोटे मंदिर अवश्य मिलेंगे। यहां के लोगों की संस्कृति आध्यात्मिक प्रधान है। यहां के निवासीयों ने हमेशा ही साधु-संतो को माना है, उन्हे गुरु व इश्वर तुल्य समझा है।
माली जाति शुरु से वनों व उपवनों की रक्षा करती आ रही है। माली जाति पर्यावरण प्रेमी भी मानी गई है तथा फुलों व कृषि का व्यवसाय अपनाने के कारण माली जाति का नाम मिला। ब्राह्मण भी पूजा के पूर्व पुष्प माली जाति के व्यक्ति से प्राप्त करता है। माली जाति को ब्राह्मण तुल्य माना गया है। माली जाति कांटो मे रहकर फुलों की तरह मुस्कुराना जानती है। माली जाति भी एक बाग की तरह ही है जिसमें कई कई तरह के पुष्प (साधु-संत) पैदा हुये है। ऐसे ही एक समाज सुधारक संत श्री श्री 1008 लखमीदासजी (लिखमीदासजी) महाराज ने इस जाति में जन्म लेकर इस जाति को गौरवान्वित किया। संत श्री लखमीदासजी महाराज आज माली जाति में सर्वोच्च स्थान रखते है। आपने मालि जाति में जन्म लेकर मोक्षमार्ग के पथिक बनने का गौरव हांसिल किया है। आप पर भारत के पूरे मालि समाज को गर्व है। स्वजाति संतों में माली लखमीदासजी महाराज का स्थान सर्वोच्च है।
आपका जन्म राजस्थान के नागौर जिले के अमरपुरा गांव में रामदासजी सोलंकी के यहां वि. संवत 1801 में आसाढ़ सुदि 15 को हुआ। आपकी माता का नाम नथीदेवी था। आपके बडे भाई का नाम श्री रुपारामजी तथा छोटे भाई का नाम श्री सेवारामजी था। आप शरीर से लंबे व साधारण वेशभूषा धारण करते थे। आपका विवाह श्री परसाजी टांक की सुपुत्री चैनी देवी के साथ हुआ। आपको दो पुत्र तथा एक पुत्री की प्राप्ति हुई। आपके गुरु श्री खीमारामजी महाराज थे। आप गृहस्थ जीवन में रहते हुए उच्च कोटि के संत थे। आपका सादा जीवन उच्च विचार व सहनशीलता ईश्वर तूल्य थी। आपका भगवान के प्रति लगाव आपको महान बनता था। आप मानव जाति के लिए आदर्श है। संत श्री लखमीदासजी महाराज ने आपने जीवन में कई पद, दोहे, कवितांए व भजन लिखे। आप ईश्वर भजन तन्मयता से करते थे। भजन में आप इतने लीन रहते थे कि आपको शरीर की सुध भी नही रहती थी। आप हमेशा ही साधु संत की सेवा में समर्पित रहते थे। साथ ही साथ आप ईश्वरभक्ति में रहते हुए भी गृहस्थ जीवन का भार भी बखुबी उठाते थे। यही गुण आपको सर्वोच्च संत की श्रेणी में खडा करता है। आपने अपने जीवनकाल में करीब एक लाख वाणियों की रचना की। आपका जावन चमत्कारों से भरपूर रहा है।
एक बार साधु ने संत श्री लखमीदासजी महाराज को हसियां(दांतली) को सोने का बना देने का लालच दिया था। इस पर लखमीदासजी महाराज ने साधु से चिमटा मांग कर अपनी ललाट से लगाया तो वह सोने का बन गया और साधु का घमंड चूर-चूर हो गया है और उन्होंने लखमीदासजी महाराज से क्षमा याचना की। दयामूर्ति लखमीदासजी महाराज ने उसे क्षमा कर दिया। आपने एक बार अपने गुरु श्री खीमारामजी को अपने घर भोजन हेतु आमंत्रित किया था। रास्ते में जब नदी आई तो उन्होंने नदी में तोलिया बिछाकर उस पर अपने गुरु को बैठाकर नदी को पार करवाया। इस तरह आप अपने गुरु के तप से भी अधिक तपस्वी बन गये थे।
आप ईश्वरभक्ति व सत्संग में हंमेशा ही लीन रहने वाले थे। एक रात आपको सत्संग पर जाना था लेकिन उसी दिन उनकी खेत में पाणत (सिंचाई) की बारी थी। उनका मन ईश्वर में था और वे सत्संग में जाना चाहते थे। उन्होंने रात में दुसरे व्यक्ति को पाणत के लिए ढूंढा लेकिन नहिं मिला। आखिरकार उन्होने अपने खेतों को भगवान के भरोसे छोडकर सत्संग मे चले ही गये। रात में भगवान ने स्वयं उपस्थित होकर संत श्री लिखमीदारजी महाराज का भेष धारण कर रातभर पाणत किया। श्री लिखमीदासजी रातभर सत्संग मे रहे तथा ईश्वरीय भजनों से लोगो को मग्न किया। कहा जाता है कि एक बार लोकदेवता बाबा रामदेव ने स्वयं उनकी मदद की थी।वे झुंझाले के मेले मे सत्संग हतु जा रहे थे। रास्ते में बेलगाडी टूट गई। आप उसी जगह वीणा बजाकर हरी किर्तन करने लगे। बाबा रामदेव प्रसन्न होकर सुथार का वेश धारण कर आये। आपने सत्गुरु की कृपा व अपने आत्मबल से बाबा रामदेव को पहचान लिया और उनके चरणों मे गिर पडे और झुंझाले पहुंच गये। आप के सतगुरु खीमारामजी डेह गांव के निवासी थे। आपने गोवा गांव में जाकर भक्ति की थी और वहीं पर वि.सं. 1887 आसोज वद 3 को परमधाम को चले गये। आपकी समाधी पर दूर-दूर से लोग अपने कष्टों को दूर करने व दर्शन करने के लिए आते है औऱ यहां हर दर्शनार्थी की मनोकामना पूर्ण होती है।
वर्तमान में सिरोही जिले में शिवगंज शहर में सत श्री लिखमीदासजी महाराज का भव्य मंदिर बना है जहां प्रत्येक वर्ष वैशाख सूदी 13 को मेले का आयोजन होता है। वर्तमान में माली समाज सेवा संस्थान , सिरोही में शीघ्र ही संत श्री लिखमीदासजी महाराज का भव्य मंदिर बनने वाला है। हाल ही में चेन्नई शहर में तथा राजस्थान के कालीन्द्री कस्बे में हस्तिनापुर रोड पर भी संत श्री लिखमीदासजी महाराज का मंदिर बनने वाला है जहां भूमिपूजन हो चुका है। आपने हमेशा ही दीन-दुखियों की मदद की है तथा लोगों की संवा में तत्पर रहे है। आपकी भक्ति ईश्वर तुल्य मानी गई है। आप मानवजाति के लिए एक आदर्श की तरह है।
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