पंवार
- Written by Manohar Lalas
- परमार ।
-पंवारों ने अग्निवंशी राजपूतों में ज्यादा नाम पाया है और राज भी इनका हिंदुस्थान में जियादाह रहा है । राजा महाराजा भी इनमें बिक्रम और भोज जैसे बड़े-बड़े नामी और दातार हुए हैं । इसलिये कहावत है - ‘पृथ्वी बड़ा परमार, पृथ्वी परमारां तणी, एक उजेणी धार, दूजौ आबू बैठणौ ।’ मारवाड़ में पंवार आबू से आये हैं धरणीं बाराह बहुत बड़ा पंवार राजा मारवाड़ का था उसने अपने राज के 9 हिस्से करके अपने भाइयों को बांट दिये थे । नवकोट मारवाड़ का नाम जब ही से निकला है, जिनकी तफसील यह है -
छप्पय : मंडोवर सांवत हुओ अजमेर सिंधसू ।
गढ़ पूगल गजमल्ल हुओ लुद्रवे भान भू ।
आलपाल अर्बुद भोज राजा जालंधर ।
जोगराज धरधाट हुओ हंसू पारक्कर ।
नवकोट किराड़ू संजुगत थिर पंवारां थरपिया ।
धरणी बराह धर भाइयां कोट बांट जुअ जुअ किया ।इस बंटवाड़े से पंवारों का राज टुकड़े टुकड़े होकर कमजोर हो गया । भाटी, चौहान, पडिहार और राठौड़ों वगैरा ने एक एक करके ‘नवोंकोट’’ उनसे छीन लिये । पंवार मारवाड़ में ‘रैयत’ की तरह रहते हैं । इनकी खांपे--खांपे -पंवार । भायल -ये पहिले सिवाने में राज करते थे । सोढ़ा -जिनका ऊमरकोट और थारपार में राज था । सांखला- जो पहिले जांगलू में राज करते थे । ऊमट -जिनका भीनमाल में राज था । कालमा -जिनका सांचौर में राज था । काबा - जिनका रामसींण में राज था । गल - ये पालणपुर की तरफ राज करते थे । डोड । पंवार जो गरीब हैं और जिनके पास जमीन भी थोड़ी है उनमें बेवा औरतों का नाता गोडवाड़, जालोर और मालानी की तरफ होता है । -6/10-11.
-मरू प्रदेश में प्राचीन नगरों विक्रमपुर, लोद्रवा, धार-प्रदेश, ओसियां पर पंवारों के राज्य होने का उल्लेख स्थानीय इतिहास के स्रोतों, ख्यातों, तवारीखों, विरदावलियां तथा दंतकथाओं में भी मिलते हैं । जब विक्रमी 258-457 में कुषाण और हूण लोगों ने पंजाब और गंगा के प्रदेशों पर आक्रमण किया तब ये लोग राजपूताने में आ बसे । -21/4.
-पंवारांरी पैंतीस साख -1. पवार, 2. सोढ़ा, 3. सांखला, 4. भाभा, 5. भायल, 6. पेस, 7. पाणीसबळ, 8. बहिया, 9. वाहळ, 10. छाहड़, 11. मोटसीख 12. हुबड़, 13. सीलारा, 14. जैपाळ, 15. कगवा, 16. काबा, 17. ऊमट, 18. धांधु, 19. धुरिया, 20. भाई, 21. कछोटिया, 22. काळा, 23. काळमुहा, 24. खैरा, 25. खूंट, 26. टल, 27. टेखळ, 28. जागा, 29. छोटा, 30. गूंगा, 31. गैहलड़ा, 32. कलोळया, 33. कूंकण, 34. पीथिळया, 35. डोडकाग, 36. बारड़ । -10/79.
-पैहली इणांरो दादो धरणीबराह, बाहड़मेर जूनो किराड़ू कहीजै, तिणरो धणी हुतो । तिणरै नवै कोट मारवाड़रा हुता । तिणरै बेटो बाहड़ हुवो । तिणसूं आ धरती छूटी । एक बार बाहड़ रायधणपुर कनै गांव झांझमो तठै जाय रिह्यो । पछै बाहड़रो बेटो सोढ़ो तो सूंमरां कनै गयो, तिणनूं सूमरां रातो कोट दियो, ऊमरकोटसूं कोस 14 । नै तठा पछै सोढ़ा हमीरनूं जाम तमाइची ऊमरकोट दियो । बाघ मारवाड़ मांहै पड़िहारां कनै आयो । बाघोरियै वसियो । बाघ पंवार, तिणरी औलादरा सांखला हूवा ।......अजमेर धणी था तिणनूं मु. सुगणो वैरसी बाघावतनूं ले जाय मिळयो । घणा दिन चाकरी की । पछै मुजरो हुवो तरै कह्यो- ‘जांणै सो मांग । तरै इण कह्यो- ‘म्हारो बाप गैचंद बिना खूंन मारियो छै, तिणरी ऊपरा करो, फौज दो ।’ तरै फौज उणै दी । तरै वैरसी माताजीरी इंछना मन में करी - ‘म्हारै बापरो वैर बळै । गैचंद हाथ आवै तो हूं कंवळपूजा करनै श्री सचियायजीनूं माथो चढ़ाऊं ।’ पछै सचियायजी आय सुपनै में हुकम दियो, वांसै हाथ दिया नै कह्यो- ‘काळै वागैख् काळी टोपी, वैहलरै काळी खोळी, काळा बळद जोतरियां, जिंदारै रूप कियां सांम्हां मिळसी । ओ गैचंद छै, तू मत चूकै, कूट मारै।’ पछै वैरसर मूंधियाड़ ऊपर फौज लेने दौड़ियो । सांम्हां उण रूप आयो, सु गैचंद मारियो । पछै ओसियां जात आयो । आप एकंत देहुरो जड़नै कंवळपूजा करणी मांडी। तरै देवीजी हाथ झालियो, कह्यो- ‘म्हैं थारी सेवा-पूजासौं राजी हुवा, तांनै माथो बगसियो, तूं सोनारो माथो कर चाढ़ ।’ आपरै हाथरो संख बैरसीनूं दियो, कह्यो-‘ओ संख वजायनै सांखळो कहाय ।-10/323-5.
-देखें परमार ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें