बुधवार, 29 जनवरी 2020

माली गहलोत

 -जोधपुर में गहलोत माली जियादा हैं ये अपनी पीढ़ियां कूचेरे के गहलोत राव ईसरदास से मिलाते हैं जो तुकों्र्र के डरसे मुसलमान हो गया था उसकी औलाद में से हेमा माली को बालेसर के ईंदों का परधान था राव चूंडाजी को मंडोर का राज दिलाने की कोशिश में शामिल था उसको रावजी ने मंडोर में अमल हो जाने पर अपने इकरार के माफिक जो पोस वदि 10 संवत् 1449 को थाने सालोड़ी में किया गया था । मंडोर के पास बहुतसी जमीन माफी दी थी जिसके ऊपर राव रिड़मलजी के पीछे जबकि राणा कुंभाजी का मंडोर में कबजा हो गया था उनके हाकिम अहडा हींगोला ने कई लागें लगादीं । .....हेमा की औलाद में चुतरा माली महाराज श्री जसवंतसिंघजी के साथ काबुल गया था । एक दिन महाराज ने काबुल के अनारों के बहुत बखान किये । चुतरा हाजिर था उसने अरज की कि ऐसे जोधपुर में भी पैदा हो सकते हैं । महाराज ने उसे मंजूरी देकर 1000 ऊंट काबुल की मिट्टी से भरे हुए जोधपुर भेजे । चुतरा ने उस मिट्टी से कागे में बाग लगाकर काबुली अनार नींबू और बेर पैदा किये और महाराज हजूर में ले गया । महाराज ने अनार पसंद करके बादशाह के नजर पेश किये । बादशा के चखने वालों ने चखकर कहा कि मजा तो काबुली अनार का सा है लेकिन मुरदे की वास आती है । महाराज ने यह बात कबूल की क्योंकि कागे में मुरदे जलाये जाते हैें । चुतरा संवत् 1730 में महाराज के पास जमरोद में मरा । महाराज ने उसकी यादगारी में जमरोद से लेकर मंडोर तक जहां उसका घर था बारह बारह कोस पर पक्के चबूतरे बनवाये और फरमाया कि आयंदा जो बाग बने उसमें चुतरा के नाम का भी एक चबूतरा बनाये । महाराज अभयसिंहजी के जमाने में अक्खा माली ने गुजरात से केतकी, चम्पा और रायण यानी खिरनी के दरखत लाकर मंडोर में लगाये और वहां से एक लंगूर भी ले आया था । मंडोर के लंगूर उसकी नसल से समझे जाते हैं । .....कुछ गहलोत माली मंडोर में तनापीर की कबर के मुजावर हैं वे मुसलमान हैं । मुरदे का बारहवां भी करते हैं और चालीसवां भी । बारहवें में तो मालियों को जिमाते हैं और चालीसवें में फकीर वगैरह मुसलमानों को । कहते हैं कि इनका मोरिसआला पीर की कबर पर फूल चढ़ाया करता था और चढ़ावा भी लेता था । महाराजा उदयसिंघजी और सूरसिंघजी के जमाने में जबकि अकबर बादशाह के अजमेर में आने जाने से पीरों की मानता जियादा हुई और चढ़ावा भी बहुतसा आने लगा तो कुछ मुजावर अजमेर से आकर तनापीर की कबर का दावा करने लगे । वह माली मुसलमान हो गया पर उनको दखल न दिया । मुसलमान हो जाने से उसके भाइबंदों ने उसके हिस्से की जमीन जबत करनी चाही मगर उसने उनको भी यह इकरार करके राजी कर लिया कि मैं न्यात बहन स्वासनी और भाटों को बदस्तूर मानता और औसर मोसर में जिमाता रहूंगा । एक गहलोत माली बीकाजी के साथ मंडोर से काले गोरे भैरवजी की मूरत लेकर गया था । उसकी औलाद बीकानेर में हैं उसमें से एक शख्स को जो महाराजा डूंगरसिंघजी का धाभाई था । सोना भी मिला है । -6/90-1.

5 टिप्‍पणियां:

  1. यह सब माली नहीं है समझे
    वो सब सैनिक क्षत्रिय माली समाज के लोग हैं

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  2. यह सब सैनिक क्षत्रिय माली है न कि ओनली माली

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  3. हमारे पूर्वज भी कुचेरा से निकले थे। पर हमने न धर्म बदला और न जाती ।

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  4. कुचेरा वाले तो राजपूत से माली बने थे

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