गुरुवार, 30 जनवरी 2020

त्ंवर/तुंवर

-पाण्डववंशी राजपूत हैं । इनका राज्य 9वीं से 12वीं शताब्दी तक दिल्ली में रहा । तंवर राजा अनंगपाल द्वितीय ने संवत् 1109 में दिल्ली बसाई। जयपुर क्षेत्र में भी तंवर राजपूत रहते थे । जयपुर का एक भाग तंवरावाटी कहलाता है । -21/78.
-तंवर अपनी वंशावली पांडवों से मिलाते हैं । तंवरों का राज दिल्ली में बहुत मुद्दत तक रहा । कहावत है ‘जब तब दिल्ली तंवरों की ।’ दूसरी कहावत यह भी है कि ‘कीली तो ढीली हुई, तंवर हुए मतहीन ।’ इसका किस्सा इस तरह बयान करते हैं कि एक तंवर राजा से ज्योतिषयों ने कहा था कि एक ऐसी पुल आती है कि जिसमें खूंटी गाडने से आपका राज नहीं जावेगा । क्योंकि वह खूंटी शेष नाग के मस्तक में जा गडेगी । राजा ने एक बड़ी कीली अष्टधात की बनवाई । जब वह पुल आई तो पंडितों ने उसको जमीन में गाड कर राजा को मुबारक बाद दी कि अब आपका राज अचल हो गया। मगर राजा को यकीन नहीं आया और कहा कि मुझको उखाड़कर बताओ और जिद्द करके कीली उखड़वाई तो उसकी नोक खूनसे भरी हुई थी । पंडितों ने कहा- देख लीजिये यह शेषनाग का खून है। राजा ने र्शिंर्मदा होकर उनसे फिर गाड़ने को कहा तो उन्होंने जबाब दिया कि अब वह समय निकल गया कि कीली शेषनाग के सिर पर जाकर गड़े । ‘कीली ढीली’ होने की कहावत उसी दिन से चली है । 6/8.
-रामदेवजी तंवर बड़े करामाती हुए जो रामशाह पीर कहलाते हैं इनकी पूजा मारवाड़, मेवाड़ और मालवे में भी हाती है ।
हर साल भादों के महीने में एक बड़ा मेला रामदेवरे इलाके पोकरण में जहां उनकी समाधि है हुआ करता है । 6/8.
-तुंवर चंद्रवंसी ज्यांरी साख नव -जनवारीअट, चांद, लवो, डाणा, कळपा, भमर इत्यादिक ।.....यजुरवेद माध्यंदिनी साखा, पंच प्रवर यग्योपवीतरा, व्याघ्रपद गोत्र, चील कुळदेवी, खेजड़ी सहित आसोज सुद 8 रै दिन पूजीजै तुंवरारै ।....खतान जातरो ढाढ़ी, सीवोरो जातरौ भाट, श्रीमाळ जातरौ पुरोहित तुंवरांरै ।....दिळीमंडळमें तुंवरांरी चैरासी है । गांव दोयसोै गहलोतांरा दिलीमंडळमें है । राणो नरपतसिंघ उठै हुवो । हमै अेक राणो वाजै, दूजा गहलोत चैधरी वाजै । 15/164.

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