माली
-ये लोग काश्तकारी यानी करसण में ज्यादा हुशियार हैं । हर तरह का नाज, साग-पात, फूल-फल और पेड़ जो मारवाड़ में होते हें, उनका लगाना और तैयार करना जानते हैं । इसी सबब से इनका दूसरा नाम ‘बागवान’ है और बागवानी का काम मालियों या मुसलमान बागवानों के सिवाय और कोई नहीं जानता । ये अपनी पैदायश महादेवजी के मैल से बताते हैं कि जब महादेवजी ने अपने रहने के वास्ते कैलास वब बनाया तो उसकी हिफाजत के लिये अपने मैल से 1 पुतला बना कर उसमें जान डाली और उसका नाम ‘बनमाली’ रखा । फिर उसके दो थोक बनमाली और फूलमाली हो गये । यानी जिन्होंने बन अर्थात् कुदरती जंगलों की हिफाजत की और उनको तरक्की दी वे बनमाली कहलाये और जिन्होंने अपनी अकल और कारीगरी से पड़ी हुई जमीनों में बाग और बगीचे लगाये और उमदा उमदा फूल फल पैदा किये उनकी संज्ञा फूलमाली हुई । पीछे इनमें कुछ छत्री भी परसरामजी के वक्त में जबकि वे अपने बाप के बेर में पृथ्वी को निछत्री करते थे, मिल गये । मुसलमानों के वक्त में और इस कौम की तरक्की हुई उनके डर से बहुत से राजपूत माली बन कर छूटे । उस वक्त कदीम मालियों के वास्ते ‘महुर’ माली का नाम याने पहिले के जो माली थे वे ‘महुर’ कहलाने लगे । महुर के मायने पहिले के हैं । महुर माली जोधपुर में बहुत ही कम बल्कि गिनती के हैं जो कभी किसी वक्त में पूरब की तरफ से आये थे । बाकी सब उन लोगों की औलाद हैं जो ‘राजपूतों’ से माली हुए थे । इनकी 12 जातें- कछवाहा, पड़िहार, सोलंखी, पंवार, गहलोत, सांखला, तंवर, चैहान, भाटी, राठौैड़, देवड़ा और दहिया हैं । इनके ब्रह्म भट्ट नानूराम के हाल मुताबिक जब देवतों और दैत्यों के समंदर मथने से जहर पैदा हुआ था और उसके तेज से लोगों का दम घुटने लगा तो महादेवजी उसको पी गये लेकिन गले से नीचे नहीं उतारा । इस सबब से उनका गला बहुत जलता था । जिसकी ठंडक के लिये उन्होंने दोब भी बांधी और सांप को भी गले से लपेटा लेकिन किसी से कुछ आराम नहीं हुआ तब कुबेर के बेटे स्वर्ण ने अपने बाप के कहने से कंवल के फूलों की माला बना कर महादेवजी को पहिनाई । उससे वह जलन जाती रही । महादेवजी ने खुश हो कर स्वर्ण से कहा -हे वीर! तूने मेरे कंठ में बनमाला पहिनाई है इससे लोक अब तुझको ‘बनमाली’ कहेंगे।’ स्वर्ण की औलाद जिसका खिताब ‘महाबर’ हुआ था कुछ अरसे पीछे ‘माहुर’ कहलाई । मालियों की यही सबसे पुरानी और असली कौम है । -6/80-82.
-माहुर माली राजपुताने की पूरबी रियासतों और उनसे मिले हुए मुलकों में जियादा हैं । मारवाड़ में सिर्फ एक घर ‘माहुर’ माली का है जिसके मोरिसआला खीमा के बेटे खेता को संवत् 1255 के करीब मारवाड़ के माली राजपूत मथुरा से लाये थे । कुछ माली खेता की औलाद से नागौर और सोजत में भी हैं । माहुर की खांपे ‘मुडेरवाल, चूरीवाल, दांतलया, जमालपुरया, दधेड़वा वगैरा जयपुर, अलवर, हांसी, हिसार, दिल्ली, आगरा, मथुरा और बृंदावन की तरफ हैं । ‘माहुर’ मालियों की 24 खांपे हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं -
1. ‘मथुरया’ जो मारवाड़ में है । ये अपने को ‘सुदामा बंशी’ बताते हैं और कहते हैं कि सुदामा कंस का माली था । जब श्रीकृष्ण भगवान मथुरा में कंस को मारने के वास्ते पधारे थे तो सुदामा ने आपको फूलों के हार पहिनाये थे और उसकी बहन कुबजा ने चंदन घिसकर लगाया था । वह कुबड़ी थी । भगवान ने लात मारकर उसकी कूबें निकालदी । फिर जब कंस को मारकर आये तो वे कुबजा के घर ठहरे थे । खेता माली का बेटा इसी खानदान से था उसको ‘राजपूत मालियों ने मथुरा से पुष्करजी में बुला कर अपने शामिल रखा था । 2. अरडिया, 3. छरडिता, 4. मोराणा ये जयपुर में हैं । 5. अमेरया, 6. बिसनोलिया, नारनोल में है, 7. अदोपिया, मालवे में है, 8. धनोरिया, और 9. तुरंगणया, अजमेर में हैं । - 6/82, 86-7,
-मुरार माली - माहुर के खानदान में कई पीढ़ी पीछे मुरार हुआ । इसकी औलाद में कहार यानी भोई सगरबंसी माली पीतलिया माली हैं जो सिर्फ पीतल का ही गहणा पहनते हैं । इस थोक में विशेष करके वे माली हैं कि जिनके बाप दादे परसरामजी के डर से माली हुए थे । इनकी कुछ खांपों के नाम इस प्रकार हैं- 1. फूलेरया, 2. काछी, 3. सगरबंशी, 4. गुजराती, 5. बहरा/महरा, 6. ढीमरिया, 7. रेवा या कीर, जो नदियों के किनारों पर खेती करते हैं । -6/82., 87.
-राजपूत माली: -ये मारवाड़ में बहुत जियादा हैं । इनके बडेरे शहाबुदीन, कुतबदीन, शमशुदीन गयासुदीन और अलावुदीन वगैरा दिल्ली के बादशाहों से लड़ाई हार कर जान बचाने के वास्ते रजपूत से माली हुए थे । माली होना पृथ्वीराज चैहान का राज नष्ट होने के पीछे शुरू हुआ था । यानी जब कि संवत् 1249 में पृथ्वीराज चैहान और उनकी फौज के जंगी राजपूत शहाबुदीन गोरी से लड़कर काम आ गये और दिल्ली अजमेर का राज छूट गया तो उनके बेटे पोते जो तुर्कों के लशकर में पकड़े गये, वे अपना धरम छोड़ने के सिवाय और किसी तरह अपना बचाव न देख कर मुसलमान हो गये जो ‘गोरी पठांण’ कहलाते हैं । उस वक्त कुछ राजपूतों को बादशाह के एक माली ने माली बताकर अपनी सिफारिश से छुड़ा दिया । बाकी पकड़े और भृष्ट किये जाने के भय से हथियार बांधना छोड़कर इधर उधर भागते और दूसरी कौमों में छुपते रहे । उस हालत में जिसको जिस जिस कौम में पनाह मिली, वह उसी कौम में रहकर उसका पेशा करने लगे । ऐसे होते होते बहुत से राजपूत माली हो गये । भाट नानूराम कहता है कि उनको कुतुबुद्दीन बादशाह ने जब कि वह अजमेर की तरफ आया था, संवत् 1256 के करीब अजमेर और नागौर के जिलों में बसने और खेती करने का हुक्म दिया । ये माली ‘गोरी’ भी कहलाते हैं । उन्होंने अपनी अगली पिछली हालत पर गौर करके आयंदे के वास्ते एक मरजाद बांधने की जरूरत देख ये पुष्करजी में जमा हुए और अजमेरा चैहान कुसमा के बेटे महादेव को सभापति बनाकर माह सुदि 7 संवत् 1257 को अपनी बिरादरी के वास्ते कुछ मरजादें बांधीं । उनके माफिक चलने के वास्ते लिखत लिखकर एक ब्रह्मभाट को सौंप दिया, जिसे नानूराम अपना मोरिसआला बताता है । इसके ऊपर पंचों के नाम और यह इबारत है ‘‘कि यह लिखत तमाम पंचों ने इकट्ठे हो कर पुष्करजी में कर दिया है सो नीचे लिखी कल्मों के मुजिब इन लोगों को चलना होगा ।’’ इनमें खास खास कल्मों की तफसील इस प्रकार है-
1. पहिली मरजाद अजमेरा चैहानों की हैं कि पहिले छाक उनके आगे रखी जावे । पहिले तिलक चावल उनके लगे और गद्दी पर भी वही बैठे ।
2. स्वालक पट्टी, परगने नागौर के सिवाय दूसरी पट्टी मेें सगपन नहीं करे ।
3. सगाई के ऊपर सगाई बिना कसूर न होवे और जो कोई नामर्द निकल आवे, लोही बिकार हो जावे, साख गोत अड़े या नालभ्रष्ट हो जावे तो सगाई छोड़ दी जावे ।
4. सगाई की पहरावनी 4, उनमें बड़ी पहरावनी में बोर, कड़ियां, हांसली, घघरा, ओढ़णा, अंगरखी अपनी श्रद्धा मुजिब चढ़ावे, बाकी तीन पहरावणी में एक एक घाघरा, ओढ़नी और अंगरखी ।
5. व्याह की रीत के रुपये दिये जावें । सगाई, व्याह में, जो रीत के देने की श्रद्धा न होवे तो पहिरावणी में दे देंवें। बेटी का बाप पहिले मांगे तो नहीं दें ।
6. जान बींदनी का बाप कहे उतनी ले जावें और बींदनी का बाप जान को तीन दिन से ज्यादा न रखे ।
7. कोई नाता करे तो रुपये बेवा के बाप को देवे । भाभी से नाता न करें ।
8. बेवा लंबी कोचली और कपड़े पक्के रंग के पहिने । फेटिया और हाथ पांव में कड़े और कड़ियां नहीं पहिने ।
9. बेवा नाते जावे जिसकी फारखती के रुपये सासरे वाले नहीं लेवें ।
10.मालन कलियों का घाघरा नहीं पहिने । घाघरे में फेरवाज/संजाब नहीं लगावे । नथ और बजने वाले बिछिये नहीं पहिने ।
11. जिसके औलाद न हो, वह नजदीकी लागती वालों में से किसी को अपने खोले ल ेले और आल यानी दोहिते को भी ।
12. खोले लेने वाला नारियल और गुड़ बांटे और भाईपे को जिमावे ।
13. हल्दी, लहसण और तमाखू नहीं बोवें ।
14. भैंसे को नहीं लादें और बैल को बादी नहीं करें ।
15. मांस दारू खावें पीवें नहीं । जीव हिंसा करे नहीं ।
16. झूठा बरतन किसी का नहीं मांझें । न किसी की धोती धोवें और न कोई नीचा काम करें ।
17. भोइ का काम नहीं करे । डोली न उठावें और मच्छी न पकड़ें ।
18. मालण पीढ़ी के ऊपर बैठकर सौदा न बेचे और पांच जात यानी नाई, धोबी, वांभी, भंगी और ढाढ़ी का ‘कीणा’ नहीं लेवे ।
19. लुगाई के ऊपर बिना कसूर लुगाई न लावें और जो औलाद न हो तो अगली लुगाई की मरजी से लावें ।
20. बिना कसूर लुगाई को नहीं छोड़ें ।
21. मुरदे के 12 दिन पीछे लापसी का जीमण करें । मण भर बाट में मण भर गुड़ और 10 सेर घी डालें । शीरा
पंचों की रजामंदी से करें ।
22. कोई मालन नालभ्रष्ट हो जावे तो उसको न्यात बाहर करदें । फिर उसे कोई न्यात में न लेवें ।
आगे भाटों को सगाई, व्याह और मोसर में देने की कलमें हैं । अखीर पर यह लिखा है कि ‘‘ सारा जणा सोगन खाय, रजपूत कुल छोड़ माली कुल होयने कही कि बादशाह शहाबुद्दीन गोरी म्हाने माली कीना । सो हमें इण लिखत रे ऊपर लिखी हुई मरजादां रे म्हारो कुल चालसी ने जो कोई म्हारे जाया जामता इन मरजाद ने अलोपसी, तो चैमोतर (74) गायां मारयां रो पाप लागसी न श्रीठाकुरजीसूं गंगाजीसूं बेमुख होसी । इण लिखत मुजब चालसी । संवत् 1257 माह सुद 7 ।’’ ऐसा ही फिर एक लिखत जोधपुर के मालियों ने सुवत् 1947 में किया है ।
-कवत्त: ‘‘राजा पृथ्वीराज गोरी शाह बादशाह, समसत मलयात मिल बांधी मरजाद,
कुसमारो महादेव अजमेरों चहूआन मुकदम, इतरी रकम बरताई आद ।1 ।
पृथम बील वयास ब्राह्मण रा बेटा, राजो रतनो थरप्या राव,
कनक जनेऊ दीनी परी, पोथी दे पूजिया पाव ।2 ।
स्वालक पट्टी आदिकर सगपन, और पटीसूं कीनो ऐब,
भाभी पले लगावे नहीं भोले, इतरो पंचां कियो कतेब ।3।
मद्य मांसरी फिरी मनाई, फुलमाली कियो फेर,
सांची कहूं कान दे सुणजो, इतरो लिखत हुओ अजमेर ।4।
भाट धनी दोनों मिल भेला, हाथजोड़ थरप्या जगदीस,
सढ़ी चवदे हजार गोत, मलया तने भटराजे रतने दी अमर आसीस ।5।
इस पंचायत में गांव गांव के माली बुलाये गये थे । महादेव ने सबकी मानमनवार की और उनमें जो जो राजकुली निकले उनको अपने शामिल लिखत लिखने में ले लिया । तीन राजकुली माली परमारया, पडियारया और सोलंखी जाति के लिखत लिखे पीछे जालोर से आ कर शामिल हुए थे । सो इस पहिचान के वास्ते उनकी औरतों का नाक छिदाना बदस्तूर बहाल रखा । फिर यह राजपूत माली दूसरे मालियों को रूखसत करके नागौर में आ कर बसे । सिर्फ महादेव अजमेर में रहा, उसकी औलाद वहां चौधरी है । खेता माहुर, जिसको इन्होंने मथुरा से बुलाकर मुरब्बी बनाया था और जिसके दस्तखत लिखत में महादेव के पीछे है, इनमें मिल गया और महादेव ने बादशाह से अर्ज करके पुष्करजी के पास उसको जमीन दिलवादी । फिर वहां से उसकी औलाद मारवाड़ में आई । राजकुली माली खेता की औलाद के माहुर मालियों को बड़ा समझते हैं और उसके सिवाय और किसी ‘माहुर माली’ में सगपन नहीं करते । -6/83-5.
-राजकुली या गोरी माली की खांपें-
खांप नख नाम मोरिसआला जो नाम उसके बाप का
राजपूत से माली हुआ
1. चैहान अजमेरा कुसमा रावत भालणसी
2. ,, निरवाण हरपाल अणग्या रावल
3. ,, सींघोदिया बीलो दूदा
4. ,, जंबूदिया हालू हरपाल
5. ,, सोनिगरा कोड़ो हरदेव राव
6. ,, वागड़िया देहड़ लाखण
7. ,, इंदोरा सेढु राजुक राव
8. ,, गढ़वाल बुड़लो उरण
9. ,, पीलकनिया देवसी करमसी
10. ,, खंडोलिया गुलियो रावत बेहड़
11 . ,, भवीवाला मोल्हो कन्हड़दे
12 . ,, मकड़ाणां कबल ब्रह्मादी राजा
13. ,, कसूंभीवाला हरू रावत बाला
14. ,, बूभणा नरू बाला रावत
15. ,, सतरावल जालप जाला राव
16 . ,, सेंवरिया कोडू धाराराव
17 . ,, जमालपुरिया छीतर ऊदाराव
18. ,, भराड़िया सिधण नरपत राव
19. ,, सांचोरा भिया करमसी
20. ,, बांवलेचा मोहन कालूराव
21. ,, जेवरिया पालो नानगराव
22. ,, जोजावरिया पुहराज लाडम रावत
23 . ,, खोखरिया पांचो करमा
24 . ,, वीरपुरा ऊदो कालू
25. ,, पाथरिया स्याराज मालसी
26. ,, मंडोवरा गोदो रेडा
27. ,, अलूंध्या उदेसी आलणसी राव
28. ,, मुधरवा बुरसी रावत कौशल
29. ,, किरोडवाल तोड़ो मेहा
30. ,, किरमी कुसलो तोडा
31. ,, बड़खेड़ा नैणो सीया
32. ,, मनवास्या नरसिंघ उरजन
33. ,, देवड़ा देवसी रावत गुणपाल
34. टाक जुजाला दगधी पूनो* रावत माणक
35. ,, मारोठिया जैसिंघ* रावत खोखा
36 . ,, बणेठिया भीखन* रावत सहदेव
37. ,, पालड़िया पूना धारसी
38. ,, नरबरा बील्लो रावत गुणपाल
39 . ,, बोडाणा हरदास राव लाला
40 . ,, कालु नरू रावत बाला
41. राठौड़ कनवजिया बालो* पाला
42. गहलोत कुचेरा ईसर* आल्हाराव
43. ,, पीपाड़ा जालणसी रावत जैसिंघदे
44. कछवाहा कछवाहा धांधू रेवा रावत
45. भाटी सीधड़ा सिंध मुल्तान वरहु वरहपाल
46. ,, जेसलमेरा कंवरसी रावत पदमसी
47. ,, अराईया कंवलसी रावत बच्छ
48 . ,, सवालख्या नगराज राणा बड़सी
49. ,, जादम बाहड़ा* राजा देहड़
50. सोलंखी लुदरेचा सधरी* सोभन
51. ,, लासेचां तिहुणो रावत सिथल
52. पड़ियार जेसलमेरा बांडो सोभन
53. ,, मंडोवरा खींवसी* भादर रावत
54. तुंवर हाडी कंवलसी खेमसी
55. ,, खंडेलवाल चाचो राजा अंबरीख
56. ,, तूंधवाल सोढ़ो* रावत धीरा
57. ,, कनवसिया कान्हो सोहड़
58. पंवार धोकरिया उल्हो राणमलिया
59. ,, रुणेचा कमलसी* रावत काजला
60. दईया दईया कुसलो भगवान
*(उसके या उसके बेटे पोते के दस्तखत संवत् 1257 के लिखत पर हैं). -6/ 83-89.
-रीत रसम: माली लोग सगपन अपनी खांप टालकर करते हैं । सगाई की रीत के रुपये लगते हैं और सगाई गुड़ खोपरे से होती हैं और अफीम भी बांटी जाती है । व्याह में बींद का बाप बींदनी के बाप को डायजे के और फुटकर खर्च के रुपये देता है । बरात दो दिन रहती है । उसको बींदनी का बाप 4 टंक लापसी, खांड रोटी और खीच वगैरा जिमाता है और उसका आधा खरच बींद के बाप से लेता है । औलाद होने पर 5 सेर या इससे कम जियादा गुड़ बांटते हैं । बेटा हो तो आम रिवाज मुल्क के माफिक थाली और बेटी हो तो छाजला बजाते हैं । नहावन 10 दिन का होता है और जो मूला, ज्येष्ठा, अश्लेचा और मघा नक्षत्र में बच्चा पैदा हो तो उसका नहावन ब्राह्मण से महूर्त दियाा कर करते हैं । इनमें मुरदे को पौने नव हाथ या 12 हाथ कपड़े में लपेट कर मसानों में ले जाते हैं और आम दस्तूर के माफिक सिर उत्तर की तरफ करके जलाते हैं । बारहवें दिन ‘‘घड़ोटिया’’ करते हैं, यानी 12 घड़े पानी से भरकर बहन स्वासनी को देते हैं और मकदूर हो तो बिरादरी को भी जिमाते हैं । जियादा आसूदा माली रुपया लगाकर औसर करते हैं । इनमें बेवा का नाता होता है लेकिन खाविंद के खानदान में नहीं । नाता करने वाला ‘चूड़ा’ लाता है । वह सनीचर की रात उस बेवा के पीहर में बेवा को पहिना कर उसके साथ कर देते हैं। फिर वे दोनों मर्द औरत दीवार या बाड़ कूद कर या मकान के पीछे बारी खोद कर उसमें से जाते हैं । दरवाजे में हो कर नहीं जाने पाते । उस वक्त सब घर के लोग अलग हो जाते हैं और फिर उनके पीछे रस्ते में ठीकरा भर कर राख डाल देते हैं । नाते की रीत के रुपये मुकर्रर है जिसमें से सासरेवाले, न्यात के पंच और बाकी पीहर वाले लेते हैं । व्याह के माफिक नाते में भी नाना और दादा का गोत टालते हैं और फिर तीन पीढ़ी तक उस खांप में व्याह या नाता नहीं होता । इनमें खोले सगा या चाचेरा भाई आता है, जो ये दोनों नहीं या नहीं आ सकते हों तो दूर का भाई भी आ जाता है । मगर उसके लिखत में साख डलवाई के रुपये उन लोगों को देने पड़ते हैं । खोला पगड़ी बंधा देने और बिरादरी में गुड़ बांटने से पक्का हो जाता है । इनका पेशा कदीमी तो बागवानी और खेती करने का है मगर अब खान खोदने, पत्थर घड़ने, चेजा चुनने, रंग करने, तसवीर आदि बनाने का काम भी करते हैं और नौकरी, मजदूरी भी करते हैं । मंडोर में अगले राजों के देवलों और थड़ों के पुजारी भी यही लोग हैं । माली जियादातर महादेवजी को पूजते हैं । दारू मांस खाने पीने का तो रिवाज नहीं है मगर बाजे आदमी खाते पीते हैं । माली हथियार नहीं बांधते । औरत मर्द गाढ़ा कपड़ा जियादा पहिनते हैं । सिवाय जालोरी मालियों के और खांपों में औरतों की नाक बहुत कम छिदती हैं । हाडियों की औरत हाथी दांत का चूड़ा नहीं पहिनतीं । मालनें या तो फूल-फल या साग बेचती हैं या मेहनत मजदूरी करती हैं । माली भोणमती कहलाते हैं कि जैसे भोण कि जिसके ऊपर चड़स की लाव चलती है सीधा भी फिर जाता है और उलटा भी, इसी तरह माली की भी मत है । एक कहावत यह भी है कि माली और भूत की मत उलटी होती है कि समझाने से और जियादा जिद पकड़ते हैं । - 6/91-93.
-माहुर माली राजपुताने की पूरबी रियासतों और उनसे मिले हुए मुलकों में जियादा हैं । मारवाड़ में सिर्फ एक घर ‘माहुर’ माली का है जिसके मोरिसआला खीमा के बेटे खेता को संवत् 1255 के करीब मारवाड़ के माली राजपूत मथुरा से लाये थे । कुछ माली खेता की औलाद से नागौर और सोजत में भी हैं । माहुर की खांपे ‘मुडेरवाल, चूरीवाल, दांतलया, जमालपुरया, दधेड़वा वगैरा जयपुर, अलवर, हांसी, हिसार, दिल्ली, आगरा, मथुरा और बृंदावन की तरफ हैं । ‘माहुर’ मालियों की 24 खांपे हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं -
1. ‘मथुरया’ जो मारवाड़ में है । ये अपने को ‘सुदामा बंशी’ बताते हैं और कहते हैं कि सुदामा कंस का माली था । जब श्रीकृष्ण भगवान मथुरा में कंस को मारने के वास्ते पधारे थे तो सुदामा ने आपको फूलों के हार पहिनाये थे और उसकी बहन कुबजा ने चंदन घिसकर लगाया था । वह कुबड़ी थी । भगवान ने लात मारकर उसकी कूबें निकालदी । फिर जब कंस को मारकर आये तो वे कुबजा के घर ठहरे थे । खेता माली का बेटा इसी खानदान से था उसको ‘राजपूत मालियों ने मथुरा से पुष्करजी में बुला कर अपने शामिल रखा था । 2. अरडिया, 3. छरडिता, 4. मोराणा ये जयपुर में हैं । 5. अमेरया, 6. बिसनोलिया, नारनोल में है, 7. अदोपिया, मालवे में है, 8. धनोरिया, और 9. तुरंगणया, अजमेर में हैं । - 6/82, 86-7,
-मुरार माली - माहुर के खानदान में कई पीढ़ी पीछे मुरार हुआ । इसकी औलाद में कहार यानी भोई सगरबंसी माली पीतलिया माली हैं जो सिर्फ पीतल का ही गहणा पहनते हैं । इस थोक में विशेष करके वे माली हैं कि जिनके बाप दादे परसरामजी के डर से माली हुए थे । इनकी कुछ खांपों के नाम इस प्रकार हैं- 1. फूलेरया, 2. काछी, 3. सगरबंशी, 4. गुजराती, 5. बहरा/महरा, 6. ढीमरिया, 7. रेवा या कीर, जो नदियों के किनारों पर खेती करते हैं । -6/82., 87.
-राजपूत माली: -ये मारवाड़ में बहुत जियादा हैं । इनके बडेरे शहाबुदीन, कुतबदीन, शमशुदीन गयासुदीन और अलावुदीन वगैरा दिल्ली के बादशाहों से लड़ाई हार कर जान बचाने के वास्ते रजपूत से माली हुए थे । माली होना पृथ्वीराज चैहान का राज नष्ट होने के पीछे शुरू हुआ था । यानी जब कि संवत् 1249 में पृथ्वीराज चैहान और उनकी फौज के जंगी राजपूत शहाबुदीन गोरी से लड़कर काम आ गये और दिल्ली अजमेर का राज छूट गया तो उनके बेटे पोते जो तुर्कों के लशकर में पकड़े गये, वे अपना धरम छोड़ने के सिवाय और किसी तरह अपना बचाव न देख कर मुसलमान हो गये जो ‘गोरी पठांण’ कहलाते हैं । उस वक्त कुछ राजपूतों को बादशाह के एक माली ने माली बताकर अपनी सिफारिश से छुड़ा दिया । बाकी पकड़े और भृष्ट किये जाने के भय से हथियार बांधना छोड़कर इधर उधर भागते और दूसरी कौमों में छुपते रहे । उस हालत में जिसको जिस जिस कौम में पनाह मिली, वह उसी कौम में रहकर उसका पेशा करने लगे । ऐसे होते होते बहुत से राजपूत माली हो गये । भाट नानूराम कहता है कि उनको कुतुबुद्दीन बादशाह ने जब कि वह अजमेर की तरफ आया था, संवत् 1256 के करीब अजमेर और नागौर के जिलों में बसने और खेती करने का हुक्म दिया । ये माली ‘गोरी’ भी कहलाते हैं । उन्होंने अपनी अगली पिछली हालत पर गौर करके आयंदे के वास्ते एक मरजाद बांधने की जरूरत देख ये पुष्करजी में जमा हुए और अजमेरा चैहान कुसमा के बेटे महादेव को सभापति बनाकर माह सुदि 7 संवत् 1257 को अपनी बिरादरी के वास्ते कुछ मरजादें बांधीं । उनके माफिक चलने के वास्ते लिखत लिखकर एक ब्रह्मभाट को सौंप दिया, जिसे नानूराम अपना मोरिसआला बताता है । इसके ऊपर पंचों के नाम और यह इबारत है ‘‘कि यह लिखत तमाम पंचों ने इकट्ठे हो कर पुष्करजी में कर दिया है सो नीचे लिखी कल्मों के मुजिब इन लोगों को चलना होगा ।’’ इनमें खास खास कल्मों की तफसील इस प्रकार है-
1. पहिली मरजाद अजमेरा चैहानों की हैं कि पहिले छाक उनके आगे रखी जावे । पहिले तिलक चावल उनके लगे और गद्दी पर भी वही बैठे ।
2. स्वालक पट्टी, परगने नागौर के सिवाय दूसरी पट्टी मेें सगपन नहीं करे ।
3. सगाई के ऊपर सगाई बिना कसूर न होवे और जो कोई नामर्द निकल आवे, लोही बिकार हो जावे, साख गोत अड़े या नालभ्रष्ट हो जावे तो सगाई छोड़ दी जावे ।
4. सगाई की पहरावनी 4, उनमें बड़ी पहरावनी में बोर, कड़ियां, हांसली, घघरा, ओढ़णा, अंगरखी अपनी श्रद्धा मुजिब चढ़ावे, बाकी तीन पहरावणी में एक एक घाघरा, ओढ़नी और अंगरखी ।
5. व्याह की रीत के रुपये दिये जावें । सगाई, व्याह में, जो रीत के देने की श्रद्धा न होवे तो पहिरावणी में दे देंवें। बेटी का बाप पहिले मांगे तो नहीं दें ।
6. जान बींदनी का बाप कहे उतनी ले जावें और बींदनी का बाप जान को तीन दिन से ज्यादा न रखे ।
7. कोई नाता करे तो रुपये बेवा के बाप को देवे । भाभी से नाता न करें ।
8. बेवा लंबी कोचली और कपड़े पक्के रंग के पहिने । फेटिया और हाथ पांव में कड़े और कड़ियां नहीं पहिने ।
9. बेवा नाते जावे जिसकी फारखती के रुपये सासरे वाले नहीं लेवें ।
10.मालन कलियों का घाघरा नहीं पहिने । घाघरे में फेरवाज/संजाब नहीं लगावे । नथ और बजने वाले बिछिये नहीं पहिने ।
11. जिसके औलाद न हो, वह नजदीकी लागती वालों में से किसी को अपने खोले ल ेले और आल यानी दोहिते को भी ।
12. खोले लेने वाला नारियल और गुड़ बांटे और भाईपे को जिमावे ।
13. हल्दी, लहसण और तमाखू नहीं बोवें ।
14. भैंसे को नहीं लादें और बैल को बादी नहीं करें ।
15. मांस दारू खावें पीवें नहीं । जीव हिंसा करे नहीं ।
16. झूठा बरतन किसी का नहीं मांझें । न किसी की धोती धोवें और न कोई नीचा काम करें ।
17. भोइ का काम नहीं करे । डोली न उठावें और मच्छी न पकड़ें ।
18. मालण पीढ़ी के ऊपर बैठकर सौदा न बेचे और पांच जात यानी नाई, धोबी, वांभी, भंगी और ढाढ़ी का ‘कीणा’ नहीं लेवे ।
19. लुगाई के ऊपर बिना कसूर लुगाई न लावें और जो औलाद न हो तो अगली लुगाई की मरजी से लावें ।
20. बिना कसूर लुगाई को नहीं छोड़ें ।
21. मुरदे के 12 दिन पीछे लापसी का जीमण करें । मण भर बाट में मण भर गुड़ और 10 सेर घी डालें । शीरा
पंचों की रजामंदी से करें ।
22. कोई मालन नालभ्रष्ट हो जावे तो उसको न्यात बाहर करदें । फिर उसे कोई न्यात में न लेवें ।
आगे भाटों को सगाई, व्याह और मोसर में देने की कलमें हैं । अखीर पर यह लिखा है कि ‘‘ सारा जणा सोगन खाय, रजपूत कुल छोड़ माली कुल होयने कही कि बादशाह शहाबुद्दीन गोरी म्हाने माली कीना । सो हमें इण लिखत रे ऊपर लिखी हुई मरजादां रे म्हारो कुल चालसी ने जो कोई म्हारे जाया जामता इन मरजाद ने अलोपसी, तो चैमोतर (74) गायां मारयां रो पाप लागसी न श्रीठाकुरजीसूं गंगाजीसूं बेमुख होसी । इण लिखत मुजब चालसी । संवत् 1257 माह सुद 7 ।’’ ऐसा ही फिर एक लिखत जोधपुर के मालियों ने सुवत् 1947 में किया है ।
-कवत्त: ‘‘राजा पृथ्वीराज गोरी शाह बादशाह, समसत मलयात मिल बांधी मरजाद,
कुसमारो महादेव अजमेरों चहूआन मुकदम, इतरी रकम बरताई आद ।1 ।
पृथम बील वयास ब्राह्मण रा बेटा, राजो रतनो थरप्या राव,
कनक जनेऊ दीनी परी, पोथी दे पूजिया पाव ।2 ।
स्वालक पट्टी आदिकर सगपन, और पटीसूं कीनो ऐब,
भाभी पले लगावे नहीं भोले, इतरो पंचां कियो कतेब ।3।
मद्य मांसरी फिरी मनाई, फुलमाली कियो फेर,
सांची कहूं कान दे सुणजो, इतरो लिखत हुओ अजमेर ।4।
भाट धनी दोनों मिल भेला, हाथजोड़ थरप्या जगदीस,
सढ़ी चवदे हजार गोत, मलया तने भटराजे रतने दी अमर आसीस ।5।
इस पंचायत में गांव गांव के माली बुलाये गये थे । महादेव ने सबकी मानमनवार की और उनमें जो जो राजकुली निकले उनको अपने शामिल लिखत लिखने में ले लिया । तीन राजकुली माली परमारया, पडियारया और सोलंखी जाति के लिखत लिखे पीछे जालोर से आ कर शामिल हुए थे । सो इस पहिचान के वास्ते उनकी औरतों का नाक छिदाना बदस्तूर बहाल रखा । फिर यह राजपूत माली दूसरे मालियों को रूखसत करके नागौर में आ कर बसे । सिर्फ महादेव अजमेर में रहा, उसकी औलाद वहां चौधरी है । खेता माहुर, जिसको इन्होंने मथुरा से बुलाकर मुरब्बी बनाया था और जिसके दस्तखत लिखत में महादेव के पीछे है, इनमें मिल गया और महादेव ने बादशाह से अर्ज करके पुष्करजी के पास उसको जमीन दिलवादी । फिर वहां से उसकी औलाद मारवाड़ में आई । राजकुली माली खेता की औलाद के माहुर मालियों को बड़ा समझते हैं और उसके सिवाय और किसी ‘माहुर माली’ में सगपन नहीं करते । -6/83-5.
-राजकुली या गोरी माली की खांपें-
खांप नख नाम मोरिसआला जो नाम उसके बाप का
राजपूत से माली हुआ
1. चैहान अजमेरा कुसमा रावत भालणसी
2. ,, निरवाण हरपाल अणग्या रावल
3. ,, सींघोदिया बीलो दूदा
4. ,, जंबूदिया हालू हरपाल
5. ,, सोनिगरा कोड़ो हरदेव राव
6. ,, वागड़िया देहड़ लाखण
7. ,, इंदोरा सेढु राजुक राव
8. ,, गढ़वाल बुड़लो उरण
9. ,, पीलकनिया देवसी करमसी
10. ,, खंडोलिया गुलियो रावत बेहड़
11 . ,, भवीवाला मोल्हो कन्हड़दे
12 . ,, मकड़ाणां कबल ब्रह्मादी राजा
13. ,, कसूंभीवाला हरू रावत बाला
14. ,, बूभणा नरू बाला रावत
15. ,, सतरावल जालप जाला राव
16 . ,, सेंवरिया कोडू धाराराव
17 . ,, जमालपुरिया छीतर ऊदाराव
18. ,, भराड़िया सिधण नरपत राव
19. ,, सांचोरा भिया करमसी
20. ,, बांवलेचा मोहन कालूराव
21. ,, जेवरिया पालो नानगराव
22. ,, जोजावरिया पुहराज लाडम रावत
23 . ,, खोखरिया पांचो करमा
24 . ,, वीरपुरा ऊदो कालू
25. ,, पाथरिया स्याराज मालसी
26. ,, मंडोवरा गोदो रेडा
27. ,, अलूंध्या उदेसी आलणसी राव
28. ,, मुधरवा बुरसी रावत कौशल
29. ,, किरोडवाल तोड़ो मेहा
30. ,, किरमी कुसलो तोडा
31. ,, बड़खेड़ा नैणो सीया
32. ,, मनवास्या नरसिंघ उरजन
33. ,, देवड़ा देवसी रावत गुणपाल
34. टाक जुजाला दगधी पूनो* रावत माणक
35. ,, मारोठिया जैसिंघ* रावत खोखा
36 . ,, बणेठिया भीखन* रावत सहदेव
37. ,, पालड़िया पूना धारसी
38. ,, नरबरा बील्लो रावत गुणपाल
39 . ,, बोडाणा हरदास राव लाला
40 . ,, कालु नरू रावत बाला
41. राठौड़ कनवजिया बालो* पाला
42. गहलोत कुचेरा ईसर* आल्हाराव
43. ,, पीपाड़ा जालणसी रावत जैसिंघदे
44. कछवाहा कछवाहा धांधू रेवा रावत
45. भाटी सीधड़ा सिंध मुल्तान वरहु वरहपाल
46. ,, जेसलमेरा कंवरसी रावत पदमसी
47. ,, अराईया कंवलसी रावत बच्छ
48 . ,, सवालख्या नगराज राणा बड़सी
49. ,, जादम बाहड़ा* राजा देहड़
50. सोलंखी लुदरेचा सधरी* सोभन
51. ,, लासेचां तिहुणो रावत सिथल
52. पड़ियार जेसलमेरा बांडो सोभन
53. ,, मंडोवरा खींवसी* भादर रावत
54. तुंवर हाडी कंवलसी खेमसी
55. ,, खंडेलवाल चाचो राजा अंबरीख
56. ,, तूंधवाल सोढ़ो* रावत धीरा
57. ,, कनवसिया कान्हो सोहड़
58. पंवार धोकरिया उल्हो राणमलिया
59. ,, रुणेचा कमलसी* रावत काजला
60. दईया दईया कुसलो भगवान
*(उसके या उसके बेटे पोते के दस्तखत संवत् 1257 के लिखत पर हैं). -6/ 83-89.
-रीत रसम: माली लोग सगपन अपनी खांप टालकर करते हैं । सगाई की रीत के रुपये लगते हैं और सगाई गुड़ खोपरे से होती हैं और अफीम भी बांटी जाती है । व्याह में बींद का बाप बींदनी के बाप को डायजे के और फुटकर खर्च के रुपये देता है । बरात दो दिन रहती है । उसको बींदनी का बाप 4 टंक लापसी, खांड रोटी और खीच वगैरा जिमाता है और उसका आधा खरच बींद के बाप से लेता है । औलाद होने पर 5 सेर या इससे कम जियादा गुड़ बांटते हैं । बेटा हो तो आम रिवाज मुल्क के माफिक थाली और बेटी हो तो छाजला बजाते हैं । नहावन 10 दिन का होता है और जो मूला, ज्येष्ठा, अश्लेचा और मघा नक्षत्र में बच्चा पैदा हो तो उसका नहावन ब्राह्मण से महूर्त दियाा कर करते हैं । इनमें मुरदे को पौने नव हाथ या 12 हाथ कपड़े में लपेट कर मसानों में ले जाते हैं और आम दस्तूर के माफिक सिर उत्तर की तरफ करके जलाते हैं । बारहवें दिन ‘‘घड़ोटिया’’ करते हैं, यानी 12 घड़े पानी से भरकर बहन स्वासनी को देते हैं और मकदूर हो तो बिरादरी को भी जिमाते हैं । जियादा आसूदा माली रुपया लगाकर औसर करते हैं । इनमें बेवा का नाता होता है लेकिन खाविंद के खानदान में नहीं । नाता करने वाला ‘चूड़ा’ लाता है । वह सनीचर की रात उस बेवा के पीहर में बेवा को पहिना कर उसके साथ कर देते हैं। फिर वे दोनों मर्द औरत दीवार या बाड़ कूद कर या मकान के पीछे बारी खोद कर उसमें से जाते हैं । दरवाजे में हो कर नहीं जाने पाते । उस वक्त सब घर के लोग अलग हो जाते हैं और फिर उनके पीछे रस्ते में ठीकरा भर कर राख डाल देते हैं । नाते की रीत के रुपये मुकर्रर है जिसमें से सासरेवाले, न्यात के पंच और बाकी पीहर वाले लेते हैं । व्याह के माफिक नाते में भी नाना और दादा का गोत टालते हैं और फिर तीन पीढ़ी तक उस खांप में व्याह या नाता नहीं होता । इनमें खोले सगा या चाचेरा भाई आता है, जो ये दोनों नहीं या नहीं आ सकते हों तो दूर का भाई भी आ जाता है । मगर उसके लिखत में साख डलवाई के रुपये उन लोगों को देने पड़ते हैं । खोला पगड़ी बंधा देने और बिरादरी में गुड़ बांटने से पक्का हो जाता है । इनका पेशा कदीमी तो बागवानी और खेती करने का है मगर अब खान खोदने, पत्थर घड़ने, चेजा चुनने, रंग करने, तसवीर आदि बनाने का काम भी करते हैं और नौकरी, मजदूरी भी करते हैं । मंडोर में अगले राजों के देवलों और थड़ों के पुजारी भी यही लोग हैं । माली जियादातर महादेवजी को पूजते हैं । दारू मांस खाने पीने का तो रिवाज नहीं है मगर बाजे आदमी खाते पीते हैं । माली हथियार नहीं बांधते । औरत मर्द गाढ़ा कपड़ा जियादा पहिनते हैं । सिवाय जालोरी मालियों के और खांपों में औरतों की नाक बहुत कम छिदती हैं । हाडियों की औरत हाथी दांत का चूड़ा नहीं पहिनतीं । मालनें या तो फूल-फल या साग बेचती हैं या मेहनत मजदूरी करती हैं । माली भोणमती कहलाते हैं कि जैसे भोण कि जिसके ऊपर चड़स की लाव चलती है सीधा भी फिर जाता है और उलटा भी, इसी तरह माली की भी मत है । एक कहावत यह भी है कि माली और भूत की मत उलटी होती है कि समझाने से और जियादा जिद पकड़ते हैं । - 6/91-93.
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