सोमवार, 26 मार्च 2018

माली समाज की उत्पत्ति

      "माली समाज की उत्पत्ति" के बारे में यूं तो कभी एक राय नहीं निकली फिर भी विभिन्न ग्रंथो अथवा लेखा - जोगा रखने वाले राव, भाट, जग्गा, बडवा, कवी भट्ट, ब्रम्ह भट्ट वकंजर आदि से प्राप्त जानकारी के अनुसार तमाम माली बन्धु भगवान शंकर माँ पार्वती के मानस पुत्र है ! 
      एक कथा के अनुसार दुनिया की उत्पत्ति के समय ही एक बार माँ पार्वती ने भगवान शंकर से एक सुन्दर बाग़ बनाने की हट कर ली तब अनंत चौदस के दिन भगवान शंकर ने अपने शरीर के मेल से पुतला बनाकर उसमे प्राण फूंके ! यही माली समाज का आदि पुरुष मनन्दा कहलाया ! इसी तरह माँ पार्वती ने एक सुन्दर कन्या को रूप प्रदान किया जो आदि कन्या सेजा कहलायी
      तत्पश्चात इन्हें स्वर्ण और रजत से निर्मित औजार कस्सी, कुदाली आदि देकर एक सुन्दर बाग़ के निर्माण का कार्य सोंपा! मनन्दा और सेजा ने दिन रात मेहनत कर निश्चित समय में एक खुबसूरत बाग़ बना दिया जो भगवान शंकर और पार्वती की कल्पना से भी बेहतर बना था! 
       भगवान शंकर और पार्वती इस खुबसूरत बाग़ को देख कर बहुत प्रसन्न हुये! तब भगवान शंकर ने कहा आज से तुम्हे माली के रूप में पहचाना जायेगा ! इस तरह दोनों का आपस में विवाह कराकर इस पृथ्वी लोक में अपना काम संभालने को कहा! आगे चलकर उनके एक पुत्री और बारह पुत्र हुये ! जिनके नाम अनुसार कुल साड़े बारह ( पुत्री की सन्तानों को आधी जाति में गिना जाता हैं और पुत्रों की सन्तानों को बारह जातियों में गिना जाता हैं ) तरह के माली जाति में विभक्त हो गए ! 
      अत: माली समाज को इस उपलक्ष पर अनंत चौदस के दिन माली जयंती अर्थात मनन्दा जयंती मनानी हैं!

प्रसाद:-  फल, खीर, सामूहिक भोज(बजट के अनुसार ) !
स्थान:-   समाज का मंदिर, धर्मशाला, नोहरा, समाज की स्कूल !

[नोट : मनन्दा जयंती पर्तिवर्ष अनंत चौदस ( रक्षाबंधन के एक महीने बाद ) मनाई जाएगी !]


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