सामाजिक चिंतन - भाग- 11
रूढ़ियाँ समझकर अपनाओं
किसी भी प्रकार के आयाम को जारी रखना है तो उसका प्रचलन आँख मँूद कर नहीं अपनाना चाहिये। एक समय था, जब शिक्षा प्राप्त ही नहीं की जा सकती थी, और एक विशेष वर्ण को ही शिक्षित होने का प्रचलन था। सामाजिक क्रांति के जनक महात्मा जोतीराव फुले ने सन् 1848 में प्रथम विद्यालय ऐसा प्रारंभ किया, जिसमें सभी वर्णों के विद्यार्थियों को और बालिकाओं को भी शिक्षित होने का द्वार खुला। ऐसे में जो शिक्षित होता गया, उसने स्वयं की बुद्धि का उपयोग भी किया और प्रचलित रूढ़ियों को भी व्यवहारिक रूप से समझने का प्रयास किया। फल स्वरूप अनेक रूढ़ियों का परित्याग होना प्रारम्भ हो गया।
यह रूढ़ि थी कि ओबीसी./एस.सी./एस.टी. के नागरिकों को शिक्षा पाना पाप माना जाता था, इन वर्गों के लोग शिक्षित नहीं होते थे, क्योंकि मनुवादी संविधान के अनुसार पाप का भागीदार कौन बनना चाहता है। फुले ने वैज्ञानिक आधारो पर लोगों को समझाया, परिणाम स्वरूप शिक्षा को पाप की रूढ़ियों के जाल से बाहर निकालकर सभी वर्णों को शिक्षित होने का अवसर मिला।
समाज में अनेक रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ वर्षो से चले आ रहे है इनका मानव समाज ने जैसे-जैसे शिक्षित होकर परीक्षण किया और जो अनुपयोगी रूढ़ियाँ थी उन्हें परित्याग करके सभ्य जीवन जीने का मार्ग अपनाया।
वर्तमान जनरेशन तो प्रायः अधिकांश अक्षर ज्ञान तो प्राप्त कर ही रही है दुसरे समाजों की उन्नति, तरक्की, उनकी एकता, उनके रीति रिवाज अपनाने की रीतियाँ समझ कर अपने लिये अपने समाज के लिये ऐसी-ऐसी रूढ़ियाँ जैसे पति की मृत्यु होने पर पत्नि को सिर मुंडवाना, दुसरो को मुँह न दिखाना, एक काल कोठरी में निर्वासित जीवन जीना, श्रृंगार से परहेज करना, किसी शुभ मंगल अवसर पर अलग-थलग रहना, विधवा विवाह नहीं करना, सती हो जाना, डाकिन कहलाना, आदि-आदि प्रथाओं को शिक्षित होकर परित्याग करने लगी और इनके उदाहरण सीख-समझ लेकर अनेक विधवाओं ने महात्मा फुले सावित्री माई फुले जैसे सुधारवादी महापुरूषों से ज्ञान प्राप्त कर मानवीय जीवन जीना प्रारम्भ कर दिया यह सब शिक्षा के कारण ही संभव हो सका है। मजेदार बात तो यह है कि जो परिवार शिक्षित है वह अपने परिवार में विधवाओं के लिये स्थापित रूढ़ियों को तोड़कर इनका सम्मान बढ़ा रहे है, फिर भी वर्तमान में कुछ विधवा एवं उनके परिवार शिक्षा संस्कार के अभाव में वहीं रूढ़ियाँ अपनाकर अमानवीय जीवन जी रही है। ऐसी रूढ़ियों में सुधार करने हेतु समाज को चिंतन करना चाहिये।
समाज एवं परिवार को अनेक रीति-रिवाज रूढ़ियाँ पंगु बना रही है। धन की बर्बादी हो रही है।
कई शिक्षित परिवारो ने मृत्यभोज बन्द कर दिये है, ऐसे परिवार जो सुधारवादी, प्रगतिशील है, इनका अनुकरण भी होने लगा है। युग बदलने के साथ ही वैज्ञानिक आधारो को अपनाकर रूढ़ियाँ त्यागने की समझ पैदा हो रही है। फिर भी कई परिवार अपनी आन-बान-शान को बनाये रखने हेतु मृत्युभोज जैसी रूढ़ियाँ अपना कर अज्ञान को बढ़ावा दे रहे है। समय बदल रहा है, समझ विकसित हो रही है। और जो परिवार सुधार की और अग्रसर होता है, वह अनेक कुरीतियाँ छोड़ कर मानवीय पहलुओं को ही अपनाता है। अपने बच्चो को उच्च शिक्षित कर संस्कारवान बनाता है।
अब विवाह संस्कार को ही लीजिये, विगत 30-40 वर्ष पूर्व आदर्श सामूहिक विवाह करने की समझ ही विकसित नही हो पाई थी, इस कारण विवाह दो परिवार के बीच मिलन की बेला पर फिजुल खर्ची की रूढ़िया थी। अब कई समाज सुधारकों, शिक्षित व्यक्तियों, बुद्धिजीवियों ने अपने परिजनों का विवाह सामूहिक रूप से करने का निश्चय कर लिया और जिनका विवाह सामूहिक समारोह में हुआ वह जोड़ा प्रायः विवाह विच्छेद की स्थितियों से अलग होकर सुखमय जीवन जीने लगा, जबकि परिवारिक विवाह के जोड़ो के विवाह विच्छेद प्रायः हो रहे है। यह शिक्षित व्यक्तियों की ही समझ है, कि अपने समाज द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में सामूहिक विवाह रचाकर मानव कल्याण, समाज सेवा का अनुकरणीय कार्य कर रहे है। विवाह की फिजुल खर्ची रोककर बच्चों को उच्च शिक्षित प्रशिक्षित करने में धन व्यय करने की रूढ़ियाँ स्थापित कर रहे है। कई परिवार अब जग दिखावा करने से दूर हो रहे है। कई प्रदेश की सरकार भी अनुदान देकर सामूहिक विवाह करवाने हेतु आगे बढ़ रही है।
ऐसी अनेक रूढ़ियाँ अपनी-समझ से अपनी शिक्षा से जानकर व्यवहारिक वैज्ञानिक चिंतन कर अपना, अपने परिवार का, अपनी जाति का, अपने समाज का, अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाने हेतु जनमानस समझ विकसित करें। आडम्बर, अंधविश्वास, फिजुलखर्ची को रोकने में अगवानी करें।
प्रत्येक व्यक्ति अपने परिजनों को विश्वास में लेकर परम्परागत रूढ़ियों पर समझ विकसित कर, जो आवश्यक एवं बहुउपयोगी रूढ़ि हो, उसे ही अपनाने की परम्परा जारी रखें। अपना चिंतन को सचेत रखकर अच्छा मानव बनने-बनाने का ही संकल्प लेवें। सोंच समझकर ही रूढ़ियाँ अपनाओ।
(रामनारायण चैहान)
महासचिव
महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
।.103ए गाजीपुर, दिल्ली- 96
मों. नं.- 9990952171
Email- phuleshikshanshansthan@gmail.com
रूढ़ियाँ समझकर अपनाओं
किसी भी प्रकार के आयाम को जारी रखना है तो उसका प्रचलन आँख मँूद कर नहीं अपनाना चाहिये। एक समय था, जब शिक्षा प्राप्त ही नहीं की जा सकती थी, और एक विशेष वर्ण को ही शिक्षित होने का प्रचलन था। सामाजिक क्रांति के जनक महात्मा जोतीराव फुले ने सन् 1848 में प्रथम विद्यालय ऐसा प्रारंभ किया, जिसमें सभी वर्णों के विद्यार्थियों को और बालिकाओं को भी शिक्षित होने का द्वार खुला। ऐसे में जो शिक्षित होता गया, उसने स्वयं की बुद्धि का उपयोग भी किया और प्रचलित रूढ़ियों को भी व्यवहारिक रूप से समझने का प्रयास किया। फल स्वरूप अनेक रूढ़ियों का परित्याग होना प्रारम्भ हो गया।
यह रूढ़ि थी कि ओबीसी./एस.सी./एस.टी. के नागरिकों को शिक्षा पाना पाप माना जाता था, इन वर्गों के लोग शिक्षित नहीं होते थे, क्योंकि मनुवादी संविधान के अनुसार पाप का भागीदार कौन बनना चाहता है। फुले ने वैज्ञानिक आधारो पर लोगों को समझाया, परिणाम स्वरूप शिक्षा को पाप की रूढ़ियों के जाल से बाहर निकालकर सभी वर्णों को शिक्षित होने का अवसर मिला।
समाज में अनेक रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ वर्षो से चले आ रहे है इनका मानव समाज ने जैसे-जैसे शिक्षित होकर परीक्षण किया और जो अनुपयोगी रूढ़ियाँ थी उन्हें परित्याग करके सभ्य जीवन जीने का मार्ग अपनाया।
वर्तमान जनरेशन तो प्रायः अधिकांश अक्षर ज्ञान तो प्राप्त कर ही रही है दुसरे समाजों की उन्नति, तरक्की, उनकी एकता, उनके रीति रिवाज अपनाने की रीतियाँ समझ कर अपने लिये अपने समाज के लिये ऐसी-ऐसी रूढ़ियाँ जैसे पति की मृत्यु होने पर पत्नि को सिर मुंडवाना, दुसरो को मुँह न दिखाना, एक काल कोठरी में निर्वासित जीवन जीना, श्रृंगार से परहेज करना, किसी शुभ मंगल अवसर पर अलग-थलग रहना, विधवा विवाह नहीं करना, सती हो जाना, डाकिन कहलाना, आदि-आदि प्रथाओं को शिक्षित होकर परित्याग करने लगी और इनके उदाहरण सीख-समझ लेकर अनेक विधवाओं ने महात्मा फुले सावित्री माई फुले जैसे सुधारवादी महापुरूषों से ज्ञान प्राप्त कर मानवीय जीवन जीना प्रारम्भ कर दिया यह सब शिक्षा के कारण ही संभव हो सका है। मजेदार बात तो यह है कि जो परिवार शिक्षित है वह अपने परिवार में विधवाओं के लिये स्थापित रूढ़ियों को तोड़कर इनका सम्मान बढ़ा रहे है, फिर भी वर्तमान में कुछ विधवा एवं उनके परिवार शिक्षा संस्कार के अभाव में वहीं रूढ़ियाँ अपनाकर अमानवीय जीवन जी रही है। ऐसी रूढ़ियों में सुधार करने हेतु समाज को चिंतन करना चाहिये।
समाज एवं परिवार को अनेक रीति-रिवाज रूढ़ियाँ पंगु बना रही है। धन की बर्बादी हो रही है।
कई शिक्षित परिवारो ने मृत्यभोज बन्द कर दिये है, ऐसे परिवार जो सुधारवादी, प्रगतिशील है, इनका अनुकरण भी होने लगा है। युग बदलने के साथ ही वैज्ञानिक आधारो को अपनाकर रूढ़ियाँ त्यागने की समझ पैदा हो रही है। फिर भी कई परिवार अपनी आन-बान-शान को बनाये रखने हेतु मृत्युभोज जैसी रूढ़ियाँ अपना कर अज्ञान को बढ़ावा दे रहे है। समय बदल रहा है, समझ विकसित हो रही है। और जो परिवार सुधार की और अग्रसर होता है, वह अनेक कुरीतियाँ छोड़ कर मानवीय पहलुओं को ही अपनाता है। अपने बच्चो को उच्च शिक्षित कर संस्कारवान बनाता है।
अब विवाह संस्कार को ही लीजिये, विगत 30-40 वर्ष पूर्व आदर्श सामूहिक विवाह करने की समझ ही विकसित नही हो पाई थी, इस कारण विवाह दो परिवार के बीच मिलन की बेला पर फिजुल खर्ची की रूढ़िया थी। अब कई समाज सुधारकों, शिक्षित व्यक्तियों, बुद्धिजीवियों ने अपने परिजनों का विवाह सामूहिक रूप से करने का निश्चय कर लिया और जिनका विवाह सामूहिक समारोह में हुआ वह जोड़ा प्रायः विवाह विच्छेद की स्थितियों से अलग होकर सुखमय जीवन जीने लगा, जबकि परिवारिक विवाह के जोड़ो के विवाह विच्छेद प्रायः हो रहे है। यह शिक्षित व्यक्तियों की ही समझ है, कि अपने समाज द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में सामूहिक विवाह रचाकर मानव कल्याण, समाज सेवा का अनुकरणीय कार्य कर रहे है। विवाह की फिजुल खर्ची रोककर बच्चों को उच्च शिक्षित प्रशिक्षित करने में धन व्यय करने की रूढ़ियाँ स्थापित कर रहे है। कई परिवार अब जग दिखावा करने से दूर हो रहे है। कई प्रदेश की सरकार भी अनुदान देकर सामूहिक विवाह करवाने हेतु आगे बढ़ रही है।
ऐसी अनेक रूढ़ियाँ अपनी-समझ से अपनी शिक्षा से जानकर व्यवहारिक वैज्ञानिक चिंतन कर अपना, अपने परिवार का, अपनी जाति का, अपने समाज का, अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाने हेतु जनमानस समझ विकसित करें। आडम्बर, अंधविश्वास, फिजुलखर्ची को रोकने में अगवानी करें।
प्रत्येक व्यक्ति अपने परिजनों को विश्वास में लेकर परम्परागत रूढ़ियों पर समझ विकसित कर, जो आवश्यक एवं बहुउपयोगी रूढ़ि हो, उसे ही अपनाने की परम्परा जारी रखें। अपना चिंतन को सचेत रखकर अच्छा मानव बनने-बनाने का ही संकल्प लेवें। सोंच समझकर ही रूढ़ियाँ अपनाओ।
(रामनारायण चैहान)
महासचिव
महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
।.103ए गाजीपुर, दिल्ली- 96
मों. नं.- 9990952171
Email- phuleshikshanshansthan@gmail.com
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