महात्मा फुले एवं स्वामी दयानंद सरस्वती
महात्मा जोतीराव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पूना में हुआ, और स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 टंकारा गुजरात में हुआ, दोनो ही एक ही दशक के थे। दयानंद सरस्वती ने यजुर्वेद का अध्ययन 14 वर्ष की आयु में कर लिया था। और जोतीराव फुले ने वेद-शास्त्र, कुरान, बाइबल का अध्ययन 21 वर्ष की आयु तक कर लिया था। दोनो ही समाज सुधारने हेतु छूवाछूत, जातिभेद, जन्म के आधार पर ऊँच-नीचता और पुर्नविवाह जैसी रीतियों, अंधविश्वासों को समान रूप से मिटाना चाहते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1857 में मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की वे वेदों उपनिषदों के अनुसार समाज सुधार के मिशन को देशभर में आगे फैलाना चाहते थे, वे जगह-जगह जाकर लोगों को समझाकर जागरूक कर रहे थे। सितम्बर 1875 में वे पूना गये। पूना में कट्टरपंथ की ब्राह्मणी व्यवस्था थी। जज रानाडे ब्राह्मण थे, किन्तु वे फुले के सुधारवादी कार्यों के साथ थे। रानाडे़ ने फुले को प्रस्ताव दिया कि स्वामीदयानंद सरस्वती की पूना में शोभा यात्रा निकाली जाये, किन्तु कट्टरपंथियों के डर से शोभायात्रा निकलना संभव नहीं था। रानाडे़ ने जोतीराव फुले का सहारा लिया और उन्हे बताया कि स्वामी जी भी आपकी भाँति छुवाछूत, जातिभेद, जन्म के आधार पर ऊँच-नीचता और पुर्नविवाह जैसे समाज सुधार के कार्य उत्तर भारत में कर रहे है, वे यहाँ भी इन्हीं सुधारों को आगे बढ़ाना चाहते है। इस आधार पर फुले ने रानाडे़ की बात मान ली। किन्तु एक शर्त यह रखी की शोभायात्रा में हम वेदो की जय-जयकार नहीं करेंगे व वेदो की पालकी नहीं उठायेंगे। यह शर्त मान लेने पर 5 सितम्बर 1875 को पूना शहर में धूम-धाम से स्वामीदयानंद सरस्वती की शोभा यात्रा निकली, फुले, रानाडे़ साथ-साथ चल रहे थे उनके अनुयायी कट्टरपंथीयों से सुरक्षा हेतु चैंकन्ना थे।
जब शोभा यात्रा आगे बढ़ रही थी, कट्टरपंथियों ने इसको रोकने हेतु हुल्लड़ शुरू कर दी, फुले अनुयायियों ने इन कट्टरपंथियों की काफी मरम्मत करदी जिसके कारण वे भाग गये और शोभायात्रा पुरे शहर में निकली। स्वामी दयानंद सरस्वती ने जोतीराव फुले का आभार माना।
सत्यशोधक समाज की स्थापना 24 सितम्बर 1873 की जोतीराव फुले ने की थी, जिसका लक्ष्य भी अज्ञान के कारण वेद-शास्त्रों की मनगढंत गलत धारणाओं को समाप्त कर समाज सुधार का कार्य वैज्ञानिक आधारों पर शिक्षित कर आदर्श मानव बनाना था।
आर्य समाज वेदशास्त्रों को मानता है, किन्तु कट्टरपंथि ढपोलपंथियों द्वारा गलत धारणा फैलाकर प्रजा को धोखा, देकर गलतफहमी पैदा कर अंधविश्वास, छुआ-छूत, जातिवाद, ऊँच-नीच, सतीप्रथा, जैसी कुरीतियाँ स्वामी दयानंद सरस्वती का आर्य समाज भी महात्मा फुले की भाँति बुराईयों को मिटाना चाहते थे। दोनो पूर्नविवाह के पक्षधर थे।
इन दोनो समाज सुधारकों के रास्ते अलग-अलग थे, किन्तु लक्ष्य लगभग एक जैसा था, फर्क खासकर यही था, कि आर्य समाज का वेद-शास्त्रों की मूलभावनाओं को समझना और सत्यशोधक समाज का वैज्ञानिक आधारों पर मानवता की सच्ची समाज सेवा कर झंझावात की बेढ़ियों से मानव समाज को मुक्त कराना था। स्वामी दयानंद सरस्वती का अजमेर में 30 अक्टूबर 1883 एवं महात्मा जोतीराव फुले का 28 नवम्बर को पुणे में परिनिर्वाण हुआ।
किन्तु ये दोनो ही नहीं इनके जैसे अनेक समाज सुधारको बुद्ध, कबीर, नानक, रैदास, नारायण स्वामी, पेरियार ई.वी. रामास्वामी, डाॅ. भीमाराव अम्बेड़कर आदि के बताये मार्गों पर चलकर मानव सभ्यता में सुधार का क्रम जारी है। अंध विश्वास कम हो रहा है।
आर्य समाज एवं सत्यशोधक समाज दोनों का मानव कल्याण का मार्ग लगभग समान ही है, मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं रखते है, धार्मिक आडम्बरों के विरोधि है, छूवा-छूत समाप्त कर समस्त मानव को समान अवसर दिलाने के पक्षधर है, सबको शिक्षित एवं वैज्ञानिक आधारों पर जीवन जीने की राह बताते है, बाल विवाह के विरोधि है, पूर्नविवाह कर नारी सम्मान बढ़ाना चाहते है, सती प्रथा के विरोधि है। फिजुलखर्चों के प्रबल विरोधि है, कुरीतियाँ मिटाना चाहते है, मानव-मानव में प्रेम करना सीखाते है, आपसी घृणा समाप्त कराना चाहते है, विज्ञान को मान्यता देते है, सनातन, ईसाई, मुस्लिम धर्म की कट्टरता के विरोधि है परोपकारी जीवन के पक्षधर है, भ्रष्ट व्यवस्था समाप्त करना चाहते हे, इमानदारी के पक्षधर है, नारी सम्मान के प्रबल समर्थक है, महिलाओं को पुरूषों के समान सभी अधिकारों का उपयोग कर बराबरी के हक दिलाना चाहते है, बुराईयों के विरोधि है राष्ट्र का सम्मान बढ़ाना चाहते है इस प्रकार के सुधारवादी कार्य दोनो महात्मा जोतीराव फुले एवं स्वामी दयानंद सरस्वती एक समान रूप से करने के पक्षधर है।
हम इन महापुरूषों के आदर्शों को समझकर, अपनाकर सच्चे जीवन का आनंद ले सकते है। परिवारजनों, पड़ोसियों, क्षेत्रवासियों, समाजजनों को इनके आदर्शों पर चलकर विज्ञानवादी बनकर सादा जीवन उच्च विचार के धनी बन सकते है। अंधविश्वास से छूटकारा पा सकते है।
- रामनारायण चैहान
महासचिव
महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
ए-103, ताज अपार्टमेन्ट गाजीपुर दिल्ली-96
मो. नं.- 9990952171
Email:- phuleshikshansansthan@gmail.com
महात्मा जोतीराव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पूना में हुआ, और स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 टंकारा गुजरात में हुआ, दोनो ही एक ही दशक के थे। दयानंद सरस्वती ने यजुर्वेद का अध्ययन 14 वर्ष की आयु में कर लिया था। और जोतीराव फुले ने वेद-शास्त्र, कुरान, बाइबल का अध्ययन 21 वर्ष की आयु तक कर लिया था। दोनो ही समाज सुधारने हेतु छूवाछूत, जातिभेद, जन्म के आधार पर ऊँच-नीचता और पुर्नविवाह जैसी रीतियों, अंधविश्वासों को समान रूप से मिटाना चाहते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1857 में मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की वे वेदों उपनिषदों के अनुसार समाज सुधार के मिशन को देशभर में आगे फैलाना चाहते थे, वे जगह-जगह जाकर लोगों को समझाकर जागरूक कर रहे थे। सितम्बर 1875 में वे पूना गये। पूना में कट्टरपंथ की ब्राह्मणी व्यवस्था थी। जज रानाडे ब्राह्मण थे, किन्तु वे फुले के सुधारवादी कार्यों के साथ थे। रानाडे़ ने फुले को प्रस्ताव दिया कि स्वामीदयानंद सरस्वती की पूना में शोभा यात्रा निकाली जाये, किन्तु कट्टरपंथियों के डर से शोभायात्रा निकलना संभव नहीं था। रानाडे़ ने जोतीराव फुले का सहारा लिया और उन्हे बताया कि स्वामी जी भी आपकी भाँति छुवाछूत, जातिभेद, जन्म के आधार पर ऊँच-नीचता और पुर्नविवाह जैसे समाज सुधार के कार्य उत्तर भारत में कर रहे है, वे यहाँ भी इन्हीं सुधारों को आगे बढ़ाना चाहते है। इस आधार पर फुले ने रानाडे़ की बात मान ली। किन्तु एक शर्त यह रखी की शोभायात्रा में हम वेदो की जय-जयकार नहीं करेंगे व वेदो की पालकी नहीं उठायेंगे। यह शर्त मान लेने पर 5 सितम्बर 1875 को पूना शहर में धूम-धाम से स्वामीदयानंद सरस्वती की शोभा यात्रा निकली, फुले, रानाडे़ साथ-साथ चल रहे थे उनके अनुयायी कट्टरपंथीयों से सुरक्षा हेतु चैंकन्ना थे।
जब शोभा यात्रा आगे बढ़ रही थी, कट्टरपंथियों ने इसको रोकने हेतु हुल्लड़ शुरू कर दी, फुले अनुयायियों ने इन कट्टरपंथियों की काफी मरम्मत करदी जिसके कारण वे भाग गये और शोभायात्रा पुरे शहर में निकली। स्वामी दयानंद सरस्वती ने जोतीराव फुले का आभार माना।
सत्यशोधक समाज की स्थापना 24 सितम्बर 1873 की जोतीराव फुले ने की थी, जिसका लक्ष्य भी अज्ञान के कारण वेद-शास्त्रों की मनगढंत गलत धारणाओं को समाप्त कर समाज सुधार का कार्य वैज्ञानिक आधारों पर शिक्षित कर आदर्श मानव बनाना था।
आर्य समाज वेदशास्त्रों को मानता है, किन्तु कट्टरपंथि ढपोलपंथियों द्वारा गलत धारणा फैलाकर प्रजा को धोखा, देकर गलतफहमी पैदा कर अंधविश्वास, छुआ-छूत, जातिवाद, ऊँच-नीच, सतीप्रथा, जैसी कुरीतियाँ स्वामी दयानंद सरस्वती का आर्य समाज भी महात्मा फुले की भाँति बुराईयों को मिटाना चाहते थे। दोनो पूर्नविवाह के पक्षधर थे।
इन दोनो समाज सुधारकों के रास्ते अलग-अलग थे, किन्तु लक्ष्य लगभग एक जैसा था, फर्क खासकर यही था, कि आर्य समाज का वेद-शास्त्रों की मूलभावनाओं को समझना और सत्यशोधक समाज का वैज्ञानिक आधारों पर मानवता की सच्ची समाज सेवा कर झंझावात की बेढ़ियों से मानव समाज को मुक्त कराना था। स्वामी दयानंद सरस्वती का अजमेर में 30 अक्टूबर 1883 एवं महात्मा जोतीराव फुले का 28 नवम्बर को पुणे में परिनिर्वाण हुआ।
किन्तु ये दोनो ही नहीं इनके जैसे अनेक समाज सुधारको बुद्ध, कबीर, नानक, रैदास, नारायण स्वामी, पेरियार ई.वी. रामास्वामी, डाॅ. भीमाराव अम्बेड़कर आदि के बताये मार्गों पर चलकर मानव सभ्यता में सुधार का क्रम जारी है। अंध विश्वास कम हो रहा है।
आर्य समाज एवं सत्यशोधक समाज दोनों का मानव कल्याण का मार्ग लगभग समान ही है, मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं रखते है, धार्मिक आडम्बरों के विरोधि है, छूवा-छूत समाप्त कर समस्त मानव को समान अवसर दिलाने के पक्षधर है, सबको शिक्षित एवं वैज्ञानिक आधारों पर जीवन जीने की राह बताते है, बाल विवाह के विरोधि है, पूर्नविवाह कर नारी सम्मान बढ़ाना चाहते है, सती प्रथा के विरोधि है। फिजुलखर्चों के प्रबल विरोधि है, कुरीतियाँ मिटाना चाहते है, मानव-मानव में प्रेम करना सीखाते है, आपसी घृणा समाप्त कराना चाहते है, विज्ञान को मान्यता देते है, सनातन, ईसाई, मुस्लिम धर्म की कट्टरता के विरोधि है परोपकारी जीवन के पक्षधर है, भ्रष्ट व्यवस्था समाप्त करना चाहते हे, इमानदारी के पक्षधर है, नारी सम्मान के प्रबल समर्थक है, महिलाओं को पुरूषों के समान सभी अधिकारों का उपयोग कर बराबरी के हक दिलाना चाहते है, बुराईयों के विरोधि है राष्ट्र का सम्मान बढ़ाना चाहते है इस प्रकार के सुधारवादी कार्य दोनो महात्मा जोतीराव फुले एवं स्वामी दयानंद सरस्वती एक समान रूप से करने के पक्षधर है।
हम इन महापुरूषों के आदर्शों को समझकर, अपनाकर सच्चे जीवन का आनंद ले सकते है। परिवारजनों, पड़ोसियों, क्षेत्रवासियों, समाजजनों को इनके आदर्शों पर चलकर विज्ञानवादी बनकर सादा जीवन उच्च विचार के धनी बन सकते है। अंधविश्वास से छूटकारा पा सकते है।
- रामनारायण चैहान
महासचिव
महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
ए-103, ताज अपार्टमेन्ट गाजीपुर दिल्ली-96
मो. नं.- 9990952171
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