सामाजिक चिंतन भाग-12
समाज सुधार में सामूहिक विवाह का योगदान
रामचरित मानस में अयोध्या के नरेश दशरथ के चार पुत्रों एवं जनक की चार पुत्रियों का विवाह का प्रसंग है, जिसमें चारों पुत्रों का सामूहिक विवाह एक ही दिन एक ही केम्पस में दोनों परिवार ने रचाया था। समय-काल और परिस्थिति बदलती गई विवाह संस्कार भी मान- सम्मान प्रतिष्ठता का सूचक बनता गया और धूम-धाम से प्रत्येक परिवार अपने पुत्र-पुत्री का विवाह अलग से ही करने लगे और महिमा पंडित होने का क्षण भंगुर आन्नद उठाना एक रीति बन गई।
विवाह समारोह के लिए वर-वधु के परिवार दुसरों के मुकाबले और भी बेहतर खर्चिला-ताम-झाम से विवाह करने की होड़ में शामिल होने लगे। परिणाम स्वरूप जिनके पास धनबल आर्थिक सक्षमता मजबूत रही, उन्हें तो खर्च करने पर कोई फर्क नहीं पड़ा, किन्तु जो कमधन वाले मध्यम एवं कमजोर आर्थिक हैसियत वाले परिवार भी इस कुरीति के शिकार होकर अपने पुत्र-पुत्री का विवाह ऋण (उधारी) से पूँजी लेकर कर्ज एवं ब्याज के बोझ से दबते चले गये, अपनी सम्पूर्ण आमदानी से कर्ज का बोझ कम नहीं कर सके, जिसके कारण अपनी भू-सम्पत्ति बेचकर इज्जत बचाने की नौबत में फँस गये बच्चों को शिक्षित भी नहीं कर सके, अपनी आर्थिक हालात सुधारने में पिछड़ते गये। और अनेक दुखों का सामना करना पडा। इस प्रकार विवाह में दहेज का दानव भी अपना कमाल करता गया, जिससे न अभिभावक सुखी और ना ही विवाहित जोड़े सुखी रहे, ऐसी विपत्ति का सामना करने हेतु मजबूरी पैदा हो गई।
सामाजिक क्रान्ति के जनक महात्मा जोतिराव फुले एवं प्रथम शिक्षिका सावित्री माई फुले ने मानव समाज को इस खर्चिले एवं जटिल विवाह पद्धिति से छूटकारा दिलाने हेतु सत्यशोधक समाज की स्थापना कर विवाह ही नहीं जन्म से लेकर मृत्यु तक, एवं गृह प्रवेश जैसे संस्कार की नई रीति स्थापित कर दी। फुले द्वारा बताई गई पद्धति से मानव के खर्चिले संस्कारों को अपनी हैसियत से करने की रीति की स्थापना होने से मानव अपने बच्चों को शिक्षित प्रशिक्षित कर दुनिया की दौड़ में उन्नति के पथ पर अग्रसर होने का एक अवसर स्थापित कर दिया व अनेक परिवार बिना कर्ज ब्याज के विभिन्न संस्कार करने में सफल हुए।
हमारे देश के हिन्दी भाषि प्रदेशों में भी किसी जागरूक समाज सुधारक की सलाह को मानकर समाज द्वारा विगत 30.40 दशक से सामूहिक विवाह करने का प्रचलन प्रारम्भ होकर समाज सुधार की दिशा को मजबूती प्रदान कर दी । परिणय स्वरूप विभिन्न जातियों में अब सामूहिक विवाह करने की होड़ मची हुई है। समाज सेवा का इस प्रकार का बड़ा काम सुलझे हुए परिवार जन करने लगे है। यह एक आदर्श सामूहिक विवाह पद्धति है जो निरन्तर बढ़ रही है। कई शिक्षित बच्चों ने स्वंय सामूहिक विवाह करने में रूचि ली, जिसके कारण अमीर मध्यम एवं कमजोर आर्थिक पक्ष के परिवार का विवाह खर्च बच गया सुखी जीवन का रास्ता मिल गया। ऐसे परिवार शिक्षित परिवार की श्रेणी में शामिल हो रहे है।
अब तो कई प्रदेशों की सरकारो ने भी आदर्श सामूहिक विवाह करने वालों को अनुवाद स्वीकृत करना प्रारम्भ कर दिया है। अब अनेक जगह सरकारी अनुदान एवं सामाजिक सहयोग से आदर्श सामूहिक विवाह सम्पन्न होने लगे है। जो सहज-सरल और शान-शौकत वाला संस्कार साबित होने लगा है । अनेक जागरूक परिवार अब अनेक संस्कारों में फिजूल ख़र्ची करने से बचने लगे हैं, मृत्यु भोज तेजी से बन्द होने लगे है। मुण्डन संस्कार परिवारिक होने लगे, गृह प्रवेश में फिजूल ख़र्ची पर रोक लगा दी है, ऐसी अनेक कुरितियां समाप्त होने से मानव समाज प्रसन्नता पूर्वक जीवन यापन कर रहे है।
समाज सुधार हेतु प्रत्येक व्यक्ति चिंतन कर कुरीतियाँ फिजूल ख़र्ची, झूठी शान बपने आप का महिपमण्डन जैसे संस्कारों का त्याग कर आदर्श मानव बनकर प्रगतिशील समाज की और आगे बढ़ाकर अपने बच्चों को उच्च शिक्षित कर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ायें जो सुख-शान्ति का जीवन जीने में सहयोगी साबित हो।
आइये हम भी अपने बच्चों का विवाह केवल सामूहिक विवाह समारोह में ही करने कुरितियाँ मिटाने का संकल्प लेकर मानव प्रगति में भागीदार बने।
(रामनारायण चैहान)
महासचिव
महात्मा फुले समाजिक शिक्षण संस्थान
।.103 ताज अर्पाटमेन्ट गाजीपुर दिल्ली- 96
समाज सुधार में सामूहिक विवाह का योगदान
रामचरित मानस में अयोध्या के नरेश दशरथ के चार पुत्रों एवं जनक की चार पुत्रियों का विवाह का प्रसंग है, जिसमें चारों पुत्रों का सामूहिक विवाह एक ही दिन एक ही केम्पस में दोनों परिवार ने रचाया था। समय-काल और परिस्थिति बदलती गई विवाह संस्कार भी मान- सम्मान प्रतिष्ठता का सूचक बनता गया और धूम-धाम से प्रत्येक परिवार अपने पुत्र-पुत्री का विवाह अलग से ही करने लगे और महिमा पंडित होने का क्षण भंगुर आन्नद उठाना एक रीति बन गई।
विवाह समारोह के लिए वर-वधु के परिवार दुसरों के मुकाबले और भी बेहतर खर्चिला-ताम-झाम से विवाह करने की होड़ में शामिल होने लगे। परिणाम स्वरूप जिनके पास धनबल आर्थिक सक्षमता मजबूत रही, उन्हें तो खर्च करने पर कोई फर्क नहीं पड़ा, किन्तु जो कमधन वाले मध्यम एवं कमजोर आर्थिक हैसियत वाले परिवार भी इस कुरीति के शिकार होकर अपने पुत्र-पुत्री का विवाह ऋण (उधारी) से पूँजी लेकर कर्ज एवं ब्याज के बोझ से दबते चले गये, अपनी सम्पूर्ण आमदानी से कर्ज का बोझ कम नहीं कर सके, जिसके कारण अपनी भू-सम्पत्ति बेचकर इज्जत बचाने की नौबत में फँस गये बच्चों को शिक्षित भी नहीं कर सके, अपनी आर्थिक हालात सुधारने में पिछड़ते गये। और अनेक दुखों का सामना करना पडा। इस प्रकार विवाह में दहेज का दानव भी अपना कमाल करता गया, जिससे न अभिभावक सुखी और ना ही विवाहित जोड़े सुखी रहे, ऐसी विपत्ति का सामना करने हेतु मजबूरी पैदा हो गई।
सामाजिक क्रान्ति के जनक महात्मा जोतिराव फुले एवं प्रथम शिक्षिका सावित्री माई फुले ने मानव समाज को इस खर्चिले एवं जटिल विवाह पद्धिति से छूटकारा दिलाने हेतु सत्यशोधक समाज की स्थापना कर विवाह ही नहीं जन्म से लेकर मृत्यु तक, एवं गृह प्रवेश जैसे संस्कार की नई रीति स्थापित कर दी। फुले द्वारा बताई गई पद्धति से मानव के खर्चिले संस्कारों को अपनी हैसियत से करने की रीति की स्थापना होने से मानव अपने बच्चों को शिक्षित प्रशिक्षित कर दुनिया की दौड़ में उन्नति के पथ पर अग्रसर होने का एक अवसर स्थापित कर दिया व अनेक परिवार बिना कर्ज ब्याज के विभिन्न संस्कार करने में सफल हुए।
हमारे देश के हिन्दी भाषि प्रदेशों में भी किसी जागरूक समाज सुधारक की सलाह को मानकर समाज द्वारा विगत 30.40 दशक से सामूहिक विवाह करने का प्रचलन प्रारम्भ होकर समाज सुधार की दिशा को मजबूती प्रदान कर दी । परिणय स्वरूप विभिन्न जातियों में अब सामूहिक विवाह करने की होड़ मची हुई है। समाज सेवा का इस प्रकार का बड़ा काम सुलझे हुए परिवार जन करने लगे है। यह एक आदर्श सामूहिक विवाह पद्धति है जो निरन्तर बढ़ रही है। कई शिक्षित बच्चों ने स्वंय सामूहिक विवाह करने में रूचि ली, जिसके कारण अमीर मध्यम एवं कमजोर आर्थिक पक्ष के परिवार का विवाह खर्च बच गया सुखी जीवन का रास्ता मिल गया। ऐसे परिवार शिक्षित परिवार की श्रेणी में शामिल हो रहे है।
अब तो कई प्रदेशों की सरकारो ने भी आदर्श सामूहिक विवाह करने वालों को अनुवाद स्वीकृत करना प्रारम्भ कर दिया है। अब अनेक जगह सरकारी अनुदान एवं सामाजिक सहयोग से आदर्श सामूहिक विवाह सम्पन्न होने लगे है। जो सहज-सरल और शान-शौकत वाला संस्कार साबित होने लगा है । अनेक जागरूक परिवार अब अनेक संस्कारों में फिजूल ख़र्ची करने से बचने लगे हैं, मृत्यु भोज तेजी से बन्द होने लगे है। मुण्डन संस्कार परिवारिक होने लगे, गृह प्रवेश में फिजूल ख़र्ची पर रोक लगा दी है, ऐसी अनेक कुरितियां समाप्त होने से मानव समाज प्रसन्नता पूर्वक जीवन यापन कर रहे है।
समाज सुधार हेतु प्रत्येक व्यक्ति चिंतन कर कुरीतियाँ फिजूल ख़र्ची, झूठी शान बपने आप का महिपमण्डन जैसे संस्कारों का त्याग कर आदर्श मानव बनकर प्रगतिशील समाज की और आगे बढ़ाकर अपने बच्चों को उच्च शिक्षित कर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ायें जो सुख-शान्ति का जीवन जीने में सहयोगी साबित हो।
आइये हम भी अपने बच्चों का विवाह केवल सामूहिक विवाह समारोह में ही करने कुरितियाँ मिटाने का संकल्प लेकर मानव प्रगति में भागीदार बने।
(रामनारायण चैहान)
महासचिव
महात्मा फुले समाजिक शिक्षण संस्थान
।.103 ताज अर्पाटमेन्ट गाजीपुर दिल्ली- 96
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