मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

सम्राट अशोक ‘कुशवाहा’
राष्ट्रवादी और जातिमुक्त राजनीति का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सम्राट अशोक की जाति का पता लगा चुकी है. दूसरे दल गौतम बुद्ध, आर्यभट्ट, चाणक्य, परशुराम, लव-कुश और महाराणा प्रताप आदि की जाति खोजने में जुट गए हैं

पिछले दिनों जब बिहार में भाजपा के सहयोग-समर्थन व मार्गदर्शन में चक्रवर्ती सम्राट अशोक की जाति की व्याख्या करते हुए राष्ट्रीय कुशवाहा परिषद की ओर से उनका 2320वीं जयंती समारोह (17 मई) मनाने के लिए होर्डिंग लगे और उस पर भाजपा नेताओं की तस्वीरें नजर आईं.
     महान सम्राट अशोक तक को जाति की परिधि में बांधने की कोशिशें हो रही हैं. चक्रवर्ती सम्राट अशोक को कुशवाहा यानी कोईरी जाति की परिधि में कैद कर

विधायक सूरज नंदन प्रसाद कुशवाहा एक ही वाक्य में रोमिला थापर से लेकर आरएस शर्मा जैसे इतिहासकारों के अध्ययन को खारिज कर देते हैं. उनका दावा है कि उनकी पार्टी के पास ठोस सबूत है कि सम्राट अशोक कुशवाहा ही थे

दिल्ली से इतिहासकार रोमिला थापर, जिन्होंने सम्राट अशोक पर विस्तार से अध्ययन कर एक किताब लिखी है. वह कहती रहीं कि अशोक की जाति का कहीं से कोई पता नहीं चलता. पटना निवासी प्रख्यात इतिहासकार आरएस शर्मा के अध्ययन संदर्भों का उदाहरण देकर पटना के ही इतिहासकार राजेश्वर प्रसाद सिंह कहते रहे कि अशोक के पूर्वज चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म एक शूद्र दासी की कोख से हुआ था, इसलिए उनके कुशवाहा होने का तो सवाल नहीं. दूसरी तरफ पटना में इतिहास पढ़ाने वाले विधायक सूरज नंदन प्रसाद कुशवाहा जैसे भाजपा के बौद्धिक चिंतक यह कहकर एक ही वाक्य में रोमिला थापर से लेकर आरएस शर्मा जैसे इतिहासकारों के अध्ययन को खारिज करते रहे कि उनकी पार्टी के पास ठोस सबूत है कि सम्राट अशोक कुशवाहा ही थे.

 अशोक पर तो कुशवाहा समाज पहले से दावेदारी करता ही रहा है. समाज उनके नाम पर आयोजन भी करता-कराता रहता था. जल्द ही अशोक कुशवाहा समाज के एक बड़े हिस्से के नायक हो जाएंगे.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता इसे ऐसे समझाते हैं, ‘देखिए, बिहार में वर्षों से लव-कुश समीकरण चल रहा है. यह दो जातियों कोईरी और कुर्मी के मेल-मिलाप वाला समीकरण है. इसके चैंपियन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार माने जाते रहे हैं. हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में इस समीकरण से उनका गणित हल नहीं हो सका.’ इस पर वह सवाल उठाते हुए पूछते हैं, ‘बताइए लव और कुश, दोनों भाई, दोनों क्षत्रीय कुल के रामचंद्र के वंशज, तो भला उनमें से एक कुर्मी और दूसरा कोईरी कैसे बन गया.
‘सम्राट अशोक वाले मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं. लोकसभा चुनाव में कोईरी-कुर्मी गठजोड़ को  उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता को आगे कर के तोड़ा जा चुका है.
सम्राट वाला फॉर्मूला निकाला गया है. पटना में अशोक की प्रतिमा भी लगाने को कह रहे हैं.

‘बिहार में वर्षों से लव-कुश समीकरण चल रहा है. बताइए लव और कुश, दोनों भाई, दोनों क्षत्रिय कुल के रामचंद्र के वंशज, तो भला उनमें से एक कुर्मी और दूसरा कोईरी कैसे बन गया’

संयोग से उनसे पटना के होटल अशोक की लॉबी में ही बात हो रही थी. भाजपा आज अशोक की जाति खोजने के बाद उनकी प्रतिमा लगा देने को बेताब और बेचैन है. सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि बिहार में तकरीबन आठ सालों तक सत्ता में रहने के बावजूद अशोक के नाम पर इस इकलौते सरकारी होटल का उद्धार नहीं कराया जा सका और न ही भाजपा ने कभी इस बारे में बात की. इतना ही नहीं अशोक के नाम पर पटना में एक मुख्य सड़क ‘अशोक राजपथ’ की दशा सुधारने की चिंता भी किसी ने कभी व्यक्त नहीं की.

 हर जाति में. 30 के दशक में ही त्रिवेणी संघ बना था, जिसमें कुर्मी और कोईरी जैसी जातियों ने कुर्मी क्षत्रीय और कुशवाहा क्षित्रय बनने का आंदोलन चलाया था. तब वे क्षत्रीय बनकर सत्ता और संपत्ति में अपना हक पाना चाहते थे. इसमें वे सफल भी हुए. संपत्ति में हिस्सेदारी हुई और अब सत्ता में हिस्सेदारी के लिए ये प्रपंच किया जा रहा है.’ वह कहते हैं, ‘पिछड़ी जातियों में यादव और कुर्मी द्वारा सत्ता पाने के बाद अब कुशवाहा समुदाय को भी यह लगता है कि वे भी इसके हकदार हैं. इसके लिए सम्राट अशोक जैसे नाम से खुद को जोड़ने से यह भाव उपजाने की कोशिश होगी कि यह जाति सबसे बड़े सम्राट की जाति का है. वह सत्ता संभालने के लायक है और आगे के लिए स्वाभाविक दावेदार है.’ सुमन बताते हैं कि राजनीति में यह सब चलता रहता है. मौर्य और अशोक को लेकर कुशवाहा समाज का एक बड़ा हिस्सा वर्षों से यह सब करता रहा है.

 इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो बिहार में कुशवाहा समुदाय ऐसा पहली बार नहीं कर रहा. न ही पहली बार ऐसा हुआ है कि कुशवाहा परिषद जैसी संस्था को सामने कर,  कुर्मी चेतना रैली आदि नीतीश कुमार के जीवन का प्रमुख टर्निंग प्वाइंट रहा है. इसके अलावा कुर्मी समाज द्वारा पटेल को अपनी जाति के खाके में कैद करने का अभियान भी चर्चित मामला रहा है. वीर कुंवर सिंह को राजपूतों द्वारा अपनी जाति की परिधि में कैद करने के लिए उनके नाम से संगठन बनाकर जयंती-पुण्यतिथि मनाने का रिवाज अब पुराना हो चला है. निषादों द्वारा रामायण के निषाद से लेकर वेदव्यास तक को अपनी जाति का मानना और अपने सामर्थ्य के हिसाब से इसे उभारने की कोशिश करना भी बिहार की राजनीति का ही एक हिस्सा है.

1 टिप्पणी:

  1. अपने सैनी समाज में ऐतिहासिक महापुरुष एवं राजा महाराजा कौन-कौन से हुए थे। इससे संबंधित कोई लेख हो तो कृपया सेंड करें और अपना संपर्क नंबर दे।

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