कुशवाहा वंश (गोत्र- मानव)
कुशवाहा वँश :-
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( कुशवाहा वंश (गोत्र- मानव):- मानव, कुशवाहा, देशवाल, कौशिक व करकछ
आदिकालीन वंश- सूर्यवंश से उत्पन्न दो राजवंश कुशवाहा तथा गहलोत )
रवा राजपूत में शामिल छ राजवंश तथा समय के साथ पैदा हुई उनकी शाखाऐं इस प्रकार है-
1. आदिकालीन वंश- सूर्यवंश से उत्पन्न दो राजवंश गहलोत तथा कुशवाहा
गहलोत राजवंश का आदिकालिन गोत्र वैशम्पायन है तथा कुशवाहा राजवंश का आदिकालीन गोत्र मानव/मनू है
2. आदिकालीन वंश- चंद्रवंश से उत्पन्न दो राजवंश तॅवर तथा यदुवंश
तॅवर राजवंश का आदिकालिन गोत्र व्यास है तथा यदु राजवंश का आदिकालीन गोत्र अत्रि है
3. आदिकालीन वंश- अग्निवंश से उत्पन्न दो राजवंश चौहान तथा पंवार
चौहान राजवंश का आदिकालिन गोत्र वत्स/वक्च्हस है तथा पॅवार राजवंश का आदिकालीन गोत्र वशिष्ठ है.
शाखाओं का गोत्र के रूप में प्रयोग
उपरोक्त राजवंशो को बाद में आवश्यकता अनुसार कुछ शाखाओं में विभाजित किया गया और दुर्भाग्य से इन शाखाओं का गोत्र के रूप में प्रयोग होने लगा है
गहलोत वश (गोत्र-वैस्पायन):- वैस्पायन, गहलोत, अहाड, बालियान, व ढाकियान
कुशवाहा वंश (गोत्र- मानव):- मानव, कुशवाहा, देशवाल, कौशिक व करकछ
तॅवर वंश (गोत्र-व्यास):- व्यास, तंवर, सूरयाण, माल्हयाण, सूमाल, बहुए, रोझे, रोलियान, चौवियान, खोसे, छनकटे, चौधरान, ठकुरान, पाथरान, गंधर्व, कटोच, बीबे, पांडू, झब्बे, झपाल, संसारिया व कपासिया
यदुवंश (गोत्र-अत्री):- अत्री, यदु, पातलान, खारीया, इन्दारिया, छोकर, व माहियान
चौहान वंश (गोत्र-वत्स):- वत्स, चौहान, खारी या खैर, चंचल, कटारिया, बूढियान, बाडियान या बाढियान, गरूड या गरेड, कन्हैडा या कान्हड, धारिया, दाहिवाल, गांगियान, सहचरान व माकल या माकड या भाकड या बाकड
पंवार वंश (गोत्र-वशिष्ठ):- वशिष्ठ, पंवार, टोंडक, वाशिष्ठान, ओजलान, डाहरिया, उदियान या उडियान, किरणपाल व भतेडे.
उपरोक्त सभी वस्तुत: छ राजवशों की शाखाऐं है परन्तू अव वैवाहिक सुविधा के कारण इनका प्रयोग गोत्र के रूप में भी किया जाता है। वास्तव में ये शाखाऐं गोत्र नही है। इस कारण भूल वश एक गौत्र की अलग अलग शाखा मे ही शादी विवाह होने लगे हैं।
अनेक क्षेत्रों मे इन छ: राजवंशो के राजपूत स्वयं को रवा राजपूत के बजाय अपने राजवश के नाम का सम्बोधन जैसे तंवर, चौहान, पवांर आदि, करते हैं।
कुशवाहा वँश :-
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( कुशवाहा वंश (गोत्र- मानव):- मानव, कुशवाहा, देशवाल, कौशिक व करकछ
आदिकालीन वंश- सूर्यवंश से उत्पन्न दो राजवंश कुशवाहा तथा गहलोत )
रवा राजपूत में शामिल छ राजवंश तथा समय के साथ पैदा हुई उनकी शाखाऐं इस प्रकार है-
1. आदिकालीन वंश- सूर्यवंश से उत्पन्न दो राजवंश गहलोत तथा कुशवाहा
गहलोत राजवंश का आदिकालिन गोत्र वैशम्पायन है तथा कुशवाहा राजवंश का आदिकालीन गोत्र मानव/मनू है
2. आदिकालीन वंश- चंद्रवंश से उत्पन्न दो राजवंश तॅवर तथा यदुवंश
तॅवर राजवंश का आदिकालिन गोत्र व्यास है तथा यदु राजवंश का आदिकालीन गोत्र अत्रि है
3. आदिकालीन वंश- अग्निवंश से उत्पन्न दो राजवंश चौहान तथा पंवार
चौहान राजवंश का आदिकालिन गोत्र वत्स/वक्च्हस है तथा पॅवार राजवंश का आदिकालीन गोत्र वशिष्ठ है.
शाखाओं का गोत्र के रूप में प्रयोग
उपरोक्त राजवंशो को बाद में आवश्यकता अनुसार कुछ शाखाओं में विभाजित किया गया और दुर्भाग्य से इन शाखाओं का गोत्र के रूप में प्रयोग होने लगा है
गहलोत वश (गोत्र-वैस्पायन):- वैस्पायन, गहलोत, अहाड, बालियान, व ढाकियान
कुशवाहा वंश (गोत्र- मानव):- मानव, कुशवाहा, देशवाल, कौशिक व करकछ
तॅवर वंश (गोत्र-व्यास):- व्यास, तंवर, सूरयाण, माल्हयाण, सूमाल, बहुए, रोझे, रोलियान, चौवियान, खोसे, छनकटे, चौधरान, ठकुरान, पाथरान, गंधर्व, कटोच, बीबे, पांडू, झब्बे, झपाल, संसारिया व कपासिया
यदुवंश (गोत्र-अत्री):- अत्री, यदु, पातलान, खारीया, इन्दारिया, छोकर, व माहियान
चौहान वंश (गोत्र-वत्स):- वत्स, चौहान, खारी या खैर, चंचल, कटारिया, बूढियान, बाडियान या बाढियान, गरूड या गरेड, कन्हैडा या कान्हड, धारिया, दाहिवाल, गांगियान, सहचरान व माकल या माकड या भाकड या बाकड
पंवार वंश (गोत्र-वशिष्ठ):- वशिष्ठ, पंवार, टोंडक, वाशिष्ठान, ओजलान, डाहरिया, उदियान या उडियान, किरणपाल व भतेडे.
उपरोक्त सभी वस्तुत: छ राजवशों की शाखाऐं है परन्तू अव वैवाहिक सुविधा के कारण इनका प्रयोग गोत्र के रूप में भी किया जाता है। वास्तव में ये शाखाऐं गोत्र नही है। इस कारण भूल वश एक गौत्र की अलग अलग शाखा मे ही शादी विवाह होने लगे हैं।
अनेक क्षेत्रों मे इन छ: राजवंशो के राजपूत स्वयं को रवा राजपूत के बजाय अपने राजवश के नाम का सम्बोधन जैसे तंवर, चौहान, पवांर आदि, करते हैं।
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