सैनी राजपूतों का इतिहास अति संक्षिप्त में
Saini Rajput History in Two Minutes
" शौरसैनी शाखावाले मथुरा व उसके आस पास के प्रदेशों में राज्य करते रहे | करौली के यदुवंशी राजा शौरसैनी कहे जाते हैं | समय के फेर से मथुरा छूटी और सं. 1052 में बयाने के पास बनी पहाड़ी पर जा बसे | राजा विजयपाल के पुत्र तहनपाल (त्रिभुवनपाल) ने तहनगढ़ का किला बनवाया | तहनपाल के पुत्र धर्मपाल (द्वितीय) और हरिपाल थे जिनका समय सं 1227 का है | "
- पृष्ठ 302 , नयनसी री ख्यात , दूगड़ (भाषांतकार )
11वीं शताब्दी में भारत पर गज़नी के मुसलमानो के आक्रमण शुरू हो गए और लाहौर की कबुलशाही राजा ने भारत के अन्य राजपूतों से सहायता मांगी । इसी दौरान दिल्ली और मथुरा के तोमर-जादों (सैनी) राजाओं ने राजपूत लश्कर पंजाब में किलेबन्दी और कबुलशाहियों की सुरक्षा के लिए भेजे । इन्होने पंजाब में बहुत बड़ा इलाका तुर्क मुसलमानो से दुबारा जीत लिया और जालंधर में राज्य बनाया जिसकी राजधानी धमेड़ी (वर्तमान नूरपुर) थी। धमेड़ी का नाम कृष्णवंशी राजा धर्मपाल के नाम से सम्बन्ध पूर्ण रूप से संभावित है और सैनी और पठानिआ राजपूतों की धमड़ैत खाप का सम्बन्ध इन दोनों से है । धमेड़ी का किला अभी भी मौजूद है और यहाँ पर तोमर-जादों राजपूतों का तुर्क मुसलमानो के साथ घमासानयुद्ध हुआ । तोमर-जादों राजपूतों और गज़नी के मुसलमानो का युद्ध क्षेत्र लाहौर और जालंधर (जिसमे वर्तमान हिमाचल भी आता है) से मथुरा तक फैला हुआ था । यह युद्ध लगभग 200 साल तक चले । इस दौरान मथुरा और दिल्ली से तोमर-जादों राजपूतों का पलायन युद्ध के लिए पंजाब की ओर होता रहा ।तोमर और जादों राजपूतों की खांपे एक दूसरे में घी और खिचड़ी की तरह समाहित हैं और बहुत से इतिहासकार इनको एक ही मूल का मानते हैं (उदाहरण: टॉड और कन्निंघम) । इन राज वंशों के पूर्व मधयकालीन संस्थापक दिल्ली के राजा अनंगपाल और मथुरा के राजा धर्मपाल थे । पंजाब, जम्मू और उत्तरी हरयाणा के नीम पहाड़ी क्षेत्रों के सैनी इन्ही तोमर-जादों राजपूतों के वंशज हैं जो सामूहिक रूप से शूरसैनी /सैनी कहलाते थे । पहाड़ों पर बसने वाले डोगरा राजपूतों में भी इनकी कई खांपें मिली हुई हैं । |
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