शनिवार, 28 मई 2011

औचित्य की सलीब पर आरक्षण व्यवस्था : आरक्षण पर प्रथम शोध पर सत्यनारायण सिंह को डॉक्टरेट

जयपुर (कलम कला न्यूज)। राजस्थान में पिछड़े वर्ग को लेकर अब तक की प्रक्रियाओं का समीक्षात्मक अध्ययन और देश भर के 18 प्रांतों के विश्लेषण को न्यायालय के द़ष्टिकोण सहित शामिल करते हुए तैयार शोधपत्र के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत अधिकारी सत्यनारायण सिंह को राजस्थान विश्वविद्यालय ने डाक्टरेट से नवाजा है। विश्वविद्यालय ने उनके कोटा विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बी.एम. शर्मा के निर्देशन में सम्पन्न अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग: संगठन, कार्य प्रक्रिया, दशा एवं दिशा विषय पर तैयार शोध कार्य पर पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की।
इस शोध ग्रन्थ में सत्यनारायण सिंह ने देश की आजादी से पूर्व से अब तक सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक अवस्था, संविधान निर्माताओं की सामाजिक न्याय, समानता सम्बंधी सोच, संविधान के प्रावधान आरक्षण के सम्बंध में आजादी के पूर्व से लेकर अब तक चले आन्दोंलनों, केन्द्रीय आयोगों व देश के 18 प्रान्तों के पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट, उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के अनेक फैसलों का विस्तृत विश£ेषण किया गया है।
उन्होंने राजस्थान में पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना से लेकर अब तक उसके संगठन में अपनाई गई प्रक्रिया, दशा व दिशा पर प्रकाश डाला है एवं कार्य पद्धति की आलोचना भी की है तथा स्पष्ट किया है कि पिछड़ा वर्ग आरक्षण न तो जाति आधारित है और न ही केवल आय व सम्पति के आधार पर भी सांवैधानिक रूप से नहीं हो सकता।
आरक्षण जनसंख्या के अनुरूप नहीं है और 50 प्रतिशत से अधिक साधारण तया नहीं हो सकता। आरक्षण के राजनीतिकरण और वोटों को ध्यान में रखकर लिए जा रहे फैसलों पर अफसोस जाहिर करते हुए समानता हेतु बनाए गए संवैधानिक अधिकार के लिए आन्दोलन के माध्यम से एवं पटरियों पर बैठकर रेल रोक कर आरक्षण की मांग मनवाने, राजनैतिक हितों को ध्यान में रखकर आयोगों का गठन कर आरक्षण प्राप्त करने की आलोचना की है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि आरक्षण का लाभ अपर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त वर्गों को ही मिल सकता है।
राज्य आरक्षण बिल की कटु आलोचना करते हुए उन्होंने लिखा है कि अवैध बिल को नवीं सूची में भी नहीं जोड़ा जा सकता। उन्होंने लिखा है कि अब समय आ गया है कि आरक्षण में आई विकृतियों व विसंगतियों को दूर किया जावे। संविधान निर्माताओं द्वारा निर्मित नीति के अनुसार राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों की नियत हो, उच्चतम न्यायालय के अनुसार आरक्षण व्यवसाय व आय के आधार पर, बर्गर जाति का ध्यान किए रखा जा सकता है। सरकारें यदि वर्गीकरण करना चाहती हैं तो उच्चतम न्यायालय के फैसलों के अनुसार न्यायोचित सिद्धांतों, तुलनात्मक सामाजिक स्थिति व जनसंख्या के आधार पर किया जावे।
सत्यनारायण सिंह की शोध कहती है कि सरकारें आर्थिक पिछड़ों को शिक्षा व सेवाओं में आवश्यकतानुसार छूट, रियायत, विशेष अवसर, प्राथमिकता दे सकती है। जब तक संविधान में संशोधन नहीं होगा, केवल आर्थिक आधार पर आरक्षण का आश्वासन मात्र लोगों में असंतोष व भ्रम फैलाना है। सत्यनारायण सिंह के अनुसार जब तक सामाजिक असमानता रहेगी, आरक्षण रहेगा। परन्तु आरक्षण सम्बंधी विशेष सुविधा, अवसर सम्बंधी प्रावधानों को न्यायिक आधार पर ही लागू करना होगा। अन्यथा इसका लाभ कुछ वर्ग, परिवार तक सीमित रह जाएगा। वास्तविक रूपसे पिछड़े लघु एवं सीमान्त कृषक, श्रमिक, सेवा कार्य में लगे लोगों को लाभ नहीं मिलेगा।
शोध में अंकित किया गया है कि जिसके पास लर्निंग (शिक्षा व बुद्धि) है, लैण्ड व उत्पादन के साधन हैं, पावर (राजसत्ता) है, पर्याप्त प्रतिनिधित्व है वे पिछड़ा नहीं है। उन्होंने शोध प्रबंध में दलित, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग की विस्तृत व्याख्या भी की है और कहा है कि आरक्षण रोजगार का साधन नहीं है, आरक्षण ग्राम विकास का कार्यक्रम नहीं है, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम भी नहीं है, इसका उद़देश्य सामाजिक समानता स्थपित करना है। निषेध व निर्योग्यताओं से ग्रसित लोगों के लिए ऐतिहासिक कम्रसेशन के रूप में समाज के निम्र वर्गों के साथ हितकर भेदभाव है।

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