नेक चंद सैनी ( रॉक- गार्डन )
नेक चंद सैनी १५ दिसंबर १९२४ को गाँव- बरियन कलां नजदीक तहसील- शकरगढ़ (नारोवल डिसट्रीक्ट) में पैदा हुए . १२ साल की उम्र में उन्हें उनके अंकल के यहाँ गुरदासपुर जिले में पढ़ाई करने के वास्ते भेज दिया गया . वह मैट्रिक तक की पढ़ाई करने के बाद १९४३ में अपने गाँव वापिस आ गए. गाँव आने के बाद उन्होंने अपने पिताजी के खेत में काम करना शुरू कर दिया . जब १९४७ में भारत का विभाजन हुआ तो हिन्दू होने के कारण उन्हें अपने घर से बेघर होना पड़ा और अपने गाँव को छोड़ना पड़ा जो कि अब पाकिस्तान में है . वे गुरदासपुर जिले में आकर रहने लगे .
नेकचंद सैनी सरकार को अपने अच्छे भाग्य के कारण रेफूजी नौकरी देने के प्रोग्राम के तहत चंडीगढ़ में अपनी पत्नी के साथ आकर बसने का मौका मिला . चंडीगढ़ में उन्होंने १० अक्तूबर , १९५० को P . W . D . में सड़क निरीक्षक के तौर पर नौकरी करनी शुरू की. उनका पेशा आज कल एक कलाकार का है . और अब वह चंडीगढ़ में ही स्थायी निवासी के तौर पर अपने परिवार के साथ रहते हैं .बाद में उनका छोटा भाई भी यहीं आकर बस गया और आज कल वह भी अपने परिवार के साथ यहीं पर रहता है .
नेकचंद सैनी ने ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में बेशुमार ख्याति प्राप्त की है जोकि हम सब भारतीयों के लिए एक गौरव- शाली बात है . नेकचंद सैनी से मेरी दूर की रिश्तेदारी होने के नाते कुछेक कार्यक्रमों में उन्हें मिलने का और जानने का मौका भी मिला है . वह एक बहुत ही सीधे- सादे इंसान है . अंतर्राष्ट्रीय हस्ती होने के बावजूद भी उनके चेहरे पर घमंड या अपने उच्च पद के कोई भाव देखने को नहीं मिलते. यही एक बड़े इंसान की बद्दप्पन की निशानी है . उन्होंने रॉक गार्डन का निर्माण करके ना केवल अपना बल्कि भारत का नाम पूरे विश्व में ऊंचा कर दिया . विदेशों से भी उन्हें कई बार रॉक गार्डन की तरह का पार्क बनाने का न्योता आ चुका है . रॉक गार्डन के निर्माण से नेकचंद सैनी का नाम रहती दुनिया तक लोगों की जुबान पर रहेगा .
रॉक गार्डन चंडीगढ़ के सैक्टर एक में बना हुआ है . इसका निर्माण श्री नेकचंद सैनी ने किया .यह चालीस एकर के क्षेत्र में फैला हुआ है . १९८४ में भारत सरकार ने उनके इस अद्दभुत योगदान के लिए पदम् श्री से नवाजा था
जब चंडीगढ़ के निर्माण का कार्य शुरू हुआ तब नेकचंद को १९५१ में सड़क निरीक्षक के पद पर रखा गया था .नेकचंद ड्यूटी के बाद अपनी साइकिल उठाते और शहर बनाने के लिए आस पास के गाँवों से टूटा फूटा सामान इकट्ठा करके ले आते .सारा सामान उन्होंने पी. डबल्यू. डी. के स्टोर के पास इकट्ठा करना शुरू कर दिया .और धीरे- धीरे अपनी कल्पना के अनुसार उन टूटी हुई चीजों को आकार देना शुरू कर दिया .अपने शौक के लिए छोटा सा एक गार्डन बनाया और धीरे- धीरे उसे बड़ा करते गए उस समय चंडीगढ़ की आबादी नामात्र ही थी .वह यह काम चोरी छिपे काफी समय तक करते गए और काफी समय तक किसी की निगाह नहीं पड़ी .सरकारी जगह का इस तरह का उपयोग एक तरह से अवैध कब्ज़ा ही था इसलिए सरकारी गाज गिरने का डर हमेशा बना रहता था .एक दिन जंगल साफ़ कराते समय १९७२ एक सरकारी उच्च अधिकारी की इस पर नजर पड़ ही गई .मगर उन्होंने नेक चंद के इस अद्दभुत कार्य को सराहा .और इस पार्क को जनता को समर्पित कर दिया . उन्हे इस पार्क का सरकारी सब डीवीस्नल मेनेजर बना दिया गया .
खाली समय में पत्थर एकत्र कर उन्हें तरह -तरह की आकृतियों के रूप में संजोते हुए नेकचंद सैनी ने कभी सोचा नहीं रहा होगा कि एक दिन उनका यह काम अनोखे पार्क के रूप में सामने आएगा, जिसे देखने के लिए लोग देश- विदेशों से आएंगे। ध्वस्त मकानों के मलबे से पत्थर जुटाने का काम एक, दो साल नहीं बल्कि पूरे 18 साल तक चला।
नेकचंद अक्सर कहते हैं कि ‘‘18 बरस के समय का ध्यान ही नहीं रहा और कभी सोचा ही नहीं था कि रॉक गार्डन बन जाएगा। सरकारी नौकरी करते हुए मैं तो खाली समय में पत्थर एकत्र करता और उन्हें सुखना झील के समीप लाकर अपनी कल्पना के अनुरूप आकृतियों का रूप दे देता। ’’ अब नेकचंद की उम्र करीब 85 साल हो चुकी है और वह बेहद धीरे- धीरे बोलते हैं। धीरे- धीरे आकृतियां 12 एकड़ के परिसर में नजर आने लगीं। हर तरह की आकृतियां, नृत्यांगना, संगीतज्ञ, पशु, पक्षी, फौजी... सब कुछ। लोगों की नजर इस पर 1975 में पड़ी।
दिलचस्प बात यह है कि पूरा रॉक गार्डन रीसाइकिल की हुई अपशिष्ट सामग्री से बना है। इस अनूठे पार्क का प्रबंधन ‘‘द रॉक गार्डन सोसायटी’’ करती है। दूर- दूर से दर्शक नेकचंद की इस कला को देखने के लिए आते हैं।
वर्ष 1983 में रॉक गार्डन के शिल्पकार नेकचंद को पद्मश्री से सम्मानित किया गया और उनका अनूठा पार्क१९७३ से १९७८ तक भारतीय डाक टिकट पर नजर आया।
वह कहते हैं
‘‘अब उम्र साथ नहीं देती, वरना मैं इस पार्क में बहुत कुछ करना चाहता हूं।’’
रॉक गार्डन न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हुआ। अमेरिका के वाशिंगटन स्थित ‘‘चिल्ड्रेन्स म्यूजियम’’ के निदेशक एन लेविन ने जब चंडीगढ़ की यात्रा में रॉक गार्डन देखा तो उन्होंने नेकचंद से अपने यहां ऐसा ही एक पार्क बनाने का अनुरोध किया। नेकचंद मान गए। वाशिंगटन में 1986 में रॉक गार्डन के लिए काम शुरू हुआ और इसके लिए शिल्प भारत से भेजे गए।
सरकार ने नेकचंद को recyclable material इकट्ठा करने में मदद की और इन्हें पचास मजदूर भी काम करने के लिए दिए थे और आजकल तो यह पार्क इतने बड़े क्षेत्र में फ़ैल चुका है कि कई मजदूर और कारीगर इसके रख रखाव में रात दिन लगे रहते है तांकि चंडीगढ़ की इस अनमोल धरोहर को संझो कर रखा जा सके. इस गार्डन में सभी मूर्तियाँ , कला कृतियाँ बेकार सामान से बनाई गई हैं जैसे कि टूटी हुई चूड़ियाँ , बोतलें , डिब्बे , तिन बिजली वाली टूटी हुई ट्यूबें , बल्ब आदि यानी कि सब काम ना आने वाला सामान यहाँ इस्तेमाल किया गया है . जिन्हें देखकर कोई भी हैरान हुए बिना नहीं रह सकता .
यहाँ पानी का एक कृत्रिम झरना भी है . इस पार्क में खुली जगह में एक आडीटौरियम भी बनाया गया हैं जहाँ पर कई मेलों और कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है .
आज कल बच्चों को भी स्कूलों में इसी दिशा में बेकार हुए सामान से आर्ट्स विषय में जरूरत का सामान बनाना सिखाया जा रहा है .
यह पार्क इतना बड़ा है कि घूमते घूमते पता ही नहीं चलता कि आप कहाँ से शुरू हुए थे और कहाँ ख़त्म होगा . एक के बाद एक छोटे- छोटे दरवाजे आते जाते हैं और सैलानी हैरानी से सब देखते हुए पार्क की भूल भुलैयां में खो जाते है .
अनुमान है कि यहाँ पर प्रतिदिन ५००० सैलानी आते हैं . भारत के बाद अमरीका में नेकचंद की कला क्रीतियों का संग्रह है और विदेशों में कई जगह उनकी कला का प्रदर्शन किया जा चुका है . दुःख की बात है कि इस पार्क को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए बहुत जद्दो जहद करनी पड़ी है .कुछ समय पहले यहाँ सरकारी गाज गिरी थी जब सरकारी आदेश पर बुलडोजर इस निर्माण कार्य को गिराने के लिए आ पहुँचे थे तब यहाँ के लोगों ने श्रृंखला बना कर इसे टूटने से बचाया था और १९८९ में अदालत ने जब फैंसला नेकचंद के पक्ष में दिया तब से इसकी ख्याति दूर- दूर तक फ़ैल गई . नेकचंद सैनी द्वारा बनाया गया यह पार्क चंडीगढ़ के लिए अत्यंत गौरव शाली बात है जो कि यहाँ कि सुन्दरता को चार चाँद लगा देता है .
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