पश्चिम पंजाब और सीमान्त क्षेत्र के सैनी राजपूत , मुग़ल सैनी , खाटक पठान सैनी
स्यालकोट में सैनियों को डोगरा सैनी भी कहा जाता था । 1901 की जनगणना में "सैनीवाल" और "मुग़ल सैनी" नाम के मुस्लमान राजपूत भी दर्ज हैं । इनके गोत (सलारिया , धमडीएल , बड़ला, बडवाल, इत्यादि) हिन्दू और सिख सैनियों वाले ही हैं । अंग्रेजी प्रशासक, डेन्ज़िल इबटसन , जिसने सैनी और मेहता राजपूतों के बारे में भ्रांतियां भी फैलायीं थी , यह स्वीकारता है की यह मुस्लमान राजपूत सैनियों में से धर्म परिवर्तन करके अपने को "मुग़ल सैनी" कहलाने लगे । मुस्लमान कियानी और गखड़ राजपूत भी धर्म परिवर्तन के बाद अपने को "मुग़ल" कहलाने लगे और उनके इन मुस्लमान सैनीवाल राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्ध थे ।इसी प्रकार अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर 'खाटक सैनी'' नाम वाले के पठान पाए जाते हैं | सिआलकोट , रावलपिंडी और पाकिस्तान के सीमान्त क्षेत्र पूर्व मधयकालीन सैनी यदुवंशियों के ठिकाने थे | यह खाटक पठान सैनी और मुग़ल सैनी हिन्दू सैनी राजपूतों के ही वंशज हैं | इन लोगों के पूर्वजों ने डट कर इस्लामी आक्रांताओं का मुकाबला कई सदियों तक किया किन्तु कालचक्र के फेर से बाद में पराजय हुई और भारी संख्या में यह मुसलमान हो गए | जो हिन्दू रह गए वह कृषि जैसे व्यवसायों से अपना जीवन यापन करने लगे| मुसलमानो द्वारा हिन्दू राजपूतों पर लादी गयी "डोला" संस्कृति के कारण अपनी बहु बेटियों की इज़्ज़त और कुल धर्म को बचाने के लिए कईओं ने अपनी राजपूत पहचान भी गुप्त कर ली | भाटी जो की सैनी राजपूतों की एक शाखा है पाकिस्तान के पंजाब का सबसे बड़ा मुसलमान राजपूत कबीला है और इनके गोत भी सैनियों से बहुत मेल खाते हैं |
सलारिया क्षत्रिय
सलारिया क्षत्रिय दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल के सपुत्र कुंवर सलेरिया पाल के वंशज हैं । यह सैनियों की सबसे बड़ी शाखा है और इनके जम्मू और गुरदासपुर ज़िलों में लगभग 15-20 गाँव हैं । स्मरण रहे तोमर राजवंश को कर्नल टॉड और कन्निंघम जैसे इतिहासकारों ने यदुवंशी माना है । दिल्ली और इंद्रप्रस्थ जहाँ तोमरों का शासन था शूरसेन गणराज्य के मध्य में था । इसलिए इन तोमरों का सैनी कहलाये जाना स्वाभाविक था । पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के उपरान्त युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण के पड़पौत्र वज्रनाभ को इंद्रप्रस्थ का राजा बनाया था और सात्यकि के पौत्र युगांधर को सरस्वती नदी के पूर्व का राजा बनाया जो की आज कल का हरयाणा प्रांत है (देखिये पार्गिटर) । यह दोनों राजा यादव थे और शूरसैनी कहलाते थे ।
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