बुधवार, 3 मई 2017

मारवाड़ को बचाने में सैनिक क्षत्रिय जाति की भूमिका
 राजपूत क्षत्रियों से ही है हमारी उत्पति
-मदनसिंह सोलंकी
       राजपूत माली ये मारवाड  में बहुत ज्यादा है। इनके पूर्वज शहाबुदीन और कुतुबुद्दीन,  ग्यासुद्दीन और अलाउद्दीन आदि दिल्ली के बादशाहों से लड़ाई हार कर जान बचाने के लिए राजपूत से माली हुए। पृथ्वीराज चौहान और उनकी फौज के जंगी राजपूत द्राहाबुद्दीन गौरी से लड कर काम आ गये थे और दिल्ली अजमेर का राज्य छूट गया तो उनके बेटे पोते जो तुर्को के चक्कर में पकड़े गये थे। वे अपना धर्म छोड ने के सिवाय और किसी तरह अपना बचाव न देख कर मुसलमान हो गये जो अब गौरी पठान कहलाते है। उस वक्त कुछ राजपूतो को बादशाह के एक माली ने माली बताकर अपनी अपनी सिफारिश से छुडवा लिया। बाकी पकडे़ और दण्ड दिये जाने के भय से दूसरी कौमों में छुपते रहे। उस हालत में जिसको जिस-जिस कौम में पनाह मिली, वह उसी कौम में रहकर उसका पहनावा पहनने लगे। ऐसे होते-होते बहुत से राजपूत माली हो गये। उनको कुतुबुद्दीन बादशाह ने जबकि वह अजमेर की तरफ आया था सम्वत्‌ १२५६ के करीब अजमेर और नागौर जिलों के गांवों में बसने और खेती करने का हुक्म दिया। ये माली गौरी भी कहलाते है।
      आठ वर्षो तक राजपूत समाज से बहिष्कृत रहने के कारण निराश होकर दो वर्षो तक मालियों के साथ रहे। मालियों के रीति-रिवाज पसन्द नही आने के कारण हमारे पूर्वजों ने राजपूत माली/माली राजपूत/क्षत्रिय माली/सैनिक क्षत्रिय समाज की नींव रखी। युद्ध क्षत्रिय परशुरामजी के वक्त में जबकि वे अपने बाप के बैर में पृथ्वी को निःक्षत्रिय करने में लग रहे थे, मिल गये। 
      जोधपुर के मण्डोर में गत ७०० वर्षो से राजघराने के तथा हमारे शमशान एक ही है। जब मण्डोर उद्यान की योजना बनी तब हमारे शमशान को हटाना पडा़ लेकिन उन्हे मण्डोर उद्यान सीमा में ही रखा गया। केवल हमारे समाज के शव मण्डोर उद्यान में प्रवेश कर सकते है, अन्य समाज के नही। महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय का दाह संस्कार किले के पास वर्तमान जसवन्त थडा में किया गया। तब से बाद के राजाओं के दाह-संस्कार यहां ही होते है।
राव ईसर को कहते है, ईसर निकालने का अधिकार केवल राजपूतों को ही है। जोधपुर के मण्डोर में हमारे समाज की ओर से होली के दूसरे दिन ईसर निकाला जाता है। स्वजातीय बंधु ढोल बजाते गाते प्राचीन राज महलों में जाते है तथा वहां फाग खेलते है। गहलोत परिवार के किसी एक व्यक्ति को ईसर बनाया जाता है। वह हमारे राजपूत होने का बहुत बड़ा प्रमाण है। आज भी हमारे और राजपूतों के गौत्र एक ही है। दूसरा एक भी गौत्र नही है।

      राजपूतों की तरह हममें भी पिता के जीवित होते पुत्र कंवर और पौत्र भंवर तथा मृत्योपरान्त ठाकुर कहलाता है। जोधपुर के कर्नल सर प्रतापसिंह के नेतृत्व में सन्‌ १९०० में चीन युद्ध में भाग लिया था। उसमें रिसालदार चतुरसिंह कच्छवाहा व उनके छोटे भाई धुड सिंह दफेदार के रूप में थे। जोधपुर राज्य के रिसाला में केवल  राजपूतों को ही लिया जाता था। नागौर, जोधपुर व बीकानेर नगरों की रक्षार्थ उनके चारों ओर सैनिक क्षत्रिय जातियों को बसाया गया था। नं. ७८३ एफ ६१ भारत वर्ष की मनुष्य गणना के उच्च अधिकारी कमिश्नर दिल्ली ने यह निश्चय किया है कि जो माली अपने को सैनिक क्षत्रिय लिखाना चाहे उनकों आम तौर पर भारत में ऐसा लिख दिया जावे। चाहे भिन्न-भिन्न रियासतों में भिन्न-भिन्न नाम से यह जाति कहलाती है। तमाम  कुनिन्दों के नाम मुनासिब हुक्म जारी किये जावे। इस जाति के लोगों को सैनिक क्षत्रिय (एक जुदा जाति) दर्ज किया जाये।

      एस.डी.बी. एल कोल/एल.टी. कोल, १२.०२.१९३१, अधीक्षक सेन्सस आपरेशन, राजपूताना एण्ड अजमेर मेरवारा उपर्युक्त उदाहरणों व प्रमाणों के आधार पर यह निर्विवाद प्रमाणित है कि सैनिक क्षत्रिय माली क्षत्रिय वर्ग के है।

      (१) मण्डोर पर अधिकांश समय परिहारों का राज्य रहा। वि.सं. १४५० में राना रोपड  को हरा कर बादच्चाह जलालुद्दीन ने मण्डोर पर कब्जा कर लिया। इस तुर्क वंश के १०० वर्ष राज्य के बाद दिल्ली सल्तनत कमजोर हो गई। गुजरात के सुबेदार जाफर खॉ ने मारवाड  पर कब्जा कर दिया। वि.सं. १४५१ में राजपूत वीरों ने ऐबक खॉ और उसके तमाम सैनिकों को घास की तरह काट कर किले पर कब्जा कर बालेसर के राणा उगमसी इन्दा को सूचना दी। लकिन मण्डोर की रक्षा करने में राजा असमर्थ था। ऐसे में विकट समय में अपने प्रधानमंत्री हेमाजी गहलोत की सलाह से राव मल्लीनाथ राठौड़ के ताकतवर भतीजे चूण्डाजी से अपने मुख्य राव धावल की कन्या का विवाह कर मण्डोर दहेज में दे दिया। इस प्रकार बचाया मण्डोर को हेमाजी गहलोत ने बचाया।

      (२) दिल्ली के बादशाह शेरशाह से युद्ध नही करके राव मालदेव छप्पन की पहाडियों में चले गये। जैता और कूंपा आदि सरदारों ने युद्ध किया लेकिन  हार गये। पोष सुदी ग्यारस वि.सं. १६००. में शेरशाह ने जोधपुर तथा किले पर कब्जा कर लिया। खवास खॉ को हाकिम बनाकर शेरशाह दिल्ली चला गया। वि.सं. १६०२ में शेरशाह ने कालिंजर पर चढाई की। किले पर हमला करते समय बारूद फटने से उसकी मृत्यु हो गयी। खवास खॉ किसी काम से जोधपुर से बाहर गया हुआ था। इस अवसर का लाभ उठाते हुए मण्डोर के सैनिक क्षत्रिय (गहलोत) ने जोधपुर तथा किले पर कब्जा कर लिया। खवास खॉ तुरन्त वापस आया लेकिन वह मारा गया। राव मालदेव को सूचना भेज कर बुलाया गया तथा जोधपुर व किला सौंपा। इन लोगो के साहस, वीरता व उल्लेख खयात में देखें।

      (३) राजपूत समाज की परम्परा के अनुसार सैनिक क्षत्रिय जाति की कन्याएं शादी के बाद भी अपने पीहर के गौत्र से सम्बोधित होती है। गौरा धाय टाक की माता का नाम पूरा देवी देवडा तथा पिता का नाम रतना टाक था। गौरा धाय के पति का नाम मनोहर गोपाल भलावत गहलोत है। यह मण्डोर के सैनिक क्षत्रिय समाज के है। जोधपुर पोकरण की हवेली से सटी गोराधाय बावडी है जो इसकी बनवाई हुई है। इसकी छः खम्भों की स्मारक छतरी पब्लिक पार्क के पास कचहरी रोड  पर स्थित है।

      महाराजा जसवन्त सिंह जी का स्वर्गवास वि.सं. १७३५पोष बदी १० को जमरूद के थाने पर हुआ। गौराधाय टाक ने मेहतरानी का रूप धारण कर और जोधपुर महाराजा प्रथम के राजकुमार अजीतसिंह के स्थान पर उनके सम वयस्क अपने पुत्र को सुला कर अजीत सिंह को औरंगजेब के सखत, सतर्क, चौकस शासन में दिल्ली से किच्चनगढ के राज रूपसिंह की हवेली से उठाकर कालबेलिया बने मुकनदास खीची को गौपनीय रूप में सौपा। एक जननी के लिए अपनी सन्तान उसकी सम्पूर्ण अस्मिता होती है। मारवाड  के द्राासन में गौराधाय टाक बलिदान निर्णायक था अन्यथा जोधपुर का स्वरूप दूसरा होता। पन्ना का और गौरां का त्याग एक जैसा है।
मेवाड़ की पन्ना धाय, त्याग गौरां का जौर।

      (४) हस्ती बाई जी गहलोत पत्नी राधाकिच्चन जी सांखला थलियों का बास सोजती गेट के अन्दर जोधपुर ने महाराजा सरदारसिंह को अपना दूध पिलाया था। उदपुर तथा बीकानेर के महाराजाओं की धाय सैनिक क्षत्रिय समाज की थी। उपर्युक्त सभी कारणों को मध्य नजर रखते हुए जोधपुर के महाराजा उम्मेदयिंह जी की हमें वापिस राजपूत समाज में मिलाने की योजना भी थी, जो सन्‌ १९३० के आसपास की है।
         
क्षत्रिय मालियों के चलु, गोत, खांप, प्रशासक नूख

चौहान- सूरजवंशी, अजमेरा, निरवाणा, सिछोदिया, जंबूदिया, सोनीगरा, बागडीया, ईदोरा, गठवाला, पलिकानिया, खंडोलीया, भवीवाला, मकडाणा, कसू, भावाला, बूभण, सतराबल, सेवरीया, जमालपुरीया, भरडीया, सांचोरा, बावलेचा, जेवरीया, जोजावरीया, खोखरीया, वीरपुरा, पाथ्परीया, मडोवरा, अलुघीया, मूधरवा, कीराड वाल, खांवचां, मोदरेचा, बणोटीया, पालडि या, नरवरा बोडाणा, कालू, बबरवाल।

राठौड - सूरजवंशी, कनवारिया, घोघल, भडेल, बदूरा, गढवाल, सोघल, डागी, गागरिया, कस, मूलीया काडल, थाथी, हतूडीया, रकवार, गद्दवार दइया, बानर, लखोड , पारक, पियपड , सीलारी इत्यादि।

कच्छवाहा- सूरजवंशी, नरूका राजावत, नाथावत, द्रोखावत, चांदावत।

भाटी- चन्द्रवंशी, यादव (जादव), सिंधडा, जसलमेरा, अराइयां, सवालखिया, जादम, बूधबरसिंह, जाडेजा,महेचा, मरोटिया, जैसा, रावलोत, केलण, जसोड ।

सोलंकी- चन्द्रवंशी चालूक्या, लूदरेचा, लासेचा, तोलावत, मोचला, बाघेला।

पडि हार- सूर्यवंशी, जैसलमेरा मंडोवरा, बावडा, डाबी, ईदा, जेठवा, गौड , पढिहारीया, सूदेचा, तक्खी।

तुंवर- चन्द्रवंशी, कटीयार, बरवार, हाडी, खंडेलवाल, तंदुवार, कनवसीया, जाठोड कलोड ।

पंवार- चन्द्रवंशी, परमार, रूणेचा, भायल, सोढा, सांखला, उमठ, कालमा, डोड, काबा, गलेय (कोटडीया)।
गहलोत- सूर्यवंशी, आहाड़ा, मांगलीया, सीसोदिया, पीपाडा, केलवा, गदारे, धोरणीया, गोधा, मगरोया, भीमला, कंकटोक, कोटेचा, सोरा, उहड , उसेवा, निररूप, नादोडा, भेजकरा, कुचेरा, दसोद, भटवेरा, पांडावत, पूरोत, गुहिलोत, अजबरीया, कडेचा, सेदाडि या, कोटकरा, ओडलिया, पालरा, चंद्रावत, बूठीवाला, बूटीया, गोतम, आवा, खेरज्या, धूडेचा, पृथ्वीराज गेलो, आसकरण गेलो, भडेचा, ताहड , गेलोत, मूंदोत, भूसंडिया, दोवड , चन्द्रावत, बागरोया, सादवा, रंगिया।

नोट- चौहान, देवडा टाक, यह तीनों एक परिवार है और सूर्यवंशी है।
१. देवडा, देवराट, निरवाणा के बेटे का है, यह चौहानों की शाखा है।
२. टाक सदूल का बेटा है जो चौहानों की शाखा है।
३. सांखला पंवारों के भाई है और सखल, महप, धवल, उदिया, दतोत के ८वां पुत्र है।

नोट-
१. चौहान खांप के टाक पूना के तथा मारोटिया जैसिंह के है तथा खांप भाटी जादम व तंवर की नख तूदवाल है।
२. सैनिक क्षत्रिय का मुख्य शहर नागौर है तथा अपने रोजगार के लिए अन्य जगहों पर आबाद हो गये।
३. सैनिक क्षत्रिय शादी ३६ जातियों में ही करें लेकिन अन्य सामाजिक कार्य बाह्मणों के
साढे छः गौत्रों की तरह मिलकर कार्य करें।

1 टिप्पणी:

  1. It is said that some of them left their weapons and also came to different places . One of the places is in Khandesh . In Khandesh you will find many Rajput malis , some of them now identify as kunbis , we were told this story by our bhats . Our kuldevi is Jwala mata jobner ...

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