मंगलवार, 2 मई 2017

"माली जाति की उत्पत्ति एवं विकास"

     मेवाड़ माली समाज के राव श्री प्रभुलाल (मोबाईल-+91 97 83 618 184) मु.पो.- बामनिमा कला, तहसील -रेलमगरा, जिला -राजसमन्द के अनुसार मेवाड़ माली समाज के आदि पुरुष को "आद माली" के नाम से कहा गया है।

     जैसा की पूर्व में उल्लेख किया गया है कि "आद" अथवा "अनाद" शब्द के पर्याय रूप में "मुहार" अथवा "कदम"' शब्द मिलते है जिनका शाबिदक अर्थ होता है 'पुराना अर्थात प्राचीनतम'।

     "माली सैनी दर्पण" के विद्वान लेखक ने पृ. पर लिखा है कि मुहुर अथवा 'माहुर मालियों की सबसे प्राचीनजाति है। इसका सम्बन्ध मेवाड़ के माली समाज से किस प्रकार है। इस पर अध्ययन अपेक्षित है।

     ब्रह्मभट्ट राव के कथानुसार आद माली के 25 पुत्र हुए (किन्तु उनका नामोल्लेख नहीं मिलता है) जिन्होंने कश्मीर में बाग लगाये और लगभग 13वीं शताब्दी में मामा-भाणेज ने सम्भवत: पुष्कर मे अपनी बिरादरी के सदस्यों को चारों दिशाओं से आमंत्रित कर सम्मेलन किया। इस आयोजन में-द्रावट, सौराष्ट्र, पंजाब, मुल्तान, उमर-कश्मीर, मरुधर, थलवट, काठियावाड़, गोडारी, मालवा, गुजरात, हाडोती शेखावाटी, बंगाल, आंतरी, सिन्ध, लोडी, बुन्देलखण्ड, हरियाणा, मदारिया, खेराड़, गौडवाड़, बैराठ, ढूठांड़, अजमेर इकट्टा हुए। इस समारोह के मुख्य अतिथि महाराणा श्री समरसिंह रावल वि.स. थे जिन्हें समाज के मुखिया की ओर से पगड़ी धारण करवायी गयी और श्री महाराणा ने मुखिया को अपनी पगड़ी पहनाई तब से यह समाज "राज. भाई माली" नाम से पहचाना जाने लगा। समय के साथ-साथ राज्य व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव आता रहा परिणाम स्वरूप हम अज्ञानतावश अपने असतित्व को भूल गये। श्री हीरालाल खर्टिया द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार महाराणाओं की डोली उठाने के लिये 'कहार भोई' समाज के सदस्यों के साथ माली समाज के युवाओं को भी रात में घेरा डालकर दरबार में ले जाया जाता था और उनसे 'डोली उठाने का कार्य करवाया जाता था। शिक्षा और आर्थिक दृषिट से पिछड़े हुए इस समाज ने समय के साथ समझौता कर सब कुछ स्वीकार किया। यह समाज 'राज-भाई माली' के बजाय 'राज-भोई-माली' के नाम से पुकारा जाने लगा। मेरे अनुभव व जानकारी के अनुसार 1975 के दशक तक इस समाज के सदस्यों को 'राज भोई माली' नाम से पुकारा जाता था। धीरे-धीरे भोई-माली और दक्षिण राजस्थान के डूंगरपुर-बाँसवाडा जिले में यह जाति 'भोई' शब्द से जानी जाती है। माली समाज प्रगति संघ ने अपनी पहचान को कायम रखने के लिये 1994 में आयोजित प्रदेश स्तरीय सम्मेलन में अपनी पहचान के रूप में 'माली'शब्द का उपयोग करने का निर्णय लिया।

     संवत् 1257 में पुष्करजी में हुए सम्मेलन में जाति की पहचान के लिये- कुछ मर्यादा(नियम) तय की गयी ये जिनमें नियम नं. 16 में तय किया गया की समाज के सदस्य 'भोई' का कार्य नहीं करेगें। डोली न उठावें व मछली न पकड़े। 28जनवरी1959 में माली समाज, उदयपुर के सम्मेलन में नाम के साथ 'भोई' शब्द न लगाने का निर्णय लिया गया।

     संघ द्वारा दिनांक 5 मई 2009 में 'बेणेश्वरधाम' में आयोजित वागड़ सम्मेलन में सचिव डा. विष्णु तलाच ने समाज का पूर्व उल्लेख करते हुए वागड़ के सभी भाई-बहनों को मुख्यधारा से जुड़ने का आग्रह किया। राव की पोथी के विवरणानुसार 'राजमाली' समाज की 7 खांप 84 गौत्र का विवरण निम्नानुसार है-

खांप गौत्र
1. चौहान~ अजमेरा, खर्टिया, दुगारिया, बडोदिया,
माणगाया, डामरिया, मौरी, भेली, टांक, धोलासिया,
धनोपिया, कराडिया

2. राठोड़~ सरोल्या, दूणिया, असावरा, तलाच, हिण्डोलिया, अण्डेरिया, जाजपुरिया, मगाणिया, मंगरोला (मंगरूपा), खूर्रिया, खमनोरा, रातलिया

3. पंवार~ पाडोलिया, पवेडा, परवाल, पाहया, पानडिया, परखण, लोलगपुरा, सजेत्या, धरावणिया, चुसरा, महनाला (मेहन्दाला), ठलका

4. गहलोत~ मण्डावरा, वडेरा, बडाण्या, बरस, वगेरवाल
वगोरिया, बलेणिडया, डागर, सोहित्या, बडगुजर, भदेसरया, कनोजा

5. सौलंकी~ रिछा, जेतल्या, कालडाखा, काकसणिया,
ठाकरिया, सरोल्या, चन्दवाडया, रणथम्बा, मुवाला, पालका, मोरी

6. तंवर~ गौड़ा, गांछा, आकड़, उसकल्या, कुकडया, भमिया, मेकालिया, दालोटा, कनस्या, कांकरूणा, धाखा, सोपरिया।

7. परिहार जातरा, गुणिया, डुगलिया, गुणन्दा, सुखला, हेड़ा, बनारिक्या, भीमलपुरिया, पानडिया, भातरा, कच्छावा।

     सन् 2009 में संघ द्वारा माली समाज का सामाजिक सर्वेक्षण करवाया गया प्राप्त जानकारी के अनुसार उदयपुर शहर में 42 गौत्र के परिवार पंजिकृत है जिनका विवरण निम्नानुसार है -

1. असावरा
2. जाजपुरिया
3. सुंगलिया
4. धरावणिया
5. तलाच
6. खमनोरा
7. खर्टिया
8. टांक
9. घासी
10. ड़ामटिया
11. धोलासिया
12. धोरिया
13. पथेरा
14. मेकालिया
15. परखण
16. परमार
17. कराडिया
18. पाडोलिया
19. पानडिया
20. बडोदिया
21. बुगलिया
22. मण्डावरा
23. भमिया
24. मुवाला
25. रातलिया
26. रेमतिया
27. रिछिया
28. वडेरा
29. वगेरवाल
30. वलेणिडया
31. सोइतिया
32. हिण्डोलिया
33. पारोलिया
34. घनोपिया
35. बूटिया
36. लोडियाणा
37. मालविया राठौड़
38. मुवाला
39. मतारिया चौहान
40. दूणिया
41. डगारिया
42. खुरया

     उपयुक्त विवरण में प्राप्त आंकड़ों के अध्ययन से संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है?
आशा है आने वाली युवा पीढ़ी इस दिशा में आगे कार्य करेगी।


परमेश्वर दुगारिया

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