गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

श्री श्री १००८ श्री स्वामी चेतन गिरीजी महाराज :

      धन्य है सोजत माटी, जहां पर धर्मवीर, संत शिरोमणि श्री श्री १००८ श्रद्धेय चेतनगिरीजी महाराज का प्रादुर्भाव हुआ। धर्म की पवित्र यज्ञवेदी में अपने जीवन की आहुति देने की परम्परा को निभाने वाले स्वामी चेतनगिरीजी महाराज को माली समाज कैसे भूल सकता है। वैसे संतो की कोई जाति नही होती, आत्मा को परमात्मा से जोड़कर मानव जाति को मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बतलाना उनका मुखय लक्ष्य होता है, लेकिन हमारे माली समाज में उनका प्रादुर्भाव है अतः समस्त माली समाज को गर्व है कि ऐसे महान संत का हमारे समाज में उदभव हुआ है।
      पारिवारिक परिचय:   स्वामी चेतनगिरीजी महाराज का जन्म १९६४ में भादवी सुदी २ को सौभाग्यशाली माता चम्पादेवी की कोख से, भाग्यशाली पिता धीसुरामजी टाक के घर पर सोजत नगर में हुआ। घीसूरामजी टाक एक साधारण कृषक थे। जिनके तीन सुपुत्र व तीन सुपुत्री है। जिनके नाम (१) बीजाराम (२) मोहनलाल (३) प्रकाश (चेतनगिरीजी) बहन भोलीदेवी एवं हेमादेवी है। इस प्रकार घीसूरामजी टॉक का साधारण किसान परिवार हॅसी खुशी से जीवन यापन कर रहा था। अचानक बड़े सुपुत्र बीजाराम प्रेत-बाधा से पीडित हो जाता है, ऐसे में लोगो की सलाह पर पिता अपने पुत्र को बर में स्थित संत शिरोमणि जी संतोषगिरीजी महाराज की कुटिया पर ले जाता है, जहां पर बीजाराम प्रेत से मुक्त हो जाते है।
कुछ समय बाद दुःख की छाया बहन भोली देवी पर आती है, जो पुत्र रत्न के अभाव में गृह-क्लेश से ग्रसित हो जाती है। संकट की घड़ी में पिता वापस संतोषगिरीजी की शरण में नीमच की वीरवां गांव की कुटियां पर जाते है। स्वामीजी ने ऊँ नम्‌ शिवाय का जप करने एवं परम पिता परमेश्वर की सता में विश्वास एवं श्रद्धा रखने का गुरू मंत्र दिया। जिस पर अमल करने पर नवें महिने के बाद बहन भोली देवी को पुत्र रत्न प्राप्त होता है। तभी से पूरे परिवार की श्रद्धा स्वामीजी के प्रति अटूट हो जाती है और घीसूरामजी टॉक स्वामीजी को सोजत में पधारने का निवेदन करते है जो सहृदय स्वीकार कर लेते है। सोजत में घीसूरामजी के सहयोग के स्वामीजी कुटिया बनाकर धुणी जगाते है और संतो के आश्रम की नींव उसी दिन से पड  जाती है।

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