गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

संत षिरोमणि श्री लिखमीदास जी महाराज का जीवन परिचय

राजस्थान की पवित्र धरा शक्ति भक्ति और आस्था का त्रिवेणी संगम है। यहां समय पर ऐसे संत-महात्माओं ने जन्म लिया है जो अपने तपोबल से प्राणीमात्र का कल्याण करने के साथ-साथ दूसरों के लिये प्रेरणा स्त्रोत भी बने। ऐसे ही बिरले सन्तों में से एक थे-स्वनामधन्य संत षिरोमणि श्री लिखमीदासजी महाराज । आपका जन्म नागौर जिला मुख्यालय से नजदीक चैनार गांव में विक्रम संवत 1807 की आशाढ़ मास की प्रभात वेला में माली श्री रामूरामजी सोलंकी के घर हुआ। आप बाल्यकाल से र्इष्वर की भक्ति, पूजा-अर्चना , गुणगान तथा संत समागम में लगे रहते थे। अपनी अनन्य र्इष्वर भक्ति के बल पर ही आपने अपने जीवन काल में बाबा रामदेव के साक्षात दर्षन किये। द्वारकाधीष के अवतार बाबा रामदेव के प्रति आपकी अगाध श्रद्धा एवं भक्ति भावना थी। आप अपने पैतृक कृशि कर्म को करते हुए ही श्री हरि का गुणगान किया करते, रात्रि जागरण में जाया करते तथा साधु-संतो के साथ बैठकर भजन-कीर्तन करते थे। ऐसा कहा जाता है कि महाराज श्री जब भी भजन- कीर्तन के लिए कहीं जाया करते थे तो उनकी अनुपसिथति में भगवान द्वारकाधीष स्वयं आकर उनके स्थान पर फसल की सिंचार्इ (पाणत) किया करते थे।

मनुश्य जीवन को प्राप्त कर 'मानवता नहीं रखी जाय तो मनुश्य जन्म कैसा? महाराज श्री ने जीव मात्र के प्रति दया अपने ह्रदय में धारण कर, मनुश्यों का सदैव हित साधन कर अपना मानव जीवन सार्थक किया। संत षिरोमणि ने सदा निर्विकार भाव से सादगीपूर्ण जीवन जीया। आप मिथ्या अभिमान, निंदा, आत्मष्लाघा, पाप कर्म एवं अनैतिकता से सदा दूर रहे। ऐसे महापुरुश कभी किसी जाति, धर्म या सम्प्रदाय के नहीं होते अपितु सबके होते हैं। षुद्ध सातिवक भाव से कर्तव्य कर्म करते रहना और अन्त में श्री भगवान का गुणगान करते हुए उसी में लीन हो जाना। षायद इसी महामन्त्र को महाराज श्री ने अपने जीवन में अपनाया और अन्त में परमात्मा तत्व में विलीन हो गये। आइये! नमन करें ऐसी दिव्य विभूति को, प्रेरणा लेते हैं ऐसे अनन्य स्वरूप् से-जिन्होंने अपना भौतिक स्वरूप (देह) माली-सैनी समाज में प्राप्त कर इसे गौरवानिवत किया। दान-दया-धर्म-अहिंसा-मानवता की प्रतिमूर्ति बनकर युगों-युगों के लिए हमारी प्रेरणा के स्रोत बन गये। हमें भी महाराज श्री लिखमीदासजी के जीवन-आदेर्षों को अपना कर मनुश्य धन्य करना चाहिए।

लिखमीदास जी महाराज महाराज के समाधि स्थल: र्इष्वर भक्ति कि साक्षात प्रतिमूर्ति महाराज श्री लिखमीदासजी की समाधि नागौर जिला मुख्यालय से 8 किमी दूरी पर सिथत अमरपुरा ग्राम में है। यहां आपके वंष के ही परिवार आज भी पिवास करते हैं। महाराज श्री की समाधि के अतिरिक्त यहां 2-3 अन्य वंषों के संतों की समाधियां भरी हैं। र्इष्वर के अनन्य भक्त श्री लिखमीदासजी महाराज का समाधि स्थल होने के कारण यह स्थल करोडों लोगों की आस्था का केन्द्र है। देष-प्रदेष-विदेष से यहां आने वाले दर्षनार्थियों का सदैव तांता लगा रहता है। माली समाज के अलावा अन्य जाति, धर्म एवं समुदाय के श्रद्वालु भक्त भी यहां आकर कथा-कीर्तन सत्संग भजन रात्रि जागरण आदि का आयोजन भी करते हैं। जिला मुख्यालय नागौर सडक मार्ग से जुडा होने के कारण यहां यातायात के साधनों की कोर्इ कमी नहीं है। निकटतम रेलवे स्टेषन नागौर ही है। नागौर से बस टैक्सी टैम्पो आदि यात्रियों के लिए सदैव सुलभ हैं। यातायात साधनों की सुलभता से यहां श्रद्वालुओ का आना-जाना बना रहता है किन्तु धार्मिक आयोजनों (कथा-कीर्तन-सत्संग-जागरण के लिए पर्याप्त स्थान एवं सुविधाओं का सर्वथा अभाव है। धर्मप्रेमी यात्रियों के ठहरने धार्मिक सभा-समारोह आदि के आयोजन के लिए भी भवन नहीं है। अत: यहां ठहरने के इच्छुक श्रद्धालुओं को काफी असुविधा का सामना करना पडता है। धार्मिक भावनाओं से जुडे आध्यातिमक स्थल पर स्थायी गृहस्थावास भी समुचित प्रतीत नहीं होता। संत षिरोमणि श्री लिखमीदासजी महाराज ने भä किे जिस चरमोत्कर्श की प्रापित की उस उपलबिध के अनुसार उनका समाधि स्थल तदनुरूप् आकर्शक प्रतीत नहीं होता है। समाधि स्थल के महत्व को बढाने के लिए यह अत्यन्त आवष्यक है कि समाधि स्थल को संत श्री की महिमा के अनुरूप आकर्शक रूप में निर्मित किया जाय। श्रेश्ठ निर्माण तथा पर्यावरण की दृशिट से समाधि स्थल को प्राकृतिक स्वरूप प्रदान करना भी आज की प्रमुख आवष्यकता है। समाधि स्थल ऐतिहासिक स्मारक के रूप में प्रसिद्ध एवं प्रतिशिठत होना चाहिए। संत श्री के स्मृति स्थल को समय की मांग के अनुरूप बनाना हम सबका कर्तव्य है।

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