गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

श्री श्री १००८ श्री स्वामी चेतन गिरीजी महाराज :

      धन्य है सोजत माटी, जहां पर धर्मवीर, संत शिरोमणि श्री श्री १००८ श्रद्धेय चेतनगिरीजी महाराज का प्रादुर्भाव हुआ। धर्म की पवित्र यज्ञवेदी में अपने जीवन की आहुति देने की परम्परा को निभाने वाले स्वामी चेतनगिरीजी महाराज को माली समाज कैसे भूल सकता है। वैसे संतो की कोई जाति नही होती, आत्मा को परमात्मा से जोड़कर मानव जाति को मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बतलाना उनका मुखय लक्ष्य होता है, लेकिन हमारे माली समाज में उनका प्रादुर्भाव है अतः समस्त माली समाज को गर्व है कि ऐसे महान संत का हमारे समाज में उदभव हुआ है।
      पारिवारिक परिचय:   स्वामी चेतनगिरीजी महाराज का जन्म १९६४ में भादवी सुदी २ को सौभाग्यशाली माता चम्पादेवी की कोख से, भाग्यशाली पिता धीसुरामजी टाक के घर पर सोजत नगर में हुआ। घीसूरामजी टाक एक साधारण कृषक थे। जिनके तीन सुपुत्र व तीन सुपुत्री है। जिनके नाम (१) बीजाराम (२) मोहनलाल (३) प्रकाश (चेतनगिरीजी) बहन भोलीदेवी एवं हेमादेवी है। इस प्रकार घीसूरामजी टॉक का साधारण किसान परिवार हॅसी खुशी से जीवन यापन कर रहा था। अचानक बड़े सुपुत्र बीजाराम प्रेत-बाधा से पीडित हो जाता है, ऐसे में लोगो की सलाह पर पिता अपने पुत्र को बर में स्थित संत शिरोमणि जी संतोषगिरीजी महाराज की कुटिया पर ले जाता है, जहां पर बीजाराम प्रेत से मुक्त हो जाते है।
कुछ समय बाद दुःख की छाया बहन भोली देवी पर आती है, जो पुत्र रत्न के अभाव में गृह-क्लेश से ग्रसित हो जाती है। संकट की घड़ी में पिता वापस संतोषगिरीजी की शरण में नीमच की वीरवां गांव की कुटियां पर जाते है। स्वामीजी ने ऊँ नम्‌ शिवाय का जप करने एवं परम पिता परमेश्वर की सता में विश्वास एवं श्रद्धा रखने का गुरू मंत्र दिया। जिस पर अमल करने पर नवें महिने के बाद बहन भोली देवी को पुत्र रत्न प्राप्त होता है। तभी से पूरे परिवार की श्रद्धा स्वामीजी के प्रति अटूट हो जाती है और घीसूरामजी टॉक स्वामीजी को सोजत में पधारने का निवेदन करते है जो सहृदय स्वीकार कर लेते है। सोजत में घीसूरामजी के सहयोग के स्वामीजी कुटिया बनाकर धुणी जगाते है और संतो के आश्रम की नींव उसी दिन से पड  जाती है।
मारवाड़ को बचाने में सैनिक क्षत्रिय जाति की भूमिका
 राजपूत क्षत्रियों से ही है हमारी उत्पति                                     -मदनसिंह सोलंकी
राजपूत माली ये मारवाड  में बहुत ज्यादा है। इनके पूर्वज शहाबुदीन और कुतुबुद्दीन,  ग्यासुद्दीन और अलाउद्दीन आदि दिल्ली के बादशाहों से लड़ाई हार कर जान बचाने के लिए राजपूत से माली हुए। पृथ्वीराज चौहान और उनकी फौज के जंगी राजपूत द्राहाबुद्दीन गौरी से लड कर काम आ गये थे और दिल्ली अजमेर का राज्य छूट गया तो उनके बेटे पोते जो तुर्को के चक्कर में पकड़े गये थे। वे अपना धर्म छोड ने के सिवाय और किसी तरह अपना बचाव न देख कर मुसलमान हो गये जो अब गौरी पठान कहलाते है। उस वक्त कुछ राजपूतो को बादशाह के एक माली ने माली बताकर अपनी अपनी सिफारिश से छुडवा लिया। बाकी पकडे़ और दण्ड दिये जाने के भय से दूसरी कौमों में छुपते रहे। उस हालत में जिसको जिस-जिस कौम में पनाह मिली, वह उसी कौम में रहकर उसका पहनावा पहनने लगे। ऐसे होते-होते बहुत से राजपूत माली हो गये। उनको कुतुबुद्दीन बादशाह ने जबकि वह अजमेर की तरफ आया था सम्वत्‌ १२५६ के करीब अजमेर और नागौर जिलों के गांवों में बसने और खेती करने का हुक्म दिया। ये माली गौरी भी कहलाते है।
      आठ वर्षो तक राजपूत समाज से बहिष्कृत रहने के कारण निराश होकर दो वर्षो तक मालियों के साथ रहे। मालियों के रीति-रिवाज पसन्द नही आने के कारण हमारे पूर्वजों ने राजपूत माली/माली राजपूत/क्षत्रिय माली/सैनिक क्षत्रिय समाज की नींव रखी। युद्ध क्षत्रिय परशुरामजी के वक्त में जबकि वे अपने बाप के बैर में पृथ्वी को निःक्षत्रिय करने में लग रहे थे, मिल गये।
      जोधपुर के मण्डोर में गत ७०० वर्षो से राजघराने के तथा हमारे शमशान एक ही है। जब मण्डोर उद्यान की योजना बनी तब हमारे शमशान को हटाना पडा़ लेकिन उन्हे मण्डोर उद्यान सीमा में ही रखा गया। केवल हमारे समाज के शव मण्डोर उद्यान में प्रवेश कर सकते है, अन्य समाज के नही। महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय का दाह संस्कार किले के पास वर्तमान जसवन्त थडा में किया गया। तब से बाद के राजाओं के दाह-संस्कार यहां ही होते है।
राव ईसर को कहते है, ईसर निकालने का अधिकार केवल राजपूतों को ही है। जोधपुर के मण्डोर में हमारे समाज की ओर से होली के दूसरे दिन ईसर निकाला जाता है। स्वजातीय बंधु ढोल बजाते गाते प्राचीन राज महलों में जाते है तथा वहां फाग खेलते है। गहलोत परिवार के किसी एक व्यक्ति को ईसर बनाया जाता है। वह हमारे राजपूत होने का बहुत बड़ा प्रमाण है। आज भी हमारे और राजपूतों के गौत्र एक ही है। दूसरा एक भी गौत्र नही है।

      राजपूतों की तरह हममें भी पिता के जीवित होते पुत्र कंवर और पौत्र भंवर तथा मृत्योपरान्त ठाकुर कहलाता है। जोधपुर के कर्नल सर प्रतापसिंह के नेतृत्व में सन्‌ १९०० में चीन युद्ध में भाग लिया था। उसमें रिसालदार चतुरसिंह कच्छवाहा व उनके छोटे भाई धुड सिंह दफेदार के रूप में थे। जोधपुर राज्य के रिसाला में केवल  राजपूतों को ही लिया जाता था। नागौर, जोधपुर व बीकानेर नगरों की रक्षार्थ उनके चारों ओर सैनिक क्षत्रिय जातियों को बसाया गया था। नं. ७८३ एफ ६१ भारत वर्ष की मनुष्य गणना के उच्च अधिकारी कमिश्नर दिल्ली ने यह निश्चय किया है कि जो माली अपने को सैनिक क्षत्रिय लिखाना चाहे उनकों आम तौर पर भारत में ऐसा लिख दिया जावे। चाहे भिन्न-भिन्न रियासतों में भिन्न-भिन्न नाम से यह जाति कहलाती है। तमाम  कुनिन्दों के नाम मुनासिब हुक्म जारी किये जावे। इस जाति के लोगों को सैनिक क्षत्रिय (एक जुदा जाति) दर्ज किया जाये।

      एस.डी.बी. एल कोल/एल.टी. कोल, १२.०२.१९३१, अधीक्षक सेन्सस आपरेशन, राजपूताना एण्ड अजमेर मेरवारा उपर्युक्त उदाहरणों व प्रमाणों के आधार पर यह निर्विवाद प्रमाणित है कि सैनिक क्षत्रिय माली क्षत्रिय वर्ग के है।


      (१) मण्डोर पर अधिकांश समय परिहारों का राज्य रहा। वि.सं. १४५० में राना रोपड  को हरा कर बादच्चाह जलालुद्दीन ने मण्डोर पर कब्जा कर लिया। इस तुर्क वंश के १०० वर्ष राज्य के बाद दिल्ली सल्तनत कमजोर हो गई। गुजरात के सुबेदार जाफर खॉ ने मारवाड  पर कब्जा कर दिया। वि.सं. १४५१ में राजपूत वीरों ने ऐबक खॉ और उसके तमाम सैनिकों को घास की तरह काट कर किले पर कब्जा कर बालेसर के राणा उगमसी इन्दा को सूचना दी। लकिन मण्डोर की रक्षा करने में राजा असमर्थ था। ऐसे में विकट समय में अपने प्रधानमंत्री हेमाजी गहलोत की सलाह से राव मल्लीनाथ राठौड़ के ताकतवर भतीजे चूण्डाजी से अपने मुख्य राव धावल की कन्या का विवाह कर मण्डोर दहेज में दे दिया। इस प्रकार बचाया मण्डोर को हेमाजी गहलोत ने बचाया।

      (२) दिल्ली के बादशाह शेरशाह से युद्ध नही करके राव मालदेव छप्पन की पहाडियों में चले गये। जैता और कूंपा आदि सरदारों ने युद्ध किया लेकिन  हार गये। पोष सुदी ग्यारस वि.सं. १६००. में शेरशाह ने जोधपुर तथा किले पर कब्जा कर लिया। खवास खॉ को हाकिम बनाकर शेरशाह दिल्ली चला गया। वि.सं. १६०२ में शेरशाह ने कालिंजर पर चढाई की। किले पर हमला करते समय बारूद फटने से उसकी मृत्यु हो गयी। खवास खॉ किसी काम से जोधपुर से बाहर गया हुआ था। इस अवसर का लाभ उठाते हुए मण्डोर के सैनिक क्षत्रिय (गहलोत) ने जोधपुर तथा किले पर कब्जा कर लिया। खवास खॉ तुरन्त वापस आया लेकिन वह मारा गया। राव मालदेव को सूचना भेज कर बुलाया गया तथा जोधपुर व किला सौंपा। इन लोगो के साहस, वीरता व उल्लेख खयात में देखें।

      (३) राजपूत समाज की परम्परा के अनुसार सैनिक क्षत्रिय जाति की कन्याएं शादी के बाद भी अपने पीहर के गौत्र से सम्बोधित होती है। गौरा धाय टाक की माता का नाम पूरा देवी देवडा तथा पिता का नाम रतना टाक था। गौरा धाय के पति का नाम मनोहर गोपाल भलावत गहलोत है। यह मण्डोर के सैनिक क्षत्रिय समाज के है। जोधपुर पोकरण की हवेली से सटी गोराधाय बावडी है जो इसकी बनवाई हुई है। इसकी छः खम्भों की स्मारक छतरी पब्लिक पार्क के पास कचहरी रोड  पर स्थित है।

      महाराजा जसवन्त सिंह जी का स्वर्गवास वि.सं. १७३५पोष बदी १० को जमरूद के थाने पर हुआ। गौराधाय टाक ने मेहतरानी का रूप धारण कर और जोधपुर महाराजा प्रथम के राजकुमार अजीतसिंह के स्थान पर उनके सम वयस्क अपने पुत्र को सुला कर अजीत सिंह को औरंगजेब के सखत, सतर्क, चौकस शासन में दिल्ली से किच्चनगढ के राज रूपसिंह की हवेली से उठाकर कालबेलिया बने मुकनदास खीची को गौपनीय रूप में सौपा। एक जननी के लिए अपनी सन्तान उसकी सम्पूर्ण अस्मिता होती है। मारवाड  के द्राासन में गौराधाय टाक बलिदान निर्णायक था अन्यथा जोधपुर का स्वरूप दूसरा होता। पन्ना का और गौरां का त्याग एक जैसा है।
मेवाड़ की पन्ना धाय, त्याग गौरां का जौर।

      (४) हस्ती बाई जी गहलोत पत्नी राधाकिच्चन जी सांखला थलियों का बास सोजती गेट के अन्दर जोधपुर ने महाराजा सरदारसिंह को अपना दूध पिलाया था। उदपुर तथा बीकानेर के महाराजाओं की धाय सैनिक क्षत्रिय समाज की थी। उपर्युक्त सभी कारणों को मध्य नजर रखते हुए जोधपुर के महाराजा उम्मेदयिंह जी की हमें वापिस राजपूत समाज में मिलाने की योजना भी थी, जो सन्‌ १९३० के आसपास की है।
        
क्षत्रिय मालियों के चलु, गोत, खांप, प्रशासक नूख

चौहान- सूरजवंशी, अजमेरा, निरवाणा, सिछोदिया, जंबूदिया, सोनीगरा, बागडीया, ईदोरा, गठवाला, पलिकानिया, खंडोलीया, भवीवाला, मकडाणा, कसू, भावाला, बूभण, सतराबल, सेवरीया, जमालपुरीया, भरडीया, सांचोरा, बावलेचा, जेवरीया, जोजावरीया, खोखरीया, वीरपुरा, पाथ्परीया, मडोवरा, अलुघीया, मूधरवा, कीराड वाल, खांवचां, मोदरेचा, बणोटीया, पालडि या, नरवरा बोडाणा, कालू, बबरवाल।

राठौड - सूरजवंशी, कनवारिया, घोघल, भडेल, बदूरा, गढवाल, सोघल, डागी, गागरिया, कस, मूलीया काडल, थाथी, हतूडीया, रकवार, गद्दवार दइया, बानर, लखोड , पारक, पियपड , सीलारी इत्यादि।

कच्छवाहा- सूरजवंशी, नरूका राजावत, नाथावत, द्रोखावत, चांदावत।

भाटी- चन्द्रवंशी, यादव (जादव), सिंधडा, जसलमेरा, अराइयां, सवालखिया, जादम, बूधबरसिंह, जाडेजा,महेचा, मरोटिया, जैसा, रावलोत, केलण, जसोड ।

सोलंकी- चन्द्रवंशी चालूक्या, लूदरेचा, लासेचा, तोलावत, मोचला, बाघेला।

पडि हार- सूर्यवंशी, जैसलमेरा मंडोवरा, बावडा, डाबी, ईदा, जेठवा, गौड , पढिहारीया, सूदेचा, तक्खी।

तुंवर- चन्द्रवंशी, कटीयार, बरवार, हाडी, खंडेलवाल, तंदुवार, कनवसीया, जाठोड कलोड ।

पंवार- चन्द्रवंशी, परमार, रूणेचा, भायल, सोढा, सांखला, उमठ, कालमा, डोड, काबा, गलेय (कोटडीया)।


गहलोत- सूर्यवंशी, आहाड़ा, मांगलीया, सीसोदिया, पीपाडा, केलवा, गदारे, धोरणीया, गोधा, मगरोया, भीमला, कंकटोक, कोटेचा, सोरा, उहड , उसेवा, निररूप, नादोडा, भेजकरा, कुचेरा, दसोद, भटवेरा, पांडावत, पूरोत, गुहिलोत, अजबरीया, कडेचा, सेदाडि या, कोटकरा, ओडलिया, पालरा, चंद्रावत, बूठीवाला, बूटीया, गोतम, आवा, खेरज्या, धूडेचा, पृथ्वीराज गेलो, आसकरण गेलो, भडेचा, ताहड , गेलोत, मूंदोत, भूसंडिया, दोवड , चन्द्रावत, बागरोया, सादवा, रंगिया।

नोट- चौहान, देवडा टाक, यह तीनों एक परिवार है और सूर्यवंशी है।
१. देवडा, देवराट, निरवाणा के बेटे का है, यह चौहानों की शाखा है।
२. टाक सदूल का बेटा है जो चौहानों की शाखा है।
३. सांखला पंवारों के भाई है और सखल, महप, धवल, उदिया, दतोत के ८वां पुत्र है।

नोट-
१. चौहान खांप के टाक पूना के तथा मारोटिया जैसिंह के है तथा खांप भाटी जादम व तंवर की नख तूदवाल है।
२. सैनिक क्षत्रिय का मुख्य शहर नागौर है तथा अपने रोजगार के लिए अन्य जगहों पर आबाद हो गये।
३. सैनिक क्षत्रिय शादी ३६ जातियों में ही करें लेकिन अन्य सामाजिक कार्य बाह्मणों के
साढे छः गौत्रों की तरह मिलकर कार्य करें।

"महिमा संत श्री लिखमीदास जी री" भजन संग्रह का विमोचन


मुंबई ! नदीम श्रवण की जोड़ी के नाम से मशहूर फिल्म संगीतकार श्रवण राठौड़ एवं योगरस पत्रिका के संपादक ज्ञानेंद्र पाण्डेय के हाथो से भजन लेखक और पत्रकार दिनेश्वर माली रोहिडा की लिखी हुई माली सैनी समाज के संत श्री लिखमिदास जी की किताब " महिमा संत श्री लिखामिदास जी री " का विमोचनसंपन्न हुआ !मालीराज पब्लिकेशन मुंबई द्वारा प्रकाशित इस किताब को मारवाड़ी भाषा में लिखा गया है ! जिस में माली समाज के संत श्री लिखमिदास जी पर लिखी हुई कथा और भजनों का लेखन और संकलन किया गया है !
पुस्तक की प्रस्तावना मुंबई शहर के जाने पहचाने वकील और समाजसेवी एम डी माली ने लिखी है ! माली ने प्रस्तावना में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है की पानी और प्रतिभा कभी भी किसी का इन्तजार नहीं करती है वह अपना रास्ता स्वयं बना लेती है ! यह पुस्तक माली समाज के बंधुओ और धर्म प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगी ! इस पुस्तक सहित अन्य हिंदी एवं मारवाड़ी भाषा में ७ किताबो के लेखन हेतु लेखक दिनेश्वर माली को मानवाधिकार सेवा संस्थान राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष श्री महेंद्र भाटी द्वारा " किशान कवि " की उपाधि से सम्मानित भी किया जा चूका है !इस किताब के सफल प्रकाशन और लेखन पर दिनेश्वर माली को गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी , राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत , महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री छगन भुजबल, राजस्थान माली समाज शिक्षण प्रचार समिति मुंबई के अध्यक्ष के अपने शुभकामना सन्देश प्रदान करते हुए अतिव प्रसन्नता व्यक्त की है !
राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने अपने शुभकामना सन्देश में प्रसन्नता व्यक्त करते हुए लिखा है कि मै संत श्री लिखामीदास जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए कवि दिनेश्वर माली को उनके भजन संग्रह के लेखन और प्रकाशन की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाए प्रदान करता हु !
गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शुभकामना सन्देश में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि राजस्थान में मीरा के भजनों और पदों का भक्तिमय वातावरण रहा है, यह वातावरण मनुष्य को भक्ती संगीत और संस्कृति से जोड़े रखता है ! मारवाड़ की धरती पर " महीमा संत श्री लिखामीदास जी री " के भजनों को जन जन तक पहुचने का आप ने उत्तम प्रयास किया है !
ज्ञात रहे कि लिखमीदास जी यह किताब प्राप्त करने और पढ़ने के लिए आप खबरे गौरव मुंबई से मो न - 09969643347  पर सम्पर्क कर सकते है !
किताब -----"महिमा संत श्री लिखमीदास जी री"
लेखक ----- दिनेश्वर माली रोहिडा
प्रकाशक ---मालीराज पब्लिकेशन मुंबई
वितरक -- खबरे गौरव मुंबई
09969643347

"महिमा संत श्री लिखमीदास जी री" भजन संग्रह का विमोचन

मुंबई ! नदीम श्रवण की जोड़ी के नाम से मशहूर फिल्म संगीतकार श्रवण राठौड़ एवं योगरस पत्रिका के संपादक ज्ञानेंद्र पाण्डेय के हाथो से भजन लेखक और पत्रकार दिनेश्वर माली रोहिडा की लिखी हुई माली सैनी समाज के संत श्री लिखमिदास जी की किताब " महिमा संत श्री लिखामिदास जी री " का विमोचनसंपन्न हुआ !मालीराज पब्लिकेशन मुंबई द्वारा प्रकाशित इस किताब को मारवाड़ी भाषा में लिखा गया है ! जिस में माली समाज के संत श्री लिखमिदास जी पर लिखी हुई कथा और भजनों का लेखन और संकलन किया गया है !
पुस्तक की प्रस्तावना मुंबई शहर के जाने पहचाने वकील और समाजसेवी एम डी माली ने लिखी है ! माली ने प्रस्तावना में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है की पानी और प्रतिभा कभी भी किसी का इन्तजार नहीं करती है वह अपना रास्ता स्वयं बना लेती है ! यह पुस्तक माली समाज के बंधुओ और धर्म प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगी ! इस पुस्तक सहित अन्य हिंदी एवं मारवाड़ी भाषा में ७ किताबो के लेखन हेतु लेखक दिनेश्वर माली को मानवाधिकार सेवा संस्थान राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष श्री महेंद्र भाटी द्वारा " किशान कवि " की उपाधि से सम्मानित भी किया जा चूका है !इस किताब के सफल प्रकाशन और लेखन पर दिनेश्वर माली को गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी , राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत , महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री छगन भुजबल, राजस्थान माली समाज शिक्षण प्रचार समिति मुंबई के अध्यक्ष के अपने शुभकामना सन्देश प्रदान करते हुए अतिव प्रसन्नता व्यक्त की है !
राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने अपने शुभकामना सन्देश में प्रसन्नता व्यक्त करते हुए लिखा है कि मै संत श्री लिखामीदास जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए कवि दिनेश्वर माली को उनके भजन संग्रह के लेखन और प्रकाशन की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाए प्रदान करता हु !
गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शुभकामना सन्देश में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि राजस्थान में मीरा के भजनों और पदों का भक्तिमय वातावरण रहा है, यह वातावरण मनुष्य को भक्ती संगीत और संस्कृति से जोड़े रखता है ! मारवाड़ की धरती पर " महीमा संत श्री लिखामीदास जी री " के भजनों को जन जन तक पहुचने का आप ने उत्तम प्रयास किया है !
ज्ञात रहे कि लिखमीदास जी यह किताब प्राप्त करने और पढ़ने के लिए आप खबरे गौरव मुंबई से मो न - 09969643347  पर सम्पर्क कर सकते है !
किताब -----"महिमा संत श्री लिखमीदास जी री"
लेखक ----- दिनेश्वर माली रोहिडा
प्रकाशक ---मालीराज पब्लिकेशन मुंबई
वितरक -- खबरे गौरव मुंबई
09969643347

धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में प्रदेश को दिलाएंगे पहचान

नागौर में संत लिखमीदास जी की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा समारोह

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने कहा कि हम अपनी संस्कृति, देवी-देवताआें व संत- महात्माआें के आशीर्वाद से धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में प्रदेश को पहचान दिलाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 11 धार्मिक स्थलां का जीर्णोद्धार करने का कार्य हमने अपने हाथ में लिया है, जिसकी डीपीआर बना ली गई है।
श्रीमती राजे सोमवार को जिले के अमरपुरा ग्राम में संत लिखमीदास महाराज के मंदिर मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा एवं स्मारक लोकार्पण समारोह में बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि सरकार की योजना है कि प्रदेश के 33 जिलां में स्थित देवी-देवताआें के मंदिर स्थानीय श्रद्धालुओं के अलावा देशभर के लोगों के लिए आस्था का केन्द्र बनें। उन्हांने कहा कि जोधपुर से रामदेवरा तक पैदल जाने वाले यात्रियां के लिए अच्छा और सुन्दर मार्ग बनेगा। पदयात्रियां को परेशानी ना हो इस बात को ध्यान में रखते हुए अगले दो वर्षां में जोधपुर से रामदेवरा तक पदयात्रियां के लिए मार्ग में विभिन्न सुविधाएं विकसित की जाएंगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में पहली बार गोपालन मंत्रालय की स्थापना के साथ गोपालन की स्थाई नीति बन रही है। साथ ही हर जिले में एक नंदिगोशाला की स्थापना की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार एक हजार छह सौ गोशाला अपने अधीन ले रही है, जिसमें गायों का बेहतर रख-रखाव हो सकेगा। अनुदान की राशि सरकार द्वारा दी जाएगी। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि गायों को सड़कों पर घूमने के लिए नहीं छोड़ें ताकि उसे प्लास्टिक खाने पर मजबूर नहीं होना पड़े। सरकार के साथ-साथ आमजन भी गायों के संरक्षण में अपनी भूमिका निभाएं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नागौर जिले को हिमालय का मीठा पानी मार्च 2018 तक मिलना प्रारम्भ हो जाएगा। नहर के पानी से नागौर जिले को जोड़ने के लिए साढ़े तीन हजार करोड़ रूपये का कार्य चल रहा है। इसके द्वारा जिले के 11 शहर, 1075 गांव एवं 3667 ढाणियां में हिमालय का मीठा पानी पहुंचेगा। उन्हांने कहा कि जिले में छह हजार करोड़ रूपये की लागत से सड़क निर्माण का कार्य किया जा रहा है। नागौर के राजकीय अस्पताल में आधुनिक उपकरणां सहित विशेषज्ञ सेवाआें का विस्तार किया जाएगा, जिससे यहां के लोगां को बेहतर इलाज के लिए अन्यत्र नहीं जाना पडे़गा। उन्हांने कहा कि विकास और जनहित के कार्यां के लिए राज्य सरकार धन की कमी नहीं आने देगी।

आर्शीवाद ही आर्शीवाद लेने का मौका

श्रीमती राजे ने कहा कि आज के दिन मुझे आर्शीवाद ही आर्शीवाद मिल रहे है। संत शिरोमणी लिखमीदास के मंदिर का दर्शन लाभ हुआ। साथ ही रामापीर, द्वारकाधीश, सीताराम और हनुमानजी के दर्शन का लाभ लिया। ये तो सोने पे सुहागा जैसी बात हो गयी।

जल स्वावलम्बन में करें सहयोग

मुख्यमंत्री ने मंच पर बैठे परमपूजनीय रामप्रसादजी महाराज, कुशलगिरीजी, नृसिंहजी महाराज सहित सभी संतां से आग्रह किया कि आगामी 9 दिसम्बर को मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के दूसरे चरण के शुभारम्भ में आप अपना सहयोग दें। आपके आर्शीवाद से ही यह अभियान और ऊंचाइयां छुएगा।
इस अवसर पर जिला प्रभारी एवं जलदाय मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी, सार्वजनिक निर्माण मंत्री श्री यूनुस खान, कृषि मंत्री श्री प्रभुलाल सैनी, सहकारिता मंत्री श्री अजयसिह किलक, शिल्प एवं माटी कला बोर्ड अध्यक्ष श्री हरीश कुमावत, विधायक श्री हबीर्बुरहमान, श्रीमती मंजू बाघमार, श्री श्रीराम भींचर, श्री मनोहरसिंह, श्री मानसिंह किनसरिया सहित जनप्रतिनिधि एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
राजस्थान माली-सैनी कुशवाहा समाज एवं २१ वीं सदी का आह्वान 

     राजस्थान में अपना समाज माली सैनी काछी, (कुशवाह) सगरवंशी भोई कीर कोयरी शाक्य, मुरार मौर्य आदि नामों से जाना जाता है। ये सभी शाखाएं साग-सब्जी, फल-फूल काकड़ी तरबूज आदि की  खेती का व्यवसाय सदियों से करते तथा बेचते  आ रहे है। यह क्षेत्रीय समाज एक ही माला के फूल व मोती है। यह किसान समाज सीधा-साधा, मेहनतकश , रात-दिन सर्दी-गर्मी वर्षा में काम करने वाला भारत के अधिकांश गांवों जिलों में बसा हुआ है। भारत में इनकी जनसंखया करीब १४ करोड  एवं राजस्थान में करीब ४८ लाख है। अन्य पिछडी जातियों में इसकी जनसंखया भारत व राजस्थान में सबसे अधिक है। ये मूल रूप से क्षत्रिय थे। मुसलमान शासको के समय में अलग-अलग धन्धा अपना लिया तथा धन्धा करने वाले माली-सैनी कुशवाह हो गये। काछी (कुशवाह) माली राजस्थान में करीब ८ लाख है तथा धौलपुर में बडी संख्या में है भरतपुर, कोटा जिलों में काफी संखया में है। कीर-कोयरी नदियों के किनारें जोधपुर, अजमेर में कुछ संखया में बसा हुआ है। शाक्य की कम संख्या में श्रीगंगानगर में बसा हुआ है। सभी शाखाओं का खान-पान, रहन-सहन, वेश भूषा आदि एक जैसा है। इन शाखाओं में शादी ब्याह होते आये है।
कुशवाह क्षत्रिय महासभा की स्थापना बाबू श्री हरिप्रसाद वैष्णव की अध्यक्षता में सन्‌ १९१२ मार्च मास में चुनार में की गई। तथा स्वर्गीय जे.पी. चौधरी ने कुशवाह शाक्य, मौर्य, कोयरी आदि को एकीकरण का महामंत्र दिया और कुशवाह महासभा की स्थापना की। जोधपुर में विक्रम सवंत्‌ १९५४ (सन्‌ १८९८) के वैशाख माह में मण्डोर रोड़ जोधपुर में श्री पुरखाराम जी सांखला ठे. श्री साहिबाराम जी गहलोत ठे. श्रीपोकर कच्छवाहा ठे. श्री मगजी कच्छवाहा आदि ने माली सभा की स्थापना कर बच्चों की च्चिक्षा के लिए स्कूल खोलने का निर्णय लिया और १९ अगस्त १८१८ को श्री सुमेर स्कूल की स्थापना की गई। राजपुताना प्रदेश के जोधपुर से श्री जगदीश सिंह गहलोत श्री नेनुराम जी सांखला श्री चतुर्भुज जी गहलोत श्री साहिबाराम जी गहलोत व अजमेर से ठाकुर भेरूसिंह कच्छवाहा आदि ने माली नाम की जगह सैनी (सैनी क्षत्रिय) लिखने का प्रयास सन्‌ १९२१ से प्रारम्भ किया। सन्‌ १९१५ में पंजाब में माली (सैनी) भागीरथी माली सगरवंशी, कीर-कोयरी, मुराव, महुर आदि की एक सभा राय बहादुर दीवान चन्द गहलोत बटाला जिला गुददासपुरा की अध्यक्षता में की गई और सभी मालियों को एक मंच पर लाये तथा महासभा की स्थापना की। स्व. लालमणी स्व. भरतसिंह इन्द्रसिंह आदि ने पंजाब रोहतक अम्बाला में यंगमेन सभा की स्थापना की और मालियों के स्थान पर सैनी लिखने के लिए पंजाब सरकार को कई पत्र लिखे, अन्त में मर्दुम शुमारी कमीश्नर दिल्ली डॉ.जे.एच. हुटन ने १९ जनवरी १९३१ को सभी प्रकार के मालियों को माली नाम की जगह सैनी लिखा जाय की मान्यता प्रदान की।
माली (सैनिक क्षत्रिय) महासभा एवं कुशवाह क्षत्रिय महासभाओं में पिछले १०० सालों से अलग-अलग एवं एक साथ सम्मेलन कर एकीकरण का प्रयास किया। ३०-३१ दिसम्बर१९७३ को ऑल इण्डिया सैनी सभा विज्ञान भवन दिल्ली में सेठ बिहारी लाल जी की अध्यक्षता में हुआ। सन्‌ १९७४ में श्री गोरेलाल शाक्य विधायक की अध्यक्षता में लखनऊ में सम्मेलन हुआ। १२ दिसम्बर१९८३ में अजीतकुमार मेहतो सांसद की अध्यक्षता में सम्मेलन हुआ एवं श्री दयाराम शाक्य सांसद को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। २५-२६ अगस्त १९९० को मस्जिद मोठ नई दिल्ली में विशिष्ठ अतिथि श्री दयाराम शाक्य एवं मुखय अतिथि उपेन्द्रनाथ केन्र्दीय मंत्री आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। १८-१९ जनवरी १९९२ को मुंबई में सरदार रेशमसिंह आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। २० दिसम्बर १९९३ पुणें में तत्कालीन राद्गट्रपति माननीय श्री शंकरदयाल शर्मा मुख्य अतिथि एवं विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पवार एवं श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। ७-८ जून १९९७ को  मध्यप्रदेश में श्री बाबुलाल  कुशवाह के संयोजक में सभी शाखाओं के एकीकरण के लिए सम्मेलन का आयोजन हुआ। १४-१५ अप्रेल १९८८ को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चौधरी इन्द्रराज सिंह सैनी की संयोजकता एवं श्री मोतीलाल  कुशवाह  वाराणसी की अध्यक्षता में सम्मेलन आयोजित किया गया। २० नवम्बर १९९९ को भोपाल में श्री बी.एल. पटेल की संयोजकता एवं श्री लिखीराम कावरे की अध्यक्षता में सम्मेलन का आयोजन हुआ। फरवरी २००० को दिल्ली के लाल किला मैदान में इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल  कुशवाह की अध्यक्षता में एवं मुख्य अतिथि दिल्ली  मुख्यमंत्री इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल की अध्यक्षता में एवं दिल्ली  की मुख्यमंत्री  श्रीमती शीला दीक्षित के आतिथ्य में सम्मेलन का आयोजन किया गया। १० मार्च २००६ को महात्मा फूले समता परिषद के तत्वाधान में राम लीला मैदान दिल्ली में विशाल रैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में हुई जिसमें विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पंवार (कृषिमंत्री) एवं श्री लालू प्रसाद (रेल्वे मंत्री) आदि उपस्थित थे। १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारेली राद्गट्रीय अध्यक्ष श्री छगन भुजबल के स्वागत में उपेन्द्रनाथ में समाज की सभी शाखाओं  के बुद्धिजीवी, हजारों-लाखों भाई-बहिन, सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता संगठित होकर एक मंच पर आये तथा समाज में जागृति आई, सामाजिक न्याय एवं जनसंख्या के आधार  प्रशासन, राजनीति में अपनी भागीदारी पाने का संकल्प किया।
राजस्थान प्रदेश में समाज के भाइयों की सामाजिक आर्थिक, प्रशेक्षणिक राजनैतिक स्थिति की जानकारी अत्यंत आवश्यक है आज प्रदेश की दो सौ विधान सभा क्षेत्रों में ३०-३१ विधान सभा क्षेत्र ऐसे है जहां हमारे समाज को २५०० से ४०००० और अधिक मतदाता है तथा ६० विधान सभा क्षेत्रों में १०-१२ हजार से २४००० मतदाता है। लोक सभा क्षेत्र में ३ ऐसे है जहां हमारे समाज के २ लाख से अधिक मतदाता है तथा ८०-१०० लोक सभा क्षेत्रों १ लाख से १.५० लाख तक मतदाता है। वहां हमारे औसतन ३ से ५ विधायक जीत पाते है लोक सभा सदस्य कभी कभार १ ही जीत पाता है जहां इसमें कम आबादी वाली चतुर बोलचाल, धनवान जातियों के १२-३५ विधायक एवं १-८ तक लोक सभा सदस्य जीत जाते है। प्रदेश में करीब १०० स्थानीय निकायें है। उनमें ३४-३५ ही अपने अध्यक्ष/उपाध्यक्ष व ४५०-५०० पार्षद जीत पाते है ये तो ऐसी निकायें है जहां से अध्यक्ष/उपाध्यक्ष और इतने ही पार्षद अपने आप जीतते आयें है। ग्राम पंचायतों के चुनाओं में हमारे १५०-२०० सरपंच व उपसरपंच एवं ८-१० प्रधान/उपप्रधान ही बन पाते है, जहां हजारों गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होत हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच पंचायत समिति/सदस्य/जिला परिद्गाद/सदस्य/प्रधान आदि नही जीत पाते। यहां तक कई निकायों में हमारे ५.१२ पार्षद होते हुए भी अध्यक्ष उपाध्यक्ष नही जीत पाते तथा कई ग्राम पंचायतों में कई सरपंच समिति सदस्य जिला परिषद सदस्य जीते हुए है तो भी प्रधान/उपप्रधान आदि नही जीत पाते। अन्य उच्च चतुर , धनवान, बाहुबली जातियों का जीता एक ही सदस्य उच्च पद प्राप्त कर लेता है ये जातियां राजनैतिक प्रशासनिक क्षेत्रों में लम्बे समय से राजनैतिक सत्ता व धन का सुख भोग रही है ये येन  केन प्रकारेण अन्याय करके भी आपको आगे नही आने देती है और आपको को सामाजिक न्याय एवं सत्ता की भागीदारी नही मिलती है।
उच्च चतुर,  धनवान जातियां जिला प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में उच्च पद प्राप्त कर लेती है। टिकट चयन समितियों में पार्टी में पर्यवेक्षक, अध्यक्ष, मंत्री आदि पद प्राप्त कर पार्टी विकट बांटते  समय टिकटों का बटवारा चाहे विधायक का हो लोग सभा का हो या पार्षदो, अध्यक्षों एवं सरपंच प्रधान आदि को हो अधिक से अधिक टिकट अपने  चहेते लोगों को अपने जाति वर्ग या जो आगे उन्हे व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाले को दे देते है। इन जातियों के व्यापारी, उच्च अधिकारी, नेता लाभकारी पदों पर रह कर भ्रष्ट तरीकों से खूब धन बटोरकर राजनीतिज्ञों को चन्दा देकर तन मन धन से मदद कर जिताते है या खुद टिकट प्राप्त कर धन, बल से जीत जाते है। चयन समिति में टिकट दिलाने की पैरवी करने वाला कोई व्यक्ति नही होता अतः हमें टिकट नही मिलता। कई बार पार्टी टिकट जीतने वाले व्यक्ति को उनके पक्ष के क्षेत्र का न देकर अनुभवहीन हारने वाले व्यक्ति को समाज के प्रतिनिधित्व के रूप में उसे क्षेत्र से टिकट देती जहां अपने समाज के पर्याप्त मत नही होते। ये लोग अपने प्रत्याच्ची को जिताने के लिए कई भ्रद्गट तरीके अपनाते है, झूठी अफवाहे फैला देते है, भय पैदा करके और भोले लोगों को आपस में लड़ाते व गुमराह करते रहते है। प्रशासन-प्रेस आदि भी उन्ही के समर्थन में प्रचार करते रहते है। विभिन्न संस्थाओं, उद्योगों यूनियनों का संचालन करते पदाधिकारी हो तो उन संस्थाओं से जुडे व्यक्तियों को अपने प्रभाव में रखते है। नेताओं, समाज सेवियों, प्रभावशाली व्यक्तियों, कलाकारों आदि को प्रचार के लिए बुलाते, अत्यधिक पैसा खर्च करते, वोटर से वोट प्राप्त करने के कई हथकंडे अखतीयार करते हैं जीत जाते है। आज ये चतुर उच्च बलशाली धनवान जातियां, लाभकारी पदों पर पहुँच कर सभी प्रकार के सुख भोग रही है। आज सभी प्रकार की सम्पन्न जातियां संगठित होकर कई तरह के दावपेज खेलकर शासन, प्रशासन, न्यायपालिका प्रेस में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया हुआ है। ये गर्व से कहते हैं कि पिछडी जातियां राज करने के योग्य नही है जब कि हम सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट सूर सैन, महात्मा बुद्ध, लव- कुश एवं महात्मा ज्योति बा फूले सन्तान है उनके जैसा पराक्रम एवं शौर्य हमारी रग रग में विद्यमान है।
आज स्वतंत्रता के ६० साल बाद भी १४ करोड़ जनसंखया वाला समाज कई शाखाओं और उपशाखाओं, महासभाओं के नाम पर स्थान-स्थान पर पृथक अस्तित्व बनाये हुए है। विशाल भारत में हमारी अपारजनशक्ति होते हुए भी सामाजिक प्रशासनिक  राजनीतिक स्थिति सबसे कमजोर है इस घोर उपेक्षा का बदला संगठित होकर ही ले सकते है और सामाजिक अन्याय का बोलबाला समाप्त कर सकते है इसके लिए समाज को सही नेतृत्व की आवच्च्यकता है। हमे एक मंच पर संगठित होकर पहले से ही रणनीति तय करनी होगी। राद्गट्रीयकृत पार्टियों से प्रयास कर अधिक टिकट प्राप्त करने होंगे। धाराओं वाले वर्गों से मिलकर क्षेत्रीय पार्टियों से ताल-मेल करना होगा। उन पार्टियों में उच्च पद प्राप्त करने होंगे। इसके लिए राजनीतिज्ञों बुद्धिजीवियों, विद्ववानों समाजसेवियों को एक सूत्र में संगठित होना होगा। शक्ति का प्रदर्शन करना होगा, संघर्ष करना होगा। हाल ही में प्रदेच्चों में विधान सभा व अन्य चुनवों में क्षेत्रिय पार्टियों का दबदबा जबरदस्त रहा। कुछ निर्दलियों का भी रहा। भारत के कई प्रदेच्चों में क्षेत्रिय पार्टियों ने मिलजुल कर सरकारें बनायी है। आज प्रान्तीय सरकार हो या भारत सरकार की कई पार्टियों से मिलकर सरकार बनाई जाती है। आज गठबन्धन की राजनीति की आवश्यकता है। राजनीतिक ही विकास की चाबी है। राजनीतिक दलों में समाज की भागीदारी कैसे बढी ? इसके लिए हमें गुटबाजी समाप्त कर व्यक्तिगत स्वार्थ त्याग कर मतभेद भुलाकर प्रदेच्चा की राजधानी में द्राक्ति प्रदर्च्चन करना होगा। तभी हमारा जनाधार मजबूर होगा हमारी पूछ होगी। इसकी एक महारैली का उद्देच्च्य समाज की सभी शाखाओंको संगठित कर एक मंच पर लाना, आर्थिक सामाजिक राजनैतिक चेतना पैदा करना, सामाजिक न्याय एवं जनसंखया के आधार पर राजनैतिक प्रच्चासन,के प्रत्येक तहसील/जिला स्तर पर समाज के लोगो को संगठित करना होगा। हमारे पास वोटो की द्राक्ति है आज तक हम किसी अन्य को दोद्गा देते आये है। अब हमें उनके वोट लेने है। आज सिद्धान्त विहीन एवं दिच्चा विहीन राजनीति में मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया हेै वह तय नही कर पाता कि किसे व किस पार्टी को मत देकर जीताना है जिससे हमारा भला हो सकेगा। हमे संगठन राजनीतिकक जागृति, सक्रियता में उत्पन करनी है। जिस क्षेत्र से व्यक्ति खड़ा होना चाहता है। वहां समाज की पर्याप्त संखया हो दुसरे वर्गों पर अच्छा प्रभाव हो इतना प्रभाव व द्राक्ति व इस समाज के अलावा वहां से कोई जीत नही सकता। वहां से समाज का योग्य (राजनीतिज्ञों की दक्षता प्राप्त) च्चिक्षित, सेवाभावी जीतने वाला जिसमें आत्मबल हो, निर्णय द्राक्ति हो, क्षेत्र की पूरी जानकारी व बूधवार कार्यकर्ताओं की पूरी टीम हो, आगे ऊचे पद पर पहुचने की क्षमता रखता हो पार्टी का सक्रिय सदस्य, वफादार व उच्च पद पर हो, आर्थिक स्थिति सुदृढ हो अन्य कार्यकर्ता उनकी जीत का भरोसा पार्टी नेताओं को देवें, उसे संगठित होकर खड ा करना है व तन-मन धन से प्रयास करे तो हमें सफलता मिलेगी। इस तरह हमारे १२ से १५ विधायक और इससे अधिक निकायों पर समाज के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष जीत सकते है तथा १००० से अधिक पार्द्गाद जीत सकते है। इसी तरह चुनावी रणनीति अपनाकर पंचायत समिति, जिला परिद्गाद, सरपंच, उपसरपंच, प्रधान, उपप्रधान आदि के चुनाव लड े जाय तो पहले सभी दुगुने सभी पद प्राप्त कर सकते है। इससे समाज में राजनीतिक चेतना आयेगी, संगठन बनेगा तथा समाज एक द्राक्ति बनकर उभरेगा। करीब ९० से १०० विधान सभा क्षेत्रों में समाज के मतदाता चुनाव परिणाम निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकेंगे, ऐसे में पार्टियां समाज के पतों पर नजर रखेगी। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी महिलाओं के लिए ३३ प्रतिच्चत आरक्षित वार्ड/पंचायतें है उसमें २१ प्रतिच्चत ओ.बी.सी. महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों के पार्द्गाद अध्यक्ष/उपाध्यक्ष आदि पर भी आरक्षित है। वहां से समाज की च्चिक्षित अनुभवी, सक्रिय महिलाओं को टिकट दिलाकर हर हालत में जीताना है। पार्टी टिकट नही दे तथा ओ.बी.सी. क्षेत्र है तो जीतने वाली निर्दलीय महिला खडाकर देना है। सक्रिय महिलाओं को पहले से सभा-सम्मेलनों में बुलाकर जागृत कर उन्हे आगे लाना है।
 राजनीति में युवा शक्ति की भागीदारी :
प्रजातंत्र में युवा शक्ति जो सबसे अधिक है बहुत महत्व रखती है। यह सुन्दर काल है इस काल में मनुद्गय का शारीरिक मानसिक शक्ति मार्गदर्शन दिशा निर्दश तथा समय-समय पर शिक्षण प्रशिक्षण की आवश्यकताहै ताकि वो कुछ सीख सके, भला बुरा समझ सके, गलत रास्ते पर न भटक सके, उन्हे अपने जीवन में आगे बढने का लक्ष्य बनाना है। युवाओं को सम्मेलन सेमीनार, गोष्ठियो सम्मेलन रेलीयों धरना आदि में भाग लेना है एवं ट्रेनिंग केम्प रखकर सामाजिक, राजनीतिक जागृति लानी है ताकि वे निडर होकर कार्य कर सकेंगे, तथा स्वतंत्रता से कार्य करने का निर्णय खुद कर सकेंगे। समाज के च्चिक्षित अनुभवी, प्रभावच्चाली सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जिला व प्रान्तीय स्तर पर युवकों-युवतियों में राजनीतिक रूचि जागृह कर राजनीति में आगे लाना है।

     निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन चुनाव आयोग द्वारा हो गया है। आने वाले विधान सभा लोक सभा चुनाव नये निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर होंगे। इस बार कई विधान सभा लोक सभा क्षेत्रों में अपने समाज का जहां बाहुल्य है सुधर चुके है। अनुसूचित एवं जनजाति के क्षेत्रों के जहां अपने समाज का बाहुल्य है बदल कर पुनर्गठन कर सामान्य क्षेत्र किये गये है। अब एक विधान सभा क्षेत्र में करीब १.५० लाख से २ लाख मतदाता के हिसाब से रखे जायेंगे। आने वाले समय में राजस्थान में भी मिली जुली सरकार बन सकती है। क्षेत्रीय दलों के नेता तीसरा जन मोर्चा बन सकते है। हालाकि अभी कांग्रेस व भा.ज.पा. को छोड़कर कुछ पार्टियों के एक या दो विधायक ही जीत पाये है अन्य पार्टियों का कोई स्थान नही है। राजस्थान में अभी तक कांग्रेस व भाजपा पार्टियां ही शक्तिशाली रही है परन्तु आने वाले चुनाओं के समय में तीसरी द्राक्ति जनमौर्चा के रूप में नई पार्टी राजस्थान में बनाई जायेगी या अन्य पार्टियां अलग-अलग अपने बैनर तले अपना प्रत्यासी खडा करेगी। अतः आप पिछडी जातियों का संगठन बनाकर नेतृत्व लेकर आगे बढ सकते है या स्थानीय पार्टियों का प्रदेच्च स्तर पर जनमौर्य बनाकर आगे आना होगा। यह पार्टी बी.जे.पी. व कांग्रेस के मतों का बंटवारा कर कई क्षेत्रों में जीत सकेगी। आने वाले समय में त्रिशंकु सरकार बनने की सम्भावना रहेंगी।
राजस्थान माली-सैनी कुशवाहा समाज एवं २१ वीं सदी का आह्वान :


     राजस्थान में अपना समाज माली सैनी काछी, (कुशवाह) सगरवंशी भोई कीर कोयरी शाक्य, मुरार मौर्य आदि नामों से जाना जाता है। ये सभी शाखाएं साग-सब्जी, फल-फूल काकड़ी तरबूज आदि की  खेती का व्यवसाय सदियों से करते तथा बेचते  आ रहे है। यह क्षेत्रीय समाज एक ही माला के फूल व मोती है। यह किसान समाज सीधा-साधा, मेहनतकश , रात-दिन सर्दी-गर्मी वर्षा में काम करने वाला भारत के अधिकांश गांवों जिलों में बसा हुआ है। भारत में इनकी जनसंखया करीब १४ करोड  एवं राजस्थान में करीब ४८ लाख है। अन्य पिछडी जातियों में इसकी जनसंखया भारत व राजस्थान में सबसे अधिक है। ये मूल रूप से क्षत्रिय थे। मुसलमान शासको के समय में अलग-अलग धन्धा अपना लिया तथा धन्धा करने वाले माली-सैनी कुशवाह हो गये। काछी (कुशवाह) माली राजस्थान में करीब ८ लाख है तथा धौलपुर में बडी संख्या में है भरतपुर, कोटा जिलों में काफी संखया में है। कीर-कोयरी नदियों के किनारें जोधपुर, अजमेर में कुछ संखया में बसा हुआ है। शाक्य की कम संख्या में श्रीगंगानगर में बसा हुआ है। सभी शाखाओं का खान-पान, रहन-सहन, वेश भूषा आदि एक जैसा है। इन शाखाओं में शादी ब्याह होते आये है।
कुशवाह क्षत्रिय महासभा की स्थापना बाबू श्री हरिप्रसाद वैष्णव की अध्यक्षता में सन्‌ १९१२ मार्च मास में चुनार में की गई। तथा स्वर्गीय जे.पी. चौधरी ने कुशवाह शाक्य, मौर्य, कोयरी आदि को एकीकरण का महामंत्र दिया और कुशवाह महासभा की स्थापना की। जोधपुर में विक्रम सवंत्‌ १९५४ (सन्‌ १८९८) के वैशाख माह में मण्डोर रोड़ जोधपुर में श्री पुरखाराम जी सांखला ठे. श्री साहिबाराम जी गहलोत ठे. श्रीपोकर कच्छवाहा ठे. श्री मगजी कच्छवाहा आदि ने माली सभा की स्थापना कर बच्चों की च्चिक्षा के लिए स्कूल खोलने का निर्णय लिया और १९ अगस्त १८१८ को श्री सुमेर स्कूल की स्थापना की गई। राजपुताना प्रदेश के जोधपुर से श्री जगदीश सिंह गहलोत श्री नेनुराम जी सांखला श्री चतुर्भुज जी गहलोत श्री साहिबाराम जी गहलोत व अजमेर से ठाकुर भेरूसिंह कच्छवाहा आदि ने माली नाम की जगह सैनी (सैनी क्षत्रिय) लिखने का प्रयास सन्‌ १९२१ से प्रारम्भ किया। सन्‌ १९१५ में पंजाब में माली (सैनी) भागीरथी माली सगरवंशी, कीर-कोयरी, मुराव, महुर आदि की एक सभा राय बहादुर दीवान चन्द गहलोत बटाला जिला गुददासपुरा की अध्यक्षता में की गई और सभी मालियों को एक मंच पर लाये तथा महासभा की स्थापना की। स्व. लालमणी स्व. भरतसिंह इन्द्रसिंह आदि ने पंजाब रोहतक अम्बाला में यंगमेन सभा की स्थापना की और मालियों के स्थान पर सैनी लिखने के लिए पंजाब सरकार को कई पत्र लिखे, अन्त में मर्दुम शुमारी कमीश्नर दिल्ली डॉ.जे.एच. हुटन ने १९ जनवरी १९३१ को सभी प्रकार के मालियों को माली नाम की जगह सैनी लिखा जाय की मान्यता प्रदान की।
माली (सैनिक क्षत्रिय) महासभा एवं कुशवाह क्षत्रिय महासभाओं में पिछले १०० सालों से अलग-अलग एवं एक साथ सम्मेलन कर एकीकरण का प्रयास किया। ३०-३१ दिसम्बर१९७३ को ऑल इण्डिया सैनी सभा विज्ञान भवन दिल्ली में सेठ बिहारी लाल जी की अध्यक्षता में हुआ। सन्‌ १९७४ में श्री गोरेलाल शाक्य विधायक की अध्यक्षता में लखनऊ में सम्मेलन हुआ। १२ दिसम्बर१९८३ में अजीतकुमार मेहतो सांसद की अध्यक्षता में सम्मेलन हुआ एवं श्री दयाराम शाक्य सांसद को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। २५-२६ अगस्त १९९० को मस्जिद मोठ नई दिल्ली में विशिष्ठ अतिथि श्री दयाराम शाक्य एवं मुखय अतिथि उपेन्द्रनाथ केन्र्दीय मंत्री आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। १८-१९ जनवरी १९९२ को मुंबई में सरदार रेशमसिंह आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। २० दिसम्बर १९९३ पुणें में तत्कालीन राद्गट्रपति माननीय श्री शंकरदयाल शर्मा मुख्य अतिथि एवं विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पवार एवं श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। ७-८ जून १९९७ को  मध्यप्रदेश में श्री बाबुलाल  कुशवाह के संयोजक में सभी शाखाओं के एकीकरण के लिए सम्मेलन का आयोजन हुआ। १४-१५ अप्रेल १९८८ को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चौधरी इन्द्रराज सिंह सैनी की संयोजकता एवं श्री मोतीलाल  कुशवाह  वाराणसी की अध्यक्षता में सम्मेलन आयोजित किया गया। २० नवम्बर १९९९ को भोपाल में श्री बी.एल. पटेल की संयोजकता एवं श्री लिखीराम कावरे की अध्यक्षता में सम्मेलन का आयोजन हुआ। फरवरी २००० को दिल्ली के लाल किला मैदान में इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल  कुशवाह की अध्यक्षता में एवं मुख्य अतिथि दिल्ली  मुख्यमंत्री इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल की अध्यक्षता में एवं दिल्ली  की मुख्यमंत्री  श्रीमती शीला दीक्षित के आतिथ्य में सम्मेलन का आयोजन किया गया। १० मार्च २००६ को महात्मा फूले समता परिषद के तत्वाधान में राम लीला मैदान दिल्ली में विशाल रैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में हुई जिसमें विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पंवार (कृषिमंत्री) एवं श्री लालू प्रसाद (रेल्वे मंत्री) आदि उपस्थित थे। १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारेली राद्गट्रीय अध्यक्ष श्री छगन भुजबल के स्वागत में उपेन्द्रनाथ में समाज की सभी शाखाओं  के बुद्धिजीवी, हजारों-लाखों भाई-बहिन, सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता संगठित होकर एक मंच पर आये तथा समाज में जागृति आई, सामाजिक न्याय एवं जनसंख्या के आधार  प्रशासन, राजनीति में अपनी भागीदारी पाने का संकल्प किया।
राजस्थान प्रदेश में समाज के भाइयों की सामाजिक आर्थिक, प्रशेक्षणिक राजनैतिक स्थिति की जानकारी अत्यंत आवश्यक है आज प्रदेश की दो सौ विधान सभा क्षेत्रों में ३०-३१ विधान सभा क्षेत्र ऐसे है जहां हमारे समाज को २५०० से ४०००० और अधिक मतदाता है तथा ६० विधान सभा क्षेत्रों में १०-१२ हजार से २४००० मतदाता है। लोक सभा क्षेत्र में ३ ऐसे है जहां हमारे समाज के २ लाख से अधिक मतदाता है तथा ८०-१०० लोक सभा क्षेत्रों १ लाख से १.५० लाख तक मतदाता है। वहां हमारे औसतन ३ से ५ विधायक जीत पाते है लोक सभा सदस्य कभी कभार १ ही जीत पाता है जहां इसमें कम आबादी वाली चतुर बोलचाल, धनवान जातियों के १२-३५ विधायक एवं १-८ तक लोक सभा सदस्य जीत जाते है। प्रदेश में करीब १०० स्थानीय निकायें है। उनमें ३४-३५ ही अपने अध्यक्ष/उपाध्यक्ष व ४५०-५०० पार्षद जीत पाते है ये तो ऐसी निकायें है जहां से अध्यक्ष/उपाध्यक्ष और इतने ही पार्षद अपने आप जीतते आयें है। ग्राम पंचायतों के चुनाओं में हमारे १५०-२०० सरपंच व उपसरपंच एवं ८-१० प्रधान/उपप्रधान ही बन पाते है, जहां हजारों गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होत हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच पंचायत समिति/सदस्य/जिला परिद्गाद/सदस्य/प्रधान आदि नही जीत पाते। यहां तक कई निकायों में हमारे ५.१२ पार्षद होते हुए भी अध्यक्ष उपाध्यक्ष नही जीत पाते तथा कई ग्राम पंचायतों में कई सरपंच समिति सदस्य जिला परिषद सदस्य जीते हुए है तो भी प्रधान/उपप्रधान आदि नही जीत पाते। अन्य उच्च चतुर , धनवान, बाहुबली जातियों का जीता एक ही सदस्य उच्च पद प्राप्त कर लेता है ये जातियां राजनैतिक प्रशासनिक क्षेत्रों में लम्बे समय से राजनैतिक सत्ता व धन का सुख भोग रही है ये येन  केन प्रकारेण अन्याय करके भी आपको आगे नही आने देती है और आपको को सामाजिक न्याय एवं सत्ता की भागीदारी नही मिलती है।
उच्च चतुर,  धनवान जातियां जिला प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में उच्च पद प्राप्त कर लेती है। टिकट चयन समितियों में पार्टी में पर्यवेक्षक, अध्यक्ष, मंत्री आदि पद प्राप्त कर पार्टी विकट बांटते  समय टिकटों का बटवारा चाहे विधायक का हो लोग सभा का हो या पार्षदो, अध्यक्षों एवं सरपंच प्रधान आदि को हो अधिक से अधिक टिकट अपने  चहेते लोगों को अपने जाति वर्ग या जो आगे उन्हे व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाले को दे देते है। इन जातियों के व्यापारी, उच्च अधिकारी, नेता लाभकारी पदों पर रह कर भ्रष्ट तरीकों से खूब धन बटोरकर राजनीतिज्ञों को चन्दा देकर तन मन धन से मदद कर जिताते है या खुद टिकट प्राप्त कर धन, बल से जीत जाते है। चयन समिति में टिकट दिलाने की पैरवी करने वाला कोई व्यक्ति नही होता अतः हमें टिकट नही मिलता। कई बार पार्टी टिकट जीतने वाले व्यक्ति को उनके पक्ष के क्षेत्र का न देकर अनुभवहीन हारने वाले व्यक्ति को समाज के प्रतिनिधित्व के रूप में उसे क्षेत्र से टिकट देती जहां अपने समाज के पर्याप्त मत नही होते। ये लोग अपने प्रत्याच्ची को जिताने के लिए कई भ्रद्गट तरीके अपनाते है, झूठी अफवाहे फैला देते है, भय पैदा करके और भोले लोगों को आपस में लड़ाते व गुमराह करते रहते है। प्रशासन-प्रेस आदि भी उन्ही के समर्थन में प्रचार करते रहते है। विभिन्न संस्थाओं, उद्योगों यूनियनों का संचालन करते पदाधिकारी हो तो उन संस्थाओं से जुडे व्यक्तियों को अपने प्रभाव में रखते है। नेताओं, समाज सेवियों, प्रभावशाली व्यक्तियों, कलाकारों आदि को प्रचार के लिए बुलाते, अत्यधिक पैसा खर्च करते, वोटर से वोट प्राप्त करने के कई हथकंडे अखतीयार करते हैं जीत जाते है। आज ये चतुर उच्च बलशाली धनवान जातियां, लाभकारी पदों पर पहुँच कर सभी प्रकार के सुख भोग रही है। आज सभी प्रकार की सम्पन्न जातियां संगठित होकर कई तरह के दावपेज खेलकर शासन, प्रशासन, न्यायपालिका प्रेस में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया हुआ है। ये गर्व से कहते हैं कि पिछडी जातियां राज करने के योग्य नही है जब कि हम सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट सूर सैन, महात्मा बुद्ध, लव- कुश एवं महात्मा ज्योति बा फूले सन्तान है उनके जैसा पराक्रम एवं शौर्य हमारी रग रग में विद्यमान है।
आज स्वतंत्रता के ६० साल बाद भी १४ करोड़ जनसंखया वाला समाज कई शाखाओं और उपशाखाओं, महासभाओं के नाम पर स्थान-स्थान पर पृथक अस्तित्व बनाये हुए है। विशाल भारत में हमारी अपारजनशक्ति होते हुए भी सामाजिक प्रशासनिक  राजनीतिक स्थिति सबसे कमजोर है इस घोर उपेक्षा का बदला संगठित होकर ही ले सकते है और सामाजिक अन्याय का बोलबाला समाप्त कर सकते है इसके लिए समाज को सही नेतृत्व की आवच्च्यकता है। हमे एक मंच पर संगठित होकर पहले से ही रणनीति तय करनी होगी। राद्गट्रीयकृत पार्टियों से प्रयास कर अधिक टिकट प्राप्त करने होंगे। धाराओं वाले वर्गों से मिलकर क्षेत्रीय पार्टियों से ताल-मेल करना होगा। उन पार्टियों में उच्च पद प्राप्त करने होंगे। इसके लिए राजनीतिज्ञों बुद्धिजीवियों, विद्ववानों समाजसेवियों को एक सूत्र में संगठित होना होगा। शक्ति का प्रदर्शन करना होगा, संघर्ष करना होगा। हाल ही में प्रदेच्चों में विधान सभा व अन्य चुनवों में क्षेत्रिय पार्टियों का दबदबा जबरदस्त रहा। कुछ निर्दलियों का भी रहा। भारत के कई प्रदेच्चों में क्षेत्रिय पार्टियों ने मिलजुल कर सरकारें बनायी है। आज प्रान्तीय सरकार हो या भारत सरकार की कई पार्टियों से मिलकर सरकार बनाई जाती है। आज गठबन्धन की राजनीति की आवश्यकता है। राजनीतिक ही विकास की चाबी है। राजनीतिक दलों में समाज की भागीदारी कैसे बढी ? इसके लिए हमें गुटबाजी समाप्त कर व्यक्तिगत स्वार्थ त्याग कर मतभेद भुलाकर प्रदेच्चा की राजधानी में द्राक्ति प्रदर्च्चन करना होगा। तभी हमारा जनाधार मजबूर होगा हमारी पूछ होगी। इसकी एक महारैली का उद्देच्च्य समाज की सभी शाखाओंको संगठित कर एक मंच पर लाना, आर्थिक सामाजिक राजनैतिक चेतना पैदा करना, सामाजिक न्याय एवं जनसंखया के आधार पर राजनैतिक प्रच्चासन,के प्रत्येक तहसील/जिला स्तर पर समाज के लोगो को संगठित करना होगा। हमारे पास वोटो की द्राक्ति है आज तक हम किसी अन्य को दोद्गा देते आये है। अब हमें उनके वोट लेने है। आज सिद्धान्त विहीन एवं दिच्चा विहीन राजनीति में मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया हेै वह तय नही कर पाता कि किसे व किस पार्टी को मत देकर जीताना है जिससे हमारा भला हो सकेगा। हमे संगठन राजनीतिकक जागृति, सक्रियता में उत्पन करनी है। जिस क्षेत्र से व्यक्ति खड़ा होना चाहता है। वहां समाज की पर्याप्त संखया हो दुसरे वर्गों पर अच्छा प्रभाव हो इतना प्रभाव व द्राक्ति व इस समाज के अलावा वहां से कोई जीत नही सकता। वहां से समाज का योग्य (राजनीतिज्ञों की दक्षता प्राप्त) च्चिक्षित, सेवाभावी जीतने वाला जिसमें आत्मबल हो, निर्णय द्राक्ति हो, क्षेत्र की पूरी जानकारी व बूधवार कार्यकर्ताओं की पूरी टीम हो, आगे ऊचे पद पर पहुचने की क्षमता रखता हो पार्टी का सक्रिय सदस्य, वफादार व उच्च पद पर हो, आर्थिक स्थिति सुदृढ हो अन्य कार्यकर्ता उनकी जीत का भरोसा पार्टी नेताओं को देवें, उसे संगठित होकर खड ा करना है व तन-मन धन से प्रयास करे तो हमें सफलता मिलेगी। इस तरह हमारे १२ से १५ विधायक और इससे अधिक निकायों पर समाज के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष जीत सकते है तथा १००० से अधिक पार्द्गाद जीत सकते है। इसी तरह चुनावी रणनीति अपनाकर पंचायत समिति, जिला परिद्गाद, सरपंच, उपसरपंच, प्रधान, उपप्रधान आदि के चुनाव लड े जाय तो पहले सभी दुगुने सभी पद प्राप्त कर सकते है। इससे समाज में राजनीतिक चेतना आयेगी, संगठन बनेगा तथा समाज एक द्राक्ति बनकर उभरेगा। करीब ९० से १०० विधान सभा क्षेत्रों में समाज के मतदाता चुनाव परिणाम निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकेंगे, ऐसे में पार्टियां समाज के पतों पर नजर रखेगी। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी महिलाओं के लिए ३३ प्रतिच्चत आरक्षित वार्ड/पंचायतें है उसमें २१ प्रतिच्चत ओ.बी.सी. महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों के पार्द्गाद अध्यक्ष/उपाध्यक्ष आदि पर भी आरक्षित है। वहां से समाज की च्चिक्षित अनुभवी, सक्रिय महिलाओं को टिकट दिलाकर हर हालत में जीताना है। पार्टी टिकट नही दे तथा ओ.बी.सी. क्षेत्र है तो जीतने वाली निर्दलीय महिला खडाकर देना है। सक्रिय महिलाओं को पहले से सभा-सम्मेलनों में बुलाकर जागृत कर उन्हे आगे लाना है।
 राजनीति में युवा शक्ति की भागीदारी :
प्रजातंत्र में युवा शक्ति जो सबसे अधिक है बहुत महत्व रखती है। यह सुन्दर काल है इस काल में मनुद्गय का शारीरिक मानसिक शक्ति मार्गदर्शन दिशा निर्दश तथा समय-समय पर शिक्षण प्रशिक्षण की आवश्यकताहै ताकि वो कुछ सीख सके, भला बुरा समझ सके, गलत रास्ते पर न भटक सके, उन्हे अपने जीवन में आगे बढने का लक्ष्य बनाना है। युवाओं को सम्मेलन सेमीनार, गोष्ठियो सम्मेलन रेलीयों धरना आदि में भाग लेना है एवं ट्रेनिंग केम्प रखकर सामाजिक, राजनीतिक जागृति लानी है ताकि वे निडर होकर कार्य कर सकेंगे, तथा स्वतंत्रता से कार्य करने का निर्णय खुद कर सकेंगे। समाज के च्चिक्षित अनुभवी, प्रभावच्चाली सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जिला व प्रान्तीय स्तर पर युवकों-युवतियों में राजनीतिक रूचि जागृह कर राजनीति में आगे लाना है।

     निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन चुनाव आयोग द्वारा हो गया है। आने वाले विधान सभा लोक सभा चुनाव नये निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर होंगे। इस बार कई विधान सभा लोक सभा क्षेत्रों में अपने समाज का जहां बाहुल्य है सुधर चुके है। अनुसूचित एवं जनजाति के क्षेत्रों के जहां अपने समाज का बाहुल्य है बदल कर पुनर्गठन कर सामान्य क्षेत्र किये गये है। अब एक विधान सभा क्षेत्र में करीब १.५० लाख से २ लाख मतदाता के हिसाब से रखे जायेंगे। आने वाले समय में राजस्थान में भी मिली जुली सरकार बन सकती है। क्षेत्रीय दलों के नेता तीसरा जन मोर्चा बन सकते है। हालाकि अभी कांग्रेस व भा.ज.पा. को छोड़कर कुछ पार्टियों के एक या दो विधायक ही जीत पाये है अन्य पार्टियों का कोई स्थान नही है। राजस्थान में अभी तक कांग्रेस व भाजपा पार्टियां ही शक्तिशाली रही है परन्तु आने वाले चुनाओं के समय में तीसरी द्राक्ति जनमौर्चा के रूप में नई पार्टी राजस्थान में बनाई जायेगी या अन्य पार्टियां अलग-अलग अपने बैनर तले अपना प्रत्यासी खडा करेगी। अतः आप पिछडी जातियों का संगठन बनाकर नेतृत्व लेकर आगे बढ सकते है या स्थानीय पार्टियों का प्रदेच्च स्तर पर जनमौर्य बनाकर आगे आना होगा। यह पार्टी बी.जे.पी. व कांग्रेस के मतों का बंटवारा कर कई क्षेत्रों में जीत सकेगी। आने वाले समय में त्रिशंकु सरकार बनने की सम्भावना रहेंगी।

माली समाज कि उत्पत्ति का इतिहास

संत षिरोमणि श्री लिखमीदास जी महाराज का जीवन परिचय

राजस्थान की पवित्र धरा शक्ति भक्ति और आस्था का त्रिवेणी संगम है। यहां समय पर ऐसे संत-महात्माओं ने जन्म लिया है जो अपने तपोबल से प्राणीमात्र का कल्याण करने के साथ-साथ दूसरों के लिये प्रेरणा स्त्रोत भी बने। ऐसे ही बिरले सन्तों में से एक थे-स्वनामधन्य संत षिरोमणि श्री लिखमीदासजी महाराज । आपका जन्म नागौर जिला मुख्यालय से नजदीक चैनार गांव में विक्रम संवत 1807 की आशाढ़ मास की प्रभात वेला में माली श्री रामूरामजी सोलंकी के घर हुआ। आप बाल्यकाल से र्इष्वर की भक्ति, पूजा-अर्चना , गुणगान तथा संत समागम में लगे रहते थे। अपनी अनन्य र्इष्वर भक्ति के बल पर ही आपने अपने जीवन काल में बाबा रामदेव के साक्षात दर्षन किये। द्वारकाधीष के अवतार बाबा रामदेव के प्रति आपकी अगाध श्रद्धा एवं भक्ति भावना थी। आप अपने पैतृक कृशि कर्म को करते हुए ही श्री हरि का गुणगान किया करते, रात्रि जागरण में जाया करते तथा साधु-संतो के साथ बैठकर भजन-कीर्तन करते थे। ऐसा कहा जाता है कि महाराज श्री जब भी भजन- कीर्तन के लिए कहीं जाया करते थे तो उनकी अनुपसिथति में भगवान द्वारकाधीष स्वयं आकर उनके स्थान पर फसल की सिंचार्इ (पाणत) किया करते थे।

मनुश्य जीवन को प्राप्त कर 'मानवता नहीं रखी जाय तो मनुश्य जन्म कैसा? महाराज श्री ने जीव मात्र के प्रति दया अपने ह्रदय में धारण कर, मनुश्यों का सदैव हित साधन कर अपना मानव जीवन सार्थक किया। संत षिरोमणि ने सदा निर्विकार भाव से सादगीपूर्ण जीवन जीया। आप मिथ्या अभिमान, निंदा, आत्मष्लाघा, पाप कर्म एवं अनैतिकता से सदा दूर रहे। ऐसे महापुरुश कभी किसी जाति, धर्म या सम्प्रदाय के नहीं होते अपितु सबके होते हैं। षुद्ध सातिवक भाव से कर्तव्य कर्म करते रहना और अन्त में श्री भगवान का गुणगान करते हुए उसी में लीन हो जाना। षायद इसी महामन्त्र को महाराज श्री ने अपने जीवन में अपनाया और अन्त में परमात्मा तत्व में विलीन हो गये। आइये! नमन करें ऐसी दिव्य विभूति को, प्रेरणा लेते हैं ऐसे अनन्य स्वरूप् से-जिन्होंने अपना भौतिक स्वरूप (देह) माली-सैनी समाज में प्राप्त कर इसे गौरवानिवत किया। दान-दया-धर्म-अहिंसा-मानवता की प्रतिमूर्ति बनकर युगों-युगों के लिए हमारी प्रेरणा के स्रोत बन गये। हमें भी महाराज श्री लिखमीदासजी के जीवन-आदेर्षों को अपना कर मनुश्य धन्य करना चाहिए।

लिखमीदास जी महाराज महाराज के समाधि स्थल: र्इष्वर भक्ति कि साक्षात प्रतिमूर्ति महाराज श्री लिखमीदासजी की समाधि नागौर जिला मुख्यालय से 8 किमी दूरी पर सिथत अमरपुरा ग्राम में है। यहां आपके वंष के ही परिवार आज भी पिवास करते हैं। महाराज श्री की समाधि के अतिरिक्त यहां 2-3 अन्य वंषों के संतों की समाधियां भरी हैं। र्इष्वर के अनन्य भक्त श्री लिखमीदासजी महाराज का समाधि स्थल होने के कारण यह स्थल करोडों लोगों की आस्था का केन्द्र है। देष-प्रदेष-विदेष से यहां आने वाले दर्षनार्थियों का सदैव तांता लगा रहता है। माली समाज के अलावा अन्य जाति, धर्म एवं समुदाय के श्रद्वालु भक्त भी यहां आकर कथा-कीर्तन सत्संग भजन रात्रि जागरण आदि का आयोजन भी करते हैं। जिला मुख्यालय नागौर सडक मार्ग से जुडा होने के कारण यहां यातायात के साधनों की कोर्इ कमी नहीं है। निकटतम रेलवे स्टेषन नागौर ही है। नागौर से बस टैक्सी टैम्पो आदि यात्रियों के लिए सदैव सुलभ हैं। यातायात साधनों की सुलभता से यहां श्रद्वालुओ का आना-जाना बना रहता है किन्तु धार्मिक आयोजनों (कथा-कीर्तन-सत्संग-जागरण के लिए पर्याप्त स्थान एवं सुविधाओं का सर्वथा अभाव है। धर्मप्रेमी यात्रियों के ठहरने धार्मिक सभा-समारोह आदि के आयोजन के लिए भी भवन नहीं है। अत: यहां ठहरने के इच्छुक श्रद्धालुओं को काफी असुविधा का सामना करना पडता है। धार्मिक भावनाओं से जुडे आध्यातिमक स्थल पर स्थायी गृहस्थावास भी समुचित प्रतीत नहीं होता। संत षिरोमणि श्री लिखमीदासजी महाराज ने भä किे जिस चरमोत्कर्श की प्रापित की उस उपलबिध के अनुसार उनका समाधि स्थल तदनुरूप् आकर्शक प्रतीत नहीं होता है। समाधि स्थल के महत्व को बढाने के लिए यह अत्यन्त आवष्यक है कि समाधि स्थल को संत श्री की महिमा के अनुरूप आकर्शक रूप में निर्मित किया जाय। श्रेश्ठ निर्माण तथा पर्यावरण की दृशिट से समाधि स्थल को प्राकृतिक स्वरूप प्रदान करना भी आज की प्रमुख आवष्यकता है। समाधि स्थल ऐतिहासिक स्मारक के रूप में प्रसिद्ध एवं प्रतिशिठत होना चाहिए। संत श्री के स्मृति स्थल को समय की मांग के अनुरूप बनाना हम सबका कर्तव्य है।