गोत्र का रहस्य एवं महत्
गोत्र के बारे में जानने की जिज्ञासा सभी को रहती है।
सामान्यतः जब कोई भी संस्कार होता है उसमें गोत्र की चर्चा होती है।
गोत्र क्या है?
गोत्र हमारे समाज में कब से प्रचलन में आया
और इसके पीछे धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताएं क्या हैं?
गोत्र की परिभाषा: गोत्र जिसका अर्थ वंश भी है,
यह एक ऋषि के माध्यम से शुरू होता है और हमें हमारे पूर्वजों की याद दिलाता है
और हमें हमारे कर्तव्यों के बारे में बताता है।
आगे चलकर यही गोत्र वंश परिचय के रूप में समाज में प्रतिष्ठित हो गया।
एक समान गोत्र वाले एक ही ऋषि परंपरा के प्रतिनिधि होने के कारण
भाई-बहन समझे जाने लगे जो आज भी बदस्तूर जारी है।
प्रारंभ में सात गोत्र थे।
कालांतर में दूसरे ऋषियों के सान्निध्य के कारण अन्य गोत्र अस्तित्व में आये।
जातिवादी सामाजिक व्यवस्था की खासियत ही यही रही कि
इसमें हर समूह को एक खास पहचान मिली।
हिंदुओं में गोत्र होता है जो किसी समूह के प्रवर्तक अथवा प्रमुख व्यक्ति के नाम पर चलता है।
सामान्य रूप से गोत्र का मतलब कुल अथवा वंश परंपरा से है।
गोत्र को बहिर्विवाही समूह माना जाता है अर्थात ऐसा समूह जिससे दूसरे परिवार का रक्त संबंध न हो
अर्थात एक गोत्र के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते
पर दूसरे गोत्र में विवाह कर सकते हैं,
जबकि जाति एक अंतर्विवाही समूह है
यानी एक जाति के लोग समूह से बाहर विवाह संबंध नहीं कर सकते।
गोत्र मातृवंशीय भी हो सकता है और पितृवंशीय भी:
जरूरी नहीं कि गोत्र किसी आदिपुरूष के नाम से चले।
जनजातियों में विशिष्ट चिह्नों से भी गोत्र तय होते हैं
जो वनस्पतियों से लेकर पशु-पक्षी तक हो सकते हैं।
शेर, मगर, सूर्य, मछली, पीपल,बबूल आदि इसमें शामिल हैं।
यह परंपरा आर्यों में भी रही है।
हालांकि गोत्र प्रणाली काफी जटिल है
पर उसे समझने के लिए ये मिसालें सहायक हो सकती हैं।
गोत्र के बारे में जानने की जिज्ञासा सभी को रहती है।
सामान्यतः जब कोई भी संस्कार होता है उसमें गोत्र की चर्चा होती है।
गोत्र क्या है?
गोत्र हमारे समाज में कब से प्रचलन में आया
और इसके पीछे धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताएं क्या हैं?
गोत्र की परिभाषा: गोत्र जिसका अर्थ वंश भी है,
यह एक ऋषि के माध्यम से शुरू होता है और हमें हमारे पूर्वजों की याद दिलाता है
और हमें हमारे कर्तव्यों के बारे में बताता है।
आगे चलकर यही गोत्र वंश परिचय के रूप में समाज में प्रतिष्ठित हो गया।
एक समान गोत्र वाले एक ही ऋषि परंपरा के प्रतिनिधि होने के कारण
भाई-बहन समझे जाने लगे जो आज भी बदस्तूर जारी है।
प्रारंभ में सात गोत्र थे।
कालांतर में दूसरे ऋषियों के सान्निध्य के कारण अन्य गोत्र अस्तित्व में आये।
जातिवादी सामाजिक व्यवस्था की खासियत ही यही रही कि
इसमें हर समूह को एक खास पहचान मिली।
हिंदुओं में गोत्र होता है जो किसी समूह के प्रवर्तक अथवा प्रमुख व्यक्ति के नाम पर चलता है।
सामान्य रूप से गोत्र का मतलब कुल अथवा वंश परंपरा से है।
गोत्र को बहिर्विवाही समूह माना जाता है अर्थात ऐसा समूह जिससे दूसरे परिवार का रक्त संबंध न हो
अर्थात एक गोत्र के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते
पर दूसरे गोत्र में विवाह कर सकते हैं,
जबकि जाति एक अंतर्विवाही समूह है
यानी एक जाति के लोग समूह से बाहर विवाह संबंध नहीं कर सकते।
गोत्र मातृवंशीय भी हो सकता है और पितृवंशीय भी:
जरूरी नहीं कि गोत्र किसी आदिपुरूष के नाम से चले।
जनजातियों में विशिष्ट चिह्नों से भी गोत्र तय होते हैं
जो वनस्पतियों से लेकर पशु-पक्षी तक हो सकते हैं।
शेर, मगर, सूर्य, मछली, पीपल,बबूल आदि इसमें शामिल हैं।
यह परंपरा आर्यों में भी रही है।
हालांकि गोत्र प्रणाली काफी जटिल है
पर उसे समझने के लिए ये मिसालें सहायक हो सकती हैं।
में बनशिवाल गोत्र से हू और में कानैता बसी जयपुर राजस्थान से हू इसमें
जवाब देंहटाएंना तो गोत्र का उलेख हे ओर ना वंश का और ना हि कुल देवी में ईसके बारेमे जानना चाहता हू
में बनशिवाल गोत्र से हू और में कानैता बसी जयपुर राजस्थान से हू इसमें
जवाब देंहटाएंना तो गोत्र का उलेख हे ओर ना वंश का और ना हि कुल देवी में ईसके बारेमे जानना चाहता हू