मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

सूर्यवंश  

सूर्यवंश क्षत्रियों के दो प्रधान वंशों में से एक है जिसका आरम्भ इक्ष्वाकु से माना जाता है, जिन्होंने त्रेता युग में अयोध्या में राज किया। पुराने जमाने में हमारे यहाँ क्षत्रियों के दो ख़ानदान बहुत प्रसिद्ध थे। एक चन्द्रवंश, दूसरा सूर्यवंश, राम सूर्य वंशी थे। सूर्य वंशी राजाओं का इतिहास पुराणों में मिलता है। अयोध्या उनकी राजधानी थी और राज्य का नाम कोशल था। यह अयोध्या सरयू नदी के तट तीर्थ के रूप में विद्यमान है। इसको राजा युवनाश्व ने बसाया। ये मांधाता के पुत्र थे। भगवान राम सूर्यवंश में उत्पन्न हुए। यह वंश राजा इक्ष्वाकु से शु्रू हुआ। भागवतके अनुसार सूर्यवंश के आदिपुरुष इक्ष्वाकु थे। इससे पहले कश्यप थे। कश्यप के पुत्र सूर्य और सूर्य के पुत्र के पुत्र वैवश्वत मनु हुए। इन्हीं वैवश्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु थे। इसी वंश में बाद मेंदशरथ, राम, लव-कुश आदि का जन्म हुआ।

सूर्यवंश की शाखाएँ एवं उपशाखाएँ

गहलोत वंश के आदि पुरुष गुह्यदत्त हुए है जिनके नाम पर यह वंश चला। एकमत के अनुसार गुजरात के राजा शिलादित्य के पुत्र केशवादित्य से यह वंश चला। गह्वर गुफ़ा में केशवादित्य के जन्म होने के कारण इस वंश का नाम गहलौत पड गया। एक दूसरे मत के अनुसार इस वंश के आदि पुरुष गुहिल थे।
गोत्र - बैजपाय गौतम, कश्यप; कुलदेव - वाणमता; वेद - यजुर्वेद; नदी- सरयू
शाखाएं
  • अहाडिया
  • मांगलिमा
  • पीपरा
  • सिसोदिया

कछवाहा क्षत्रिय

गोत्र - गौतम, कुलदेवी - दुर्गा, वेद - सामवेद, नदी- सरयू
शाखाएं
  • इनकी तेरह मुख्य शाखाओं एवं उपशाखाओं का उल्लेख मिलता है।

राठौर

गोत्र- 'राजपूताना' कश्यप पूर्व में, अत्रि दक्षिण भारत में तथा बिहार में शंडिल्य। वेद - सामवेद, देवी- दुर्गा
शाखाएं
  • इस वंश की 24 शाखाओं का उल्लेख मिलता है।

निकुम्म क्षत्रिय

गोत्र - वशिष्ठ तथा भारद्वाज। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि एवं सांकृति। कुल देवि - कालिका। वेद - यजुर्वेद। नदी - सरयू।

श्री नेत क्षत्रिय

कुछ लोग इन्हें निकुम्म की शाखा मानते हैं।
गोत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। देवी - चंद्रिका। वेद - सामवेद।

नागवंशी क्षत्रिय

गोत्र - कश्यप तथा शुनक।

बैस क्षत्रिय

बैस क्षत्रिय सूर्यवंश के अन्तर्गत माने जाते हैं।
गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाजबृहस्पतिअंगिरस। देवी - कालिका। वेद - यजुर्वेद।
  • वैसे क्षत्रियों का प्रधान क्षेत्र बैसवाडा उत्तर प्रदेश है।
  • इनकी तीन मुख्य शाखायें हैं - कोट भीतर, कोट बाहर, एवं त्रिलोक चंदी।

विसेन क्षत्रिय

गोत्र- स्थानुसार - पराशर, भारद्वाज, शंडिल्य, अत्रि तथा वत्स। वेद - सामवेद। कुल देवी- दुर्गा।
  • राजा विस्स सेन के नाम पर इस वंश का नाम विसेन पडा।

गौतम क्षत्रिय

गोत्र - गौतम। प्रवर - पांच - गौतम, अंगिरस, आष्यासार, बृहस्पति , पैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। नदी- गंगा। देवी - दुर्गा।
  • गौतम वंश की प्रधान शाखायें कंडवार, गोनिह एवं अंटैया हैं।

बडगूजर क्षत्रिय

गोत्र - वसिष्ठ। प्रवर - तीन-वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद- यजुर्वेद। देवी - कालीका। ये रामचंद्र जी के पुत्र लव के वंशज है।

गौड क्षत्रिय

गोत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति , अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। कुलदेवी - महाकाली। गौड क्षत्रिय अपने को राजा भरत दशरथ पुत्र का वंशज मानते हैं। गौड क्षत्रिय की ;प्रमुख शाखाएँ
  • अतहरि, सिलहाना, तूर, दुसेना तथा बोडाना।

नरौनी क्षत्रिय

गोत्र - कश्यप, वशिष्ठ। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद - यजुर्वेद।
  • इसे शीनेत की एक शाखा भी माना गया हैं।
  • राजपूताना के नरवर में बसने के कारण नरौनी क्षत्रिय नामकरण हुआ है।

रैकवार क्षत्रिय

गोत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद।
  • रैकवार नामक राजा के जम्बू के निकट रैकागढ बसाया और उन्हीं के नाम पर रैकवार क्षत्रिय नामकरण हुआ।

सिकरवार क्षत्रिय

गोत्र - भारद्वाज, शंडिल्य, सांकृति। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद - सामवेद। कुलदेवी - दुर्गा।

दुर्गवंश क्षत्रिय

गोत्र- कौत्स। वेद - यजुर्वेद। कुलदेवी - चण्डी।

दीक्षित क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप। प्रवर तीन-कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - दुर्गा।
  • दुर्गवंश की शाखा है। दुर्ग वंशी राजा कन्याण शाह को प्रमर राजा विक्रमादित्य ने उज्जैन में दीक्षित किया और यहीं से दुर्ग वंश की दीक्षित शाखा चल रही है।

कानन क्षत्रिय

गोत्र - भार्गव। प्रवर - तीन- भार्गव, निलोहित, रोहित। वेद - यजुर्वेद। देवी - दुर्गा।
  • दक्षिण भारत के कोकन प्रदेश से उत्तर की ओर आव्रजित होने पर पूर्व स्थान के नाम पर काकन क्षेत्रिय नामकरण।

गोहिल क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप। प्रवर तीन-कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी - बाणमाता।

निमी वंशीय क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप, वशिष्ठ। वशिष्ठ गोत्र का वेद - यजुर्वेद एवं कश्यप गोत्र का वेद - सामवेद।
  • राजा इक्ष्वाकु के पुत्र निमि से निमिवंश का नामकरण हुआ है। निमि के पुत्र मिथि ने मिथिला नगरी बसाई है।

लिच्छवी क्षत्रिय

गोत्र- गौच्छल। वेद - यजुर्वेद। देवी चण्डी। नदी - नर्मदा

गर्गवंशी क्षत्रिय

गोत्र- गर्ग। प्रवर - तीन - गर्ग, कौस्तुभ, माण्डव्य। वेद - सामवेद। देवी - कालिका।

दघुवंशी क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप, वशिष्ठ। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्साह, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद।
  • राजा रघु के वंशज कहलाते हैं।
  • जौनपुर जनपद का बयालसी परगना और डोमी परगना रघुवंशी क्षत्रियों का क्षेत्र है।
  • वाराणसी के कटेहर क्षेत्र में भी रघुवंशी क्षत्रियों का निवास है।

पहाड़ी सूर्यवंशी क्षत्रिय

गोत्र- शौकन। प्रवर - तीन - शोनक, शुनक, गृत्सनद। वेद - यजुर्वेद। देवी - काली। इनके पूर्वज अयोध्या से नेपाल गये।

सिंधेल क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी - पार्वती

लोहथम्भ क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। ्देवी - चण्डी। गाजीपुर, बलिया, गया, आरा जिलों में इनकी आबादी अधिक है।

धाकर क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - कालिका।

उदमियता क्षत्रिय

गोत्र- वत्स। प्रवर - पांच- और्ण्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्रुवान। वेद-सामवेद। देवी - कालिका।
  • उद्यालक ऋषि के छत्र - छाया में पलने के कारण ये उद्यमिता क्षत्रिय कहलायें।
  • मूल स्थान राजस्थान है। वहां से ये लोग गोरखपुर, आलमगढ तथा बिहार के शाहाबादगया तथा मागलपुर जिलों में आकर बस गये।

काकतीय क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - चण्डी।

सूरवार क्षत्रिय

गोत्र- गर्ग। प्रवर - तीन - गर्ग, कौस्तुम्भ, माण्डव। वेद - यजुर्वेद।

नेवतनी क्षत्रिय

गोत्र- शंडिल्य। प्रवर - तीन - शंडिल्य, असित, देवल। देवी - अम्बिका।

मौर्य क्षत्रिय

गोत्र- गौतम। प्रवर - तीन - गौतम, वशिष्ठ, बृहस्पति। वेद - यजुर्वेद।

शुंग वंशी क्षत्रिय

गोत्र- वशिष्ठ। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, बृहस्पति, अंगीरस। वेद - सामवेद। देवी - दुर्गा।

कटहरिया क्षत्रिय

गोत्र- वशिष्ठ। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद - यजुर्वेद। नदी - सरयू। देनी - कालिका।

अमेठिया क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद - सामवेद।
  • यह गौड क्षत्रियों की एक उपशाखा है। इनका निवास अमेठी परगना ( लखनऊ ) होने के कारण ये अपने को अमेठिया क्षत्रिय कहते हैं।

कछलियां क्षत्रिय

गोत्र- शंडिल्य। प्रवर - तीन- शंडिल्य, असित, देवल। वेद - सामवेद।

कुशभवनियां क्षत्रिय

गोत्र स्थानभेद से - शांडिल्य, असित, पराशर तथा भारद्वाज। वेद - सामवेद। देवी- बंदीमाता।
  • ये क्षत्रिय अपने को कुश का वंशज मानते हैं।
  • सुल्तानपुर में गोमती नदी के किनारे कुशभवनपुर है। निवा के आधार पर इनका नाम कुशभवनियां क्षत्रिय पडा।

मडियार क्षत्रिय

गोत्र- वत्स। प्रवर - पांच-औवर्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्युवान। वेद - सामवेद। देवी - सतीपरमेश्वरी। नदी - सरयू। मूलस्थान - उदयपुर

कैलवाड क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - बन्दी। नदी - गंगा। कैलवाड क्षत्रियों राठौड वंश की एक शाखा जगावत की उपशाखा से संबंधित है। जगावत वंश के राजा का कैलवाड ( मेवाड के पास ) में राज्य था। उसी के नाम पर कैलवाड क्षत्रिय पडा।

अन्टैया क्षत्रिय

गोत्र- गौतम। प्रवर - पांच- गौतम, अंगीरस, अप्यार, वाचस्पत्य, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। नदी - सरयू।

भतिहाल क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद।

महथान क्षत्रिय

गोत्र- वत्स। प्रवर - पांच - और्व्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्रुवान। देवी - दुर्गा। वेद - सामवेद।

चमिपाल क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -सामवेद।
  • मूलस्थान उदयपुर है। मलियान तथा सेवतिया इनकी दो शाखायें हैं।

सिहोगिया क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद। देवी - दुर्गा
  • बिहार के गया तथा पलामू जिलों में इनका निवास है।

बमटेला क्षत्रिय

गोत्र- शांडिल्य। प्रवर - तीन - शंडिल्य, असित, देवल। वेद - सामवेद। यह विसेन क्षत्रियों की शाखा है। हरदोई, फ़रुखाबाद जिलों में इनकी जनसंख्या अधिक है।

बम्बवार क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद।
  • इनका भी उल्लेख विसेन वंश की शाखा के रूप में हुआ है।

चोलवंशी क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। चोल प्रदेश ( दक्षिण भारत) में निवास करने के कारण चोल क्षत्रिय नामकरण हुआ।

पुंडीर क्षत्रिय

गोत्र- पुलस्त्य। वेद - यजुर्वेद। देवी - दधिमती माता।

कुलूवास क्षत्रिय

गोत्र- पुलस्त्य। वेद - यजुर्वेद। निवास सलेडा राजस्थान।

किनवार क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -सामवेद।
  • बलिया छपरा तथा भागलपुर के कुछ गांवों में इनका निवास है।

कंडवार क्षत्रिय

गोत्र- गौतम। प्रवर - पांच - गौतम, अंगीरस, वत्सार, बृहस्पति, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी- चण्डी।
  • गौतम क्षत्रियों की एक उपशाखा कंडावत गढ में बसने से कण्डवार क्षत्रिय हो गई। छपरा जिले में इनका निवास है।

रावत क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। देवी- चण्डी
  • गौतम वंश की उपशाखा है। इन क्षत्रियों का निवास उन्नाव तथा फ़तेहपुर जिलों में हैं।

नन्दबक क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -यजुर्वेद। देवी - दुर्गा।

निशान क्षत्रिय

गोत्र- वत्स। प्रवर - पांच - और्व्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्रुवान। देवी - भगवती दुर्गा। वेद - सामवेद।
  • निशान निमिवंश की उपशाखा है। बिहार के पटना, गया तथा शाहाबाद जिलों में इनका निवास है।

जायस क्षत्रिय

यह राठौर वंश की उपशाखा है। इनका गोत्र आदी भी राठौर जैसा है। रायबरेली के जासस नामक स्थान में बसने के कारण यह नाम पडा।

चंदौसिया क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद। देवी - दुर्गा।
  • यह वैस क्षत्रियों की एक उपशाखा है जो वैसवाड से आव्रजित होकर सुल्तानपुर के चंदौर ग्राम में बस गई।

मौनस क्षत्रिय

गोत्र- मानव। यह कछवाहा क्षत्रियों की उपशाखा है जो आमोर से मिर्जापुर तथा बनारस आकर बस गई।

दोनवार क्षत्रिय

गोत्र- - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -यजुर्वेद। यह विसेन क्षत्रियों की उपशाखा है।

निमुडी क्षत्रिय

  • यह निमि वंश की उपशाखा है। गोत्र आदि भी एक ही है।

झोतियाना क्षत्रिय

गोत्र- कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद।

ठकुराई क्षत्रिय

गोत्र- भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद।
  • इस वंश का संबंध नेपाल से है। इनको शाह की पदवी भी मिली है। वर्तमान में इनका निवास बिहार के मोतीहारी, शाहाबाद तथा भागलपुर जिलों में है।

मराठा या भोंसला क्षत्रिय

गोत्र- वैजपायण, कौशिक तथा शैनक। वेद - यजुर्वेद। देवी जगदम्बा।
  • अधिकांश विद्वानों की राय से भोंसला वंश सिसोदिया वंश की एक उपशाखा है।
  • सूर्यवंश की वह शाखायें एवं उपशाखायें जो आबू पर्वत पर यज्ञ की अग्नि के समक्ष देश और धर्म की रक्षा का व्रत लेकर अग्नि वंशी कहलाई।

परमार क्षत्रिय

गोत्र- वशिष्ठ, गार्ग्य, शौनक, कौडिन्य। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद - यजुर्वेद। देवी - दुर्गा तथा काली देवी

चौहान क्षत्रिय

गोत्र- वत्स। प्रवर - पांच- और्व्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्रुवान। वेद - सामवेद। देवी - आशापुरी।

प्रतिहार या परिहार

गोत्र- कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी चामुण्डा।
  • परिहार वंश की भी अनेक उपशाखायें हैं। [1]

2 टिप्‍पणियां:

  1. Bhai aaj tak mujhe ye nahi pta ki saini ki khasiyat kya hoti hai.. Aaj ek saini bhai ne puchh liya mujhse to me nhi bta paya mujhe bura lga ki main saini hokar vi saini ki khasiyat nahi bta paya please mujhe jaldi btaao...thanks

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  2. Bhai aaj tak mujhe ye nahi pta ki saini ki khasiyat kya hoti hai.. Aaj ek saini bhai ne puchh liya mujhse to me nhi bta paya mujhe bura lga ki main saini hokar vi saini ki khasiyat nahi bta paya please mujhe jaldi btaao...thanks

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