गुरुवार, 1 सितंबर 2016

समाज के हित में बदला जावे इस ताकत को     
   नागौर की ग्राम पंचायत ताऊसर के हाल ही में उपचुनाव समपन्न किये गये हैं, लेकिन इन चुनावों पर बने माहौल को देखकर यह चुनाव कहीं पर भी किसी विधानसभा चुनाव से कम नहीं लग रहा था। इस चुनाव में जितना पैसा खर्च किया गया वह धन एक विधानसभा चुनाव के लिये पर्याप्त होगा। इन पंचायत चुनावों मेंं माली समाज के ही दो धड़े आपस में भिड़ते हैं। अगर यहां सामने कोई दूसरा होता तो चुनवा लडऩे का मजा ही कुछ और आता, लेकिन इसमें तो जो भी जीत जावे, वो माली ही तो होना है। लेकिन ताऊसर गांव में जितनी धड़बाजी समाज व सामाजिक, राजनीतिक हलके में है, वह खतरनाक है। पिछले काफी बरसों से यह गुटबाजी चल रही है। कभी भवंरलाल संगम और मांगीलाल भाटी के गुट थे, वे दोनों ही खुद शांत हो गये, लेकिन उनके धड़े आज तक नहीं टूट पाये। पूरे नागोर जिले में और आस पास के क्षेत्र में इन दोनों गुटों को एक करने वाला आज तक कोई सामने नहीं आ पाया।
        इन चुनावों में श्री कृपाराम देवड़ा बनाम श्री किरपा राम सोलंकी के धड़े हैं, जिनमें देवड़ा के उमीदवार रहे श्री आसुराम भाटी व सोलंकी का उमीदवार रहे सतीश सांखला। इस बार इनमें देवड़ा गुट भारी रहा और अच्छे मतों से जीत हासिल की। श्री आशाराम भाटी 317 मतों के अंतर से विजयी रहे, उन्होंने श्री सतीश सांखला को पराजित किया।
     ताऊसर ग्राम पंचायत के ये चुनाव नागौर जिले की राजनीतिक हस्तियों को भी अपनी तरफ खेंचते हैं, तो लगभग सभी राजनीतिक दल भी इसमें पूरी रूचि लेते हैं। चुनावों में इस बार सोशल मीडिया का भी खुलकर इस्तेमाल किया गया। व्हाट्सअप, ट्विटर और फेसबुक इन चुनावों के सम्बंध में नित नई टिप्पणियों से भरे नजर आये। कुछ टिप्पणियों  बिना कोइ्र पक्ष-विपक्ष की राय जताये और सेंडर का नाम या मोबाइ्रल नम्बर दिये बिना यहां प्रस्तुत हैं ताकि पाठकों को इन चुनावों के बारे मेंं कुछ जानकारी मिल सके और समाज के लोग उनके आधार पर दोनों पक्षों को आगामी विधानसभा चुनावों के लिये एक कर सके।-
      - आज नागौर में ताऊसर पंचायत में चुनाव माली समाज के दो गुट आमने सामने हैं,  करोड़ो रूपये खर्च हुये हैं, वे बांट दिये गए हैं वोटरो को। चुनाव में मतदान में हिस्सा लेने के लिये 700 लोगों को  हवाई जहाज से बुला लिया गया है और कितने ही ट्रेनों से। आखिर एक पंचायत चुनाव हैं, यह तो खाली अहम की लड़ाई लग रही है।
      - ताऊसर पंचायत चुनाव को अहम की लड़ाई मानकर लडऩा, यह लोकतंत्र का खुला मजाक है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था न होकर धनतंत्र की व्यवस्था है। चुनावों के दौरान समाज को पूरी सावधानी रखनी होगी। समाज में मनमुटाव व संघर्ष न हो, यह वहाँ के प्रबुद्ध समाज बंधुओं की नैतिक जिम्मेदारी बनती है ।
     - हम लोग चाहकर भी नहीं रोक सकते हैं। अलग अलग गुट करोड़ो रूपये भी चंदा इकट्टा करके चुनाव लड़ रहे हैं। यह चुनाव प्रशासन के लिए भी चुनौती बना हुआ है, ईटीवी राजस्थान भी इसकी न्यूज प्रसारित कर रहा है।
     - हैदरावाद से माली समाज के 1300 वोटर आये नागौर में ताऊसर सरपंच उप चुनाव में वोट देने 6 फ्लाइट व 10 बोगी बुक, कुल आने जाने का खर्चा करीब 90 लाख आएगा।
    - मतदान स्थल पर पहुंच रहे है वॉल्वो व लग्जरी गाडिय़ों के काफिले, ई-टीवी में चल रही है माली जाति के दोनों उमीदवारों के इस चुनाव की खबर। ताऊसर में देवड़ा परिवार में है अशोक जी गहलोत का ननिहाल।
    - माली समाज के समझदार लोगों ने निर्विरोध चुनाव का किया था प्रयास, लेकिन ओछी राजनीती और अहम की लड़ाई ने खर्च करवाये करीब 5 करोड़। इन रुपयों से लड़ा जा सकता है 5 विधान सभा चुनाव
     - एक तरफ है माली समाज अध्यक्ष कृपाराम देवड़ा का खेमा दूसरी तरफ है नागौर सभापति कृपाराम सोलंकी का खेमा।
     - राजस्थान प्रदेश स्तर के नेताओं को समय रहते ध्यान देना होगा, इस लड़ाई को समाप्त किये बिना नागौर से माली को विधायक बनाना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन हो जायेगा। समय रहते अगर मालियों को एक कर लिया गया तो अगला एक विधायक पक्का।
     - इन दोनों के कुछ नहीं लग रहा है, ना ही उमीदवारों का लग रहा है। दोनों तरफ से ग्रुप बने हुए हैं- जिनका नाम इन मालियों ने पार्टी दे रखा है। एक है संगम पार्टी, जो भँवर लाल जी संगम के नाम से हे दूसरी है मांगीलाल जी भाटी के नाम से भाटी पार्टी। इन पार्टियों से जुड़े लोगों से लिये चंदे से चुनाव लड़ा जाता है। पंचायत राज की स्थापना नागौर में ताऊसर से हुई थी उसी समय से ये भाटी पार्टी और संगम पार्टी बन गई थी, जो आज भी बनी हुई है जब भँवर लाल जी संगम ने मुंडवा से विधायक चुनाव लड़ा उस समय समाज एक हो गया था। मात्र 2500 वोटो से हार गए थे संगम साहब। वे पूर्व मंत्री राजेंद्र गहलोत के ससुर थे।
        इनके अलावा बहुत सारी प्रतिक्रियायें सोशल मीडिया पर हैं, पर सारी नहीं दी जा सकती। कुछ चुनिन्दा ही प्रसतुत की गई हैं। अब समाज के धुरन्धरों को सोचना है कि इस ताकत को अगले विधानसभा चुनावों तक समाज की एकजुट ताकत में कैसे बदला जावे।
- निर्मल आर्य, सम्पादक, SAINI MALI TIMES,  LADNUN (RAJ.)

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