संत शिरोमणी लिखमी दास महाराज
भारत आदिकाल से गुरू परमपरा संस्कृति वाला राष्ट्र रहा है । गुरू अथार्त अज्ञान से ज्ञान की ओऱ ले जाने वाला] मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाने वाला । आध्यात्मिक जाग्रत कर प्रभु से साक्षात्कार करने वाला । इसी पम्परा में श्री लिखमीदासजी नाम शामिल है ।
श्री लिखमीदासजी को भी सैनिक क्षत्रिय माली सैनी समाज द्वारा समाज के के श्रेष्ट संत महाराज को गुरू परम्परा की कडी के रूप में श्रद्धा दी जाती हैै ।
श्री लिखमीदासजी को भी सैनिक क्षत्रिय माली सैनी समाज द्वारा समाज के के श्रेष्ट संत महाराज को गुरू परम्परा की कडी के रूप में श्रद्धा दी जाती हैै ।
इस अनमाल संत का जन्म विक्रम संवत 1807 आशाढ सुदी पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा तदनुरूप 8 जुलाई 1750 ईस्वी सन् में भडकी बस्ती (चेनार ग्राम) में हुआ, जो नागोर जिला मुख्यालय से मात्र 3 किलोमीटर दूर हैं। उनकी माता श्रीमती नत्थी व पिता रामुदास सोलंकी तथा गुरू खींयारामजी थे । चेनार बडकी बस्ती वास में आज दिनभी लिखमीदासजी के ईष्ट देवता बाबा रामदेवजी का मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में खडा है ।
बडे बुजुगो के अनुसार आप बाल्य काल से ईश्वर की आराधाना में लीन रहने लगे थो । उसी समय से आपने बाबा रामदेवजी महाराज की सेवा शुरू कर दी थी । महान व्यक्तित्व के धनी संत बचपन से ही बाबारामदेवजी के भक्त थे किंतु भक्ति मार्ग में ज्ञाान मार्गी थे । जिन पर सदगुरू व संतों का व्यापक प्रभाव था ।
आपने युवावस्था में प्रवेश किया तब आपका विवाह परसरामजी टॉक की सुपुत्री श्रीमती सैनी के साथ सम्पन्न हुआा आपके विवाह के बाद आपके पिताजी रामुदासजी इस संसार से चल बसे । आपकी माताजी आपके पिताजी की तरह भक्ति मे बराबर आपका मार्गदर्शन करती रही । जिस समय आपकी 25 वर्ष की आयु हुई थी तब आपकी माताजी भी परमधाम पधार गई । भक्ति मार्ग ज्ञानमार्गी शाखा के प्रवर्तक संत कबीर के समान संत लिखमीदासजी भी पढाईं लिखाई से अनजान थे ।
आपने युवावस्था में प्रवेश किया तब आपका विवाह परसरामजी टॉक की सुपुत्री श्रीमती सैनी के साथ सम्पन्न हुआा आपके विवाह के बाद आपके पिताजी रामुदासजी इस संसार से चल बसे । आपकी माताजी आपके पिताजी की तरह भक्ति मे बराबर आपका मार्गदर्शन करती रही । जिस समय आपकी 25 वर्ष की आयु हुई थी तब आपकी माताजी भी परमधाम पधार गई । भक्ति मार्ग ज्ञानमार्गी शाखा के प्रवर्तक संत कबीर के समान संत लिखमीदासजी भी पढाईं लिखाई से अनजान थे ।
अमरपुरा गांव में पवित्र कृषि कार्य को अपनी गहस्थ जीवन धारा का आधार बना कर संत प्रतिदिन भजन मण्डलीयों के बीच भजन गाते व नये नये पदो की रचना करते । कबीर के समान जैसी स्थिति होती उन में से वह वाणी बोलते थे ।
ऐसी आम धारणाा है कि उनहोने हजारो भजन व दोहो की रचना की किन्तु लेखन का ज्ञाान न होने के कारण व केवल श्रवण पधति का माध्यम बन कर रह गया ।
संत लिखमीदासजी ने गुरू महिमा हिन्दु मुस्लिमो की एकता सत संगति आदि अनेक विषयों पर भजन बनाये " इण विध सायब सीवरो अब तुं कर सिमरन" तथा " हरिजन हरि भज जनम रे रे गाफल कयां जागिया" आदि भजन शीर्ष्क " राम नाम स्मरण व गुरू महिमा का ज्ञान करते हैं । " ऊच नीच कुल को नाही", " संत बिना निवण कुण करिया " , "साधोे भाई मस्जिद मंदिर " आदि भजन उनके सामाजिक समरसता व श्रेष्ठ धार्मिक मूल्यों के प्रति श्रधा को व्यक्त करते है । उनके द्वारा गेय भक्ति पद व वाणिया राग अवसारी प्रभाती राग सौरठ फकीरी आदि से युक्त हैं , जिन पर शोध किया जाना अत्यन्त आवश्यक है ।
संत लिखमीदासजी के बारे में लोक धारणा है कि उन्होने अपने जीवन काल में अनेक चमत्क़त कार्य किये परचे दिये जैसे अमरपूरा को खाली कराना , महाराजा भीमसिंहजी जोधपुर का ओडिट ठीक करना, झुझाले के गोसाईजी के मंदिर का बिना चाबी वाणाी द्वारा ताला खेालना, बाडी में सिंचाई करना तथा दुसरे गांव उसी समय सत्संग करना जिससे लोगों में उनके ईश्वर के प्रति श्रद्धा का भाव जाग्रत हुआ । संत शिरोमणी ने विक्रम संवत 1888 आसोज वदी शष्ठी 8 सितम्बर 1830 को ग्राम अमरपुरा में जीवित समाधि ली ऐसा लोक श्रवण है ।
आज भी उनकी जयन्ती पर नागौर जिले के मेडता जसनगर, कुचेरा के साथ-साथ फालना, सुमेरपुर, शिवगंज, सिरोही, जोधपुर, पाली, अहमदाबाn तथा हैदराबाद में भ्वय समारोहका आयोजन प्रति वर्ष किया जाता है ।
मानव धर्म व समाज के लिए जीने का सन्देश देने वाले संत शिरोमणी लिखमीदासजी का क़तित्व व व्यक्तित्व सैनिक क्षत्रिय माली सैनी समाज के लिए प्रेरणा के साथ साथ गहन अध्ययन व शोध का भी विषय सभी जाति बन्धुओं के लिए है ।
संकलनकर्ता & अम`तलाल टांक शिवगंज] मोबkइल 9414533745
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