सोमवार, 17 अप्रैल 2017

महात्मा ज्योतिबा राव फूले

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वूयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं। दलित व स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्नीइ ने मिलकर काम किया। दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे
सावित्री बाई फुले

सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी, 1831 – 10 मार्च, 1897) भारत की एक समाजसुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होने अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। १८५२ में उन्होने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

'सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।

महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
सावित्री बाई फुले
सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी, 1831 – 10 मार्च, 1897) भारत की एक समाजसुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होने अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। १८५२ में उन्होने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

'सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।

महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
महाराजा शूर सैनी
महाराजा शूरसैनी ने समाज से बुराईयों को दूर करने 
हेतू इन बुराईंयों के खिलाफ सभी वर्गों को एकजुट
 करके समाज सुधार की दिशा में अनुकरणीय कार्य किया है।
 महाराजा शूरसैनी के जीवन व आदर्शों पर चलते हुए 
उनकी शिक्षाओं को हमें अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए।
महाराजा शूर सैनी ने समाज को एकजुट कर सामाजिक 
बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया।
 सैनी समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है, 
जिसके दिशा-निर्देशक महाराजा शूरसैनी रहे हैं।
 ऐसे व्यक्ति किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं,
अपितू समस्त राष्ट्र की धरोहर होते हैं।
महाराज
Garib Neta

अब गरीब बिना पैसे लड़ेंगे लोकसभा चुनाव – अनिल बादराणी सांखला

नई दिल्ली : (जी.एस. ठाकुर) “हर गरीब परिवार में एक सरकारी नोकरी व् अन्य सभी परिवारों में रोजी-रोटी की गारंटी” के मुद्दे को “आज़ाद मज़दूर किसान पार्टी” जन-जन तक पहुँचने में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, पूरे देश में हर जिले में, हर विधानसभा एरिया में यहाँ तक की हर गाँव में पार्टी अपने पदाधिकारी नियुक्त कर रही है।
इस मुद्दे का दबे स्वर में विरोध भी शुरू हो गया है, विभिन पार्टियों के नेता “आज़ाद मज़दूर किसान पार्टी” पर देश की जनता को गुमराह करने का आरोप लगा रहे है, उनका कहना है की यह संभव ही नही है की हर गरीब परिवार में एक सरकारी नौकरी दी जाये और अन्य सभी परिवारों में रोजी-रोटी की गारंटी दी जाये, ऐसा कोई भी पार्टी कर ही नही सकती है। लेकिन वहीं “आज़ाद मज़दूर किसान पार्टी” अपने इस मुद्दे पर अपना दावा कर रही है की उनके पास मजबूत योजना है, जिसके तहत हर गरीब परिवार में सरकारी नौकरी व् अन्य सभी परिवारों में रोजी-रोटी की गारंटी होगी, पार्टी का यहाँ तक वचन है कि यह केजरीवाल की तरह हवा-हवाई घोषणा नही है और ना ही मोदी का कोई जुमला है, बल्कि यह पार्टी का वचन है, पार्टी यहाँ तक दावा कर रही है कि सरकार बनने के 5 वर्ष में अगर देश के सभी गरीब परिवारों में सरकारी नौकरी व् अन्य सभी परिवारों में रोजी-रोटी की व्यवस्था नही दी, तो पार्टी को भंग करके समाप्त कर दिया जायेगा, पार्टी की वेबसाइट www.amkp.in पर इसी मुद्दे का बेनर भी प्रमुखता से दिखाई दे रहा है।
वहीँ इस मुद्दे को लेकर पार्टी ने सिर्फ गरीब उम्मीदवारों को टिकट देकर, उन्हें जिताकर संसद में भेजने का मन बना रखा है, पार्टी का मानना है कि गरीबी-बेरोजगारी का दर्द सिर्फ गरीब बेरोजगार ही समझ सकते है, इसलिए पार्टी सिर्फ और सिर्फ गरीबों को लोकसभा में टिकेट देकर उम्मीदवार बनाकर संसद में भेजने की एक क्रांतिकारी योजना पर काम कर रही है, इस पर सभी पार्टी के पूंजीपति नेता “आज़ाद मज़दूर किसान पार्टी” व् पार्टी प्रमुख “अनिल बादराणी सांखला” का मजाक बना रहे है, लेकिन वहीँ विभिन पार्टी के गरीब नेता अपनी-अपनी पार्टी को त्याग के सांखला की विचारधारा के साथ जुड़ रहे है।

आबू

-राजस्थान के अरावली पहाड़ के दक्षिणी छोर पर बसा एक नगर । अरावली पहाड़ का एक हिस्सा । -18/297.
-आबू पंवारांरी ठाकुराई हुती । तद आबूथी कोस .. ऊमरणी छै तठै सहर वसतो । पछै वीजड़रा बेटा 5 महणसी, आल्हणसी.. वीजड़रा बेटा- जसवंत, समरो, लूणो, लूंभो, लखो, तेजसी -अे लोग गूढ़ो कर रह्या था । पछै पंवारांसूं सगाई देणी कीवी । 25 सांवठी दी । एक भाई ओळ रह्यो (धन की एवज में एक भाई को उनकी चाकरी में रखा) । पछै वे जांन कर आया । सगळांनूं डेरा दिराया । परणीजणनूं जुदा बुलाया । भला रजपूतांनूं बैरां रा वेस पहराया । पछै परणाय सुवण मेलिया । तठै के चंवरियां मांही पचीस सिरदार मारिया । नै जांनीवासै साथ उतरियो उणनूं अमलपांणियां मांहै काई बळाई दी सु वे छकिया तरै कूट मारिया । ओळ दियो थो उण उठै वांसै सिरदार थो तिणनूं मारियो । आबू ऊपर चढ़ दौडि़यो । आबू हाथ आयो । सं. 1216 रा माह वद 1 पंवारांसूं गयो ।...चहुवांण वीजड़रो बेटो तेजसी पाट बैइौ । 10/123-170.
-जांगळी नामे भील राठोड़ राजानूं बेटी परणाय आबू दियो । राठोड़ कनांसूं आबू गोहिलां लियो । देायसै वरस गोहिलां रै रही । गोहिलां कनासूं परमारां लियी । परमारां कनासूं पीतू देवड़ै लियो । 15/204.

सांखला

 -परमार चाहड़राव रै घरवासै अपछरा हुती जिणसूं बेटा दोय इणरेै हुवा । दोनों बांधवां संख बजायौ, जिणसूं बाघ रै वंस रा सांखला कहाणा ।......बेटा दोय -अेक सोढ़ौ, दूजौ सांखलौ । बेटी मायदे सगत हुई । तीजी बेटी देवी कल्यांणकंुवर अपछरा सूं हुई । 15/139.
-रासीसर सांखलो खीमसी रायसलरो बेटो रहै । दहिया जांगळू राज करै । दहियांरो ब्राह्मण गूजरगोड केसो है जिण दहियांनै कह्यो- थे कहो तो हूं जांगळू अमकै ठिकाणै तळाई खिणाऊं । दहियां कह्यो-अमकै ठिकाणै तो घोड़ा दौड़ाबारों सराड़ो है, अठै तळाई मत खिणाव । जद खीमसी सांखलासूं केसो मिलियो । खीमसी कनैसूं दहिया मराय जांगळू खीमसीरो अमल करायो । पछै केसो ‘केसोतळाई’ जांगळू खिणाई ।... रायसलरौ खीमसी चरूंसूं गाळ गाळ जिण वीठूनूं दोयड़ पसाव दिया, पोळपात थापियो । इणरी बेटी उमा गढ़ गागुरण खीची अचळदासनूं परणाई । 15/139.
-वैरसी माताजीरी इंछना मन में करी - ‘म्हारै बापरो वैर बळै । गैचंद हाथ आवै तो हूं कंवळपूजा करनै श्री सचियायजीनूं माथो चढ़ाऊं ।’ पछै सचियायजी आय सुपनै में हुकम दियो, वांसै हाथ दिया नै कह्यो- ‘काळै वागै, काळी टोपी, वैहलरै काळी खोळी, काळा बळद जोतरियां, जिंदारै रूप कियां सांम्हां मिळसी । ओ गैचंद छै, तू मत चूकै, कूट मारै।’ पछै वैरसर मूंधियाड़ ऊपर फौज लेने दौडि़यो । सांम्हां उण रूप आयो, सु गैचंद मारियो । पछै ओसियां जात आयो । आप एकंत देहुरो जड़नै कंवळपूजा करणी मांडी। तरै देवीजी हाथ झालियो, किह्यो- ‘म्हैं थारी सेवा-पूजासौं राजी हुवा, तांनै माथो बगसियो, तूं सोनारो माथो कर चाढ़ ।’ आपरै हाथरो संख बैरसीनूं दियो, कह्यो- ‘ओ संख वजायनै सांखळो कहाय ।’ 10/324-5.
-चाचग ऊपर मांडवरो पातसाह आयो थो । तिणसूं लड़ाई हुई । पातसाह भागो । नगारा नीसांण पड़ाय लिया । तिणसूं सांखला नादेत-नीसांणोत कहावै छै । 10/325.

प्ंवार/परमार

-पंवारों ने अग्निवंशी राजपूतों में ज्यादा नाम पाया है और राज भी इनका हिंदुस्थान में जियादाह रहा है । 
राजा महाराजा भी इनमें बिक्रम और भोज जैसे बड़े-बड़े नामी और दातार हुए हैं ।
 इसलिये कहावत है - 
‘पृथ्वी बड़ा परमार, पृथ्वी परमारां तणी, एक उजेणी धार, दूजौ आबू बैठणौ ।’ 6/10.

-मरू प्रदेश में प्राचीन नगरों विक्रमपुर, लोद्रवा, धार-प्रदेश,
ओसियां पर पंवारों के राज्य होने का उल्लेख स्थानीय इतिहास के स्रोतों,
 ख्यातों, तवारीखों, विरदावलियां तथा दंतकथाओं में भी मिलते हैं । 
जब विक्रमी 258-457 में कुषाण और हूण लोगों ने पंजाब और गंगा के प्रदेशों पर 
आक्रमण किया तब ये लोग राजपूताने में आ बसे । -21/4.
-मारवाड़ में पंवार आबू से आये हैं धरणीं बाराह बहुत बड़ा पंवार राजा 
मारवाड़ का था उसने अपने राज के 9 हिस्से करके अपने भाइयों को बांट दिये थे । 
नवकोट मारवाड़ का नाम जब ही से निकला है, जिनकी तफसील यह है -
छप्पय:   मंडोवर सांवत हुओ अजमेर सिंधसू ।
गढ़ पूगल गजमल्ल हुओ लुद्रवे भान भू ।
आलपाल अर्बुद भोज राजा जालंधर ।
जोगराज धरधाट हुओ हंसू पारक्कर ।
नवकोट किराड़ू संजुगत थिर पंवारां थरपिया ।
धरणी बराह धर भाइयां कोट बांट जुअ जुअ किया । 6/11.
-पंवारांरी पैंतीस साख 
-1. पवार, 2. सोढ़ा, 3. सांखला, 4. भाभा, 
5. भायल, 6. पेस, 7. पाणीसबळ, 8. बहिया, 9. वाहळ, 
10. छाहड़, 11. मोटसीख 12. हुबड़, 13. सीलारा, 14. जैपाळ, 
15 कगवा, 16. काबा, 17. ऊमट, 18. धंाधु, 19. धुरिया, 20. भाई, 
21. कछोटिया, 22. काळा, 23. काळमुहा, 24. खैरा, 25. खूंट, 26. टल, 
27. टेखळ, 28. जागा, 29. छोटा, 30. गूंगा, 31. गैहलड़ा, 32. कलोळिया, 
33. कूंकण, 34. पीथळिया, 35. डोडकाग, 36. बारड़ । 10/79. 
-खांपे -पंवार । भायल -ये पहिले सिवाने में राज करते थे । सोढ़ा -जिनका ऊमरकोट और थरपारक में राज था । सांखला - जो पहिले जांगलू में राज करते थे । ऊमट -जिनका भीनमाल में राज था । कालमा -जिनका सांचैर में राज था । काबा - जिनका रामसींण में राज था । गल - ये पालणपुर की तरफ राज करते थे । डोड । 6/11.
-पंवार जो गरीब हैं और जिनके पास जमीन भी थोड़ी है उनमें बेवा औरतों का नाता
 गोडवाड़, जालोर और मालानी की तरफ होता है । 6/11.
-मंडोवर सामंत हुवो, अजमेर अजै सूं ,
गढ़ पूंगल गजमल हुवो, लुद्रवै भाणभुय ।
जोगराज धर धाट, हुवो हांसू पारकर,
अल्लपल्ल अरबुद, भोजराज जालंधर ।
नवकोट कराडू संजुगत, गिर पंवार हर थापिया,
धरणीवराह धर भाइयां, कोट बाट जू जू किया । 2/59.
-पैहली इणांरो दादो धरणीबराह, बाहड़मेर जूनो किराड़ू कहीजै, तिणरो धणी हुतो ।
 तिणरै नवै कोट मारवाड़रा हुता । तिणरै बेटो बाहड़ हुवो । तिणसूं आ धरती छूटी ।
 एक बार बाहड़ रायधणपुर कनै गांव झांझमो तठै जाय रिह्यो ।
 पछै बाहड़रो बेटो सोढ़ो तो सूंमरां कनै गयो, तिणनूं सूमरां रातो कोट दियो, 
ऊमरकोटसूं कोस 14 । नै तठा पछै सोढ़ा हमीरनूं जाम तमाइची ऊमरकोट दियो ।
 बाघ मारवाड़ मांहै पडि़हारां कनै आयो । बाघोरियै वसियो । 
बाघ पंवार, तिणरी औलादरा सांखला हूवा ।
......अजमेर धणी था तिणनूं मु. सुगणो वैरसी बाघावतनूं ले जाय मिळियो ।
 घणा दिन चाकरी की ।
 पछै मुजरो हुवो तरै कह्यो- ‘जांणै सो मांग 
 तरै इण कह्यो- ‘म्हारो बाप गैचंद बिना खूंन मारियो छै, तिणरी ऊपरा करो, फौज दो ।’
 तरै फौज उणै दी । तरै वैरसी माताजीरी इंछना मन में करी - ‘म्हारै बापरो वैर बळै ।
 गैचंद हाथ आवै तो हूं कंवळपूजा करनै श्री सचियायजीनूं माथो चढ़ाऊं ।’
 पछै सचियायजी आय सुपनै में हुकम दियो,
 वांसै हाथ दिया नै कह्यो- ‘काळै वागैख् काळी टोपी, वैहलरै काळी खोळी, काळा बळद जोतरियां,
 जिंदारै रूप कियां सांम्हां मिळसी । ओ गैचंद छै, तू मत चूकै, कूट मारै।’
 पछै वैरसर मूंधियाड़ ऊपर फौज लेने दौडि़यो । सांम्हां उण रूप आयो, सु गैचंद मारियो ।
 पछै ओसियां जात आयो । आप एकंत देहुरो जड़नै कंवळपूजा करणी मांडी। 
तरै देवीजी हाथ झालियो, कह्यो- ‘म्हैं थारी सेवा-पूजासौं राजी हुवा,
 तांनै माथो बगसियो, तूं सोनारो माथो कर चाढ़ ।’
 आपरै हाथरो संख बैरसीनूं दियो,
 कह्यो-‘ओ संख वजायनै सांखळो कहाय ।10/323-5.

परमार वंश वैशाख सूद 5

मूल पुरुष : परमार
वंश : अग्निवंश (सूर्यवंश)
गौत्र : वशिष्ट
कुलक्षेत्र : आबू पर्वत
तिथि : पांचम
महीनों : वेशाख
वार : गुरु
पागडी : पचरंगी
झडो : त्रीबधी
जाज़म : सूवा पंखी
नदी : सफरा
धोडो : कवलीयौ
साखा: माधवी
ढाल : हरीपंख
तलवार : रणतर
वुक्ष: आबो
गाय : कवली गाय
गणपति : ऐकदत
भेरव : गोरा भेरव
गुरु : गोरखनाथ
निशान : केसरीसिंह
शस्त्र : भालो
वेद : यजुर्वेद
भाम्र्न :राजगौर
बेसणु : उज्जेन
प्रवर : पांच
महादानेश्वरी : राजा भोज
भूदाने श्वर : राजा राम
सूवण दानेश्वरी : सोढ़ा जी परमार
कुंड : अनलकुंड
वीरवत : राजाविक्रम
परदुख भंजन : राजा वीर विक्रमादित्य
आध : पुस्तराज
प्राणदाता : इंद्र
नगरी : चंद्रावती
क्षमादान : राजा मूँज
इष्टदेवी : हरसीधी माँ
कुलदेवी : सचियाय माँ
पीर : पिथौराजी
सत्य..................न्याय.....................भक्ति
परमार(पँवार) वंश कि उत्पत्ति राजस्थान के आबू पर्वत में स्थित अनल कूण्ड हुई थी तथा
 चन्द्रावती एव किराडू दो मुख्य राजधानीया भी राजस्थान में ही थी यही से परमार(पँवार) मालवा गये 
एवं उज्जैन(अवतीका) एवं धार(धारा) को अपनी राजधानी बनाया भारत वर्ष में 
केवल परमार(पँवार)वंश ही एक मात्र ऐसा वंश हैं जिसमें चक्रवर्ती सम्राट हुई इसलिए यह कहा जाता है कि.
# पृथ्वी_तणा_परमार_पृथ्वी_परमारो_तणी . यानी धरती की शोभा परमारो से है या 
इस धरती की रक्षा का दायित्व परमारो का है परमार राजा दानवीर साहित्य व शौर्य के धनी थे तथा
 वे कृपाण एवं कलम दोनों में दक्ष थे उनका शासन भारत के बाहर. दूसरे देशों तक था 
लेकिन राजा भोज के पश्चात परमार सम्राट का पतन हो गया एवं परमारो के पतन 
होते ही भारत वर्ष मुसलमानों के अधिक हो गया अर्थात परमारो का इतिहास
 बहुत ही गौरव शाली रहा है जो जागृति के अभाव में लुप्त प्रायः हो गया
 अब हमें पुनः गौरव शाली इतिहास को बहाल करना है
(1) अनल कुण्ड (आबू पर्वत)_परमार कि उत्पत्ति.स्थल
(2) चंद्रावती व किराडू_ परमारो कि राजधानीया
(3) सोढा.संखाला व सच्च़ियाय कि जन्म स्थली_शिव (बाडमैर)
(4) परमारो मे अवतरित शक्तियों स्थली जैसे..सच्चियाय वाकल.मालन.रूपाद.लालरदे के शक्ति पीठ
(5) परमारो के कोट_अचल गढ़ .जालौर.सिवाणा.ल
ुद्ववा.पूंगल.चितौड.मडोर.तिकाडू.सामर
(6) संत जाम्भोजी ति स्थली.मुकाम
(7) पीर हडबूजी सांखला कि स्थली_बेंगटी
(8) राजस्थान मे निवास करने वाले परमार पँवार_मेहफावत.
सोढा.सांखला.भायल.काबा.धांधू. क्रागुंआ.किराडू.गेहलडा.गुंगा
.बहिया.उमट.बारड.राज पँवार.इत्यादि.....
जय परमार पँवार राज वंश.
जय माताजी
परमार वंश के सभी भाई ओ को !
आज
"वेंसाख सूद पंचमी"
हे !
भारत वर्ष के सभी परमार वंश के वंशज को आज
परमार उत्पति दिन की
खूब खूब शुभेच्छा
सांखला समाज की कुलदेवी का मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह
परबतसर। सांखला (माली) समाज की कुलदेवी की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह 29 जनवरी को की गई। मांगीलाल सोहनलाल सांखला के अनुसार मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा 29 जनवरी को सुबह 7रू15 बजे माजीसा धाम लावटा रोड परबतसर में की गई।

परमार ( पंवार ) - उतपत्ति और राज्य

परमार पंवार राजवंश
परमार 36 राजवंशों में माने गए है | ८वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी विक्रमी तक इनका इस देश में विशाल सम्राज्य था  इन वीर क्षत्रियों के इतिहास का वर्णन करने से पूर्व उतपत्ति के सन्दर्भ देखे | परमारों तणी प्रथ्वी

उत्पत्ति :- परमार क्षत्रिय परम्परा में अग्निवंशी माने जाते है इसकी पुष्टि साहित्य और शिलालेख और शिलालेख भी करते है | प्रथमत: यहाँ उन अवतरणों को रखा जायेगा जिसमे परमारों की उतपत्ति अग्निकुंड से बताई गयी हे बाद में विचार करेंगे | अग्निकुंड से उतपत्ति सिद्ध करने वाला अवतरण वाक्पतिकुंज वि. सं. १०३१-१०५० के दरबारी कवी पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसहशांक -चरित पुस्तक में पाया जाता है जिसका सार यह है की आबू -पर्वत वशिष्ठ ऋषि रहते थे | उनकी गो नंदनी को विश्वामित्र छल से हर ले गए | इस पर वशिष्ठ मुनि ने क्रोध में आकर अग्निकुंड में आहूति दी जिससे वीर पुरुष उस कुंड से प्रकट हुआ जो शत्रु को पराजीत कर गो को ले आया जिससे प्रसन्न होकर ऋषि ने उस का नाम परमार रखा उस वीर पुरुष के वंश का नाम परमार हुआ |

भोज परमार वि. १०७६-१०९९ के समय के कवि धनपाल ने तिलोकमंजरी में परमारों की उत्पत्ति सम्बन्धी प्रसंग इस प्रकार है |
वाषिष्ठेसम कृतस्म्यो बरशेतरस्त्याग्निकुंडोद्रवो |
भूपाल: परमार इत्यभिघयाख्यातो महिमंडले ||
अधाष्युद्रवहर्षगग्दद्गिरो गायन्ति यस्यार्बुदे |
विश्वामित्रजयोजिझ्ततस्य भुजयोविस्फर्जित गुर्जरा: ||

मालवा नरेश उदायित्व परमार के वि.सं. ११२९ के उदयपुर शिलालेख में लिखा है |
''अस्त्युवीर्ध प्रतीच्या हिमगिरीतनय: सिद्ध्दं: (दां) पत्यसिध्दे |
स्थानअच ज्ञानभाजामभीमतफलदोअखर्वित: सोअव्वुर्दाव्य: ||४||
विश्वमित्रों वसिष्ठादहरत व (ल) तोयत्रगांतत्प्रभावाज्यग्ये वीरोग्नीकुंडाद्विपूबलनिधनं यश्चकरैक एव ||५||
मारयित्वा परान्धेनुमानिन्ये स ततो मुनि: |
उवाच परमारा (ख्यण ) थिर्वेन्द्रो भविष्यसि ||६||

बागड़ डूंगरपुर बांसवाडा के अर्थुणा गाँव में मिले परमार चामुंडाराज द्वारा बनाये गए महादेव मंदिर के फाल्गुन सुदी ७ वि. ११३७ के शिलालेख में लिखा है - कोई प्रचंड धनुषदंड को धारण किया हुआ था और अपनी विषम द्रष्टि से यज्ञोपवित धारण कीये हुए था और अपनी विषम द्रष्टि से जीवलोक को डराने का पर्यत्न करता हुआ शत्रुदल के संहार्थ पसमर्थ था | ऐसा कोई प्रखर तेजस्वी अद्भुत पुरुष उस यज्ञ कुंड से मिला |
यह वीर पुरुष वसिष्ठ की आज्ञा से शत्रुओं का संहार करके और कामधेनु अपने साथ में लेकर ऋषि वशिष्ठ के चरण कमलों में नत मस्तक होता हुआ उपस्थित हुआ |उस समय वीर के कार्यों से संतुष्ट होकर ऋषि ने मांगलिक आशीर्वाद देते हुए उसको परमार नाम से अभिहित किया |
परमारों के उत्पत्ति सम्बन्धी ऐसे हि विवरण बाद के शिलालेख व् प्रथ्वीराज रासो आदी साहित्यिक ग्रंथो में भी अंकित किया गया है |
इन विवरणों के अध्धयन से मालूम होता हे की 11वि, १२ वि. शताब्दी के साहित्यिक व् शिलालेखकार उस प्राचीन आख्यान से पूरी तरह प्रभावित थे जिसमे कहा गया है की ऐक बार वशिष्ठ की कामधेनु गाय को विश्वामित्र की सेना को पराजीत करने के लिए कामधेनु ने शक, यवन ,पल्ह्व ,आदी वीरों को उत्पन्न किया |

फिर भी यह निस्संकोच कहा जा सकता है की 11वि. सदी में परमार अपनी उत्पति वशिष्ठ के अग्निकुंड से मानते थे और यह कथानक इतना पुराना हो चूका था जिसके कारन 11वि. शताब्दी के साहित्य और शिलालेखों में चमत्कारी अंश समाहित हो गया था वरना प्रकर्ति नियम के विरुद्ध अग्निकुंड से उत्पत्ति के सिद्धांत को कपोल कल्पित मानते है पर ऐसा मानना भी सत्य के नजदीक नहीं हे कोई न कोई अग्निकुंड सम्बन्धी घटना जरुर घटी है जिसके कारन यह कथानक कई शताब्दियों बाद तक जन मानस में चलता रहा है और आज भी चलन रहा है | अग्निवंश से उत्पत्ति सम्बन्धी इस घटना को भविष्य पुराण ठीक ढंग से प्रस्तुत करता है | इस पुराण में लिखा है |

''विन्दुसारस्ततोअभवतु |
पितुस्तुल्यं कृत राज्यमशोकस्तनमोअभवत ||44||
एत्सिमन्नेत कालेतुकन्यकुब्जोद्विजोतम:  |
अर्वूदं शिखरं प्राप्यबंहाहांममथो करोत      ||45|
वेदमंत्र प्रभाववाच्चजाताश्च्त्वाऋ क्षत्रिय: |
प्रमरस्सामवेदील च चपहानिर्यजुर्विद:  ||46||
त्रिवेदी चू तथा शुक्लोथर्वा स परीहारक: |
                 भविष्य पुराण

भावार्थ यह हे की विंदुसार के पुत्र अशोक के काल में आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज के ब्राह्मणों में ब्रह्म्होम किया और वेद मन्त्रों के प्रभाव से चार क्षत्रिय उत्पन्न किये सामवेद प्रमर ( परमार ) यजुर्वेद से चाव्हाण ( चौहान ) 47 वें श्लोक का अर्थ स्पष्ट नहीं है परन्तु परिहारक से अर्थ प्रतिहार और चालुक्य ( सोलंकी) होना चाहिए | क्यूंकि प्रतिहारों को प्रथ्विराज रासो आदी में अग्नि वंशी अंकित किया गया है और परम्परा में भी यही माना जाता है |
भविष्य पुराण के इन श्लोकों से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आती है | प्रथमतः आबू पर किये गए इस यज्ञ का समय निश्चिन्त होता हे यह यज्ञ माउन्ट आबू पर सम्राट अशोक के पत्रों के काल में २३२ -से २१५ ई. पू. हुआ था |दुसरे यह यज्ञ वशिष्ठ और विश्वामित्र की शत्रुता के फलस्वरूप नहीं हुआ | बल्कि वेदादीधर्म के प्रचार प्रसार के लिए ब्रहम यज्ञ किया और यह यज्ञ वैदिक धर्म के पक्ष पाती चार पुरुषार्थी क्षत्रियों के नेतृत्व में विश्वामित्र सम्बन्धी प्राचीन ट=यज्ञ घटना को भ्रम्वंश अंकित किया गया | वशिष्ठ की गाय सम्बन्ध घटना के समय यदि परमार की उत्पत्ति हो तो बाद के साहित्य रामायण ,महाभारत ,पुराण आदी में परमारों की उतपत्ति का उल्लेख आता पर ऐसा नहीं है | अतः परमारों की उत्पत्ति वशिष्ठ -विश्वामित्र सम्बन्धी घटना के सन्दर्भ में हुए यज्ञ से नहीं , अशोक के पुत्रों के काल में हुए ब्रहम यग्य से हुयी मानी जानी चाहिए |
आबू पर हुए यज्ञ को सही परिस्थतियों में समझने पर यह निश्किर्य है की वैदिक धर्म के उत्थान के लिए उसके प्रचार प्रसार हेतु किसी वशिष्ठ नामक ब्राहमण ने यग्य करवाया , चार क्षत्रियों ने उस यज्ञ को संपन्न करवाया ,उनका नवीन ( यज्ञ नाम ) परमार ,चौहान . चालुक्य और प्रतिहार हुआ | अब प्रसन्न यह हे की वे चार क्षत्रिय कोन थे ? जो इस यज्ञ में सामिल हुए थे | अध्धयन से लगया वे मूलतः  सूर्य एवम चंद्र वंश क्षत्रिय थे |
अग्नि यज्ञ की घटना से पूर्व परमार कोन था ? इसकी विवेचना करते हे | पहले उन उदहारण को रखेंगे जो परमारों के साहित्य ,ताम्र पत्रादि में अंकित किये गए है और तत्वपश्चात उनकी विवेचना करेंगे|
सबसे प्राचीन उल्लेख परमार सियक ( हर्ष ) के हरसोर अहमदाबाद के पास में मिले है वि. सं. १००५ के दानपत्र में पाया गया हे जो इस प्रकार है -

परमभट्टारक महाराजाधिराज राज परमेश्वर
श्रीमदमोघवर्षदेव पादानुधात -परमभट्टारक्
महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमदकालवर्षदेव -
प्रथ्वीवल्लभ- श्रीवल्लभ  नरेन्द्रपादनाम
तस्मिन् कुलेककल्मषमोषदक्षेजात: प्रतापग्निहतारिप्क्ष:
वप्पेराजेति नृप: प्रसिद्धस्तमात्सुतो भूदनु बैर सिंह (ह) |१ |
द्रप्तारिवनितावक्त्रचन्द्रबिम्ब कलकतानधोतायस्य कीतर्याविहरहासावदातया ||२||
दुव्यरिवेरिभुपाल रणरंगेक नायक:  |
नृप: श्री सीयकसतमात्कुलकल्पद्र मोभवत  |३|

यह सियक परमार जिसके पिता का नाम बैरसी तथा दादा का नाम वाक्पति "( वप्पेराय ) था , या वाक्पति मुंज परमार ( मालवा ) का पिता था और राष्ट्रकूटों का इस समय सामंत था | अतः इस ताम्रपत्र में पहले आपने सम्राट के वंश का परिचय देता हे और तत्त्व पश्चात् आपने दादा और आपने पिता का नाम अंकित करता है | भावार्थ यह है की - परमभट्टारक महाराजाधिराज राज परमेश्वर श्री मान ओधवर्षदेव उनकें चरणों का ध्यान करने वाला परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमान अकालवर्षदेव उस कुल में वप्पेराज ,बैरसी ,व् सियक हुए | इससे अर्थ निकलता है परमार भी राष्ट्रकूटों से निकले हुए है थे | अधिक उदार अर्थ करें तो राष्ट्र कूटों की तरह परमार भी यादव थे यानी चन्द्रवंशी थे |

ब्रहमक्षत्रकुलीन: प्रलीनसामंतचक्रनुत चरण: |
सकलसुक्रतैकपूजच श्रीभान्मुज्ज्श्वर जयति  ||

इस प्रकार विक्रमी की 11वि. सदी सो वर्ष की अवधि में हि परमारों की उत्पति के सन्दर्भ में तीन तरह के उल्लेख मिलते हेई अग्निकुंड से उत्पत्ति ,राष्ट्र कूटों से उत्पति ब्रहम क्षत्र कुलीन | इतिहासकार सो वर्ष की अवधि के हि इन विद्वानों ने तीन तरह की बाते क्यूँ लिख दी ? क्या इन्होने अज्ञानवश ऐसा लिखा ? हमारा विचार यह हे की तीनो मत सही है | मूलतः चंद्रवंशी राष्ट्रकूटों के वंश में थे | अतः प्रसंगवश १००५ वि.के ताम्र पात्र अपने लिए लिखा की जिस कुल में अमोध वर्ष आदी राष्ट्र कूट राजा थे उस कुल में हम भी है | परमार आबू पर हुए यज्ञ की घटना से सम्बंधित था अतः परमारों को अग्निवंशी भी अंकित किया गया | ओझाजी ने ब्रहमक्षत्र को ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों गुणों युक्त बताया है | परमार पहले ब्राहमण थे फिर क्षत्रिय हो गए |
हमारे प्राचीन ग्रन्थ यह तो सिद्ध करते हे की बहुत से क्षत्रिय ब्राहमण हो गए मान्धाता क्षत्रिय के वंशज , विष्णुवृद्ध हरितादी ब्राहमण हो गए | चन्द्रवंश के विश्वामित्र , अरिष्टसेन आदी ब्राहमण को प्राप्त हो गए | पर ऐसे उदहारण नहीं मिल रहे हे जिनसे यह सिद्ध होता हे की कोई ब्राहमण परशुराम में क्षत्रिय के गुण थे | फिर भी ब्राहमण रहे ,शुंगो ,सातवाहनो ,कन्द्वों आदी ब्राहमण रहे | परमारों को तो प्राचीन साहित्य में भी क्षत्रिय कहा गया हे | यशोवर्मन कन्नोज ८वीं शताब्दी के दरबारी कवी वप्पाराव ( बप्पभट ) ने राजा के दरबारी वाक्पति परमार की क्षत्रियों में उज्वल रत्न कहा है | अतः परमार कभी ब्राहमण नहीं थे क्षत्रिय हि थे | ब्राहमण से क्षत्रिय होने की बात कल्पना हि है | इसका कोई आधार नहीं है ओझाजी ने ब्रहमक्षत्र का अर्थ ब्राहमण व् क्षत्रिय दोनों गुणों से युक्त बतलाया हे पर हमारा चिंतन कुछ दूसरी तरह मुड़ रहा हैं | यहाँ केवल '' ब्रह्मक्षेत्र '' शब्द नहीं है | यह ब्रहमक्षत्र कुल है | प्राचीन साहित्य की तरह ध्यान देते हे तो ब्रहमक्षत्र कुल की पहचान होती है |
श्रीमद भगवद गीता में चंद्रवंशी अंतिम क्षेमक के प्रसंग में लिखा है -
दंडपाणीनिर्मिस्तस्य  क्षेमको भवितानृप:
ब्रहमक्षत्रस्य वे प्राक्तोंवशों देवर्षिसत्कृत: ||( भा.१ //22//44 )
इसकी व्याख्या विद्वानो ने इस प्रकार की है -
तदेव ब्रहमक्षत्रस्य ब्रहमक्षत्रकुलयोयोर्नी: कारणभूतो
वंश सोमवंश: देवे: ऋषिभिस्रचसतत्कृत अनुग्रहित इत्यर्थ  |
अर्थात इस प्रकार मेने तुम्हे ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों की उत्पति स्थान सोमवंश का वर्णन सुनाया है |
( अनेक संस्क्रत व्यख्यावली टीका भागवत स्कंध नवम के ४८६ प्र. ८७ के अनुसार ) इस प्रकार विष्णु पुराण अंश ४ अध्याय २० वायु पुराण अंश 99 श्लोक २७८-२७९ में भी यही बात कही गयी है | बंगाल के चंद्रवंशी राजा विजयसेन ( सेनवंशी ) के देवापाड़ा शिलालेख में लिखा गया है -
तस्मिन् सेनान्ववाये प्रतिसुभटतोत्सादन्र्व (ब्र) हमवादी |
स व्र ह्क्षत्रियाँणजनीकुलशिरोदाम सामंतसेन: ए . इ. जि . १ प्र ३०७
इसमें विजयसेन के पूर्वज सामंतसेन को ब्रहमवादी को ब्रहमवादी और ब्रहमक्षत्रिय कुल का शिरोमणि कहा है |
इन साक्ष्यों में ब्रहमक्षत्र कुल चन्द्रवंश के लिए प्रयोग हुआ है | किसी सूर्यवंशी राजा के लिए ब्रहमक्षत्र ? कुल का प्रयोग नजर नहीं आया |इससे मत यह हे की चंद्रवंशी को ब्रहमक्षत्र कुल भी कहा गया है | सोम क्षत्रिय + तारा ब्राहमनी =बुध | इसी तरह ययाति क्षत्रिय क्षत्रिय + देवयानी ब्राह्मणी =यदु | इस प्रकार देखते हे की चन्द्रवंश में ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों जातियों का रक्त प्रवाहित था | संभवतः इस कारन चन्द्रवंश की और हि संकेत है | इस प्रकार परमार मूलतः चंद्रवंशी आधुनिक आलेख इस बात का समर्थन करते है - पंवार प्रथम चंद्रवंशी लिखे जाते थे | बहादुर सिंह बीदासर
पंजाब में अब भी चंद्रवंशी मानते है| अम्बाराया परमार ( पंवार ) चंद्रवंशी जगदेव की संतान पंजाब में है | और फिर परमार आबू के ब्रहमहोम में शामिल होने से अग्निवंशी भी कहलाये | आगे चलकर अग्निवंशी इतना लोकपिर्य हो गया की परमारों को अग्निवंशी हि कहने लग गए और शिलालेखों और साहित्य में अग्निवंशी हि अंकित किया गया |
इसके विपरीत परमारों के लिए मेरुतुन्गाचार्य वि. १३६१ स्थिवरावली में उज्जेन के गिर्दभिल्ल को सम्प्रति ( अशोक का पुत्र ) के वंश में होना लिखता है | गर्दभिल्ल ( गन्धर्वसेन ) विक्रमदित्य ( पंवार ) का पिता माना जाता है इससे परमार मोर्य सिद्ध होते है परन्तु सम्प्रति के पुत्रों में कोई परमार नामक पुत्र का अस्तित्व नहीं मिलता है | दुसरे सम्प्रति jain धरम अनुयायी था और उसका पिता अशोक ऐसा सम्राट था जिसने इस देश में नहीं ,विदेशों तक बोध धर्म फैला दिया था | अतः सम्प्रति के पुत्र या पोत्र का वैदिक धरम के लिए प्रचार के लिए होने वाले ब्रहम यज्ञ में शामिल होना समीचीन नहीं जान पड़ता |  दुसरे यह आलेख बहुत बाद का 14वीं शताब्दी का है जो शायद परमारों की ऐक शाखा मोरी होने से परमारों की उत्पत्ति मोर्यों से होना मान लिया लगता है | अन्य पुष्टि प्रमाणों के सामने यह साक्ष्य विशेष महत्व नहीं रखता | अतः मूलतः परमार चन्द्रवंशी और फिर अग्निवंशी हुए |

प्राचीन इतिवृत -
परमारों का प्राचीन इतिवृत लिखने से पूर्व यह निश्चिन्त करना चाहिए की उनका प्राचीन इतिहास किस समय से प्रारंभ होता है | इतिहास के प्रकंड विद्वान् ओझाजी ने शिलालेखों के आधार पर परमारों का इतिहास घुम्राज के वंशज सिन्धुराज से शुरू किया है | जिसका समय परमार शासक पूर्णपाल के बसतगढ़ ( सिरोही -राजस्थान ) में मिले शिलालेखों की वि. सं. १०९९ के आधार पर पूर्णपाल से ७ पीढ़ी पूर्व के परमार शासक सिन्धुराज का समय ९५९ विक्रमी के लगभग होता है | और इस सिन्धुराज को यदि मुंज का भाई माना जाय तो यह समय १०३१ वि. के बाद का पड़ता है | इससे पूर्व परमार कितने प्राचीन थे ? विचार करते है |
चाटसु ( जयपुर ) के गुहिलों के शिलालेखों में ऐक गुहिल नामक शासक की शादी परमार वल्लभराज की पुत्री रज्जा से हुयी थी | इस हूल का पिता हर्षराज राजा मिहिर भोज प्रतिहार के समकालीन था जिसका समय वि. सं. ८९३ -९३८ था | यह शिलालेख सिद्ध करता है की इस शिलालेख का वल्लभराज ,सिन्धुराज परमार ( मारवाड़ ) का वंशज नहीं था इससे प्राचीन था |राजा यशोवर्मन वि. ७५७-७९७ लगभग कन्नोज का सम्राट था उसके दरबारी वाक्पति परमार के लिए कवी बप्पभट्ट आपने ब्प्पभट्ट चरित में लिखता है की वह क्षत्रियों में महत्वपूर्ण रत्न तथा परमार कुल का है इससे सिद्ध होता हे की कन्नोज में यशोवर्मन के दरबारी वाक्पति परमार चाटसु शिलालेख से प्राचीन है | शिलालेख और तत्कालीन साहित्य के विवरण के पश्चात अब बही व्=भाटों के विवरणों की तरह ध्यान दे |
भाटी क्षत्रियों के बहीभाटों के प्राचीन रिकार्ड के आधार पर इतिहास में टाड ने लिखा हे - भाटी मंगलराव ने शालिवाहनपुर ( वर्तमान में सियाल कोट भाटियों की राजधानी ) जब छूट गयी तो पूरब की तरह बढ़े और नदी के किनारे रहने वाले बराह तथा बूटा परमारों के यहाँ शरण ली | यह किला यदु - भाटी इतिहास्वेताओं के अनुसार सं. ७८७ में बना था वराहपती ( परमार के साथ मूलराज की पुत्री की शादी हुयी | केहर के पुत्र तनु ने वराह जाती को परास्त किया और अपने पुत्र विजय राज को बुंटा जाती की कन्या से विवाह किया | ये परमार हि थे |
देवराज देरावर के शासक को धार के परमारों से भी संघर्ष हुआ |
वराह परमारों के साथ इन भाटियों के सघर्ष का समर्थन राजपूताने के इतिहास के लेखक जगदीस सिंह गहलोत भी करते हे | देवराज का समय प्रतिहार बाऊक के मंडोर शिलालेख ८९४ वि. के अनुसार वि. ८९४ के लगभग पड़ता है | इस शिलालेख में लिखा हे की शिलुक प्रतिहार ने देवराज भट्टीक वल्ल मंडल ( वर्तमान बाड़मेर जैसलमेर क्षेत्र ) के शासक को मार डाला | इस द्रष्टि से देवराज से ६ पढ़ी पूर्व मंगलराव का समय 700 वि. के करीब पड़ता है | इस हिसाब से ७वीं शताब्दी में भी परमारों का राज्य राजस्थान के पश्चमी भाग पर था |
उस समय परमारों की वराह और बुंटा खांप का उल्लेख मिलता है नेणसी ऋ ख्यात बराह राजपूत के कहे छ; पंवारा मिले इसी प्रष्ट पर देवराज के पिता भाटी विजयराज और बराधक संघर्ष का वर्णन है | नेणसी ने आगे लिखा हे की धरणीवराह परमार ने अपने नो भाइयों में अपने राज्य को नो कोट ( किले ) में बाँट दिया | इस कारन मारवाड़ नोकोटी मारवाड़ कहलाती है |
नेणसी ने नोकोट सम्बन्धी ऐक छपय प्रस्तुत किया है -

मंडोर सांबत हुवो ,अजमेर सिधसु |
गढ़ पूंगल गजमल हुवो ,लुद्र्वे भाणसु |
जोंगराज धर धाट हुयो ,हासू पारकर |
अल्ह पल्ह अरबद ,भोजराज जालन्धर ||
नवकोटी किराडू सुजुगत ,थिसर पंवारा हरथापिया |
धरनो वराह घर भाईयां , कोट बाँट जूजू किया ||

अर्थात मंडोर सांवत ,को सांभर ( छपय को ,पूंगल गजमल को ,लुद्र्वा भाण को ,धरधाट ( अमरकोट क्षेत्र ) जोगराज को पारकर ( पाकिस्तान में ) हासू को ,आबू अल्ह ,पुलह को जालन्धर ( जालोर ) भोजराज को और किराडू ( बाड़मेर ) अपने पास रखा |

धरणीवराह नामक शासक शिलालेखीय अधरों पर वि १०१७ -१०५२ के बीच सिद्ध होता है | परन्तु परमारों के नव कोटों पर अधिकार की बात सोचे तो यह धरणीवराह भिन्न नजर आता है | मंडोर पर सातवीं शताब्दी के लगभग हरिश्चंद्र ब्राहमण प्रतिहार के पुत्रों का राज्य बाऊक के मंडोर के शिलालेख ८९४ वि. सं. सिद्ध होता है अतः धरणीवराह के भाई सांवत करज्य इस समय से पूर्व होना चाहिए | इस प्रकार लुद्रवा पर भाटियों का अधिकार 9वि. शताब्दी वि. में हो गया था | इस प्रकार भटिंडा क्षेत्र पर जो वराह पंवार शासन कर रहे थे | मेरी समझ धरणीवराह के हि वंशज थे जो अपने पूर्व पुरुष धरणीवराह के नाम से आगे चलकर वराह पंवार ( परमार ) कहलाने लगे थे | ऐसी स्थति में धरणीवराह का समय ६टी ७वि शताब्दी में परमार पश्चमी राजस्थान पर शासन कर रहे थे | परमारों ने यहाँ का राज्य नाग जाती से लिया होगा जेसे निम्न पद्य में संकेत हे

परमांरा रुधाविया ,नाग गिया पाताल |
हमें बिचारा आसिया किणरी झूले चाल ||

मंडोर की नागाद्रिन्दी ,वहां का नागकुंड ,नागोर (नागउर ) पुष्कर का नाम ,सीकर के आसपास का अन्नत -अन्नतगोचर क्षेत्र आदी नाम नाग्जाती के राजस्थान में शासन करने की और संकेत करते हें | तक्षक नाग के वंशज टाक नागोर जिले में 14वीं शताब्दी तक थे | उनमे से हि जफ़रखां गुजरात का शासक हुआ | यह नागों का राज्य चौथी पांचवी शताब्दी तक था | इसके बाद परमारों का राज्य हुआ | चावड़ा व् डोडिया भी परमारों की साखा मानी जाती है | चावडो की प्राचीनता विक्रम की ७वि चावडो का भीनमाल में राज्य था | उस वंश का व्याघ्रमुख ब्रह्मस्पुट सिद्धांत जिसकी रचना ६८५ वि. में हुयी उसके अनुसार वह वि. ६८५ में शासन कर रहा था इन सब साक्ष्यों से जाना जा सकता हे की राजस्थान के पश्चमी भाग पर परमार ६ठी शताब्दी से पूर्व हि जम गए थे और 700 वि. सं. पूर्व धरणीवराह नाम का कोई प्रसिद्द परमार था जिसने अपना राज्य अपने सहित नो भागो में बाँट दिया था |
इन श्रोतों के बाद जब पुरानो को देखते हे तो भविष्य पुराण के अनुवाद मालवा पर शासन करने वाले शासकों के नाम मिलते हे - विक्रमादित्य ,देवभट्ट ,शालिवाहन ,गालीहोम आदी | विक्रमादित्य परमार माना जाता था | इसका अर्थ हुआ विक्रम संवत के प्रारंभ में परमारों का अस्तित्व था | भविष्य पुराण के अनुसार अशोक के पुत्रों के काल में आबू पर्वत पर हुए ब्रहमयज्ञ में परमार उपस्थित था | इस प्रकार परमारों का अस्तित्व दूसरी शादी ई.पू. तक जाता है |
अब यहाँ परमारों के प्राचीन इतिवृत को संक्षिप्त रूप से अंकित किया जा रहा है | अशोक के पुत्रों के काल २३२ से २१४ ई.पू. आबू पर ब्रहमहोम (यज्ञ ) हुआ | इस यज्ञ में कोई चंद्रवंशी क्षत्रिय शामिल हुए | ऋषियों ने सोमवेद के मन्त्र से उसका यज्ञ नाम प्रमार( परमार ) रखा | इसी परमार के वंशज परमार क्षत्रिय हुए | भविष्य पुराण के अनुसार यह परमार अवन्ती उज्जेन का शासक हुआ | ( अवन्ते प्रमरोभूपश्चतुर्योजन विस्तृताम | अम्बावतो नाम पुरीममध्यास्य सुखितोभवत ||49||  भविष्य पुराण पर्व खंड १ अ. ६  इसके बाद महमद ,देवापी ,देवहूत ,गंधर्वसेन हुए | इस गंधर्वसेन का पुत्र विक्रमदित्य था भविष्य पुराण के अनुसार यह विक्रमादित्य जनमानस में बहुत प्रसिद्द रहा है | इसे जन श्रुतियों में पंवार परमार माना है | प्रथम शताब्दी का सातवाहन शासक हाल अपने ग्रन्थ गाथा सप्तशती में लिखता हे -
संवाहणसुहरतोसीएणदेनतण  तुह करे लक्खम  |
चलनेण   विक्कमाईव्  चरीऊँअणु सिकिखअंतिस्सा ||

भविष्य पुराण १४वि शदी विक्रम प्रबंध कोष आदी ग्रन्थ विक्रमादित्य के अस्तित्व को स्वीकारते हे | संस्कृत साहित्य का इतिहास बलदेव उपाध्याय लिखते हे -
सरम्या नगरीमहान न्रपति: सामंत चक्रंतत |
पाश्रवेततस्य च सावीग्धपरिषद ताश्र्वंद्र बिबानना |
उन्मत: सच राजपूत: निवहस्तेवन्दिन: ताकथा |
सर्वतस्यवशाद्गातस्स्रतिपंथ  कालाय तस्मे नमः ||
उस काल को नमस्कार है जिसने उज्जेनी नगरी ,राजा विक्रमादित्य ,उसका सामंतचक्र और विद्वत परिषद् सबको समेट लिया | यह सब साक्ष्य विक्रमादित्य ने शकों को पराजीत कर भारतीय जनता को बड़ा उपकार किया | मेरुतुंगाचार्य की पद्मावली से मालूम होता हे की गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने शकों से उज्जयनी का राज्य लोटा दिया था |विक्रमादित्य का दरबार विद्वानों को दरबार था |विद्वानों की राय में इस समय पुन: कृतयुग का समय आ रहा था | अतः शकों पर विजय की पश्चात् विक्रमादित्य का दरबार पुनः विद्वानों का दरबार था | विद्वानों की राय से कृत संवत का सुभारम्भ किया | फिर यही कृत संवत ( सिद्धम्कृतयोद्ध्रे मोध्वर्षशतोद्ध्र्यथीतयो  २००८५ ( २ चेत्र पूर्णमासी मालव जनपद के नाम से मालव संवत कहलाया |उज्जेन के चारों और का क्षेत्र मालव ( मालवा ) कहलाता था | उसी जनपद के नाम से मालव संवत कहलाया | फिर 9वीं शताब्दी में विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत हो गया | कथा सरित्सागर में विक्रमादित्य के पिता का नाम महेंद्रदित्य लिखा गया है |
विक्रमादित्य के बाद भविष्य पुराण के अनुसार रेवभट्ट ,शालिवाहन ,शालिवर्धन ,सुदीहोम ,इंद्रपाल ,माल्यवान ,संभुदत ,भोमराज ,वत्सराज ,भाजराज ,संभुदत ,विन्दुपाल ,राजपाल ,महिनर,शकहंता,शुहोत्र ,सोमवर्मा ,कानर्व ,भूमिपाल ,रंगपाल ,कल्वसी व् गंगासी मालवा के शासक हुए | इसी प्रकार करीब ५वि ६ठी शताब्दी तक परमारों का मालवा पर शासन करने की बात भविष्य पुराण कहता हे | मालूम होता हे हूणों ने मालवा से परमारों का राज्य समाप्त कर दिया होगा | संभवत परमार यहाँ सामंत रूप थे
पश्चमी राजस्थान आबू ,बाड़मेर ,लोद्रवा ,पुगल  आदी पर भी परमारों का राज्य था और उन्होंने संभतः नागजाती से यह राज्य छीन लिया था | इन परमारों में धरणीवराह नामक प्रसिद्द शासक हुआ जिसने अपने सहित राज्य को नो भागो में बांटकर आपने भाइयों को भी दे दिया था | वी .एस परमार ने विक्रमादित्य से धरणीवराह तक वंशावली इस प्रकार दी हे
विक्रमादित्य के बाद क्रमशः ,विक्रम चरित्र ,राजा कर्ण, अहिकर्ण ,आँसूबोल ,गोयलदेव ,महिपाल ,हरभान.,राजधर ,अभयपाल ,राजा मोरध्वज ,महिकर्ण ,रसुल्पाल,द्वन्दराय ,इति , यदि यह वंशावली ठीक हे तो वंशावली की यह धारा विक्रमादित्य के पुत्र या पोत्रों से अलग हुयी | क्यूँ की यह वंशवली भविष्य पुराण की वंशवली से मेल नहीं खाती हे | नवी शताब्दी में वराह परमारों से देवराज भाटी ने लोद्रवा ले लिया था तथा वि. की सातवीं में ब्राहमण हरियचंद्र के पुत्रों मंडोर का क्षेत्र लिया | सोजत का क्षेत्र हलो ने छीन लिया था तब परमारों का राज्य निर्बल हो गया था | आबू क्षेत्र में परमारों का पुनरुथान vikram की 11वीं शताब्दी में हुआ | पुनरुत्थान के इस काल में आबू पश्चमी राजस्थान के परमारों में सर्वप्रथम सिन्धुराज का नाम मिलता है इस प्रकार मालवा व् पश्चमी राजस्थान के परमारों का प्राचीन राज्य वर्चस्वहीन हो गया |
वंशावली
[[bibliography]]

चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.स्वांगवंश १०.वैस

अग्निवंश की चार शाखायें:-

१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला१३.शौनक

चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.

क्षत्रिय जातियो की सूची

क्रमांकनामगोत्रवंशस्थान और जिला
१.सूर्यवंशीभारद्वाजसूर्यबुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
२.शौनकशौनभ्रृगुवंशीइलाहाबाद परगना मह
३.सिसोदियाबैजवापेडसूर्यमहाराणा उदयपुर स्टेट
४.कछवाहामानवसूर्यमहाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
५.राठोडकश्यपसूर्यजोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
६.सोमवंशीअत्रयचन्दप्रतापगढ और जिला हरदोई
७.यदुवंशीअत्रयचन्दराजकरौली राजपूताने में
८.भाटीअत्रयजादौनमहारजा जैसलमेर राजपूताना
९.जाडेचाअत्रययदुवंशीमहाराजा कच्छ भुज
१०.जादवाअत्रयजादौनशाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११.तोमरव्याघ्रचन्दपाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२.कटियारव्याघ्रतोंवरधरमपुर का राज और हरदोई
१३.पालीवारव्याघ्रतोंवरगोरखपुर
१४.परिहार/बरगाहीकौशल्यअग्निइतिहास में जानना चाहिये
१५.तखीकौशल्यपरिहारपंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१६.पंवारवशिष्ठअग्निमालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१७.सोलंकीभारद्वाजअग्निराजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१८.चौहानवत्सअग्निराजपूताना पूर्व और सर्वत्र
१९.हाडावत्सचौहानकोटा बूंदी और हाडौती देश
२०.खींचीवत्सचौहानखींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२१.भदौरियावत्सचौहाननौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२२.देवडावत्सचौहानराजपूताना सिरोही राज
२३.शम्भरीवत्सचौहाननीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२४.बच्छगोत्रीवत्सचौहानप्रतापगढ सुल्तानपुर
२५.राजकुमारवत्सचौहानदियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२६.पवैयावत्सचौहानग्वालियर
२७.गौर,गौडभारद्वाजसूर्यशिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२८.वैसभारद्वाजचन्द्रउन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
२९.गेहरवारकश्यपसूर्यमाडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
३०.सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियजगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३१.कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियपूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३२.बिसैनवत्सSuryavanshiगोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं
३३.निकुम्भवशिष्ठसूर्यगोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३४.सिरसेतभारद्वाजसूर्यगाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३५.कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाज,सूर्यबरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३६.वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रमथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३७.बढगूजरवशिष्ठसूर्यअनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३८.झालामरीच कश्यपचन्द्रधागधरा मेवाड झालावाड कोटा
३९.गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियराजा अर्गल फ़तेहपुर
४०.रैकवारभारद्वाजसूर्यबहरायच सीतापुर बाराबंकी
४१.करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्रबलिया फ़ैजाबाद अवध
४२.चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीगिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
४३.जनवारकौशल्यसोलंकी शाखाबलरामपुर अवध के जिलों में
४४.बहरेलियाभारद्वाजवैस की गोद सिसोदियारायबरेली बाराबंकी
४५.दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाउन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
४६.सिलारशौनिकचन्द्रसूरत राजपूतानी
४७.सिकरवारभारद्वाजबढगूजरग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
४८.सुरवारगर्गसूर्यकठियावाड में
४९.सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशकाठियावाड
५०.मोरीब्रह्मगौतमसूर्यमथुरा आगरा धौलपुर
५१.टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमैनपुरी और पंजाब
५२.गुप्तगार्ग्यचन्द्रअब इस वंश का पता नही है
५३.कौशिककौशिकचन्द्रबलिया आजमगढ गोरखपुर
५४.भृगुवंशीभार्गवचन्द्रवनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
५५.गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियनृसिंहपुर सुल्तानपुर
५६.पडियारिया,देवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियराजपूताना
५७.ननवगकौशल्यचन्द्रजौनपुर जिला
५८.वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रबुन्देलखन्ड बांदा वनारस
५९.जैसवारकश्यपयदुवंशीमिर्जापुर एटा मैनपुरी
६०.चौलवंशभारद्वाजसूर्यदक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६१.निमवंशीकश्यपसूर्यसंयुक्त प्रांत
६२.वैनवंशीवैन्यसोमवंशीमिर्जापुर
६३.दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियकाठियावाड राजपूताना
६४.पुण्डीरकपिलब्रह्मक्षत्रियपंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
६५.तुलवाआत्रेयचन्द्रराजाविजयनगर
६६.कटोचकश्यपभूमिवंशराजानादौन कोटकांगडा
६७.चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखामलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६८.अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतखेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
६९.डौडियावशिष्ठपंवार शाखाबुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७०.गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाकाठियावाड
७१.बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखाबुन्देलखंड के रजवाडे
७२.काठीकश्यपगहरवारशाखाकाठियावाड झांसी बांदा
७३.जोहियापाराशरचन्द्रपंजाब देश मे
७४.गढावंशीकांवायनचन्द्रगढावाडी के लिंगपट्टम में
७५.मौखरीअत्रयचन्द्रप्राचीन राजवंश था
७६.लिच्छिवीकश्यपसूर्यप्राचीन राजवंश था
७७.बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यअब पता नहीं चलता है
७८.पालकश्यपसूर्ययह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
७९.सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रिययह वंश भी भारत में बिखर गया है
८०.कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियदक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८१.पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियदक्षिण में मराठा के पास में है
८२.बाणवंशकश्यपअसुरवंशश्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८३.काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थाअब पता नही मिलता है
८४.सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य था,अब पता नही मिलता है
८५.दहियाकश्यपराठौड शाखामारवाड में जोधपुर
८६.जेठवाकश्यपहनुमानवंशीराजधूमली काठियावाड
८७.मोहिलवत्सचौहान शाखामहाराष्ट्र मे है
८८.बल्लाभारद्वाजसूर्यकाठियावाड मे मिलते हैं
८९.डाबीवशिष्ठयदुवंशराजस्थान
९०.खरवडवशिष्ठयदुवंशमेवाड उदयपुर
९१.सुकेतभारद्वाजगौड की शाखापंजाब में पहाडी राजा
९२.पांड्यअत्रयचन्दअब इस वंश का पता नहीं
९३.पठानियापाराशरवनाफ़रशाखापठानकोट राजा पंजाब
९४.बमटेलाशांडल्यविसेन शाखाहरदोई फ़र्रुखाबाद
९५.बारहगैयावत्सचौहानगाजीपुर
९६.भैंसोलियावत्सचौहानभैंसोल गाग सुल्तानपुर
९७.चन्दोसियाभारद्वाजवैससुल्तानपुर
९८.चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियजौनपुर
९९.धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियआगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१००.धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियजौनपुर आजमगढ वनारस
१०१.धेकाहाकश्यपपंवार की शाखाभोजपुर शाहाबाद
१०२.दोबर(दोनवर)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०३.हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखाआजमगढ
१०४.जायसकश्यपराठौड की शाखारायबरेली मथुरा
१०५.जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रबुलन्दशहर
१०६.जसावतमानव्यकछवाह शाखामथुरा आगरा
१०७.जोतियाना(भुटियाना)मानव्यकश्यप,कछवाह शाखामुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०८.घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखालुधियाना होशियारपुर जालन्धर
१०९.कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियअवध के जिलों में
११०.काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर आजमगढ
१११.कासिबकश्यपकछवाह शाखाशाहजहांपुर
११२.किनवारकश्यपसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार में
११३.बरहियागौतमसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार
११४.लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखाबलिया गाजी पुर शाहाबाद
११५.मौनसमानव्यकछवाह शाखामिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११६.नगबकमानव्यकछवाह शाखाजौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११७.पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाआजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११८.रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखापूर्व अवध में
११९.सिंहेलकश्यपसूर्यआजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२०.तरकडकश्यपदीक्षित शाखाआगरा मथुरा
१२१.तिसहियाकौशल्यपरिहारइलाहाबाद परगना हंडिया
१२२.तिरोताकश्यपतंवर की शाखाआरा शाहाबाद भोजपुर
१२३.उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियआजमगढ गोरखपुर
१२४.भालेवशिष्ठपंवारअलीगढ
१२५.भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखारायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२६.जैवारव्याघ्रतंवर की शाखादतिया झांसी बुन्देलखंड
१२७.सरगैयांव्याघ्रसोमवंशहमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२८.किसनातिलअत्रयतोमरशाखादतिया बुन्देलखंड
१२९.टडैयाभारद्वाजसोलंकीशाखाझांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३०.खागरअत्रययदुवंश शाखाजालौन हमीरपुर झांसी
१३१.पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखाबुन्देलखंड
१३२.सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखाबुन्देलखंड
१३३.खींचरवत्सचौहान शाखाफ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३४.खातीकश्यपदीक्षित शाखाबुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३५.आहडियाबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३६.उदावतबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३७.उजैनेवशिष्ठपंवारआरा डुमरिया
१३८.अमेठियाभारद्वाजगौडअमेठी लखनऊ सीतापुर
१३९.दुर्गवंशीकश्यपदीक्षितराजा जौनपुर राजाबाजार
१४०.बिलखरियाकश्यपदीक्षितप्रतापगढ उमरी राजा
१४१.डोमराकश्यपसूर्यकश्मीर राज्य और बलिया
१४२.निर्वाणवत्सचौहानराजपूताना (राजस्थान)
१४३.जाटूव्याघ्रतोमरराजस्थान,हिसार पंजाब
१४४.नरौनीमानव्यकछवाहाबलिया आरा
१४५.भनवगभारद्वाजकनपुरियाजौनपुर
१४६.गिदवरियावशिष्ठपंवारबिहार मुंगेर भागलपुर
१४७.रक्षेलकश्यपसूर्यरीवा राज्य में बघेलखंड
१४८.कटारियाभारद्वाजसोलंकीझांसी मालवा बुन्देलखंड
१४९.रजवारवत्सचौहानपूर्व मे बुन्देलखंड
१५०.द्वारव्याघ्रतोमरजालौन झांसी हमीरपुर
१५१.इन्दौरियाव्याघ्रतोमरआगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५२.छोकरअत्रययदुवंशअलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५३.जांगडावत्सचौहानबुलन्दशहर पूर्व में झांसी
१५४.गहलोतबैजवापेणसूर्यमथुरा कानपुर और पूर्वी जिले