रविवार, 9 मार्च 2014

हमारे पूर्वज


महात्मा गौतम बुद्ध
गौतम गोत्र में जन्मे बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ। शाक्यों के राजा शुद्धोधन' सिद्धार्थ के पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी जो कोली वन्श की थी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"।

चन्द्रगुप्त मौर्य
चन्द्रगुप्त मौर्य (जन्म ३४० पु॰ई॰, राज ३२२-२९८ पु॰ई॰) में भारत में सम्राट थे। इनको कभी कभी चन्द्रगुप्त नाम से भी संबोधित किया जाता है। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफ़ल रहे।
सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतया 324 ई.पू. निर्धारित की जाती है। उन्होंने लगभग 24 वर्ष तक शासन किया, और इस प्रकार उनके शासन का अंत प्राय: 300 ई.पू. में हुआ।

सम्राट अशोक
अशोक (राजकाल ईसापूर्व 273-232 ) प्राचीन भारत में मौर्य राजवंश का चक्रवर्ती राजा था । उसके समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदीके दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफ़गानिस्तान तक पहुँच गया था । यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था । सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है ।
जीवन के उत्तरार्ध में अशोक भगवान गौतम बुद्ध के भक्त हो गये और उन्ही की स्मृति मे उन्होने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - मेमायादेवी मन्दिर के पास अशोक स्तम्भ के रुप मे देखा जा सकता है ।

महाराजा शूर सैनी
महाराजा शूरसैनी ने समाज से बुराईयों को दूर करने हेतू इन बुराईंयों के खिलाफ सभी वर्गों को एकजुट करके समाज सुधार की दिशा में अनुकरणीय कार्य किया है। महाराजा शूरसैनी के जीवन व आदर्शों पर चलते हुए उनकी शिक्षाओं को हमें अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए।
महाराजा शूर सैनी ने समाज को एकजुट कर सामाजिक बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया। सैनी समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है, जिसके दिशा-निर्देशक महाराजा शूरसैनी रहे हैं। ऐसे व्यक्ति किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं, अपितू समस्त राष्ट्र की धरोहर होते हैं।

महात्मा ज्योतिबा राव फूले
जोतिराव गोविंदराव फुले (जन्म - ११ अप्रेल १८२७, मृत्यु - २८ नवम्बर १८९०), ज्योकतिबा फुले के नाम से प्रचलित 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे।
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वूयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं। दलित व स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्नीइ ने मिलकर काम किया। दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।

क्रांतिकारी सुखदेव
सुखदेव (पंजाबी: ਸੁਖਦੇਵ ਥਾਪਰ) का पूरा नाम सुखदेव थापर था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे । उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था । इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है । सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।

सावित्री बाई फुले
सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी, 1831 – 10 मार्च, 1897) भारत की एक समाजसुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होने अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। १८५२ में उन्होने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

'सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।

महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

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