राजस्थान माली-सैनी कुशवाहा समाज एवं २१ वीं सदी का आह्वान :
राजस्थान में अपना समाज माली सैनी काछी, (कुशवाह) सगरवंशी भोई कीर कोयरी शाक्य, मुरार मौर्य आदि नामों से जाना जाता है। ये सभी शाखाएं साग-सब्जी, फल-फूल काकड़ी तरबूज आदि की खेती का व्यवसाय सदियों से करते तथा बेचते आ रहे है। यह क्षेत्रीय समाज एक ही माला के फूल व मोती है। यह किसान समाज सीधा-साधा, मेहनतकश , रात-दिन सर्दी-गर्मी वर्षा में काम करने वाला भारत के अधिकांश गांवों जिलों में बसा हुआ है। भारत में इनकी जनसंखया करीब १४ करोड एवं राजस्थान में करीब ४८ लाख है। अन्य पिछडी जातियों में इसकी जनसंखया भारत व राजस्थान में सबसे अधिक है। ये मूल रूप से क्षत्रिय थे। मुसलमान शासको के समय में अलग-अलग धन्धा अपना लिया तथा धन्धा करने वाले माली-सैनी कुशवाह हो गये। काछी (कुशवाह) माली राजस्थान में करीब ८ लाख है तथा धौलपुर में बडी संख्या में है भरतपुर, कोटा जिलों में काफी संखया में है। कीर-कोयरी नदियों के किनारें जोधपुर, अजमेर में कुछ संखया में बसा हुआ है। शाक्य की कम संख्या में श्रीगंगानगर में बसा हुआ है। सभी शाखाओं का खान-पान, रहन-सहन, वेश भूषा आदि एक जैसा है। इन शाखाओं में शादी ब्याह होते आये है।
कुशवाह क्षत्रिय महासभा की स्थापना बाबू श्री हरिप्रसाद वैष्णव की अध्यक्षता में सन् १९१२ मार्च मास में चुनार में की गई। तथा स्वर्गीय जे.पी. चौधरी ने कुशवाह शाक्य, मौर्य, कोयरी आदि को एकीकरण का महामंत्र दिया और कुशवाह महासभा की स्थापना की। जोधपुर में विक्रम सवंत् १९५४ (सन् १८९८) के वैशाख माह में मण्डोर रोड़ जोधपुर में श्री पुरखाराम जी सांखला ठे. श्री साहिबाराम जी गहलोत ठे. श्रीपोकर कच्छवाहा ठे. श्री मगजी कच्छवाहा आदि ने माली सभा की स्थापना कर बच्चों की च्चिक्षा के लिए स्कूल खोलने का निर्णय लिया और १९ अगस्त १८१८ को श्री सुमेर स्कूल की स्थापना की गई। राजपुताना प्रदेश के जोधपुर से श्री जगदीश सिंह गहलोत श्री नेनुराम जी सांखला श्री चतुर्भुज जी गहलोत श्री साहिबाराम जी गहलोत व अजमेर से ठाकुर भेरूसिंह कच्छवाहा आदि ने माली नाम की जगह सैनी (सैनी क्षत्रिय) लिखने का प्रयास सन् १९२१ से प्रारम्भ किया। सन् १९१५ में पंजाब में माली (सैनी) भागीरथी माली सगरवंशी, कीर-कोयरी, मुराव, महुर आदि की एक सभा राय बहादुर दीवान चन्द गहलोत बटाला जिला गुददासपुरा की अध्यक्षता में की गई और सभी मालियों को एक मंच पर लाये तथा महासभा की स्थापना की। स्व. लालमणी स्व. भरतसिंह इन्द्रसिंह आदि ने पंजाब रोहतक अम्बाला में यंगमेन सभा की स्थापना की और मालियों के स्थान पर सैनी लिखने के लिए पंजाब सरकार को कई पत्र लिखे, अन्त में मर्दुम शुमारी कमीश्नर दिल्ली डॉ.जे.एच. हुटन ने १९ जनवरी १९३१ को सभी प्रकार के मालियों को माली नाम की जगह सैनी लिखा जाय की मान्यता प्रदान की।
माली (सैनिक क्षत्रिय) महासभा एवं कुशवाह क्षत्रिय महासभाओं में पिछले १०० सालों से अलग-अलग एवं एक साथ सम्मेलन कर एकीकरण का प्रयास किया। ३०-३१ दिसम्बर१९७३ को ऑल इण्डिया सैनी सभा विज्ञान भवन दिल्ली में सेठ बिहारी लाल जी की अध्यक्षता में हुआ। सन् १९७४ में श्री गोरेलाल शाक्य विधायक की अध्यक्षता में लखनऊ में सम्मेलन हुआ। १२ दिसम्बर१९८३ में अजीतकुमार मेहतो सांसद की अध्यक्षता में सम्मेलन हुआ एवं श्री दयाराम शाक्य सांसद को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। २५-२६ अगस्त १९९० को मस्जिद मोठ नई दिल्ली में विशिष्ठ अतिथि श्री दयाराम शाक्य एवं मुखय अतिथि उपेन्द्रनाथ केन्र्दीय मंत्री आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। १८-१९ जनवरी १९९२ को मुंबई में सरदार रेशमसिंह आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। २० दिसम्बर १९९३ पुणें में तत्कालीन राद्गट्रपति माननीय श्री शंकरदयाल शर्मा मुख्य अतिथि एवं विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पवार एवं श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। ७-८ जून १९९७ को मध्यप्रदेश में श्री बाबुलाल कुशवाह के संयोजक में सभी शाखाओं के एकीकरण के लिए सम्मेलन का आयोजन हुआ। १४-१५ अप्रेल १९८८ को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चौधरी इन्द्रराज सिंह सैनी की संयोजकता एवं श्री मोतीलाल कुशवाह वाराणसी की अध्यक्षता में सम्मेलन आयोजित किया गया। २० नवम्बर १९९९ को भोपाल में श्री बी.एल. पटेल की संयोजकता एवं श्री लिखीराम कावरे की अध्यक्षता में सम्मेलन का आयोजन हुआ। फरवरी २००० को दिल्ली के लाल किला मैदान में इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल कुशवाह की अध्यक्षता में एवं मुख्य अतिथि दिल्ली मुख्यमंत्री इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल की अध्यक्षता में एवं दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के आतिथ्य में सम्मेलन का आयोजन किया गया। १० मार्च २००६ को महात्मा फूले समता परिषद के तत्वाधान में राम लीला मैदान दिल्ली में विशाल रैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में हुई जिसमें विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पंवार (कृषिमंत्री) एवं श्री लालू प्रसाद (रेल्वे मंत्री) आदि उपस्थित थे। १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारेली राद्गट्रीय अध्यक्ष श्री छगन भुजबल के स्वागत में उपेन्द्रनाथ में समाज की सभी शाखाओं के बुद्धिजीवी, हजारों-लाखों भाई-बहिन, सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता संगठित होकर एक मंच पर आये तथा समाज में जागृति आई, सामाजिक न्याय एवं जनसंख्या के आधार प्रशासन, राजनीति में अपनी भागीदारी पाने का संकल्प किया।
राजस्थान प्रदेश में समाज के भाइयों की सामाजिक आर्थिक, प्रशेक्षणिक राजनैतिक स्थिति की जानकारी अत्यंत आवश्यक है आज प्रदेश की दो सौ विधान सभा क्षेत्रों में ३०-३१ विधान सभा क्षेत्र ऐसे है जहां हमारे समाज को २५०० से ४०००० और अधिक मतदाता है तथा ६० विधान सभा क्षेत्रों में १०-१२ हजार से २४००० मतदाता है। लोक सभा क्षेत्र में ३ ऐसे है जहां हमारे समाज के २ लाख से अधिक मतदाता है तथा ८०-१०० लोक सभा क्षेत्रों १ लाख से १.५० लाख तक मतदाता है। वहां हमारे औसतन ३ से ५ विधायक जीत पाते है लोक सभा सदस्य कभी कभार १ ही जीत पाता है जहां इसमें कम आबादी वाली चतुर बोलचाल, धनवान जातियों के १२-३५ विधायक एवं १-८ तक लोक सभा सदस्य जीत जाते है। प्रदेश में करीब १०० स्थानीय निकायें है। उनमें ३४-३५ ही अपने अध्यक्ष/उपाध्यक्ष व ४५०-५०० पार्षद जीत पाते है ये तो ऐसी निकायें है जहां से अध्यक्ष/उपाध्यक्ष और इतने ही पार्षद अपने आप जीतते आयें है। ग्राम पंचायतों के चुनाओं में हमारे १५०-२०० सरपंच व उपसरपंच एवं ८-१० प्रधान/उपप्रधान ही बन पाते है, जहां हजारों गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होत हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच पंचायत समिति/सदस्य/जिला परिद्गाद/सदस्य/प्रधान आदि नही जीत पाते। यहां तक कई निकायों में हमारे ५.१२ पार्षद होते हुए भी अध्यक्ष उपाध्यक्ष नही जीत पाते तथा कई ग्राम पंचायतों में कई सरपंच समिति सदस्य जिला परिषद सदस्य जीते हुए है तो भी प्रधान/उपप्रधान आदि नही जीत पाते। अन्य उच्च चतुर , धनवान, बाहुबली जातियों का जीता एक ही सदस्य उच्च पद प्राप्त कर लेता है ये जातियां राजनैतिक प्रशासनिक क्षेत्रों में लम्बे समय से राजनैतिक सत्ता व धन का सुख भोग रही है ये येन केन प्रकारेण अन्याय करके भी आपको आगे नही आने देती है और आपको को सामाजिक न्याय एवं सत्ता की भागीदारी नही मिलती है।
उच्च चतुर, धनवान जातियां जिला प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में उच्च पद प्राप्त कर लेती है। टिकट चयन समितियों में पार्टी में पर्यवेक्षक, अध्यक्ष, मंत्री आदि पद प्राप्त कर पार्टी विकट बांटते समय टिकटों का बटवारा चाहे विधायक का हो लोग सभा का हो या पार्षदो, अध्यक्षों एवं सरपंच प्रधान आदि को हो अधिक से अधिक टिकट अपने चहेते लोगों को अपने जाति वर्ग या जो आगे उन्हे व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाले को दे देते है। इन जातियों के व्यापारी, उच्च अधिकारी, नेता लाभकारी पदों पर रह कर भ्रष्ट तरीकों से खूब धन बटोरकर राजनीतिज्ञों को चन्दा देकर तन मन धन से मदद कर जिताते है या खुद टिकट प्राप्त कर धन, बल से जीत जाते है। चयन समिति में टिकट दिलाने की पैरवी करने वाला कोई व्यक्ति नही होता अतः हमें टिकट नही मिलता। कई बार पार्टी टिकट जीतने वाले व्यक्ति को उनके पक्ष के क्षेत्र का न देकर अनुभवहीन हारने वाले व्यक्ति को समाज के प्रतिनिधित्व के रूप में उसे क्षेत्र से टिकट देती जहां अपने समाज के पर्याप्त मत नही होते। ये लोग अपने प्रत्याच्ची को जिताने के लिए कई भ्रद्गट तरीके अपनाते है, झूठी अफवाहे फैला देते है, भय पैदा करके और भोले लोगों को आपस में लड़ाते व गुमराह करते रहते है। प्रशासन-प्रेस आदि भी उन्ही के समर्थन में प्रचार करते रहते है। विभिन्न संस्थाओं, उद्योगों यूनियनों का संचालन करते पदाधिकारी हो तो उन संस्थाओं से जुडे व्यक्तियों को अपने प्रभाव में रखते है। नेताओं, समाज सेवियों, प्रभावशाली व्यक्तियों, कलाकारों आदि को प्रचार के लिए बुलाते, अत्यधिक पैसा खर्च करते, वोटर से वोट प्राप्त करने के कई हथकंडे अखतीयार करते हैं जीत जाते है। आज ये चतुर उच्च बलशाली धनवान जातियां, लाभकारी पदों पर पहुँच कर सभी प्रकार के सुख भोग रही है। आज सभी प्रकार की सम्पन्न जातियां संगठित होकर कई तरह के दावपेज खेलकर शासन, प्रशासन, न्यायपालिका प्रेस में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया हुआ है। ये गर्व से कहते हैं कि पिछडी जातियां राज करने के योग्य नही है जब कि हम सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट सूर सैन, महात्मा बुद्ध, लव- कुश एवं महात्मा ज्योति बा फूले सन्तान है उनके जैसा पराक्रम एवं शौर्य हमारी रग रग में विद्यमान है।
आज स्वतंत्रता के ६० साल बाद भी १४ करोड़ जनसंखया वाला समाज कई शाखाओं और उपशाखाओं, महासभाओं के नाम पर स्थान-स्थान पर पृथक अस्तित्व बनाये हुए है। विशाल भारत में हमारी अपारजनशक्ति होते हुए भी सामाजिक प्रशासनिक राजनीतिक स्थिति सबसे कमजोर है इस घोर उपेक्षा का बदला संगठित होकर ही ले सकते है और सामाजिक अन्याय का बोलबाला समाप्त कर सकते है इसके लिए समाज को सही नेतृत्व की आवच्च्यकता है। हमे एक मंच पर संगठित होकर पहले से ही रणनीति तय करनी होगी। राद्गट्रीयकृत पार्टियों से प्रयास कर अधिक टिकट प्राप्त करने होंगे। धाराओं वाले वर्गों से मिलकर क्षेत्रीय पार्टियों से ताल-मेल करना होगा। उन पार्टियों में उच्च पद प्राप्त करने होंगे। इसके लिए राजनीतिज्ञों बुद्धिजीवियों, विद्ववानों समाजसेवियों को एक सूत्र में संगठित होना होगा। शक्ति का प्रदर्शन करना होगा, संघर्ष करना होगा। हाल ही में प्रदेच्चों में विधान सभा व अन्य चुनवों में क्षेत्रिय पार्टियों का दबदबा जबरदस्त रहा। कुछ निर्दलियों का भी रहा। भारत के कई प्रदेच्चों में क्षेत्रिय पार्टियों ने मिलजुल कर सरकारें बनायी है। आज प्रान्तीय सरकार हो या भारत सरकार की कई पार्टियों से मिलकर सरकार बनाई जाती है। आज गठबन्धन की राजनीति की आवश्यकता है। राजनीतिक ही विकास की चाबी है। राजनीतिक दलों में समाज की भागीदारी कैसे बढी ? इसके लिए हमें गुटबाजी समाप्त कर व्यक्तिगत स्वार्थ त्याग कर मतभेद भुलाकर प्रदेच्चा की राजधानी में द्राक्ति प्रदर्च्चन करना होगा। तभी हमारा जनाधार मजबूर होगा हमारी पूछ होगी। इसकी एक महारैली का उद्देच्च्य समाज की सभी शाखाओंको संगठित कर एक मंच पर लाना, आर्थिक सामाजिक राजनैतिक चेतना पैदा करना, सामाजिक न्याय एवं जनसंखया के आधार पर राजनैतिक प्रच्चासन,के प्रत्येक तहसील/जिला स्तर पर समाज के लोगो को संगठित करना होगा। हमारे पास वोटो की द्राक्ति है आज तक हम किसी अन्य को दोद्गा देते आये है। अब हमें उनके वोट लेने है। आज सिद्धान्त विहीन एवं दिच्चा विहीन राजनीति में मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया हेै वह तय नही कर पाता कि किसे व किस पार्टी को मत देकर जीताना है जिससे हमारा भला हो सकेगा। हमे संगठन राजनीतिकक जागृति, सक्रियता में उत्पन करनी है। जिस क्षेत्र से व्यक्ति खड़ा होना चाहता है। वहां समाज की पर्याप्त संखया हो दुसरे वर्गों पर अच्छा प्रभाव हो इतना प्रभाव व द्राक्ति व इस समाज के अलावा वहां से कोई जीत नही सकता। वहां से समाज का योग्य (राजनीतिज्ञों की दक्षता प्राप्त) च्चिक्षित, सेवाभावी जीतने वाला जिसमें आत्मबल हो, निर्णय द्राक्ति हो, क्षेत्र की पूरी जानकारी व बूधवार कार्यकर्ताओं की पूरी टीम हो, आगे ऊचे पद पर पहुचने की क्षमता रखता हो पार्टी का सक्रिय सदस्य, वफादार व उच्च पद पर हो, आर्थिक स्थिति सुदृढ हो अन्य कार्यकर्ता उनकी जीत का भरोसा पार्टी नेताओं को देवें, उसे संगठित होकर खड ा करना है व तन-मन धन से प्रयास करे तो हमें सफलता मिलेगी। इस तरह हमारे १२ से १५ विधायक और इससे अधिक निकायों पर समाज के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष जीत सकते है तथा १००० से अधिक पार्द्गाद जीत सकते है। इसी तरह चुनावी रणनीति अपनाकर पंचायत समिति, जिला परिद्गाद, सरपंच, उपसरपंच, प्रधान, उपप्रधान आदि के चुनाव लड े जाय तो पहले सभी दुगुने सभी पद प्राप्त कर सकते है। इससे समाज में राजनीतिक चेतना आयेगी, संगठन बनेगा तथा समाज एक द्राक्ति बनकर उभरेगा। करीब ९० से १०० विधान सभा क्षेत्रों में समाज के मतदाता चुनाव परिणाम निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकेंगे, ऐसे में पार्टियां समाज के पतों पर नजर रखेगी। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी महिलाओं के लिए ३३ प्रतिच्चत आरक्षित वार्ड/पंचायतें है उसमें २१ प्रतिच्चत ओ.बी.सी. महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों के पार्द्गाद अध्यक्ष/उपाध्यक्ष आदि पर भी आरक्षित है। वहां से समाज की च्चिक्षित अनुभवी, सक्रिय महिलाओं को टिकट दिलाकर हर हालत में जीताना है। पार्टी टिकट नही दे तथा ओ.बी.सी. क्षेत्र है तो जीतने वाली निर्दलीय महिला खडाकर देना है। सक्रिय महिलाओं को पहले से सभा-सम्मेलनों में बुलाकर जागृत कर उन्हे आगे लाना है।
राजस्थान में अपना समाज माली सैनी काछी, (कुशवाह) सगरवंशी भोई कीर कोयरी शाक्य, मुरार मौर्य आदि नामों से जाना जाता है। ये सभी शाखाएं साग-सब्जी, फल-फूल काकड़ी तरबूज आदि की खेती का व्यवसाय सदियों से करते तथा बेचते आ रहे है। यह क्षेत्रीय समाज एक ही माला के फूल व मोती है। यह किसान समाज सीधा-साधा, मेहनतकश , रात-दिन सर्दी-गर्मी वर्षा में काम करने वाला भारत के अधिकांश गांवों जिलों में बसा हुआ है। भारत में इनकी जनसंखया करीब १४ करोड एवं राजस्थान में करीब ४८ लाख है। अन्य पिछडी जातियों में इसकी जनसंखया भारत व राजस्थान में सबसे अधिक है। ये मूल रूप से क्षत्रिय थे। मुसलमान शासको के समय में अलग-अलग धन्धा अपना लिया तथा धन्धा करने वाले माली-सैनी कुशवाह हो गये। काछी (कुशवाह) माली राजस्थान में करीब ८ लाख है तथा धौलपुर में बडी संख्या में है भरतपुर, कोटा जिलों में काफी संखया में है। कीर-कोयरी नदियों के किनारें जोधपुर, अजमेर में कुछ संखया में बसा हुआ है। शाक्य की कम संख्या में श्रीगंगानगर में बसा हुआ है। सभी शाखाओं का खान-पान, रहन-सहन, वेश भूषा आदि एक जैसा है। इन शाखाओं में शादी ब्याह होते आये है।
कुशवाह क्षत्रिय महासभा की स्थापना बाबू श्री हरिप्रसाद वैष्णव की अध्यक्षता में सन् १९१२ मार्च मास में चुनार में की गई। तथा स्वर्गीय जे.पी. चौधरी ने कुशवाह शाक्य, मौर्य, कोयरी आदि को एकीकरण का महामंत्र दिया और कुशवाह महासभा की स्थापना की। जोधपुर में विक्रम सवंत् १९५४ (सन् १८९८) के वैशाख माह में मण्डोर रोड़ जोधपुर में श्री पुरखाराम जी सांखला ठे. श्री साहिबाराम जी गहलोत ठे. श्रीपोकर कच्छवाहा ठे. श्री मगजी कच्छवाहा आदि ने माली सभा की स्थापना कर बच्चों की च्चिक्षा के लिए स्कूल खोलने का निर्णय लिया और १९ अगस्त १८१८ को श्री सुमेर स्कूल की स्थापना की गई। राजपुताना प्रदेश के जोधपुर से श्री जगदीश सिंह गहलोत श्री नेनुराम जी सांखला श्री चतुर्भुज जी गहलोत श्री साहिबाराम जी गहलोत व अजमेर से ठाकुर भेरूसिंह कच्छवाहा आदि ने माली नाम की जगह सैनी (सैनी क्षत्रिय) लिखने का प्रयास सन् १९२१ से प्रारम्भ किया। सन् १९१५ में पंजाब में माली (सैनी) भागीरथी माली सगरवंशी, कीर-कोयरी, मुराव, महुर आदि की एक सभा राय बहादुर दीवान चन्द गहलोत बटाला जिला गुददासपुरा की अध्यक्षता में की गई और सभी मालियों को एक मंच पर लाये तथा महासभा की स्थापना की। स्व. लालमणी स्व. भरतसिंह इन्द्रसिंह आदि ने पंजाब रोहतक अम्बाला में यंगमेन सभा की स्थापना की और मालियों के स्थान पर सैनी लिखने के लिए पंजाब सरकार को कई पत्र लिखे, अन्त में मर्दुम शुमारी कमीश्नर दिल्ली डॉ.जे.एच. हुटन ने १९ जनवरी १९३१ को सभी प्रकार के मालियों को माली नाम की जगह सैनी लिखा जाय की मान्यता प्रदान की।
माली (सैनिक क्षत्रिय) महासभा एवं कुशवाह क्षत्रिय महासभाओं में पिछले १०० सालों से अलग-अलग एवं एक साथ सम्मेलन कर एकीकरण का प्रयास किया। ३०-३१ दिसम्बर१९७३ को ऑल इण्डिया सैनी सभा विज्ञान भवन दिल्ली में सेठ बिहारी लाल जी की अध्यक्षता में हुआ। सन् १९७४ में श्री गोरेलाल शाक्य विधायक की अध्यक्षता में लखनऊ में सम्मेलन हुआ। १२ दिसम्बर१९८३ में अजीतकुमार मेहतो सांसद की अध्यक्षता में सम्मेलन हुआ एवं श्री दयाराम शाक्य सांसद को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। २५-२६ अगस्त १९९० को मस्जिद मोठ नई दिल्ली में विशिष्ठ अतिथि श्री दयाराम शाक्य एवं मुखय अतिथि उपेन्द्रनाथ केन्र्दीय मंत्री आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। १८-१९ जनवरी १९९२ को मुंबई में सरदार रेशमसिंह आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। २० दिसम्बर १९९३ पुणें में तत्कालीन राद्गट्रपति माननीय श्री शंकरदयाल शर्मा मुख्य अतिथि एवं विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पवार एवं श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। ७-८ जून १९९७ को मध्यप्रदेश में श्री बाबुलाल कुशवाह के संयोजक में सभी शाखाओं के एकीकरण के लिए सम्मेलन का आयोजन हुआ। १४-१५ अप्रेल १९८८ को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चौधरी इन्द्रराज सिंह सैनी की संयोजकता एवं श्री मोतीलाल कुशवाह वाराणसी की अध्यक्षता में सम्मेलन आयोजित किया गया। २० नवम्बर १९९९ को भोपाल में श्री बी.एल. पटेल की संयोजकता एवं श्री लिखीराम कावरे की अध्यक्षता में सम्मेलन का आयोजन हुआ। फरवरी २००० को दिल्ली के लाल किला मैदान में इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल कुशवाह की अध्यक्षता में एवं मुख्य अतिथि दिल्ली मुख्यमंत्री इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल की अध्यक्षता में एवं दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के आतिथ्य में सम्मेलन का आयोजन किया गया। १० मार्च २००६ को महात्मा फूले समता परिषद के तत्वाधान में राम लीला मैदान दिल्ली में विशाल रैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में हुई जिसमें विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पंवार (कृषिमंत्री) एवं श्री लालू प्रसाद (रेल्वे मंत्री) आदि उपस्थित थे। १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारेली राद्गट्रीय अध्यक्ष श्री छगन भुजबल के स्वागत में उपेन्द्रनाथ में समाज की सभी शाखाओं के बुद्धिजीवी, हजारों-लाखों भाई-बहिन, सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता संगठित होकर एक मंच पर आये तथा समाज में जागृति आई, सामाजिक न्याय एवं जनसंख्या के आधार प्रशासन, राजनीति में अपनी भागीदारी पाने का संकल्प किया।
राजस्थान प्रदेश में समाज के भाइयों की सामाजिक आर्थिक, प्रशेक्षणिक राजनैतिक स्थिति की जानकारी अत्यंत आवश्यक है आज प्रदेश की दो सौ विधान सभा क्षेत्रों में ३०-३१ विधान सभा क्षेत्र ऐसे है जहां हमारे समाज को २५०० से ४०००० और अधिक मतदाता है तथा ६० विधान सभा क्षेत्रों में १०-१२ हजार से २४००० मतदाता है। लोक सभा क्षेत्र में ३ ऐसे है जहां हमारे समाज के २ लाख से अधिक मतदाता है तथा ८०-१०० लोक सभा क्षेत्रों १ लाख से १.५० लाख तक मतदाता है। वहां हमारे औसतन ३ से ५ विधायक जीत पाते है लोक सभा सदस्य कभी कभार १ ही जीत पाता है जहां इसमें कम आबादी वाली चतुर बोलचाल, धनवान जातियों के १२-३५ विधायक एवं १-८ तक लोक सभा सदस्य जीत जाते है। प्रदेश में करीब १०० स्थानीय निकायें है। उनमें ३४-३५ ही अपने अध्यक्ष/उपाध्यक्ष व ४५०-५०० पार्षद जीत पाते है ये तो ऐसी निकायें है जहां से अध्यक्ष/उपाध्यक्ष और इतने ही पार्षद अपने आप जीतते आयें है। ग्राम पंचायतों के चुनाओं में हमारे १५०-२०० सरपंच व उपसरपंच एवं ८-१० प्रधान/उपप्रधान ही बन पाते है, जहां हजारों गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होत हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच पंचायत समिति/सदस्य/जिला परिद्गाद/सदस्य/प्रधान आदि नही जीत पाते। यहां तक कई निकायों में हमारे ५.१२ पार्षद होते हुए भी अध्यक्ष उपाध्यक्ष नही जीत पाते तथा कई ग्राम पंचायतों में कई सरपंच समिति सदस्य जिला परिषद सदस्य जीते हुए है तो भी प्रधान/उपप्रधान आदि नही जीत पाते। अन्य उच्च चतुर , धनवान, बाहुबली जातियों का जीता एक ही सदस्य उच्च पद प्राप्त कर लेता है ये जातियां राजनैतिक प्रशासनिक क्षेत्रों में लम्बे समय से राजनैतिक सत्ता व धन का सुख भोग रही है ये येन केन प्रकारेण अन्याय करके भी आपको आगे नही आने देती है और आपको को सामाजिक न्याय एवं सत्ता की भागीदारी नही मिलती है।
उच्च चतुर, धनवान जातियां जिला प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में उच्च पद प्राप्त कर लेती है। टिकट चयन समितियों में पार्टी में पर्यवेक्षक, अध्यक्ष, मंत्री आदि पद प्राप्त कर पार्टी विकट बांटते समय टिकटों का बटवारा चाहे विधायक का हो लोग सभा का हो या पार्षदो, अध्यक्षों एवं सरपंच प्रधान आदि को हो अधिक से अधिक टिकट अपने चहेते लोगों को अपने जाति वर्ग या जो आगे उन्हे व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाले को दे देते है। इन जातियों के व्यापारी, उच्च अधिकारी, नेता लाभकारी पदों पर रह कर भ्रष्ट तरीकों से खूब धन बटोरकर राजनीतिज्ञों को चन्दा देकर तन मन धन से मदद कर जिताते है या खुद टिकट प्राप्त कर धन, बल से जीत जाते है। चयन समिति में टिकट दिलाने की पैरवी करने वाला कोई व्यक्ति नही होता अतः हमें टिकट नही मिलता। कई बार पार्टी टिकट जीतने वाले व्यक्ति को उनके पक्ष के क्षेत्र का न देकर अनुभवहीन हारने वाले व्यक्ति को समाज के प्रतिनिधित्व के रूप में उसे क्षेत्र से टिकट देती जहां अपने समाज के पर्याप्त मत नही होते। ये लोग अपने प्रत्याच्ची को जिताने के लिए कई भ्रद्गट तरीके अपनाते है, झूठी अफवाहे फैला देते है, भय पैदा करके और भोले लोगों को आपस में लड़ाते व गुमराह करते रहते है। प्रशासन-प्रेस आदि भी उन्ही के समर्थन में प्रचार करते रहते है। विभिन्न संस्थाओं, उद्योगों यूनियनों का संचालन करते पदाधिकारी हो तो उन संस्थाओं से जुडे व्यक्तियों को अपने प्रभाव में रखते है। नेताओं, समाज सेवियों, प्रभावशाली व्यक्तियों, कलाकारों आदि को प्रचार के लिए बुलाते, अत्यधिक पैसा खर्च करते, वोटर से वोट प्राप्त करने के कई हथकंडे अखतीयार करते हैं जीत जाते है। आज ये चतुर उच्च बलशाली धनवान जातियां, लाभकारी पदों पर पहुँच कर सभी प्रकार के सुख भोग रही है। आज सभी प्रकार की सम्पन्न जातियां संगठित होकर कई तरह के दावपेज खेलकर शासन, प्रशासन, न्यायपालिका प्रेस में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया हुआ है। ये गर्व से कहते हैं कि पिछडी जातियां राज करने के योग्य नही है जब कि हम सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट सूर सैन, महात्मा बुद्ध, लव- कुश एवं महात्मा ज्योति बा फूले सन्तान है उनके जैसा पराक्रम एवं शौर्य हमारी रग रग में विद्यमान है।
आज स्वतंत्रता के ६० साल बाद भी १४ करोड़ जनसंखया वाला समाज कई शाखाओं और उपशाखाओं, महासभाओं के नाम पर स्थान-स्थान पर पृथक अस्तित्व बनाये हुए है। विशाल भारत में हमारी अपारजनशक्ति होते हुए भी सामाजिक प्रशासनिक राजनीतिक स्थिति सबसे कमजोर है इस घोर उपेक्षा का बदला संगठित होकर ही ले सकते है और सामाजिक अन्याय का बोलबाला समाप्त कर सकते है इसके लिए समाज को सही नेतृत्व की आवच्च्यकता है। हमे एक मंच पर संगठित होकर पहले से ही रणनीति तय करनी होगी। राद्गट्रीयकृत पार्टियों से प्रयास कर अधिक टिकट प्राप्त करने होंगे। धाराओं वाले वर्गों से मिलकर क्षेत्रीय पार्टियों से ताल-मेल करना होगा। उन पार्टियों में उच्च पद प्राप्त करने होंगे। इसके लिए राजनीतिज्ञों बुद्धिजीवियों, विद्ववानों समाजसेवियों को एक सूत्र में संगठित होना होगा। शक्ति का प्रदर्शन करना होगा, संघर्ष करना होगा। हाल ही में प्रदेच्चों में विधान सभा व अन्य चुनवों में क्षेत्रिय पार्टियों का दबदबा जबरदस्त रहा। कुछ निर्दलियों का भी रहा। भारत के कई प्रदेच्चों में क्षेत्रिय पार्टियों ने मिलजुल कर सरकारें बनायी है। आज प्रान्तीय सरकार हो या भारत सरकार की कई पार्टियों से मिलकर सरकार बनाई जाती है। आज गठबन्धन की राजनीति की आवश्यकता है। राजनीतिक ही विकास की चाबी है। राजनीतिक दलों में समाज की भागीदारी कैसे बढी ? इसके लिए हमें गुटबाजी समाप्त कर व्यक्तिगत स्वार्थ त्याग कर मतभेद भुलाकर प्रदेच्चा की राजधानी में द्राक्ति प्रदर्च्चन करना होगा। तभी हमारा जनाधार मजबूर होगा हमारी पूछ होगी। इसकी एक महारैली का उद्देच्च्य समाज की सभी शाखाओंको संगठित कर एक मंच पर लाना, आर्थिक सामाजिक राजनैतिक चेतना पैदा करना, सामाजिक न्याय एवं जनसंखया के आधार पर राजनैतिक प्रच्चासन,के प्रत्येक तहसील/जिला स्तर पर समाज के लोगो को संगठित करना होगा। हमारे पास वोटो की द्राक्ति है आज तक हम किसी अन्य को दोद्गा देते आये है। अब हमें उनके वोट लेने है। आज सिद्धान्त विहीन एवं दिच्चा विहीन राजनीति में मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया हेै वह तय नही कर पाता कि किसे व किस पार्टी को मत देकर जीताना है जिससे हमारा भला हो सकेगा। हमे संगठन राजनीतिकक जागृति, सक्रियता में उत्पन करनी है। जिस क्षेत्र से व्यक्ति खड़ा होना चाहता है। वहां समाज की पर्याप्त संखया हो दुसरे वर्गों पर अच्छा प्रभाव हो इतना प्रभाव व द्राक्ति व इस समाज के अलावा वहां से कोई जीत नही सकता। वहां से समाज का योग्य (राजनीतिज्ञों की दक्षता प्राप्त) च्चिक्षित, सेवाभावी जीतने वाला जिसमें आत्मबल हो, निर्णय द्राक्ति हो, क्षेत्र की पूरी जानकारी व बूधवार कार्यकर्ताओं की पूरी टीम हो, आगे ऊचे पद पर पहुचने की क्षमता रखता हो पार्टी का सक्रिय सदस्य, वफादार व उच्च पद पर हो, आर्थिक स्थिति सुदृढ हो अन्य कार्यकर्ता उनकी जीत का भरोसा पार्टी नेताओं को देवें, उसे संगठित होकर खड ा करना है व तन-मन धन से प्रयास करे तो हमें सफलता मिलेगी। इस तरह हमारे १२ से १५ विधायक और इससे अधिक निकायों पर समाज के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष जीत सकते है तथा १००० से अधिक पार्द्गाद जीत सकते है। इसी तरह चुनावी रणनीति अपनाकर पंचायत समिति, जिला परिद्गाद, सरपंच, उपसरपंच, प्रधान, उपप्रधान आदि के चुनाव लड े जाय तो पहले सभी दुगुने सभी पद प्राप्त कर सकते है। इससे समाज में राजनीतिक चेतना आयेगी, संगठन बनेगा तथा समाज एक द्राक्ति बनकर उभरेगा। करीब ९० से १०० विधान सभा क्षेत्रों में समाज के मतदाता चुनाव परिणाम निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकेंगे, ऐसे में पार्टियां समाज के पतों पर नजर रखेगी। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी महिलाओं के लिए ३३ प्रतिच्चत आरक्षित वार्ड/पंचायतें है उसमें २१ प्रतिच्चत ओ.बी.सी. महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों के पार्द्गाद अध्यक्ष/उपाध्यक्ष आदि पर भी आरक्षित है। वहां से समाज की च्चिक्षित अनुभवी, सक्रिय महिलाओं को टिकट दिलाकर हर हालत में जीताना है। पार्टी टिकट नही दे तथा ओ.बी.सी. क्षेत्र है तो जीतने वाली निर्दलीय महिला खडाकर देना है। सक्रिय महिलाओं को पहले से सभा-सम्मेलनों में बुलाकर जागृत कर उन्हे आगे लाना है।