रविवार, 9 मार्च 2014

राजस्थान माली-सैनी कुशवाहा समाज एवं २१ वीं सदी का आह्वान :


     राजस्थान में अपना समाज माली सैनी काछी, (कुशवाह) सगरवंशी भोई कीर कोयरी शाक्य, मुरार मौर्य आदि नामों से जाना जाता है। ये सभी शाखाएं साग-सब्जी, फल-फूल काकड़ी तरबूज आदि की  खेती का व्यवसाय सदियों से करते तथा बेचते  आ रहे है। यह क्षेत्रीय समाज एक ही माला के फूल व मोती है। यह किसान समाज सीधा-साधा, मेहनतकश , रात-दिन सर्दी-गर्मी वर्षा में काम करने वाला भारत के अधिकांश गांवों जिलों में बसा हुआ है। भारत में इनकी जनसंखया करीब १४ करोड  एवं राजस्थान में करीब ४८ लाख है। अन्य पिछडी जातियों में इसकी जनसंखया भारत व राजस्थान में सबसे अधिक है। ये मूल रूप से क्षत्रिय थे। मुसलमान शासको के समय में अलग-अलग धन्धा अपना लिया तथा धन्धा करने वाले माली-सैनी कुशवाह हो गये। काछी (कुशवाह) माली राजस्थान में करीब ८ लाख है तथा धौलपुर में बडी संख्या में है भरतपुर, कोटा जिलों में काफी संखया में है। कीर-कोयरी नदियों के किनारें जोधपुर, अजमेर में कुछ संखया में बसा हुआ है। शाक्य की कम संख्या में श्रीगंगानगर में बसा हुआ है। सभी शाखाओं का खान-पान, रहन-सहन, वेश भूषा आदि एक जैसा है। इन शाखाओं में शादी ब्याह होते आये है।
कुशवाह क्षत्रिय महासभा की स्थापना बाबू श्री हरिप्रसाद वैष्णव की अध्यक्षता में सन्‌ १९१२ मार्च मास में चुनार में की गई। तथा स्वर्गीय जे.पी. चौधरी ने कुशवाह शाक्य, मौर्य, कोयरी आदि को एकीकरण का महामंत्र दिया और कुशवाह महासभा की स्थापना की। जोधपुर में विक्रम सवंत्‌ १९५४ (सन्‌ १८९८) के वैशाख माह में मण्डोर रोड़ जोधपुर में श्री पुरखाराम जी सांखला ठे. श्री साहिबाराम जी गहलोत ठे. श्रीपोकर कच्छवाहा ठे. श्री मगजी कच्छवाहा आदि ने माली सभा की स्थापना कर बच्चों की च्चिक्षा के लिए स्कूल खोलने का निर्णय लिया और १९ अगस्त १८१८ को श्री सुमेर स्कूल की स्थापना की गई। राजपुताना प्रदेश के जोधपुर से श्री जगदीश सिंह गहलोत श्री नेनुराम जी सांखला श्री चतुर्भुज जी गहलोत श्री साहिबाराम जी गहलोत व अजमेर से ठाकुर भेरूसिंह कच्छवाहा आदि ने माली नाम की जगह सैनी (सैनी क्षत्रिय) लिखने का प्रयास सन्‌ १९२१ से प्रारम्भ किया। सन्‌ १९१५ में पंजाब में माली (सैनी) भागीरथी माली सगरवंशी, कीर-कोयरी, मुराव, महुर आदि की एक सभा राय बहादुर दीवान चन्द गहलोत बटाला जिला गुददासपुरा की अध्यक्षता में की गई और सभी मालियों को एक मंच पर लाये तथा महासभा की स्थापना की। स्व. लालमणी स्व. भरतसिंह इन्द्रसिंह आदि ने पंजाब रोहतक अम्बाला में यंगमेन सभा की स्थापना की और मालियों के स्थान पर सैनी लिखने के लिए पंजाब सरकार को कई पत्र लिखे, अन्त में मर्दुम शुमारी कमीश्नर दिल्ली डॉ.जे.एच. हुटन ने १९ जनवरी १९३१ को सभी प्रकार के मालियों को माली नाम की जगह सैनी लिखा जाय की मान्यता प्रदान की।
माली (सैनिक क्षत्रिय) महासभा एवं कुशवाह क्षत्रिय महासभाओं में पिछले १०० सालों से अलग-अलग एवं एक साथ सम्मेलन कर एकीकरण का प्रयास किया। ३०-३१ दिसम्बर१९७३ को ऑल इण्डिया सैनी सभा विज्ञान भवन दिल्ली में सेठ बिहारी लाल जी की अध्यक्षता में हुआ। सन्‌ १९७४ में श्री गोरेलाल शाक्य विधायक की अध्यक्षता में लखनऊ में सम्मेलन हुआ। १२ दिसम्बर१९८३ में अजीतकुमार मेहतो सांसद की अध्यक्षता में सम्मेलन हुआ एवं श्री दयाराम शाक्य सांसद को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। २५-२६ अगस्त १९९० को मस्जिद मोठ नई दिल्ली में विशिष्ठ अतिथि श्री दयाराम शाक्य एवं मुखय अतिथि उपेन्द्रनाथ केन्र्दीय मंत्री आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। १८-१९ जनवरी १९९२ को मुंबई में सरदार रेशमसिंह आदि ने सम्मेलन का आयोजन किया गया। २० दिसम्बर १९९३ पुणें में तत्कालीन राद्गट्रपति माननीय श्री शंकरदयाल शर्मा मुख्य अतिथि एवं विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पवार एवं श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। ७-८ जून १९९७ को  मध्यप्रदेश में श्री बाबुलाल  कुशवाह के संयोजक में सभी शाखाओं के एकीकरण के लिए सम्मेलन का आयोजन हुआ। १४-१५ अप्रेल १९८८ को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चौधरी इन्द्रराज सिंह सैनी की संयोजकता एवं श्री मोतीलाल  कुशवाह  वाराणसी की अध्यक्षता में सम्मेलन आयोजित किया गया। २० नवम्बर १९९९ को भोपाल में श्री बी.एल. पटेल की संयोजकता एवं श्री लिखीराम कावरे की अध्यक्षता में सम्मेलन का आयोजन हुआ। फरवरी २००० को दिल्ली के लाल किला मैदान में इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल  कुशवाह की अध्यक्षता में एवं मुख्य अतिथि दिल्ली  मुख्यमंत्री इन्द्रराज सिंह सैनी एवं मोतीलाल की अध्यक्षता में एवं दिल्ली  की मुख्यमंत्री  श्रीमती शीला दीक्षित के आतिथ्य में सम्मेलन का आयोजन किया गया। १० मार्च २००६ को महात्मा फूले समता परिषद के तत्वाधान में राम लीला मैदान दिल्ली में विशाल रैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारैली श्री छगन भुजबल की अध्यक्षता में हुई जिसमें विशिष्ठ अतिथि श्री शरद पंवार (कृषिमंत्री) एवं श्री लालू प्रसाद (रेल्वे मंत्री) आदि उपस्थित थे। १७ मार्च २००७ को पटना के गान्धी मैदान में विशाल महारेली राद्गट्रीय अध्यक्ष श्री छगन भुजबल के स्वागत में उपेन्द्रनाथ में समाज की सभी शाखाओं  के बुद्धिजीवी, हजारों-लाखों भाई-बहिन, सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता संगठित होकर एक मंच पर आये तथा समाज में जागृति आई, सामाजिक न्याय एवं जनसंख्या के आधार  प्रशासन, राजनीति में अपनी भागीदारी पाने का संकल्प किया।
राजस्थान प्रदेश में समाज के भाइयों की सामाजिक आर्थिक, प्रशेक्षणिक राजनैतिक स्थिति की जानकारी अत्यंत आवश्यक है आज प्रदेश की दो सौ विधान सभा क्षेत्रों में ३०-३१ विधान सभा क्षेत्र ऐसे है जहां हमारे समाज को २५०० से ४०००० और अधिक मतदाता है तथा ६० विधान सभा क्षेत्रों में १०-१२ हजार से २४००० मतदाता है। लोक सभा क्षेत्र में ३ ऐसे है जहां हमारे समाज के २ लाख से अधिक मतदाता है तथा ८०-१०० लोक सभा क्षेत्रों १ लाख से १.५० लाख तक मतदाता है। वहां हमारे औसतन ३ से ५ विधायक जीत पाते है लोक सभा सदस्य कभी कभार १ ही जीत पाता है जहां इसमें कम आबादी वाली चतुर बोलचाल, धनवान जातियों के १२-३५ विधायक एवं १-८ तक लोक सभा सदस्य जीत जाते है। प्रदेश में करीब १०० स्थानीय निकायें है। उनमें ३४-३५ ही अपने अध्यक्ष/उपाध्यक्ष व ४५०-५०० पार्षद जीत पाते है ये तो ऐसी निकायें है जहां से अध्यक्ष/उपाध्यक्ष और इतने ही पार्षद अपने आप जीतते आयें है। ग्राम पंचायतों के चुनाओं में हमारे १५०-२०० सरपंच व उपसरपंच एवं ८-१० प्रधान/उपप्रधान ही बन पाते है, जहां हजारों गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होत हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच गांवों में तथा निकायों के वार्डों में अन्य समाज से बहुत अधिक मतदाता होते हुए भी अपने अधिक सरपंच पंचायत समिति/सदस्य/जिला परिद्गाद/सदस्य/प्रधान आदि नही जीत पाते। यहां तक कई निकायों में हमारे ५.१२ पार्षद होते हुए भी अध्यक्ष उपाध्यक्ष नही जीत पाते तथा कई ग्राम पंचायतों में कई सरपंच समिति सदस्य जिला परिषद सदस्य जीते हुए है तो भी प्रधान/उपप्रधान आदि नही जीत पाते। अन्य उच्च चतुर , धनवान, बाहुबली जातियों का जीता एक ही सदस्य उच्च पद प्राप्त कर लेता है ये जातियां राजनैतिक प्रशासनिक क्षेत्रों में लम्बे समय से राजनैतिक सत्ता व धन का सुख भोग रही है ये येन  केन प्रकारेण अन्याय करके भी आपको आगे नही आने देती है और आपको को सामाजिक न्याय एवं सत्ता की भागीदारी नही मिलती है।
उच्च चतुर,  धनवान जातियां जिला प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में उच्च पद प्राप्त कर लेती है। टिकट चयन समितियों में पार्टी में पर्यवेक्षक, अध्यक्ष, मंत्री आदि पद प्राप्त कर पार्टी विकट बांटते  समय टिकटों का बटवारा चाहे विधायक का हो लोग सभा का हो या पार्षदो, अध्यक्षों एवं सरपंच प्रधान आदि को हो अधिक से अधिक टिकट अपने  चहेते लोगों को अपने जाति वर्ग या जो आगे उन्हे व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाले को दे देते है। इन जातियों के व्यापारी, उच्च अधिकारी, नेता लाभकारी पदों पर रह कर भ्रष्ट तरीकों से खूब धन बटोरकर राजनीतिज्ञों को चन्दा देकर तन मन धन से मदद कर जिताते है या खुद टिकट प्राप्त कर धन, बल से जीत जाते है। चयन समिति में टिकट दिलाने की पैरवी करने वाला कोई व्यक्ति नही होता अतः हमें टिकट नही मिलता। कई बार पार्टी टिकट जीतने वाले व्यक्ति को उनके पक्ष के क्षेत्र का न देकर अनुभवहीन हारने वाले व्यक्ति को समाज के प्रतिनिधित्व के रूप में उसे क्षेत्र से टिकट देती जहां अपने समाज के पर्याप्त मत नही होते। ये लोग अपने प्रत्याच्ची को जिताने के लिए कई भ्रद्गट तरीके अपनाते है, झूठी अफवाहे फैला देते है, भय पैदा करके और भोले लोगों को आपस में लड़ाते व गुमराह करते रहते है। प्रशासन-प्रेस आदि भी उन्ही के समर्थन में प्रचार करते रहते है। विभिन्न संस्थाओं, उद्योगों यूनियनों का संचालन करते पदाधिकारी हो तो उन संस्थाओं से जुडे व्यक्तियों को अपने प्रभाव में रखते है। नेताओं, समाज सेवियों, प्रभावशाली व्यक्तियों, कलाकारों आदि को प्रचार के लिए बुलाते, अत्यधिक पैसा खर्च करते, वोटर से वोट प्राप्त करने के कई हथकंडे अखतीयार करते हैं जीत जाते है। आज ये चतुर उच्च बलशाली धनवान जातियां, लाभकारी पदों पर पहुँच कर सभी प्रकार के सुख भोग रही है। आज सभी प्रकार की सम्पन्न जातियां संगठित होकर कई तरह के दावपेज खेलकर शासन, प्रशासन, न्यायपालिका प्रेस में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया हुआ है। ये गर्व से कहते हैं कि पिछडी जातियां राज करने के योग्य नही है जब कि हम सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट सूर सैन, महात्मा बुद्ध, लव- कुश एवं महात्मा ज्योति बा फूले सन्तान है उनके जैसा पराक्रम एवं शौर्य हमारी रग रग में विद्यमान है।
आज स्वतंत्रता के ६० साल बाद भी १४ करोड़ जनसंखया वाला समाज कई शाखाओं और उपशाखाओं, महासभाओं के नाम पर स्थान-स्थान पर पृथक अस्तित्व बनाये हुए है। विशाल भारत में हमारी अपारजनशक्ति होते हुए भी सामाजिक प्रशासनिक  राजनीतिक स्थिति सबसे कमजोर है इस घोर उपेक्षा का बदला संगठित होकर ही ले सकते है और सामाजिक अन्याय का बोलबाला समाप्त कर सकते है इसके लिए समाज को सही नेतृत्व की आवच्च्यकता है। हमे एक मंच पर संगठित होकर पहले से ही रणनीति तय करनी होगी। राद्गट्रीयकृत पार्टियों से प्रयास कर अधिक टिकट प्राप्त करने होंगे। धाराओं वाले वर्गों से मिलकर क्षेत्रीय पार्टियों से ताल-मेल करना होगा। उन पार्टियों में उच्च पद प्राप्त करने होंगे। इसके लिए राजनीतिज्ञों बुद्धिजीवियों, विद्ववानों समाजसेवियों को एक सूत्र में संगठित होना होगा। शक्ति का प्रदर्शन करना होगा, संघर्ष करना होगा। हाल ही में प्रदेच्चों में विधान सभा व अन्य चुनवों में क्षेत्रिय पार्टियों का दबदबा जबरदस्त रहा। कुछ निर्दलियों का भी रहा। भारत के कई प्रदेच्चों में क्षेत्रिय पार्टियों ने मिलजुल कर सरकारें बनायी है। आज प्रान्तीय सरकार हो या भारत सरकार की कई पार्टियों से मिलकर सरकार बनाई जाती है। आज गठबन्धन की राजनीति की आवश्यकता है। राजनीतिक ही विकास की चाबी है। राजनीतिक दलों में समाज की भागीदारी कैसे बढी ? इसके लिए हमें गुटबाजी समाप्त कर व्यक्तिगत स्वार्थ त्याग कर मतभेद भुलाकर प्रदेच्चा की राजधानी में द्राक्ति प्रदर्च्चन करना होगा। तभी हमारा जनाधार मजबूर होगा हमारी पूछ होगी। इसकी एक महारैली का उद्देच्च्य समाज की सभी शाखाओंको संगठित कर एक मंच पर लाना, आर्थिक सामाजिक राजनैतिक चेतना पैदा करना, सामाजिक न्याय एवं जनसंखया के आधार पर राजनैतिक प्रच्चासन,के प्रत्येक तहसील/जिला स्तर पर समाज के लोगो को संगठित करना होगा। हमारे पास वोटो की द्राक्ति है आज तक हम किसी अन्य को दोद्गा देते आये है। अब हमें उनके वोट लेने है। आज सिद्धान्त विहीन एवं दिच्चा विहीन राजनीति में मतदाताओं को दुविधा में डाल दिया हेै वह तय नही कर पाता कि किसे व किस पार्टी को मत देकर जीताना है जिससे हमारा भला हो सकेगा। हमे संगठन राजनीतिकक जागृति, सक्रियता में उत्पन करनी है। जिस क्षेत्र से व्यक्ति खड़ा होना चाहता है। वहां समाज की पर्याप्त संखया हो दुसरे वर्गों पर अच्छा प्रभाव हो इतना प्रभाव व द्राक्ति व इस समाज के अलावा वहां से कोई जीत नही सकता। वहां से समाज का योग्य (राजनीतिज्ञों की दक्षता प्राप्त) च्चिक्षित, सेवाभावी जीतने वाला जिसमें आत्मबल हो, निर्णय द्राक्ति हो, क्षेत्र की पूरी जानकारी व बूधवार कार्यकर्ताओं की पूरी टीम हो, आगे ऊचे पद पर पहुचने की क्षमता रखता हो पार्टी का सक्रिय सदस्य, वफादार व उच्च पद पर हो, आर्थिक स्थिति सुदृढ हो अन्य कार्यकर्ता उनकी जीत का भरोसा पार्टी नेताओं को देवें, उसे संगठित होकर खड ा करना है व तन-मन धन से प्रयास करे तो हमें सफलता मिलेगी। इस तरह हमारे १२ से १५ विधायक और इससे अधिक निकायों पर समाज के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष जीत सकते है तथा १००० से अधिक पार्द्गाद जीत सकते है। इसी तरह चुनावी रणनीति अपनाकर पंचायत समिति, जिला परिद्गाद, सरपंच, उपसरपंच, प्रधान, उपप्रधान आदि के चुनाव लड े जाय तो पहले सभी दुगुने सभी पद प्राप्त कर सकते है। इससे समाज में राजनीतिक चेतना आयेगी, संगठन बनेगा तथा समाज एक द्राक्ति बनकर उभरेगा। करीब ९० से १०० विधान सभा क्षेत्रों में समाज के मतदाता चुनाव परिणाम निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकेंगे, ऐसे में पार्टियां समाज के पतों पर नजर रखेगी। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी महिलाओं के लिए ३३ प्रतिच्चत आरक्षित वार्ड/पंचायतें है उसमें २१ प्रतिच्चत ओ.बी.सी. महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों के पार्द्गाद अध्यक्ष/उपाध्यक्ष आदि पर भी आरक्षित है। वहां से समाज की च्चिक्षित अनुभवी, सक्रिय महिलाओं को टिकट दिलाकर हर हालत में जीताना है। पार्टी टिकट नही दे तथा ओ.बी.सी. क्षेत्र है तो जीतने वाली निर्दलीय महिला खडाकर देना है। सक्रिय महिलाओं को पहले से सभा-सम्मेलनों में बुलाकर जागृत कर उन्हे आगे लाना है।

ALL INDIA SAINI SEVA SAMAJ


वर्तमान राष्ट्रीय टीम


सदस्य का नामकार्यभारमोबाइलई-मेल
श्रीपाल सैनीअध्यक्ष9810059441 
डा. धर्म सिंह सैनीवरिष्ठ उपाध्यक्ष9927607710 
राजकुमार सैनीमहामंत्री9871847497 
दिलबाग सैनीकोषाध्यक्ष9810126108 
रमेश चंद सैनी (Adv.)सह-सचिव9211791279 
जयभगवान सैनी     उपाध्यक्ष9654999140/09654999130 
दया राम सैनीउपाध्यक्ष09250073040/09213138863 
अयोध्या प्रसाद कुशवाहाउपाध्यक्ष9926024365 
तारा चंद गहलोतउपाध्यक्ष9351350122 
सूरजमल सैनीउपाध्यक्ष9352151656 
राजिंदर सैनीमंत्री9873034505 
विक्रम सिंह सैनी (Adv.)मंत्री9719357796 
शोहबरन सिंह कुशवाहामंत्री9873511883 
स. त्रिलोचन सिंह सैनीमंत्री9872314004 
डा. चेतन दास सैनीमंत्री9259162349 
श्रीमति मुनेश सैनीमंत्री(विशेष आमंत्रित)9899696540 
राजेश सैनीकार्यालय मंत्री9891150911 
राम नारायण चौहान सैनीप्रचार मंत्री9826047245/9990952171 
धरम सिंह सैनीकल्याण मंत्री9310232221 
पूनम सैनीमहिला कल्याण मंत्री9416966962 
नरेश सैनीयुवा कल्याण मंत्री9015346409 
शिव चरण कुशवाहासांस्कृतिक मंत्री9958984757 
श्रीमती अलका सैनीमहिला अध्यक्ष9300304268 

राज्यवर टीमे :

राज्यअध्यक्षमहिला अध्यक्षायुवा अध्यक्ष
दिल्लीअमित सैनी(9810014404)श्वेता सैनी(9990524405)राजेश सैनी(9810367780)
हरियाणागुरनाम सिंह सैनी(9416020895)शशि सैनी(9416782314) 
राजस्थान भगवाना राम सैनी(9783416325)मंजुलता सैनी(......) 
पंजाबहरजीत सिंह लोंगिया(9463822404)..... 
उत्तर प्रदेशवीरेंदर सैनी(9412583881).....रविन्दर सैनी
मध्य प्रदेशसुरेन्द्र सांकला(9302227178) नीलेश सोलंकी
उत्तराखंडडॉ चंद्र मोहन  
महाराष्ट्रशिव दास महाजन(09422033434)  
बिहारसी. पी. सिन्हा(9931025315)  
गुजरातजितेंदर कुमार वर्मा(9427070414)  

राज्यवर प्रभारी :

राज्यप्रभारीमोबाइल
दिल्लीग्यारसी लाल सैनी
पंजाब और हरियाणाओ. पी. सैनी(अम्बाला)

हमारे पूर्वज


महात्मा गौतम बुद्ध
गौतम गोत्र में जन्मे बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ। शाक्यों के राजा शुद्धोधन' सिद्धार्थ के पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी जो कोली वन्श की थी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"।

चन्द्रगुप्त मौर्य
चन्द्रगुप्त मौर्य (जन्म ३४० पु॰ई॰, राज ३२२-२९८ पु॰ई॰) में भारत में सम्राट थे। इनको कभी कभी चन्द्रगुप्त नाम से भी संबोधित किया जाता है। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफ़ल रहे।
सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतया 324 ई.पू. निर्धारित की जाती है। उन्होंने लगभग 24 वर्ष तक शासन किया, और इस प्रकार उनके शासन का अंत प्राय: 300 ई.पू. में हुआ।

सम्राट अशोक
अशोक (राजकाल ईसापूर्व 273-232 ) प्राचीन भारत में मौर्य राजवंश का चक्रवर्ती राजा था । उसके समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदीके दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफ़गानिस्तान तक पहुँच गया था । यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था । सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है ।
जीवन के उत्तरार्ध में अशोक भगवान गौतम बुद्ध के भक्त हो गये और उन्ही की स्मृति मे उन्होने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - मेमायादेवी मन्दिर के पास अशोक स्तम्भ के रुप मे देखा जा सकता है ।

महाराजा शूर सैनी
महाराजा शूरसैनी ने समाज से बुराईयों को दूर करने हेतू इन बुराईंयों के खिलाफ सभी वर्गों को एकजुट करके समाज सुधार की दिशा में अनुकरणीय कार्य किया है। महाराजा शूरसैनी के जीवन व आदर्शों पर चलते हुए उनकी शिक्षाओं को हमें अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए।
महाराजा शूर सैनी ने समाज को एकजुट कर सामाजिक बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया। सैनी समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है, जिसके दिशा-निर्देशक महाराजा शूरसैनी रहे हैं। ऐसे व्यक्ति किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं, अपितू समस्त राष्ट्र की धरोहर होते हैं।

महात्मा ज्योतिबा राव फूले
जोतिराव गोविंदराव फुले (जन्म - ११ अप्रेल १८२७, मृत्यु - २८ नवम्बर १८९०), ज्योकतिबा फुले के नाम से प्रचलित 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे।
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वूयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं। दलित व स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्नीइ ने मिलकर काम किया। दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।

क्रांतिकारी सुखदेव
सुखदेव (पंजाबी: ਸੁਖਦੇਵ ਥਾਪਰ) का पूरा नाम सुखदेव थापर था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे । उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था । इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है । सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।

सावित्री बाई फुले
सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी, 1831 – 10 मार्च, 1897) भारत की एक समाजसुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होने अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। १८५२ में उन्होने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

'सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।

महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

संदर्भ

  1. ↑ इस तक ऊपर जायें:    "समय ग्रंथों वर्तमान और दौरान उपलब्ध अपने ऐतिहासिक संदर्भित और समुदाय के कृष्ण के रूप में मूल के सैनी भगवान का राजवंश (चंद्र वंश) प्रदर्शन चंद्रा और निष्कर्ष निकाला वंश का पूरा चन्द्र वह:" चंद्र वंशी राजा यदु की संतान को यादव कहा जाने लगा. एक ही वंश में 42 पीढ़ियों के बाद क्षेत्र के आसपास एक शासक का जन्म हुआ जिसका नाम था राजा शूरसेन जिसने नियंत्रित किया मथुरा और आसपास के क्षेत्रों को ... चौधरी लाल सैनी की 'तारीख कुआम शूरसैनी' के बाद से शूरसैनी समुदाय (जिसे सैनी समुदाय भी कहा जाता है) के अन्य इतिहासकारों ने शिव लाल के कामों को अपने अनुसंधान और प्रकाशन का आधार माना है ", डा. प्रीतम सैनी ने जैसा कि जगत सैनी में उद्धृत किया है: उत्पत्ति आते विकास, प्रोफेसर सुरजीत सिंह ननुआ, 115 पी, मनजोत प्रकाशन, पटियाला, 2008
  2. ↑ इस तक ऊपर जायें:    राजस्थान, सुरेश कुमार सिंह, बीके लवानिया, दीपक कुमार सामंत, एसके मंडल, एनएन व्यास, 845 पी, मानव विज्ञान सर्वेक्षण भारत
  3. ↑ इस तक ऊपर जायें:    "... माली (यानी बागवानी करने वाले लोग जो खुद को अब सैनी कहते हैं) .." उत्तर भारत की एक मुस्लिम उप जाति: सांस्कृतिक एकता की समस्याएं प्रताप सी. अग्रवाल आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक, वॉल्यूम. 1, नंबर 4 (10 सितंबर, 1966), पीपी 159-161, द्वारा प्रकाशित: आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक
  4. ↑ इस तक ऊपर जायें:    "1941 की जनगणना के समय उनमें से अधिकांश ने खुद को सैनी माली के रूप में दर्ज करवा लिया था (सैनिक क्षत्रिय)" , पी 7, 1961 की भारत की जनगणना, खंड 14, अंक 5, भारत, रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय.
  5. ↑ इस तक ऊपर जायें:    पंजाब में "उप पहाड़ी क्षेत्र में इस समुदाय को 'सैनी' के रूप में जाना गया. वह अपने प्रवास के बावजूद राजपूत चरित्र बनाए रखा. " राजस्थान की जातियां और जनजातियां, 108 पी, सुखवीर सिंह गहलोत, बंशी धर, जैन ब्रदर्स, 1989
  6. ↑ इस तक ऊपर जायें:   "कुछ साहसी आक्रमणकारियों के साथ शब्दों के लिए आया था और देश के अनुदान प्राप्त उन लोगों से. सैनी एक राजपूत कबीले थे जो अपने जमुना पर मुत्त्रा [इस प्रकार से] के पास मूल घर से आया अपने मूल का पता लगाने, दिल्ली के दक्षिण में, हिन्दुओं की रक्षा में पहली मुहम्मदन आक्रमणों के खिलाफ .. " पांच नदियों की भूमि, आरंभिक काल से एक पंजाब के आर्थिक अनुग्रह 1890, 100 वर्ष के इतिहास, ह्यूग कैनेडी त्रेवस्की, [लंदन] ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1928
  7. ↑ इस तक ऊपर जायें:  "जडेजा, सैनी, भाटी, जडोंन," अविभाजित भारत के मार्शल दौड़, 189 पी, विद्या प्रकाश त्यागी, दिल्ली कल्पज़ पब्लिकेशन्स, 2009.
  8. ↑ इस तक ऊपर जायें:  "इस जनजाति के पुरुष शायद ही कभी अश्वदल में काम करते थे." पंजाब में जालंधर जिला, 84 पी, पर्सर, BCS, "नागरिक और सैन्य राजपत्र" प्रेस, ठेकेदार की संशोधित पंजाब सरकार, लाहौर, 1892 को समझौते की अंतिम रिपोर्ट
  9. ↑ इस तक ऊपर जायें:  पंजाब जिला गज़ेटियर, खंड XIV ए, जालंधर जिला मैप्स के साथ, 269 पी, 1904, लाहौर, "नागरिक और सैन्य राजपत्र" प्रेस से मुद्रित
  10. ↑ इस तक ऊपर जायें:  "सैनी के लिए भर्ती के प्रमुख क्षेत्रों में थे अंबाला, होशियारपुर, और जालंधर जिले. "द गोल्डन गैली : दूसरे पंजाब रेजिमेंट की कहानी 1761-1947, सर जेफ्री बेथम, हर्बर्ट वेलेंटाइन रूपर्ट गिअरी, प्रेस विश्वविद्यालय के लिए अधिकारी संघ में रेजिमेंट पंजाब प्रिंटर, सी. बैट द्वारा, विश्वविद्यालय प्रकाशित, 1956
  11. ऊपर जायें "सैनियों का मानना है कि उनके पूर्वजों यादव थे और यह वही वंश था जिसमें कृष्ण का जन्म हुआ था. यादवों की 43वीं पीढ़ी में एक शूर या सुर नाम का राजा हुआ जो राजा विदारथ का बेटा जाना जाता था.... यह इन पिता और पुत्र के नाम पर था, कि समुदाय शूरसैनी या सूरसैनी कहलाया." पीपल ऑफ़ इंडिया: हरियाणा, 430 पी, सुरेश कुमार सिंह, मदन लाल शर्मा, एके भाटिया, मानव विज्ञान सर्वेक्षण भारत, भारत के मानव विज्ञान सर्वेक्षण की ओर से प्रकाशित द्वारा मनोहर प्रकाशक द्वारा प्रकाशित, 1994
  12. ऊपर जायें "हिंदू सामाजिक ढांचे के चार वर्गीय विभाजन में, सैनी सदा ही क्षत्रिय मूल का दावा करते है, क्षत्रिय के विभिन्न समूहों में सैनी राजपूतों हैं." पीपल ऑफ़ इंडिया: हरियाणा, 430 पी, सुरेश कुमार सिंह, मदन लाल शर्मा, एके भाटिया, मानव विज्ञान सर्वेक्षण भारत, भारत के मानव विज्ञान सर्वेक्षण की ओर से प्रकाशित द्वारा मनोहर प्रकाशक द्वारा प्रकाशित, 1994
  13. ऊपर जायें "वह क्षेत्र एक मकान मालिक के पास गया पर के राजा कहा जाता था जो नथल. वह एक सैनी राजपूत ....था" एक किसान जो अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी, मदन मोहन शर्मा, द डेली एक्सेलसियर, 28 जून 2010
  14. ऊपर जायें "यह अत्यंत बलवान आदमी, बलराम कहा जाता है के बारे में है कि वह बाहर से करने के लिए ग्रीस अजनबी एक के रूप में आया था. (मेरी राय में वे हरिकुला के भीम थे जैसा कि कर्नल टॉड का भी विचार है). यदुवंशी ने यहां शासन किया. यहूदी' 'यदु' का विरूपण है. उस देश में जहां सैनी यदुवंशी' रहते थे, कहा जाता है यह सिनाई '. " गज़नी टु जैसलमेर (भटिस का पूर्व मध्ययुगीन इतिहास), 42 पी, हरि सिंह भाटी, प्रकाशक: हरि सिंह भाटी, 1998, प्रिंटर: सांखला प्रिंटर, बीकानेर
  15. ऊपर जायें "सुरसेन यादव था. एक उसके वंश का, इसलिए खुद सकता है एक या एक सुरसेन यादव के रूप में वह अच्छा लगा ... " चौहान राजवंश: चौहान राजनीतिक इतिहास, चौहान राजनीतिक संस्थाओं का एक अध्ययन, और जीवन चौहान उपनिवेश में, 800 से 1316 ई. तक, दशरथ शर्मा, 103 पी, मोतीलाल बनारसीदास द्वारा प्रकाशित, 1975
  16. ↑ इस तक ऊपर जायें:   "भरतपुर राज्य के गठन से पहले सिनसिनवार की राजधानी सिनसिनी थी. सिनसिनी पहले 'शूरसैनी' जाना जाता था और उसके निवासियों को 'सौर सेन' के रूप में जाना जाता था. सौर सेन लोगों के प्रभाव तथ्य यह है कि एक समय में पूरे उत्तर भारत की बोली के रूप में 'सौरसैनी' को जाना जाता था आंका जा सकता.शूर सेन लोग चन्द्र वंशी क्षत्रिय थे. कृष्ण भगवान भी चन्द्रवंश की वृशनी शाखा में पैदा हुए थे. यादवों का एक समूह शिव और सिंध में वैदिक भगवान का अनुयायी था. कुछ शिलालेख और इन लोगों के सिक्के 'मोहेंजोदारो' में पाए गए हैं. शिव शनि सेवी' शब्द एक शिलालेख पर उत्कीर्ण मिला है. यजुर्वेद 'शिनय स्वाह' का उल्लेख करता है. सिनी इसर' एक सोने का सिक्का पर पाया गया था. अथर्ववेद 'सिन्वाली' सिनी भगवान के लिए उल्लेख किया है.यादवों के ऊपर समूह सिंध से बृज क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और जिला बयाना भरतपुर में वापस आ गया. कुछ संघर्ष के बाद कुछ 'बलाई' निवासियों को सैनी शासकों और शोदेओ द्वारा ब्रिज भूमि के बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया और इस तरह वे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया:. "मकदूनियाई इंडिका भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, 100 खंड, पीपी 119-120, एस एस शशि, अनमोल पब्लिकेशन्स, 1996 / वैकल्पिक माध्यमिक स्रोत:http://www.bharatpuronline.com/history.html
  17. ऊपर जायें "जालंधर में कहा जाता है कि सैनी राजपूत मूल के होने का दावा करते हैं ... और मुत्त्रा जिले में वे मुख्यतः रहते थे. जब गजनी के महमूद भारत पर आक्रमण उनके पूर्वजों जालंधर में आया और वहां नीचे बसे ...". देखें 346 डेनजिन इबेट्सन, एडवर्ड मेकलागन के पी, हा गुलाब, 1990 "जनजाति एवं पंजाब और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत की निर्मोक की शब्दावली"
  18. ऊपर जायें "एक और अनेक जनजाति, सैनी (14,000), यह भी पहली मुस्लिम आक्रमणों का पता लगाने के अपने मूल के खिलाफ हिंदुओं की रक्षा थी (उत्तर पश्चिम प्रांत) में मथुरा में घर से उनके पूर्वज आए थे", भारतीय ग्रामीण समुदाय, 274 पी, बेडेन हेनरी बेडेन-पावेल, अडेगी ग्राफिक्स LLC, 1957
  19. ऊपर जायें विष्णु पुराण, धारा 5
  20. ऊपर जायें "हमने राजा पुरु को जिन्होंने सिकंदर का विरोध किया था उपस्कृत करने के लिए यदु को जिम्मा सौंपा है", भारत का इतिहास, (आरम्भ से लेकर मुगल साम्राज्य के पतन तक) 91-95 86 पीपी: इंडियन प्रेस (1947), डा. इश्वरी प्रसाद, ASIN: B0007KEPTA
  21. ऊपर जायें "इससे स्पष्ट है कि कृष्ण, राजा पोरस, भगत ननुआ, भाई कन्हैया और कई अन्य ऐतिहासिक लोग सैनी भाईचारे से संबंधित थे" डॉ. प्रीतम सैनी, जगत सैनी: उत्पत्ति आते विकास 26-04, -2002, प्रोफेसर सुरजीत सिंह ननुआ, मनजोत प्रकाशन, पटियाला, 2008
  22. ऊपर जायें कार्यवाही, पी 72, भारतीय इतिहास कांग्रेस, 1957 में प्रकाशित
  23. ऊपर जायें अर्रियन, दिओदोरुस, तथा स्ट्रैबो के अनुसार मेगास्थनीज़ ने एक भारतीय जनजाति का वर्णन किया है जिसे उसने सौरसेनोई कहा है, जो विशेष रूप से हेराक्लेस की पूजा करते थे, और इस देश के दो शहर थे, मेथोरा और क्लैसोबोरा, और एक नाव्य नदी,. जैसा कि प्राचीन काल में सामान्य था, यूनानी कभी कभी विदेशी देवताओं को अपने स्वयं के देवताओं के रूप में वर्णित करते थे, और कोई शक नहीं कि सौरसेनोई का तात्पर्य शूरसेन से है, यदु वंश की एक शाखा जिसके वंश में कृष्ण हुए थे;हेराक्लेस का अर्थ कृष्ण, या हरि-कृष्ण: मेथोरा यानि मथुरा, जहां कृष्ण का जन्म हुआ था, जेबोरेस का अर्थ यमुना से है जो कृष्ण की कहानी में प्रसिद्ध नदी है. कुनिटास कर्तिउस ने भी कहा है कि जब सिकंदर महान का सामना पोरस से हुआ, तो पोरस के सैनिक अपने नेतृत्व में हेराक्लेस की एक छवि ले जा रहे थे.कृष्ण: एक स्रोत पुस्तक, 5 पी, एडविन फ्रांसिस ब्रायंट, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस अमेरिका, 2007
  24. ऊपर जायें हेराक्लेस को सौरसेनोई द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था, एक भारतीय जनजाति, जिनके पास दो बड़े शहरों का स्वामित्व था, मेथोरा और क्लैसोबोरा" अर्रियन viii (मथुरा, 3 एड 279.) एनाल्स एंड एंटी क्वितीज़ ऑफ़ राजस्थान, जेम्स टॉड, वॉल्यूम 1. 36 पी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1920
  25. ↑ इस तक ऊपर जायें:  पंजाब भूमि विभाजन अधिनियम. 1900 का XIII - (लाहौर: अमृत इलेक्ट्रिक प्रेस, 1924), पीपी 146-9, परिशिष्ट A- अधिसूचित जनजाति
  26. ऊपर जायें पंजाब और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत की जनजाति और जातियों की शब्दावली, पीपी 33, 39, 102 154,, 233, 239, 325, 240, 302 एच.ए. रोज़, इबेट्सन, मेकलागन
  27. ऊपर जायें पंजाब और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत की जनजाति और जातियों की शब्दावली, पी 361, इबेट्सन, मेकलागन
  28. ऊपर जायें अन्य 'किसानों' में थे राजपूत, मुग़ल और पठान और साथ में थे कुछ गुज्जर और डोगर" भारतीय सेना और पंजाब का निर्माण, पी 149, रजित के मजुमदार, परमानेंट ब्लैक
  29. ऊपर जायें "एक स्पष्टीकरण कि क्यों सैनियों को अलग-अलग नामों से जाने जाने का कारण है इतिहास में प्रतिकूल राजनीतिक परिस्थितियों का उद्भव. जबकि कई शक्तिशाली राजा इस समुदाय के नामकरण के लिए जिम्मेदार थे, हिंदू मुगल द्वारा किये गए लगातार हमलों राज्यों का प्रभुत्व था, और फलस्वरूप खुद को अज्ञात बनाए रखने की जरूरत ने इस समुदाय के सदस्यों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होने के लिए मजबूर कर दिया, और विभिन्न व्यवसायों को अपनाना पड़ा ... और जब जरूरत पड़ी तो उन्होंने एक सच्चे राजपूत की तरह से सैन्य सेवा में योगदान दिया. इस परिप्रेक्ष्य में कुछ लोग सैनी शब्द का मूल का पता लगाते हैं जो सेना से उत्पन्न हुआ है. "पीपल ऑफ़ इंडिया : हरियाणा, पीपी 430-431, सुरेश कुमार सिंह, मदन लाल शर्मा, एके भाटिया, मनोहर प्रकाशक द्वारा अन्थ्रोपोलोजी सर्वे ऑफ़ इंडिया की ओर से प्रकाशित, 1994
  30. ऊपर जायें भारतीय सेना और पंजाब का निर्माण, 99 पीपी, 205 रजित के मजुमदार, परमानेंट ब्लैक
  31. ऊपर जायें एनुअल क्लास रिटर्न, 1919, पीपी 364-7
  32. ऊपर जायें एनुअल क्लास रिटर्न, 1925, पीपी 96-99
  33. ऊपर जायें "सैन्य आदेश विशेष रूप से आदेश के सेंट जॉर्ज इंपीरियल रूस के सर्वोच्च, 1769 में स्थापित किया गया था और दुनिया में आया पुरस्कारों के बीच सबसे प्रतिष्ठित सैन्य माना जा सकता है ... इस आदेश को विशेष वीरता के लिए अधिकारियों और जनरलों को सम्मानित किया गया था, व्यक्तिगत रूप से एक बेहतर दुश्मन बल की भगदड़ में अपने सैनिकों प्रमुख, या आदेश में सदस्यता से पहले एक किले आदि पर कब्जा करने दिया जा सकता है, एक उम्मीदवार के मामले में जांच की जानी थी एक परिषद द्वारा आदेश के शूरवीरों की रचना की. " स्रोत:http://www.gwpda.org/medals/russmedl/russia.html
  34. ऊपर जायें "मैं उन तीन लोगों का नाम दे रहा हूं जिन्होंने अपनी बहादुरी से प्रसिद्धि अर्जित की. जमादार गुरमुख सिंह, रुपड में गदराम बाड़ी का सैनी सिख, फर्स्ट क्लास आर्डर ऑफ़ मृत जीता और सेकेण्ड क्लास क्रॉस रशियन आर्डर ऑफ़ सेंट जॉर्ज और जीत की 1 मार्च 1916 को, जब वह नीचे उन्नत सबसे बड़ी कठिनाइयों, लगातार आगे बढ़ते रहे और रेंग कर अंदर घुस गए" युद्ध भाषण (1918), 128 पी, लेखक: ओ'डॉयर, माइकल फ्रांसिस, (सर) 1864 -, विषय: विश्व युद्ध, 1914-1918, विश्व युद्ध, 1914-1918 - पंजाब प्रकाशक: लाहौर अधीक्षक सरकार मुद्रण द्वारा मुद्रित
  35. ऊपर जायें "17 नवंबर 1914 को अपनी विशिष्ट वीरता की कार्रवाई में जब खाइयों दुश्मन सैपर्स में दृढ़ संकल्प के तहत एक के साथ एक पार्टी अधिकारी ब्रिटेन के एक आदेश से वह महान पुरुषों के साथ उनके सामने था और नेतृत्व के लिए हमेशा. सूबेदार मेजर-जगिंदर सिंह, बुपर में खेरी सलाबतपुर के सैनी सिख, उन्हें बेल्जियम में लूस की कार्रवाई में उल्लेखनीय नेतृत्व और विशिष्ट वीरता के लिए लड़ाई में अपनी कंपनी और के बारे में उनकी रेजिमेंट में सभी लेकिन एक ब्रिटिश अधिकारी के बाद सबसे अधिक मेरिट की 2 कक्षा आदेश प्राप्त मारे गए या घायल हो गए थे. इस अधिकारी भी क्षेत्र में प्रतिष्ठित संचालन के लिए ब्रिटिश भारत के आदेश के 2 कक्षा से सम्मानित किया गया. " वॉर स्पीचेस (1918), पी 129, लेखक: ओ'डॉयर, माइकल फ्रांसिस, (सर) 1864 -, विषय: विश्व युद्ध, 1914-1918, विश्व युद्ध, 1914-1918 - पंजाब प्रकाशक: लाहौर अधीक्षक सरकार मुद्रण द्वारा मुद्रित
  36. ऊपर जायें सैनी जगत: उत्पत्ति आते विकास, पी 121, प्रो सुरजीत सिंह ननुआ, मंजोता प्रकाशन, पटियाला, 2008
  37. ऊपर जायें संशोधित निपटान की अंतिम रिपोर्ट, जिला होशियारपुर, पीपी 58, 59 1879-84 द्वारा मोंटगोमरी
  38. ऊपर जायें "चौधरी दीवान चंद सैनी दिन था उन पर एक अन्य वकील का अभ्यास आपराधिक पक्ष. बाद में वे राय साहिब बन गए और आपराधिक बार का नेता बन गया, लेकिन दुर्भाग्य से एक अपेक्षाकृत कम उम्र में कैंसर से मृत्यु हो गई." लुकिंग बैक: मेहर चंद महाजन की आत्मकथा, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, 45 पी, मेहर चंद महाजन, एशिया पब द्वारा प्रकाशित. 1963
  39. ऊपर जायें हिसार का इतिहास: स्थापना से 1989 के लिए स्वतंत्रता, 1935-1947, पी 312, एम.एम. जुनेजा बुक आधुनिक, द्वारा प्रकाशित कं,
  40. ऊपर जायें पंजाब विधान परिषद बहस. आधिकारिक रिपोर्ट, 1028 पीपी, 1047, विधान परिषद, (भारत) पंजाब, 1936 तक प्रकाशित, आइटम नोट: v.27, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डिजीटल 7 फरवरी 2007 से मूल
  41. ऊपर जायें "हालांकि अधिकांश सैनी जो गांव में उच्च क्रम में पदानुक्रम जाति रैंक में हैं..." ग्रामीण नेतृत्व, मेहता, शिव रतन, विले पूर्वी, 1972 के उभरते पैटर्न
  42. ऊपर जायें भारतीय शहीदों में कौन क्या है, पीपी 83, द्वारा यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण, भारतीय गृह मंत्रालय, शिक्षा और युवा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित,. v.1, मिशिगन विश्वविद्यालय से मूल:
  43. ऊपर जायें ".. 16 मार्च का दूसरा शहीद होशियारपुर से फतेहगढ़, सैनी था हरनाम सिंह. उसे बत्ताविया से डच द्वारा गिरफ्तार किया गया था. "लाहौर के शहीदों को याद करने का एक दिन, 16, मार्च 2002, के एस धालीवाल, टाइम्स ऑफ़ इंडिया [1]
  44. ऊपर जायें पूर्व एशिया में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन: ज्यादातर से मूल प्रामाणिक खाता की आई एन ए और आजाद हिंद सरकार से, संकलित मूल रिकार्ड सरकारी करके, पी 102, केसर, 1947 द्वारा प्रकाशित सिंह ब्रदर्स, ज्ञानी सिंह मिशिगन विश्वविद्यालय
  45. ऊपर जायें वरिष्ठ पत्रकार, पंजाबी लेखक अजीत सैनी की मृत्यु, पंजाब न्यूज़लाइन नेटवर्क, सोमवार, 10 दिसंबर 2007
  46. ऊपर जायें राजा नाहर सिंह का बलिदान, डा. रणजीत सिंह सैनी (एमए, एलएलबी, पीएचडीडी), 10 पी, नई भारतीय पुस्तक निगम, 2000 संस्करण, प्रिंटर, अमर जैन प्रिंटिंग प्रेस, नई दिल्ली.
  47. ऊपर जायें "सैनी समुदाय के सदस्य आज व्यापार में, कंपनियों में नौकरियां कर रहे हैं और शिक्षकों, प्रशासकों, वकीलों, डॉक्टरों, और रक्षा सैनिकों के रूप में काम कर रहे हैं." भारत के लोग, राष्ट्रीय सीरीज खंड VI, भारत के समुदाय NZ, 3091 पी, के एस सिंह, भारत के मानव विज्ञान सर्वेक्षण, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1998
  48. ऊपर जायें "सैनी ने पेन्टिअम प्रोसेसर के विकास का सह नेतृत्व किया और इंटेल के 64 बिट आर्किटेक्चर के विकास के लिए जिम्मेदार था - इटैनियम प्रोसेसर. भारत में काम करने के लिए इच्छा से प्रेरित, वह वापस चले गए के रूप में 1999 दक्षिण में. निदेशक दक्षिण एशिया",अवतार सैनी आइनफ़ोचिप्स बोर्ड, 29 नवंबर, 2005, 1306 hrs, hrs IST, इंडियाटाइम्स समाचार
  49. ऊपर जायेंhttp://www.mastercard.com/us/company/en/newsroom/mc_names_Ajay_Banga_president_and_chief_operating_officer.html
  50. ऊपर जायें दुनिया के नंबर 1 पंजाबी अखबार
  51. ऊपर जायें "अखबार मालिकों के बीच से सिख, एक जाट और एक दूसरे को सैनी. निम्न जाति का कोई व्यक्ति अखबार मालिक नहीं है. " लोक प्रशासन की भारतीय पत्रिका: लोक प्रशासन का इंडियन इंस्टिट्यूट, 39 पी, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान द्वारा, संस्थान, 1982 द्वारा प्रकाशित की त्रैमासिक पत्रिका
  52. ऊपर जायें "अपवाद हैं एक ट्रिब्यून और अजित पंजाबी दैनिक द्वारा एक सिख सैनी व्यापार, और उद्योग में जाति दामोदरन, पैलग्रेव मैकमिलन हरीश एक आधुनिक, भारत की नई पूंजीपति, 2008
  53. ↑ इस तक ऊपर जायें:     सगोत्र विवाह और गांव/गोत्र स्तरीयएक्सोगामी : सैनी अंतर्विवाही समुदाय है और गांव और गोत्र स्तर पर एक्सोगामी का पालन करते हैं." वर्तमान का विधवा विवाह और तलाक उदारीकरण: "आजकल, सैनी समुदाय विधवा और विधुर के पुनर्विवाह की और दोनों लिंगों के तलाक की अनुमति देता है. कथित तौर पर समुदाय के भीतर शादी के नियमों में एक उदारीकरण किया गया है. " भारत के लोग, राष्ट्रीय सीरीज खंड VI, भारत के समुदाय NZ, 3090 पी, के.एस सिंह, भारत का मानव विज्ञान सर्वेक्षण, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1998
  54. ऊपर जायें पीपल ऑफ़ इंडिया: हरियाणा, 437 पी, सुरेश कुमार सिंह, मदन लाल शर्मा, एके भाटिया, मानव विज्ञान सर्वेक्षण भारत, प्रकाशक की ओर से मानव विज्ञान को प्रकाशित मनोहर सर्वेक्षण भारत द्वारा प्रकाशित, 1994
  55. ऊपर जायें द सिक्ख, एक नृजाति विज्ञान: पी 71, एई बारस्टो द्वारा, बीआर पब द्वारा प्रकाशित. कार्पोरेशन, 1985, मिशिगन विश्वविद्यालय से मूल
  56. ऊपर जायें ऐसा प्रतीत होता है कि "सैनी" का कोई विशाल कुल सिवाय हुशियारपुर के कहीं अन्य दिखाई नहीं देता है, जिस जिले में कुछ सबसे बड़े वंश को हाशिये पर दर्शाया गया है और गुरदासपुर में जहां 1,541 सैनी ने अपने कुल को सलारिया के रूप में दिखाया." डब्ल्यू चिचेल प्लोदेन, (1883), ब्रिटिश भारत की जनगणना 17 फरवरी, 1881 को ली गई, खंड III, लंदन, आयर और स्पोटिसवुडे, पी. 257
  57. ऊपर जायें पंजाब का आर्थिक और सामाजिक इतिहास, 1901-1939 (हरियाणा और हिमाचल प्रदेश, सहित पंजाब के प्रशासनिक प्रभाग), 367 पी, बी एस सैनी एमए पीएचडीविकास, ईएसएस ईएसएस प्रकाशन, दिल्ली, 1975
  58. ↑ इस तक ऊपर जायें:    चाल अल्बर्ट जनगणना भारत, आयुक्त एडवर्ड जनगणना 1901, p 50, करके भारत, 1902, भारत सरकार, मुद्रण के द्वारा प्रकाशित कार्यालय के अधीक्षक
  59. ↑ इस तक ऊपर जायें:    "लगभग 21 प्रतिशत की कमी जिला बिजनौर में मुख्यतः पाई गई जहां आंकड़े दर्शाते हैं कि माली को अंतिम जनगणना में सैनी में शामिल किया गया था." भारत की जनगणना, 1901, भारतीय जनगणना आयुक्त, एडवर्ड अल्बर्ट गेट, सरकारी प्रिंटिंग, भारत अधीक्षक कार्यालय द्वारा प्रकाशित 227 पी, 1902
  60. ऊपर जायें डब्ल्यू चिचेल प्लोडेन, (1883), भारतीय साम्राज्य की जनसंख्या की 1881 की जनगणना सांख्यिकी. खंड II, कोलकाता, भारत सरकार मुद्रण, पी. अधीक्षक 30
  61. ↑ इस तक ऊपर जायें:  हिन्दू जातियों और संप्रदायों: हिंदू जाति व्यवस्था के मूल की एक प्रदर्शनी, और अन्य धार्मिक pp285 सिस्टम का असर की ओर संप्रदायों के प्रति एक दूसरे के और, जोगेंदर नाथ भट्टाचार्य, प्रकाशक: कोलकाता: ठेकर, स्पिंक, 1896
  62. ऊपर जायें "... कि इसी वर्ग के कुछ उच्च जनजाति (सैनी) उनके साथ (माली) शादी नहीं करेगी." डब्ल्यू चिचेल प्लोडेन, (1883), ब्रिटिश भारत की जनगणना 17 फरवरी 1881 को की गई, खंड III, लंदन, आयर और स्पोटिसवुडे, पी. 256
  63. ऊपर जायें पंजाब जिला गज़ेतिअर, खंड XIV, जालंधर जिला, 1904, पी 93, लाहौर, मुद्रित एटी "नागरिक और सैन्य राजपत्र" प्रेस, 1908
  64. ऊपर जायें पंजाब में जालंधर जिले के संशोधित निपटान की अंतिम रिपोर्ट, परिशिष्ट XIII, पी 50, डब्लू.ई. पर्सर, BCS, "सिविल एंड मिलिटरी गजेट" प्रेस, पंजाब सरकार के ठेकेदार, 1892
  65. ऊपर जायें इतिहास और विचारधारा: 300 वर्षों में खालसा, सिख इतिहास पर योगदान के प्रपत्र, विभिन्न भारतीय इतिहास कांग्रेस में प्रस्तुत, 124 पीपी, जे एस ग्रेवाल, इंदु बंगा, तुलिका, 1999
  66. ऊपर जायें "इस प्रकार हिन्दू जाट, 1901 में 15,39574 से घटकर 1931 में 9,92309 हो गए, जबकि सिख जाट इसी समय अवधि में 13,88877 से बढ़कर 21,33152 हो गए", पंजाब का आर्थिक और सामाजिक इतिहास, हरियाणा और 1901-1939 हिमाचल प्रदेश, बीएस सैनी, ईएसएस ईएसएस प्रकाशन, 1975
  67. ऊपर जायें करीब 1994 में नयागांव हरियाणा में एक सैनी लड़की जो एक गैर-सैनी लड़के के साथ भाग गई थी उसे लड़के सहित उसके परिवार द्वारा मार डाला गया. साइलेंस ऑफ़ द लैम्ब लेख देखें, 2 सितम्बर, 2001 टाइम्स ऑफ़ इंडिया संस्करण [2]
  68. ↑ इस तक ऊपर जायें:  "जैसा कि विधवाओं के पुनर्विवाह का संबंध है, केवल जाट, लोहार, झिन्वार, तरखान, महातम वर्गों में फिर से शादी होती हैं, जिन्हें करेवा समारोह के अनुसार ऐसा करने की अनुमति है." पंजाब जिला गजेट, खंड XIV, जालंधर जिला, 1904, 59 पी, लाहौर, "नागरिक और सैन्य राजपत्र" प्रेस, 1908
  69. ऊपर जायें अरेन, रेन, बागबान, माली और मलिआर जाति संयुक्त रूप से एक व्यवसाय को दर्शाती है न की जाती को. भारत के लोग: हरियाणा, 433 पी, लेखक: टीएम डाक, संपादक: कुमार सुरेश सिंह, मदन लाल शर्मा, एके भाटिया, मानव विज्ञान सर्वेक्षण भारत, भारत मानव विज्ञान सर्वेक्षण की ओर से मनोहर प्रकाशक द्वारा प्रकाशित, 1994
  70. ऊपर जायें डब्ल्यू चिचेल प्लोडेन, (1883), भारतीय साम्राज्य की 1881 की जनगणना सांख्यिकी. खंड II., कोलकाता, भारत सरकार मुद्रण, 243-258 पीपी, 294
  71. ऊपर जायें दक्षिणी और पूर्वी एशिया और भारत के साइक्लोपीडिया: वाणिज्यिक, औद्योगिक और वैज्ञानिक, वनस्पति, खनिज उत्पादों की, और पशु राज्यों, उपयोगी और कला विनिर्माण, पीपी 233 व 294, एडवर्ड बाल्फोर, बी क्वारीच द्वारा प्रकाशित, 1885
  72. ऊपर जायें "माली जींद, गुड़गांव, करनाल, हिसार, रोहतक और सिरसा से थे.सैनी अम्बाला में रहते थे. " भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण जर्नल, पी 20, मानव विज्ञान सर्वेक्षण भारत, सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित
  73. ऊपर जायें राजस्थान की जातियां और जनजातियां, पी 107, सुखवीर सिंह गहलोत, बंशी धर, जैन ब्रदर्स
  74. ऊपर जायें 1881 की जनगणना में सैनी को अविभाजित पंजाब के बाहर दर्ज नहीं किया गया (अविभाजित पंजाब के भीतर घग्गर नदी के दक्षिण में भी नहीं) 20वीं सदी में माली समुदाय भी संस्कृतिकरण हिस्से के रूप में नाम के रूप में एक सामान्य 'सैनी' को अपनाया. भारत की जनगणना देखें, 1961, खंड 14, 5 अंक, 7 पी, रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय, भारत की जनगणना को देखें. पंजाब के सैनी इन नव सैनियों के साथ ब्याह नहीं करते. वर्तमान पंजाब के सैनी एक आगे समुदाय के रूप में माना जाता है. पंजाब में 68 ओबीसी की सूची देखें[3]
  75. ऊपर जायें "एक उप राजपूतों के बीच में मान्यता प्राप्त वर्ग है जो दूसरों की लघु कृषि इन जातियों में शामिल हैं, जो सिर्वी, माली और कल्लू या पटेल." मारवाड़ की जातियां, 1891 की जनगणना रिपोर्ट, पी vi, हरदयाल सिंह, मिशिगन विश्वविद्यालय से पुस्तक खजाना, मूल द्वारा प्रकाशित
  76. ऊपर जायें डब्ल्यू चिचेल प्लोडेन, (1883), भारत ब्रिटिश जनगणना, पी. और स्पोटिसवुडे आयर पर लिया 17 फ़रवरी 1881, खंड III, लंदन, 256
  77. ऊपर जायें "सबसे मेहनती रेन, माली, सैनी, लुबाना, और जाट ... माली मुख्यतः बागवान हैं. सैनी, उप-पहाड़ी इलाकों पर कब्जा है, और गन्ना बड़े पैमाने पर होता है. उनके गांव की भूमि जोत के एक उच्च राज्य में हमेशा से रहे हैं." भारत और पूर्वी और दक्षिणी एशिया, वाणिज्यिक, औद्योगिक और वैज्ञानिक के साइक्लोपीडिया: खनिज, वनस्पति के उत्पाद, और पशु राज्यों, उपयोगी कला और विनिर्माण, एडवर्ड बाल्फोर, 118 पी, बर्नार्ड क्वारित्च द्वारा प्रकाशित, 1885, आइटम नोट्स: v 0.3, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मूल
  78. ऊपर जायें उत्तरी भारत की जाति व्यवस्था, पीपी 25, 174, 166, 247, ब्लंट, CIE OBE, एस चांद एंड कं, 1969
  79. ऊपर जायें भारत के लोग: हरियाणा, पीपी 432, 433, लेखक: टीएम डाक, संपादकों: कुमार सुरेश सिंह, मदन लाल शर्मा, एके भाटिया की भारत मानव विज्ञान सर्वेक्षण, द्वारा प्रकाशित मनोहर ने भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण की ओर से प्रकाशित प्रकाशक, 1994