गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

समाज की कुलदेविया गौत्र वार

क्षत्रिय वंश की कुलदेवियां प्राचीन समय में भारत में वर्ण व्यवस्था थी, जिसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र इन चार वर्णों में बाँटा गया था। यह वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गई तथा इन वर्णों के स्थान पर कई जातियाँ व उपजातियाँ बन गई। क्षत्रियों का कार्य समाज की रक्षा करना था। भारतीय उपमहाद्वीप की बहुत प्रभावशाली जाति है। समाज की अपनी कुल देवियों की मान्यता है. जिनकी यह पूजा करते है और जिनसे उन्हें शक्ति मिलती है। 
इन सभी कुल शाखाओं ने नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रखने के लिए कुल देवियों को स्वीकार किया। ये कुलदेवियां कुल के अनुसार निम्नलिखित हैं- 

खंगार - गजानन माता, 
 चावड़ा - चामुंडा माता, 
 छोकर - चण्डी केलावती माता, 
 धाकर - कालिका माता, 
 निमीवंश - दुर्गा माता, 
 परमार - सच्चियाय माता, 
 आसोपा सांखला - जाखन माता, 
 पुरु - महालक्ष्मी माता, 
 बुन्देला - अन्नपूर्णा माता, 
 इन्दा - चामुण्डा माता, 
 उज्जेनिया - कालिका माता, 
 उदमतिया - कालिका माता, 
 कछवाहा - जमवाय माता, 
 कणड़वार - चण्डी माता, 
 कलचूरी - विंध्यवासिनी माता, 
 काकतिय - चण्डी माता, 
 काकन - दुर्गा माता, 
 किनवार - दुर्गा माता, 
 केलवाडा - नंदी माता, 
 कौशिक - योगेश्वरी माता, 
 गर्गवंश कालिका माता, 
 गोंड़ - महाकाली माता, 
 गोतम - चामुण्डा माता, 
 गोहिल - बाणेश्वरी माता, 
 चंदेल - मेंनिया माता, 
 चंदोसिया - दुर्गा माता, 
 चंद्रवंशी - गायत्री माता, 
 चुड़ासमा -अम्बा भवानी माता, 
 चौहान - आशापूर्णा माता, 
 जाडेजा - आशपुरा माता, 
 जादोन - कैला देवी (करोली), 
 जेठंवा - चामुण्डा माता, 
 झाला - शक्ति माता, 
 तंवर - चिलाय माता, 
 तिलोर - दुर्गा माता, 
 दहिया - कैवाय माता, 
 दाहिमा - दधिमति माता, 
 दीक्षित - दुर्गा माता, 
 देवल - सुंधा माता, 
 दोगाई - कालिका (सोखा) माता, 
 नकुम - वेरीनाग बाई, 
 नाग - विजवासिन माता, 
 निकुम्भ - कालिका माता, 
 निमुडी - प्रभावती माता, 
 निशान - भगवती दुर्गा माता, 
 नेवतनी - अम्बिका भवानी,
 पड़िहार - चामुण्डा माता, 
 परिहार - योगेश्वरी माता, 
 बड़गूजर - कालिका (महालक्ष्मी) माँ, 
 बनाफर - शारदा माता, 
 बिलादरिया - योगेश्वरी माता, 
 बैस - कालका माता, 
 भाटी - स्वांगिया माता, 
 भारदाज - शारदा माता, 
 भॉसले - जगदम्बा माता, 
 यादव - योगेश्वरी माता, 
 राउलजी - क्षेमकल्याणी माता, 
 राठौड़ - नागणेचिया माता, 
 रावत - चण्डी माता, 
 लोह - थम्ब चण्डी माता, 
 लोहतमी - चण्डी माता, 
 लोहतमी - चण्डी माता,
वाघेला - अम्बाजी माता, 
 वाला - गात्रद माता, 
विसेन - दुर्गा माता, 
शेखावत - जमवाय माता, 
 सरनिहा - दुर्गा माता, 
 सिंघेल - पंखनी माता, 
 सिसोदिया - बाणेश्वरी माता, 
 सीकरवाल - कालिका माता, 
 सेंगर - विन्ध्यवासिनि माता, 
 सोमवंश - महालक्ष्मी माता, 
 सोलंकी - खीवज माता, 
 स्वाति - कालिका माता, 
 हुल - बाण माता, 
 हैध्य - विंध्यवासिनी माता, 
 मायला - इन्जु माता, 
 सिकरवार क्षत्रियों की कुलदेवी कालिका माता. 
 हरदोई के भवानीपुर गांव में कालिका माता का प्राचीन मंदिर है। सिकरवार क्षत्रियों के घरों में होने वाले मांगलिक अवसरों पर अब भी सबसे पहले कालिका माता को याद किया जाता है। यह मंदिर नैमिषारण्य से लगभग 3 किलोमीटर दूर कोथावां ब्लाक में स्थित है। कहा जाता है कि पहले गोमती नदी मंदिर से सट कर बहती थी। वर्तमान में गोमती अपना रास्ता बदल कर मंदिर से दूर हो गयी है, लेकिन नदी की पुरानी धारा अब भी एक झील के रूप में मौजूद है। बुजुर्ग बताते हैं कि पेशवा बाजीराव द्वितीय को 1761 में अहमद शाह अब्दाली ने युद्ध क्षेत्र में हरा दिया था। इसके बाद बाजीराव ने अपना शेष जीवन गोमती तट के इस निर्जन क्षेत्र में बिताया। चूंकि वह देवी के साधक थे। इस कारण मंदिर स्थल को भवानीपुर नाम दिया गया। पेशवा ने नैमिषारण्य के देव देवेश्वर मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया था। अब्दाली से मिली पराजय के बाद उनका शेष जीवन यहां माता कालिका की सेवा और साधना में बीता। उनकी समाधि मंदिर परिसर में ही स्थित है। यहां नवरात्र के दिनों में मेला लगता है। मेला में भवानीपुर के अलावा जियनखेड़ा, महुआ खेड़ा, काकूपुर, जरौआ, अटिया और कोथावां के ग्रामीण पहुंचते हैं। यहां सिकरवार क्षत्रिय एकत्र होकर माता कालिका की विशेष साधना करते हैं।

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