महात्मा जोतीराव फुले का 192वाँ जन्म दिवस 11 अपै्रल
महात्मा फुले के आदर्शोे का मानव समाज
हमारे देश में महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, मार्टिन ल्यूथर किंग, गुरूनानक, संत कबीर, जैसे स्वप्न द्रष्टा समाज सुधारक हुऐ उन्हीं के उत्तराधिकारी सामाजिक क्रांति के जनक महात्मा जोतीराव फुले 11 अप्रैल 1827 को माली गोविन्दराव के यहाँ जन्म लिया। कहा जाता है कि ‘‘जैसी कथनी, वैसी करनी’’ के अनुसार चलने वाले सदियों में ही जन्म लेते है।
क्रांति का मतलब ‘आमूलचूल परिवर्तन की चिंगारी’ जिसमें फुले ने समाज के पिछड़ो, शोषितों, दलितों पीड़ितो उपेक्षितांे, तिरस्कृतों, बहिष्कृतों का व्रत लेकर उनका जीवन सुखी बनाने, शुद्र, अछूत एवं स्त्री जाति का उद्धार करने, शिक्षित करने में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। कार्ल माक्र्स ने विश्व के मजदूरों का उद्धार का उद्घोष किया वहीं फुले ने मजदूरो के साथ किसानों, खेतीहरांे के उद्धार के साथ तत्कालीन वैदिक सामाजिक असमानता की व्यवस्था में मानवता मय व्यवस्था की नींव रखने में योगदान दिया।
महात्मा जोतीराव फुले का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष पूर्ण रहा 1 वर्ष की आयु के पूर्व ही माता चिमना बाई का निधन के बाद मौसेरी बहन सगुणाबाई क्षीरसागर ने लालन पालन किया, 14 वर्ष की आयु में 9 वर्ष की सावित्री बाई से विवाह हुआ। तत्कालीन समय में शिक्षा-पिछड़ांे-दलितांे को पाने का अधिकार नहीं था, फुले की मौसेरी बहन जो एक अंग्रेज के यहाँ काम करती थी, उन्होने मिशनरी स्कूल में भर्ती करवाया, जिसका कड़ा विरोध होने के कारण पिता ने स्कूल भेजना बंद कर दिया। पुनः 14 वर्ष की आयु में स्टाकिश मिशन की अंग्रेजी पाठशाला में विरोध के बाद भी पढ़ने गये व 1847 में अंतिम कक्षा सातवीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अपने ब्राह्मण मित्र की बारात में निमंत्रण पाकर जाने पर अपमानित हुऐ। शिक्षा को लेकर पिता ने घर से निकाला 1 भाई राजाराम एवं भाभी की प्रताड़ना सही। हत्या के प्रयासांे को विफल किया। पत्नि सावित्री बाई शिक्षिका जब पढ़ाने स्कूल जाती आती थी, तो उनपर कीचड़ उछालना, गन्दी गालियां खाना, अपमानित होने पर भी अपना लक्ष्य निभाया। पिछड़ी छोटी जाति के होने के कारण शिक्षा पाने, वेदशास्त्र, पुराणों को पढ़ने, सुनने से अधिकार विहीन होेने के बाद भी संघर्ष कर शिक्षित हुऐ, व सभी धर्मग्रन्थो का अध्ययन किया। इस प्रकार फुले कठोर संघर्ष करते हुऐ अपनी राह पर आगे बढ़ने में सफल हुऐ।
महात्मा फुले का जीवन, उनके साहित्य, उनके कार्याें का तत्कालीन समय में जो प्रभाव पड़ा उससे उनके अनेक अनुयायी, सहयोगी साथी सभी धर्माें, जातियों वर्णों के लोग थे, उनका सम्पूर्ण लेखन मराठी और अंग्रेजी भाषा में हुआ जिसका प्रकाशन भी हुआ। उनके साहित्य को पढ़कर समाज में व्याप्त अंधविश्वास कुरीतियाँ, जातिभेद, छूआछूत (अश्पृस्यता), समान रूप से शिक्षा पाने का अधिकार, उन्होंने स्वयं मानव समाज को दिलाया। इसी का परिणाम है, कि महिलाओं को शिक्षा पाने का अधिकार मिला, पुरूषों के समान काम-धन्धा करने का अधिकार मिला, पिछड़ों को आरक्षण मिला। बाबा साहेब भीमराव अम्बेड़कर शिक्षित होकर बेरिस्टर बने, राजनेता बने, संविधान निर्माता बने, उन्होंने फुले को अपना गुरू माना। महात्मा गाँधी ने फुले द्वारा किये गये कार्याे को आदर्श मानकर अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। गांधी ने उन्हे असली महात्मा माना। जस्टिस रानाड़े ने प्रारम्भ में फुले के कार्यो का विरोध किया किन्तु उनकी बहन विधवा हुई तब फुले ने जो पुर्नविवाह प्रारंभ कराये थे, रानाड़े ने भी फुले के आदर्श अपनाकर बहन का जीवन साथी चुना एवं उनके द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज में कार्य किया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ब्राह्मण होने के नाते फुले के अभियानों के विरोधी थे, किन्तु जब उन्हे जेल से बाहर निकालने हेतु फुले ने जमानत देकर आजाद कराने पर उनके अहसानमंद हो गये।
वर्तमान में जो गैर ब्राह्मण समाज चाहे वे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, मुस्लिम, जाति धर्म के लोगों ने महात्मा फुले की सामाजिक, शैक्षणिक क्रांति के कारण समतामय समाज के जो अधिकार प्राप्त किये, ये सभी लगभग 85 प्रतिशत आबादी फुले की ऋणी है। महिलाओं पर गैर मानवीय प्रतिबन्ध लगे थे, विधवा विवाह, सतीप्रथा, विधवाओं को गर्भवती होने पर उनकी गर्भपात रोककर जन्म लेे वाली सन्तानांे का लालन पालन, शिक्षा पाने का अधिकार मिला। मजदूरांे को मेद्याजी लोखण्डे के माध्यम से संगठित होकर ट्रेड यूनियन अधिकार दिलाना कृषि अनुसंधान, जल संग्रह कर पीने एवं सिंचाई के लिये उपयोग में लेना। ऐसे आदर्श फुले ने स्थापित किये।
फिर समाज में व्याप्त कुरीतियां, रीति-रिवाज, फिजूल-खर्ची, धार्मिक आड़म्बर, अंधविश्वास, शोषणमय नारकीय जीवन से छुटकारा दिलाने, साहित्य रचना करने का ऐसा उदाहरण फुले के अलावा इतिहास में मिलना कठिन है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि को रायगढ़ के किले में खोजकर उनको महिमा मंडित करने हेतु अमर पवाड़ा लिखकर फुले की आश्चर्य जनक देन है।
फुले के आदर्शो का समाज आजादी के बाद बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरू की डिस्कवरी आॅफ इंडिया, महात्मा गांधी के फुले वादी आदर्शों पर चलना, छत्रपति शाहू महाराज द्वारा अपने राज्य में आरक्षण देना। पेरियार द्वारा फुले की जीवनी एवं कार्यो से समाज सुधार करना। काशीराम द्वारा बहुजनों को जागृत कर सत्ता एवं संगठन के लिये दबे, कुचले पिछड़े वर्गों को अधिकार सम्पन्न बनाना। अधिकार विहीन जातियों के लोगों को फुले के आदर्शों को समझकर उन्हें अपनाना। मानव समाज में सब को समानता से संगठन बनाने, सत्ता में भागीदारी करने समाज में जागृति लाने, महिलाओं को भी शिक्षित होकर पुरूषों के समान आगे बढ़ने जैसे आदर्श फुले की महान देन है। फुले दम्पत्ति को भारतरत्न पाने की सम्पूर्ण पात्रता है।
महात्मा जोजीराव फुले का 28 नवम्बर 1890 को परिनिर्वाण हुआ। हम उनके आदर्शो को अपना कर असली मानवता का जीवन जी सकते है।
जय-ज्योति - जय क्रांति
(रामनारायण चैहान)
महासचिव
महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
।.103ए गाजीपुर, दिल्ली- 96
मों. नं.- 9990952171
महात्मा फुले के आदर्शोे का मानव समाज
हमारे देश में महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, मार्टिन ल्यूथर किंग, गुरूनानक, संत कबीर, जैसे स्वप्न द्रष्टा समाज सुधारक हुऐ उन्हीं के उत्तराधिकारी सामाजिक क्रांति के जनक महात्मा जोतीराव फुले 11 अप्रैल 1827 को माली गोविन्दराव के यहाँ जन्म लिया। कहा जाता है कि ‘‘जैसी कथनी, वैसी करनी’’ के अनुसार चलने वाले सदियों में ही जन्म लेते है।
क्रांति का मतलब ‘आमूलचूल परिवर्तन की चिंगारी’ जिसमें फुले ने समाज के पिछड़ो, शोषितों, दलितों पीड़ितो उपेक्षितांे, तिरस्कृतों, बहिष्कृतों का व्रत लेकर उनका जीवन सुखी बनाने, शुद्र, अछूत एवं स्त्री जाति का उद्धार करने, शिक्षित करने में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। कार्ल माक्र्स ने विश्व के मजदूरों का उद्धार का उद्घोष किया वहीं फुले ने मजदूरो के साथ किसानों, खेतीहरांे के उद्धार के साथ तत्कालीन वैदिक सामाजिक असमानता की व्यवस्था में मानवता मय व्यवस्था की नींव रखने में योगदान दिया।
महात्मा जोतीराव फुले का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष पूर्ण रहा 1 वर्ष की आयु के पूर्व ही माता चिमना बाई का निधन के बाद मौसेरी बहन सगुणाबाई क्षीरसागर ने लालन पालन किया, 14 वर्ष की आयु में 9 वर्ष की सावित्री बाई से विवाह हुआ। तत्कालीन समय में शिक्षा-पिछड़ांे-दलितांे को पाने का अधिकार नहीं था, फुले की मौसेरी बहन जो एक अंग्रेज के यहाँ काम करती थी, उन्होने मिशनरी स्कूल में भर्ती करवाया, जिसका कड़ा विरोध होने के कारण पिता ने स्कूल भेजना बंद कर दिया। पुनः 14 वर्ष की आयु में स्टाकिश मिशन की अंग्रेजी पाठशाला में विरोध के बाद भी पढ़ने गये व 1847 में अंतिम कक्षा सातवीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अपने ब्राह्मण मित्र की बारात में निमंत्रण पाकर जाने पर अपमानित हुऐ। शिक्षा को लेकर पिता ने घर से निकाला 1 भाई राजाराम एवं भाभी की प्रताड़ना सही। हत्या के प्रयासांे को विफल किया। पत्नि सावित्री बाई शिक्षिका जब पढ़ाने स्कूल जाती आती थी, तो उनपर कीचड़ उछालना, गन्दी गालियां खाना, अपमानित होने पर भी अपना लक्ष्य निभाया। पिछड़ी छोटी जाति के होने के कारण शिक्षा पाने, वेदशास्त्र, पुराणों को पढ़ने, सुनने से अधिकार विहीन होेने के बाद भी संघर्ष कर शिक्षित हुऐ, व सभी धर्मग्रन्थो का अध्ययन किया। इस प्रकार फुले कठोर संघर्ष करते हुऐ अपनी राह पर आगे बढ़ने में सफल हुऐ।
महात्मा फुले का जीवन, उनके साहित्य, उनके कार्याें का तत्कालीन समय में जो प्रभाव पड़ा उससे उनके अनेक अनुयायी, सहयोगी साथी सभी धर्माें, जातियों वर्णों के लोग थे, उनका सम्पूर्ण लेखन मराठी और अंग्रेजी भाषा में हुआ जिसका प्रकाशन भी हुआ। उनके साहित्य को पढ़कर समाज में व्याप्त अंधविश्वास कुरीतियाँ, जातिभेद, छूआछूत (अश्पृस्यता), समान रूप से शिक्षा पाने का अधिकार, उन्होंने स्वयं मानव समाज को दिलाया। इसी का परिणाम है, कि महिलाओं को शिक्षा पाने का अधिकार मिला, पुरूषों के समान काम-धन्धा करने का अधिकार मिला, पिछड़ों को आरक्षण मिला। बाबा साहेब भीमराव अम्बेड़कर शिक्षित होकर बेरिस्टर बने, राजनेता बने, संविधान निर्माता बने, उन्होंने फुले को अपना गुरू माना। महात्मा गाँधी ने फुले द्वारा किये गये कार्याे को आदर्श मानकर अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। गांधी ने उन्हे असली महात्मा माना। जस्टिस रानाड़े ने प्रारम्भ में फुले के कार्यो का विरोध किया किन्तु उनकी बहन विधवा हुई तब फुले ने जो पुर्नविवाह प्रारंभ कराये थे, रानाड़े ने भी फुले के आदर्श अपनाकर बहन का जीवन साथी चुना एवं उनके द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज में कार्य किया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ब्राह्मण होने के नाते फुले के अभियानों के विरोधी थे, किन्तु जब उन्हे जेल से बाहर निकालने हेतु फुले ने जमानत देकर आजाद कराने पर उनके अहसानमंद हो गये।
वर्तमान में जो गैर ब्राह्मण समाज चाहे वे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, मुस्लिम, जाति धर्म के लोगों ने महात्मा फुले की सामाजिक, शैक्षणिक क्रांति के कारण समतामय समाज के जो अधिकार प्राप्त किये, ये सभी लगभग 85 प्रतिशत आबादी फुले की ऋणी है। महिलाओं पर गैर मानवीय प्रतिबन्ध लगे थे, विधवा विवाह, सतीप्रथा, विधवाओं को गर्भवती होने पर उनकी गर्भपात रोककर जन्म लेे वाली सन्तानांे का लालन पालन, शिक्षा पाने का अधिकार मिला। मजदूरांे को मेद्याजी लोखण्डे के माध्यम से संगठित होकर ट्रेड यूनियन अधिकार दिलाना कृषि अनुसंधान, जल संग्रह कर पीने एवं सिंचाई के लिये उपयोग में लेना। ऐसे आदर्श फुले ने स्थापित किये।
फिर समाज में व्याप्त कुरीतियां, रीति-रिवाज, फिजूल-खर्ची, धार्मिक आड़म्बर, अंधविश्वास, शोषणमय नारकीय जीवन से छुटकारा दिलाने, साहित्य रचना करने का ऐसा उदाहरण फुले के अलावा इतिहास में मिलना कठिन है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि को रायगढ़ के किले में खोजकर उनको महिमा मंडित करने हेतु अमर पवाड़ा लिखकर फुले की आश्चर्य जनक देन है।
फुले के आदर्शो का समाज आजादी के बाद बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरू की डिस्कवरी आॅफ इंडिया, महात्मा गांधी के फुले वादी आदर्शों पर चलना, छत्रपति शाहू महाराज द्वारा अपने राज्य में आरक्षण देना। पेरियार द्वारा फुले की जीवनी एवं कार्यो से समाज सुधार करना। काशीराम द्वारा बहुजनों को जागृत कर सत्ता एवं संगठन के लिये दबे, कुचले पिछड़े वर्गों को अधिकार सम्पन्न बनाना। अधिकार विहीन जातियों के लोगों को फुले के आदर्शों को समझकर उन्हें अपनाना। मानव समाज में सब को समानता से संगठन बनाने, सत्ता में भागीदारी करने समाज में जागृति लाने, महिलाओं को भी शिक्षित होकर पुरूषों के समान आगे बढ़ने जैसे आदर्श फुले की महान देन है। फुले दम्पत्ति को भारतरत्न पाने की सम्पूर्ण पात्रता है।
महात्मा जोजीराव फुले का 28 नवम्बर 1890 को परिनिर्वाण हुआ। हम उनके आदर्शो को अपना कर असली मानवता का जीवन जी सकते है।
जय-ज्योति - जय क्रांति
(रामनारायण चैहान)
महासचिव
महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
।.103ए गाजीपुर, दिल्ली- 96
मों. नं.- 9990952171
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