सैनी घोष

सैनी, माली, शाक्य, मौर्य, कुशवाहा आदि नामों से पुकारे जाने वाले देश-विदेश में रह रहे सम्पूर्ण समाज की आवाज के रूप में सैनी घोष प्रस्तुत है। इस साईट पर आपका तहेदिल से स्वागत है। सैनी घोष सामाजिक जागृति का अग्रणी ब्लॉग-वेबसाईट है। यह संगठन, शक्ति, प्रतिभा-सम्मान, काव्य, सामाजिक गतिविधियां, सामाजिक विकास , कार्यक्रमों, आन्दोलनों, अभियानों आदि विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित विवरण, समाचार, आलेख, वैवाहिक विवरण आदि प्रकाशित करता है।

रविवार, 30 दिसंबर 2018

परमार वंश
परमार वंश का आरम्भ नवीं शताब्दी के प्रारम्भ में नर्मदा नदी के उत्तर मालवा (प्राचीन अवन्ती) क्षेत्र में उपेन्द्र अथवा कृष्णराज द्वारा हुआ था।

आज ये पाकिस्तान से लेकर हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र तक है इन्ही में सोढा राजपूत आते है वही भायल सांखला ये पंवार नाम से भी जाने जाते है
वंश शासक-  उपेन्द् वैरसिंह प्रथम, सीयक प्रथम, वाक्पति प्रथम एवं वैरसिंह द्वितीय थे।
परमारों की प्रारम्भिक राजधानी उज्जैन में थी पर कालान्तर में राजधानी ‘धार’, मध्य प्रदेश में स्थानान्तरित कर ली गई परमार वंश में आठ राजा हुए, जिनमें सातवाँवाक्पति मुंज (973 से 995 ई.) और आठवाँ मुंज का भतीजा भोज (1018 से 1060 ई.) सबसे प्रतापी थी।
मुंज अनेक वर्षों तक कल्याणी के चालुक्यराजाओं से युद्ध करता रहा और 995 ई. में युद्ध में ही मारा गया। उसका उत्तराधिकारी भोज (1018-1060 ई.) गुजरात तथा चेदि के राजाओं की संयुक्त सेनाओं के साथ युद्ध में मारा गया। उसकी मृत्यु के साथ ही परमार वंश का प्रताप नष्ट हो गया।
 यद्यपि स्थानीय राजाओं के रूप में परमार राजा तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ तक राज्य करते रहे, अंत में तोमरों ने उनका उच्छेद कर दिया।
परमार राजा विशेष रूप से वाक्पति मुंज और भोज, बड़े विद्वान थे और विद्वानों एवं कवियों के आश्रयदाता थे।
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परमार वंश उत्पत्ति

===================परमार वंश के गोत्र-प्रवरादि===================

वंश – अग्निवंश
कुल – सोढा परमार
गोत्र – वशिष्ठ
प्रवर – वशिष्ठ, अत्रि ,साकृति
वेद – यजुर्वेद
उपवेद – धनुर्वेद
शाखा – वाजसनयि
प्रथम राजधानी – उज्जेन (मालवा)
कुलदेवी – सच्चियाय माता
इष्टदेव – सूर्यदेव महादेव
तलवार – रणतरे
ढाल – हरियण
निशान – केसरी सिंह
ध्वजा – पीला रंग
गढ – आबू
शस्त्र – भाला
गाय – कवली
वृक्ष – कदम्ब,पीपल
नदी – सफरा (क्षिप्रा)
पाघ – पंचरंगी
राजयोगी – भर्तहरी
संत – जाम्भोजी
पक्षी – मयूर
प्रमुख गादी – धार नगरी

परमार वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था। परमार गोत्र सुर्यवंशी राजपूतों में आता है। इस राजवंश का अधिकार धार और उज्जयिनी राज्यों तक था। ये ९वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक शासन करते रहे।

====परिचय=============================

परमार एक राजवंश का नाम है, जो मध्ययुग के प्रारंभिक काल में महत्वपूर्ण हुआ। चारण कथाओं में इसका उल्लेख राजपूत जाति के एक गोत्र रूप में मिलता है। परमार सिंधुराज के दरबारी कवि पद्मगुप्त परिमल ने अपनी पुस्तक 'नवसाहसांकचरित' में एक कथा का वर्णन किया है। ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिये भाबू पर्वत के अग्निकुंड से एक वीर पुरुष का निर्माण किया जिनके पूर्वज सुर्यवंशी क्षत्रिय थे । इस कारण सुर्यवंशी उज्जयिनी क्षत्रिय भी बुलाय ज। ते है। इस वीर पुरुष का नाम परमार रखा गया, जो इस वंश का संस्थापक हुआ और उसी के नाम पर वंश का नाम पड़ा। परमार के अभिलेखों में बाद को भी इस कहानी का पुनरुल्लेख हुआ है। इससे कुछ लोग यों समझने लगे कि परमारों का मूल निवासस्थान आबू पर्वत पर था, जहाँ से वे पड़ोस के देशों में जा जाकर बस गए। किंतु इस वंश के एक प्राचीन अभिलेख से यह पता चलता है कि परमार दक्षिण के राष्ट्रकूटों के उत्तराधिकारी थे।

परमार परिवार की मुख्य शाखा नवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से मालव में धारा को राजधानी बनाकर राज्य करती थी और इसका प्राचीनतम ज्ञात सदस्य उपेंद्र कृष्णराज था। इस वंश के प्रारंभिक शासक दक्षिण के राष्ट्रकूटों के सामंत थे। राष्ट्रकूटों के पतन के बाद सिंपाक द्वितीय के नेतृत्व में यह परिवार स्वतंत्र हो गया। सिपाक द्वितीय का पुत्र वाक्पति मुंज, जो 10वीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश में हुआ, अपने परिवार की महानता का संस्थापक था। उसने केवल अपनी स्थिति ही सुदृढ़ नहीं की वरन्‌ दक्षिण राजपूताना का भी एक भाग जीत लिया और वहाँ महत्वपूर्ण पदों पर अपने वंश के राजकुमारों को नियुक्त कर दिया। उसका भतीजा भोज, जिसने सन्‌ 5000 से 1055 तक राज्य किया और जो सर्वतोमुखी प्रतिभा का शासक था, मध्युगीन सर्वश्रेष्ठ शासकों में गिना जाता था। भोज ने अपने समय के चौलुभ्य, चंदेल, कालचूरी और चालुक्य इत्यादि सभी शक्तिशाली राज्यों से युद्ध किया। बहुत बड़ी संख्या में विद्वान्‌ इसके दरबार में दयापूर्ण आश्रय पाकर रहते थे। वह स्वयं भी महान्‌ लेखक था और इसने विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखी थीं, ऐसा माना जाता है। उसने अपने राज्य के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए।

भोज की मृत्यु के पश्चात्‌ चोलुक्य कर्ण और कर्णाटों ने मालव को जीत लिया, किंतु भोज के एक संबंधी उदयादित्य ने शत्रुओं को बुरी तरह पराजित करके अपना प्रभुत्व पुन: स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उदयादित्य ने मध्यप्रदेश के उदयपुर नामक स्थान में नीलकंठ शिव के विशाल मंदिर का निर्माण कराया था। उदयादित्य का पुत्र जगद्देव बहुत प्रतिष्ठित सम्राट् था। वह मृत्यु के बहुत काल बाद तक पश्चिमी भारत के लोगों में अपनी गौरवपूर्ण उपलब्धियों के लिय प्रसिद्ध रहा। मालव में परमार वंश के अंत अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1305 ई. में कर दिया गया।

परमार वंश की एक शाखा आबू पर्वत पर चंद्रावती को राजधानी बनाकर, 10वीं शताब्दी के अंत में 13वीं शताब्दी के अंत तक राज्य करती रही। इस वंश की दूसरी शाखा वगद (वर्तमान बाँसवाड़ा) और डूंगरपुर रियासतों में उट्ठतुक बाँसवाड़ा राज्य में वर्त्तमान अर्थुना की राजधानी पर 10वीं शताब्दी के मध्यकाल से 12वीं शताब्दी के मध्यकाल तक शासन करती रही। वंश की दो शाखाएँ और ज्ञात हैं। एक ने जालोर में, दूसरी ने बिनमाल में 10वीं शताब्दी के अंतिम भाग से 12वीं शताब्दी के अंतिम भाग तक राज्य किया।

==========================राजा============================

उपेन्द्र (800 – 818)
वैरीसिंह प्रथम (818 – 843)
सियक प्रथम (843 – 893)
वाकपति (893 – 918)
वैरीसिंह द्वितीय (918 – 948)
सियक द्वितीय (948 – 974)
वाकपतिराज (974 – 995)
सिंधुराज(995 – 1010)
भोज प्रथम (1010 – 1055),
समरांगण सूत्रधार के रचयिताजयसिंह प्रथम (1055 – 1060)
उदयादित्य (1060 – 1087)
लक्ष्मणदेव (1087 – 1097)
नरवर्मन (1097 – 1134)
यशोवर्मन (1134 – 1142)
जयवर्मन प्रथम (1142 – 1160)
विंध्यवर्मन (1160 – 1193)
सुभातवर्मन (1193 – 1210)
अर्जुनवर्मन I (1210 – 1218)
देवपाल (1218 – 1239)
जयतुगीदेव (1239 – 1256)
जयवर्मन द्वितीय (1256 – 1269)
जयसिंह द्वितीय (1269 – 1274)
अर्जुनवर्मन द्वितीय (1274 – 1283)
भोज द्वितीय (1283 – ?)
महालकदेव (? – 1305)
संजीव सिंह परमार (1305 - 1327)

-परमार वंश के दो महान सम्राट----
मित्रो आज हम किसी से भी पुछते है कि राजा विक्रमादित्य और राजा भोज की प्रतिमाएँ क्यों नहीं हैं?
उनके म्यूजियम उनके स्मारक क्यों नहीं है ?
जब हम कहते हैं राजनेता गलत है पर राजनेताओं के अंध भक्त दुहाई देते हैं कि वो बहुत पहले थे ऐसा कहा जाता है,
लेकिन यह गलत है चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य और महाराजा भोज अगर ना होते तो हमारा आज नहीं होता।
मित्रो राजा विक्रमादित्य और राजा भोज की प्रतिमाएँ बनाई जाए।आज देश में ऐसे नेताओं की प्रतिमा है जो कि उस काबिल भी नहीं है।
और राजा महाराजा की बात करे तो महाराणा प्रताप शिवाजी महाराज भी महानतम यौद्धाओं में हैं,उनकी प्रतिमाएँ है,हम ने उनका तो सम्मान कर दिया पर भारतीय इतिहास के दो स्तंभ राजा विक्रमादित्य और राजा भोज जिनके उपर देश टिका हुआ है हम ने उन्हीं को भुला दिया।

======शूरवीर सम्राट विक्रमादित्य=====

अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य को एतिहासिक शासक न मानकर एक मिथक मानते हैं।
जबकि कल्हण की राजतरंगनी,कालिदास,नेपाल की वंशावलिया और अरब लेखक,अलबरूनी उन्हें वास्तविक महापुरुष मानते हैं।विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में वर्णन मिलता है।

उनके समय शको ने देश के बड़े भू भाग पर कब्जा जमा लिया था।विक्रम ने शको को भारत से मार भगाया और अपना राज्य अरब देशो तक फैला दिया था। उनके नाम पर विक्रम सम्वत चलाया गया। विक्रमादित्य ईसा मसीह के समकालीन थे.विक्रमादित्य के समय ज्योतिषाचार्य मिहिर, महान कवि कालिदास थे।
राजा विक्रम उनकी वीरता, उदारता, दया, क्षमा आदि गुणों की अनेक गाथाएं भारतीय साहित्य में भरी पड़ी हैं।
इनके पिता का नाम गन्धर्वसेन था एवं प्रसिद्ध योगी भर्तहरी इनके भाई थे।

विक्रमादित्य के इतिहास को अंग्रेजों ने जान-बूझकर तोड़ा और भ्रमित किया और उसे एक मिथ‍कीय चरित्र बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि विक्रमादित्य उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे,जबकि अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि ईसा मसीह के काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी। दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे। विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। इनमें कालिदास भी थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।

यह निर्विवाद सत्य है कि सम्राट विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शासक थे।

==हिन्दू हृदय सम्राट परमार कुलभूषण मालवा नरेश सम्राट महाराजा भोज ==

महाराजा भोज के जीवन में हिन्दुत्व की तेजस्विता रोम-रोम से प्रकट हुई ,इनके चरित्र और गाथाओं का स्मरण गौरवशाली हिंदुत्व का दर्शन कराता है।
महाराजा भोज इतिहास प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे व सिंधुराज के पुत्र थे । उनका जन्म सन् 980 में महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैनी में हुआ।राजा भोज चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे।पन्द्रह वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्य अभिषेक मालवा के राजसिंहासन पर हुआ।राजा भोज ने ग्यारहवीं शताब्दी में धारानगरी (धार) को ही नही अपितु समस्त मालवा और भारतवर्ष को अपने जन्म और कर्म से गौरवान्वित किया।

महाप्रतापी राजा भोज के पराक्रम के कारण उनके शासन काल में भारत पर साम्राज्य स्थापित करने का दुस्साहस कोई नहीं कर सका.राजा भोज ने भोपाल से 25 किलोमीटर दूर भोजपूर शहर में विश्व के सबसे बडे शिवलिंग का निर्माण कराया जो आज भोजेश्रवर के नाम से प्रसिद्ध है जिसकी उंचाई 22 फीट है । राजा भोज ने छोटे बडे लाखों मंदिर बनवाये , उन्होंने हजारों तालाब बनवाये , सैकडों नगर बसाये,कई दुर्ग बनवाये और अनेकों विद्यालय बनवाये।

राजा भोज ने ही भारत को नई पहचान दिलवाई उन्होंने ही इस देश का नाम हिंदू धर्म के नाम पर हिंदुस्तान रखा।राजा भोज ने कुशल शासक के रुप में जो हिन्दुओं को संगठित कर जो महान कार्य किया उससे राजा भोज के 250 वर्षो के बाद भी मुगल आक्रमणकारियों से हिंदुस्तान की रक्षा होती रही । राजा भोज भारतीय इतिहास के महानायक थे.

राजा भोज भारतीय इतिहास के एकमात्र ऐसे राजा हुए, जो शौर्य एवं पराक्रम के साथ धर्म विज्ञान साहित्य तथा कला के ज्ञाता थे।राजा भोज ने माँ सरस्वती की आराधना व हिन्दू जीवन दर्शन एवं संस्कृत के प्रचार- प्रसार हेतु सन् 1034 में माँ सरस्वती मंदिर भोजशाला का निर्माण करवाया।माँ सरस्वती के अनन्य भक्त राजा भोज को माँ सरस्वती का अनेक बार साक्षातकार हुआ,
माँ सरस्वती की आराधना एवं उनके साधकों की साधना के लिए स्वंय की परिकल्पना एवं वास्तु से विश्व के सर्वश्रेष्ठ मंदिर का निर्माण धार में कराया गया जो आज भोजशाला के नाम से प्रसिद्ध है । उन्होंने भोजपाल (भोपाल) में भारत का सबसे बडा तालाब का निर्माण कराया जो आज भोजताल के नाम से प्रसिद्ध है.
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 मौर्य राजवंश
मौर्य राजवंश (322-185 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसने 137 वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री आचार्य चाणक्य को दिया जाता है, जिन्होंने नंदवंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरू हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। 
चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फ़ायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। उसने यूनानियों को मार भगाया। सेल्यूकस को अपनी कन्या का विवाह चंद्रगुप्त से करना पड़ा। मेगस्थनीज इसी के दरबार में आया था।
चंद्रगुप्त की माता का नाम मुरा था। इसी से यह वंश मौर्यवंश कहलाया। चंद्रगुप्त के बाद उसके पुत्र बिंदुसार ने 298 ई.पू. से 273 ई. पू. तक राज्य किया। बिंदुसार के बाद उसका पुत्र अशोक 273 ई.पू. से 232 ई.पू. तक गद्दी पर रहा। अशोक के समय में कलिंग का भारी नरसंहार हुआ, जिससे द्रवित होकर उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। 316 ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ। अशोक के उत्तराधिकारी अयोग्य निकले। इस वंश के अंतिम राजा बृहद्रथ मौर्य था। 185 ई.पू. में उसके सेनापति पुष्यमित्र ने उसकी हत्या कर डाली और शुंगवंश नाम का एक नया राजवंश आरंभ हुआ।

शासकों की सूची

चन्द्रगुप्त मौर्य… 322 ईसा पूर्व- 298 ईसा पूर्व
बिन्दुसार…. 297 ईसा पूर्व -272 ईसा पूर्व
अशोक…. 273 ईसा पूर्व -232 ईसा पूर्व
दशरथ मौर्य…. 232 ईसा पूर्व- 224 ईसा पूर्व
सम्प्रति…. 224 ईसा पूर्व- 215 ईसा पूर्व
शालिसुक…. 215 ईसा पूर्व- 202 ईसा पूर्व
देववर्मन्… 202 ईसा पूर्व -195 ईसा पूर्व
शतधन्वन् मौर्य… 195 ईसा पूर्व 187 ईसा पूर्व
बृहद्रथ मौर्य… 187 ईसा पूर्व- 185 ईसा पूर्व
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शनिवार, 8 दिसंबर 2018

Upendra Kushwaha


Constituency:Karakat
Party:Rashtriya Lok Samta Party
Father's Name:Late Shri Muneshwar Singh
Mother's Name:Smt. Muneshwari Devi
Date of Birth:Saturday, February 6, 1960
Birth Place:Javaj, Distt. Vaishali, Bihar
Spouse Name:Smt. Snehlata
SONS:1
DAUGHTERS:1
State Name:Bihar
Permanent Address:Vill. and P.O. Javaj, Distt. Vaishali, Bihar09431026399 (M)
Present Address:Bungalow No. 78, Lodhi Estate, New Delhi-110 003Tels : (011) 24644994, 24644995 09431026399 (M) Fax : (011) 24644996
Email Id:upendra.kushwaha19@sansad.nic.in
Education Qualifications:M.A. (Political Science)Educated at Patna Science College, Patna and B.R. Ambedkar Bihar University, Muzaffarpur, Bihar
Countries Visited:Bhutan, Indonesia, Mauritius,Nepal and Singapore
Positions Held:2000 - 2005 Member, Bihar Legislative Assembly
2002 - 2004 Deputy Leader, Samata Party, Bihar Legislative Assembly
March 2004 - Feb. 2005 Leader, Samata Party, Bihar Legislative Assembly
Leader of Opposition, Bihar Legislative Assembly
July 2010 - 2013 Member, Rajya Sabha
August 2010 to Jan. 2013 Member, 
Standing Committee on Agriculture
May, 2014 Elected to 16th Lok Sabha
27 May 2014 - 9 Nov. 2014 Union Minister of
 State in the Ministry of Rural Development; Ministry of Panchayati Raj andMinistry of Drinking Water and Sanitation
9 Nov. 2014 onwards Union Minister of State, Ministry of Human Resource Development
OTHER INFO:Lecturer, Department of Political Science, Samta College, Jandaha (Vaishali) since 1985, which is now known as Muneshwar Singh Muneshwari Samta College; State General-Secretary,(i) Yuva Lok Dal, 1985-88 and (ii) Samata Party, 1994-2002; National General-Secretary,Yuva Janata Dal, 1988-93;previously associated with the Samata Party



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राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के संस्थापक और बिहार के काराकट से सांसद उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक सफर
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के संस्थापक और बिहार के काराकट से सांसद उपेंद्र कुशवाहा मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. 
सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने उपेंद्र कुशवाहा शिक्षक, शिक्षाविद् और किसान भी हैं. नजर डालते हैं उपेंद्र कुशवाहा से जुड़ी कुछ खास बातों पर-
1. उपेंद्र कुशवाहा पूर्व राज्य सभा सदस्य और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष हैं.
2. उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की स्थापना 3 मार्च 2013 में की. अपनी पार्टी के नाम और झंडे का अनावरण बड़े प्रभावशाली ढंग से गांधी मैदान में एक ऐतिहासिक रैली से किया. 
3. फरवरी 2014 को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में शामिल हो गई. 2014 के आम चुनाव में RLSP ने बिहार से तीन सीटों सीतामढ़ी, काराकट और जहानाबाद पर चुनाव लड़ा. मोदी लहर पर सवार RLSP ने इस चुनाव में तीनों सीटों पर जीत हासिल की.
4. उपेंद्र कुशवाहा का जन्म 2 फरवरी 1960 को बिहार के वैशाली में एक मध्यम वर्गीय हिंदू क्षत्रीय परिवार में हुआ. उन्होंने पटना के साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और फिर मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एम.ए किया. कुशवाहा ने समता कॉलेज के राजनीति विभाग में लेक्चरर के तौर पर भी काम किया.
5. उपेंद्र कुशवाहा ने 1985 में राजनीति की दुनिया में कदम रखा. 1985 से 1988 तक वे युवा लोकदल के राज्य महासचिव रहें और 1988 से 1993 तक राष्ट्रीय महासचिव बने रहें. 1994 में समता पार्टी का महासचिव बनने के साथ ही उन्हें राज्य की राजनीति में महत्व मिलने लगा. इस पद पर वे 2002 तक रहें. सन 2000 से 2005 तक कुशवाहा बिहार विधान सभा के सदस्य रहें और विधान सभा के उप नेता नियुक्त किए गए.
6. उपेंद्र कुशवाहा को नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल के दौरान ग्रामीण विकास, पंचायती राज, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय से मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया.
7. उपेंद्र कुशवाहा को बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यू) के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार के करीबी सहयोगियों में से एक कहा जाता था. ऐसा माना जाता था कि नीतीश कुमार ने ही कुशवाहा के 2004 में बिहार विधान सभा का नेता प्रतिपक्ष बनने पर समर्थन दिया, बाद में कुशवाहा और नीतीश के संबंधों में खटास आ गई.
8. उपेंद्र बिहार विधानसभा के लिए सन 2000 में निर्वाचित हुए. विधानसभा में समता पार्टी के उप नेता बन गए और 2004 तक इस पद पर बने रहें. मार्च 2004 को कुशवाहा बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने और फरवरी 2005 तक सफलतापूर्वक अपनी जिम्मेदारी निभाने में कामयाब रहे.
9. इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा को जद (यू) और विशेष रूप से नीतीश कुमार के साथ समस्या होने लगी. तब पहली बार वे पार्टी से अलग हो कर नेशनल कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. राकांपा के बिहार प्रमुख के तौर पर उनका कार्यकाल सफल नहीं रहा. 
10. कुशवाहा फिर से जद (यू) में शामिल हुए और नीतीश से झगड़ा निपटा लिया. कुशवाहा के राजनीतिक कैरियर में जबरदस्त उछाल आया. जुलाई 2010 में वे राज्य सभा के सदस्य बनने के साथ ही अगस्त में कृषि समिति के सदस्य भी बनें.
11. जद (यू) के साथ कुशवाहा अपने नए सिरे से संबंधों को लंबे समय तक जारी नहीं रख पाए और फिर से पार्टी छोड़ दी. राज्य में कुशवाहा ने अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जातियों के समर्थन से अपनी स्थिति मजबूत कर ली. कुशवाहा का अभियान विशेष तौर पर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के खिलाफ था. 
12. मई 2014 में कुशवाहा को ग्रामीण विकास, पंचायती राज, पेय जल और स्वच्छता मंत्रालय का राज्य मंत्री बनाया गया. नवम्बर 2014 को कैबिनेट के फेरबदल के दौरान उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय का राज्य मंत्री बना दिया गया.
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