गुरुवार, 16 नवंबर 2017

समाजिक चिंतन      भाग- 2
            हमने पिछले अंक में सामाजिक समझ स्थापित करने के लिये सूक्ष्म चिन्तन किया था। प्रायः सभी महापुरूष, नेतागण कहते है कि सबको शिक्षित होता चाहिये, शिक्षा के लिये काम करना चाहिये। स्वयं तोबहुत कम प्रयास करते है, किन्तु इनमें भी अनेक ने शिक्षा के क्षेत्र में अनुकरणीय काम किये है। नालन्दा विश्व विद्यालय ने मानव जीवन को बदलकर वैज्ञानिक आधार पर इन्सान को जीने की कला सिखाई। सामाजिक क्रांति के जनक महात्मा जोतीराव फुले ने तो मानवीय सफल जीवन का उद्देश्य पूरा करने हेतु शिक्षा को प्राथमिकता दी, स्वयं ने अपनी अशिक्षित पत्नि सावित्राीबाई फुले को शिक्षित किया प्रशिक्षित किया व प्रथम शिक्षिका बनाकर नारी शिक्षा का अन्धकार दूर कर उन्हें पढ़ने, लिखने का मार्ग खोल दिया। कई स-माज व शिक्षा प्रेमीयों ने विद्यालय, महाविद्यालय, विश्व विद्यालय प्रारम्भ किये है। और शिक्षा का अभियान चला रहे है। यह स्वागत योग्य है।
          प्रत्येक अभिभावक अपनी सन्तान को शिक्षित करना चाहता है, उच्च तथा तकनीकि, शिक्षा, देश-विदे-शों, में दिलाना चाहता है। किन्तु यह वास्तविकता है कि शिक्षण संस्थान निःशुल्क शिक्षा के लिए प्रायः नहीं केबराबर है, और शासकीय विद्यालयों में सरकार की इच्छाशक्ति शिक्षा बजट बढ़ाने की नहीं होने के कारण शासकीय विद्यालय महाविद्यालय, विश्व विद्यालय में प्रायः संसाधनों की भारी कमी होती है। प्रशिक्षित शिक्षको का अनुपात तो नाम मात्रा का है, फिर विद्यालयों में अशिक्षित शिक्षक का स्तर इतना नहीं हो पाता कि वे विद्यार्थियों को एक अच्छा मानव बनाकर उसके जीवन को रोशन करने में सहायक सिद्ध हो सके।

        शासकीय पाठ्यक्रम भी राजनीति की भेंट चढ़ जाते है, जिस दल की सरकार बन जाती है, वह दल अपनी लाईन का पाठ्यक्रम बनाना चाहता है, और विद्यार्थियों के जीवन में अपनी राजनैतिक विचारधारा से इन्सान को लेस करने पर ही जोर देते है। पाठ्यक्रम तो निष्पक्ष भाव से वैज्ञानिक आधारों पर जो खरा उतर सके, जिसे चुनौति नहीं मिले और किसी भी विचारधारा की सरकार बनें। उसे पाठ्यक्रम बदलने की हिम्मत ही न हो सकें। ऐसा पाठ्यक्रम बनना ही चाहिये। और एक आदर्श राष्ट्र प्रेमी नागरिक की समझ कूट-कूट कर भरी होना चाहिये।

       एक चिंतन यह भी है, कि जिन अभिभावकों की माली हालत (आर्थिक हैसियत) अच्छी है, वह तो ऊँची से ऊँची शिक्षण संस्थान में अपने बच्चों को बड़ी भारी धनराशि खर्च कर शिक्षित प्रशिक्षित योग्य बनाकर उनका जीवन उज्वल कर सकते है। और कर भी रहे है। आज देखा जाये तो पाते है कि देश का प्र-शासनिक अमला जो है, उनके अभिभावको ने उनकी शिक्षा-दीक्षा पर भारी रकम खर्च करके देश की सम्प-त्ति संसाधन का उपभोग करने लायक बना दिया। और यह भी मानना पड़ेगा कि ओबीसी एस.सी.एस.टी. वर्ग के लोगों के बच्चों का जीवन उनकी आर्थिक शक्ति कम होने के कारण नाम मात्रा के प्रशासनिक पदोंपर उनके बच्चों को अवसर मिल पा रहा है। इसी कारण इनकी भावी पीढ़ी धन-धान्य, ज्ञान-विज्ञान आदर्श मानव बनने से पिछड़ रही है।

       और हमारे समाज की लगभग 12 प्रतिशत आबादी में तो मुश्किल से 1 या 2 प्रतिशत ही परिवार के बच्चों को समुचित शिक्षित होकर प्रशासनिक पद मिल पाये हो, इस विडम्बना को दूर करना ही होगा। अपने बच्चों को जमाने की रफ्तार में कदम से कदम मिलाने के लिये कोई शिक्षण संस्थान बनाना ही होग और निःशुल्क शिक्षा देकर साधन सम्पन्न आगे की पीढ़ी को बनाना होगा। इसी उद्देश्य को लेकर महात्माफुले सामाजिक शिक्षण संस्थान दिल्ली की स्थापना की गई है। जो ‘‘शिक्षादान की अभिनव योजना’’ पर कार्य कर रही है।

समाज के सक्षम लोगो को भावि पीढ़ी के लिये महात्मा फुले के आदर्शो को पूरा कराने हेतु तन-मन-धन से चिंतन करके यथाशक्ति आगे आकर समाज उत्थान में निसंकोच भागीदार बनना ही चाहिये।

वैसे प्रत्येक व्यक्ति का जीवन संचालित करने हेतु आर्थिक संकट रहता ही है, किन्तु अपनी आय से कोई न कोई धनराशि शिक्षा के लिये खर्च करने की इच्छाशक्ति भावना बनाना ही चाहिये। हम आलतू-फालतू, फिजुल खर्ची तो किसी न किसी बहाने कर ही रहे है। यदि अच्छा मानव जीवन बनाना हैं तो कुछन कुछ करने हेतु आज से ही शिक्षा के लिये कदम बढ़ाना प्रारंभ कर सकते है।


 रामनारायण चौहान
                  महासचिव
    महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
    ए-103,ए ताज अपार्टमेन्ट गाजीपुर दिल्ली-96
    मो. नं.- 9990952171

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