गुरुवार, 9 मार्च 2017





आज के वर्तमान युग में प्रत्येक मनुष्य या हर समाज अपने वर्तमन स्तिथि का अवलोकन करतें हुए
अपने इतिहास को जानने के लिये उत्सुक रहता है. कि हम कौन थे? हमारे पूर्वज क्या थे? हम किसकी वंशज है?
हमारे कल और आज में क्या अंतर है ? इस तरह के प्रश्न आते रहते है.
हम दुनिया के उन पूर्वजों के वंशज है जो योद्धा, समाज सुधारकऔर श्रमशीलता में आज भी किसी से कम नहीं है.
 ईमानदार, कर्मठ, शांतिप्रिय, न्याय प्रिय, सत्यप्रिय, विनम्र ऐसे समाज में पैदा होने से हम गौरान्वित महसूस करते है.
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से लेकर रघुवंश के राजा राम, कुश वैंश के लव-कुश, मौर्य वंश के चंद्रगुप्त मौर्या,
यह वंश जिसकी 164 पीढीया इस भारतवर्ष तथा अन्य द्वीपों पर रामायण काल से भी पूर्व से राज करती आ रही है.
 ईसा पूर्व 56 पीढि़यां में महामानव तथा गौतमबुद्ध ने सर्वप्रथम मानवता, सत्यता, न्याय, विश्वबंधुत्व के लिए आंदोलन चलाया.
 ईसा पूर्व 322 से ईसा पूर्व 185 तक मौर्य वंश के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसर, सम्राट अशोक,
दशरथ सम्प्रति, शांतिशक देवधर्मा, शत्धन्वत तथा वृहादरथ ने 137 वर्षो तक भारतवर्ष पर राज्य किया
 सम्राट .चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल आज भी इतिहास के पन्नो पर चमक रहा है.
हमारे ही पूर्वजों ने ही इस देश को ब्राह्मी लिपि दी जो देवनागरी के रूप में आज भी जानी जाती है.

जलियावाला बाग के जघन्य अपराधी जनरल ओ डायर को गोली से भुनने वाले ऊधम सिंह सैनी भी हमारे समाज के है
और हमारा समाज उन पर गर्व करता है और उनके शहादत को नमन करता है.
इसी इतिहास के पन्नो पर हमारे समाज के गौरव महात्मा ज्योतिबा फुले व माता सावित्री बाईं फुले
जिनके कल्याणकारी कार्यों ने इतिहास रच दिया है.
जिन्हें महात्मा गाँधी ने अपना मार्गदर्शक व डो भीमराव अंबेडकर ने अपना गुरु माना, जिसे पूरा समाज गर्व करता है.

इस प्रकार हम उपरोक्त वंशजों के एक ही जाति के विभिन्न उपजातियों में भिन्न – भिन्न जगहों पर फैले हुए है
चाहे पंजाब में सैनी के रूप में, उत्तरप्रदेश में मौर्या (मुरवा, मोया), शाक्य (सक्सेना),
वर्मा बिहार में महतो, मेहता, सिंह, कुशवाहा (कछावा, काछी) तथा
मध्यप्रदेश व छत्तिसगढ में कोसरिया पटेल मरार, अघरिया पटेल मरार, हरदिया पटेल मरार,
झिरिया पटेल मरार, सोनकर मरार, माली मरार या अन्य कालिय (कोइरी, कुईरी), सूर्यवंशी, बनाफर,
दागी, कन्नौज़िया, गहलोत, मगाधिया, बागवाँ, सखरिया, भदौरिया, राठौर, सोलंकी,
राजपूत, जैसवार ये आदि हमारी ही जाति के है.

उपरोक्त जानकारी इतिहास के विभिन्न पुस्तकों से संग्रहणकर संकलित की गई है.

आज हमे जरूरत है अपने समाज को आगे बढाने की, हमारे विजन (लक्ष्य) को पाने की.
हमारा विजन है सुन्दर और खुशहालसमाज. चूकि हमारा समाज अन्य समाज से
लगभग हर क्षेत्र के हर पायदान पर आगे बढने की दिशा मे भरपूर कोशिश कर रहा है.
 हमारे समाज के लोगो ने जीवन व्यवस्था को ऊपर उठाने की दिशा मे काय॔ करना प्रारम्भ कर चुके है
फिर भी आशातित सफलता नही मिल रही है, इसके अनेक कारण होसकते है.
जैसे अधूरा प्लानिंग, अदूर-दर्शिता,लोगो को समझा न पाना, सूचना का अभाव आदि आदि इत्यादि…..
 सामजिक उत्थान के अग्रदूत बराबर, उनके बैज्ञानिक सामजिक विचारो को मन्थन कर
 लोगो को पुरानी कुप्रथा से हटाकर नये व्यवस्था मे लाने, खर्चीले सामाजिक और घरेलू कार्यक्रमो को उखाड फेकने,
शिक्षा को समाज के कमजोर से कमजोर लोगो तक पहुचाना, शिक्षितो को सरकारी और
 गैर सरकारी संगठनो मे रोजगार के अवसर को तलाशने ,की दिशा मे हर मोर्चे पर अग्रसर है.
मुठ्ठी भर सामजिक वैज्ञानिक सोच भी हमारे समाज की काया पलट कर सकते है
जरूरत है सही मार्गदर्शन, सही और जरूरत मन्दो कीपहचान तथा विश्वसनीय सूचनाओ का त्वरित प्रचार.
इसी कडी मे सामाजिक गतिविधियो से दूर,समाज के शिक्षित वर्गो मे भी जागृती आयी है.
और सूचनाओ के त्वरित प्रसार के लिये इलेक्टॢानिक मिडिया को उपयोग करने का नीव ” ग्रोइंग जनरेशन मरार टोली ” के
 द्वारा लायी गयी है. इस टोली के द्वारा शिक्षितो को जोडने का काम कुमारी डाली माने के द्वारा शुरू किया गया है.
अब इस समूह मे लगभग हर क्षेत्र के मजे हुये लोग समाज के लिये अपना शत प्रतीशत देने के लिये एकदम तैयार है.
 (भारतेन्द्र पन्चेशवर {प्रबन्धन}, कमल पन्चेशवर व विनोद नागेश्वर {सिविल}, दिनश पन्चेशवर {कृ्षि},
 विनोद पाचे, स्वतन्त्रा बाहे, हेमन्त गाडेश्वर { कम्प्यूटर & सूचना प्रणाली },
मनोज व् कैलाश पन्चेशवर {चिकित्सा} , भुपेन्द्र पन्चेश्वर, कमलेश बाहे, यशवन्त खरे,
मुकेश भावरे व नरेश जम्भारे{ फार्मा } , प्रानेश कावरे { मेकेनिकल } डाली माने { एकाउन्ट } )
शिक्षा के क्षेत्र मे जमीनीस्तर पर अनेक लोग गाव से लेकर शहर तक है वही हमारा प्रयास है कि

Mali Samaj History | Saini Samaj History | माली समाज का इतिहास

jotirao-phule-and-savitribai-phule
Mali Samaj History is very ancient which can be seen in Mythological books. Jyotiba Phule was important part of Mali samaj History / Saini Samaj History. माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज Mali Samaj अपने पेशे बागवानी Bagwani से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास Mali Samaj History  किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती Saini Samaj History के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|
कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|
महाभारत काल के बाद सैनी कुल Saini Community के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|
इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|
इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|
यूनान के सिकंदर Sikandar Great के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|
संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|
महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|
क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

माली समाज का इतिहास

माली समाज हिन्दू धर्म की एक जाति है जो पारम्परिक बागवानी का कार्य करते थे | 
माली समाज को हम फूलमाली भी कहते है क्यूंकि ये प्रारम्भ से ही फूलो का कारोबार करते है माली समाज मुख्यतः उत्तरी भारत ,पश्चिमी भारत , महाराष्ट्र और नेपाल के तराई इलाको में रहते है माली समुदाय को राजपूत माली के नाम से जाना जाता है |
माली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द मला से लिया गया है | 
माली समाज को उनके द्वारा किये जाने वाले अलग अलग कार्यो के अनुसार बांटा गया है
  1. देउली माली  :- देवताओं की पूजा करने वाले माली
  2. बागवान  :-  बागवानी करने वाले माली
  3. धन्न्कुट या कुटा माली :-  चावल की फसल बोने वाले माली
  4. सासिया माली  :- घास काटने और बेचने वाले माली
  5. जदोंन माली  :- सब्जी उगाने और बेचने वाले माली
  6. फूल माली  :- देवताओं के लिए फूल उगाने वाले माली
  7. गोला माली :- गंगा और हरिद्वार के पास रहने वाले माली
  8. माथुर माली
  9. रोहतकी माली
  10. दिवाली माली
  11. महार माली
  12. वर माली
  13. लोढ़ माली
  14. जीरा माली
  15. घास माली
माली समुदाय में कई अंतर्विवाही माली है |
 सभी माले समुदाय का एक ही उत्पत्ति , इतिहास , रीती रिवाज ,सामाजिक स्थान नहीं है 
लेकिन माली समाज को  राजस्थान के  मारवार के राजपूत माली को 
1891 की रिपोर्ट से प्रारम्भ बताया जाता है
माली समुदाय को 1930 के ब्रिटिश राज के दौरान “सैनी ” उपनाम दिया गया जो आज तक स्थापित है